शुजात बुखारी हत्या की गुत्थी सुलझाने की कगार पर जम्मू-कश्मीर पुलिस

इस बीच, घाटी में पत्रकार एक अनजाने भय की जद में जी रहे हैं.

WrittenBy:दानिश बिन नबी
Date:
Article image

जम्मू-कश्मीर पुलिस ने राइजिंग कश्मीर के संपादक सईद शुजात बुखारी की हत्या का मामला लगभग सुलझा लिया है. उन्हें दिन दहाड़े श्रीनगर के व्यस्त इलाके प्रेस एन्क्लेव में 14 जून को शाम, इफ्तारी करने से ठीक पहले गोली मार दी गयी थी.

जांच दल में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उन्होंने हमलावरों कि पहचान कर ली है. उन्होंने अपना नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर न्यूज़लांड्री को बताया, “वे तीन थे और सभी स्थानीय है.” हालांकि, अभी हम उनकी पहचान को और पुख्ता करना चाहते है ताकि कोई गड़बड़ न हो.” उन्होंने बताया कि पुलिस को सिर्फ तीन या चार दिन लगेंगे इस मामले को सुलझाने में.

इस मामले में पुलिस के तरीके के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, “अभी इस हाई प्रोफाइल मामले में कई स्तरों पर जांच चल रही है. एक तरफ इसका क्रियान्वयन और दूसरा इसका षडयंत्र. हमने दोनों सुलझा लिया है और जल्द ही सारी चीजें सबके सामने होंगी.”

पुलिस ने जांच के दायरे का विस्तार उत्तर और दक्षिण कश्मीर तक फैला दिया. पुलिस ने पूछताछ के लिए एक दर्जन से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया है. कुछ लोगों को बुखारी के पैतृक गांव से भी गिरफ्तार किया गया.

बुखारी के खिलाफ अभियान में लिखे गए ब्लॉग जिसका शीर्षक “दलाल जो कश्मीर संघर्ष को धोखा दे रहे हैं” (“टाउट्स हु आर बीट्रेइंग द कश्मीर स्ट्रगल”) के बारे में बताते हुए अधिकारी ने कहा, “हमने आईपी को ट्रैक किया और पता लगाया कि इसे कहां से अपलोड किया जा रहा है. हम शुजात के बारे में सभी ऑनलाइन कंटेंट की जांच भी कर रहे हैं.”

इस ब्लॉग में लिखे गए नए पोस्ट में दो और पत्रकारों- अहमद अली फ़ैयाज़ और इफ्तिखार गिलानी- के नाम भी दिए हैं. अब इन दोनों को अपनी सुरक्षा की चिंता सता रही है. जहां फ़ैयाज़ ने एक लम्बी फेसबुक पोस्ट लिख कर अपनी स्थिति स्पष्ट की है, जिसका शीर्षक है “द मास्क्ड मैन’स विलीफिकेशन कैंपेन” वहीं गिलानी चुप हैं.

फ़ैयाज़ ने लिखा- “मेरे बारे में विवादस्पद सामग्री पूरी तरह से निराधार है और स्पष्ट रूप से किसी की व्यक्तिगत नापसंदगी का नतीजा है या फिर यह मेरे पत्रकारीय व्यक्तित्व से नफ़रत का नतीजा है. इसका कारण मुझे ज्ञात नहीं है. पहले दिन से इस पाक पेशे में रहते हुए, मैंने सिर्फ एक पत्रकार का काम किया है और कभी भी अपने आप को किसी ‘शांति प्रक्रिया’, ‘ट्रैक-2’ या किसी अन्य ‘कूटनीति’ यहां तक कि किसी गैर सरकारी संगठन से भी अपने आप को नहीं जोड़ा है. सभी प्रकार के गैर पत्रकारीय कार्यक्रमों से दूर रहकर, मैंने अपने आप को सिर्फ अपने मौलिक काम- विकास कार्यों की रिपोर्टिंग, मुद्दों का विश्लेषण करने और सम्पादकीय लिखने तक सीमित रखा. मैंने कभी भी किसी विचारधारा को मजबूत करने या कमजोर करने का काम नहीं किया या कभी भी अपनी खुद की विचारधारा को अपने पाठकों के ऊपर- जो कि विविध राय रखते हैं और विभिन्न पृष्ठभूमि से आते हैं- थोपने का प्रयास नहीं किया.”

जब फ़ैयाज़ और गिलानी की सुरक्षा के बारे में पूछा गया, तो उस पुलिस अधिकारी ने कहा, “केवल दो नाम या पत्रकार नहीं हैं. सूची में कई नाम हैं. हमनें उनमें से कुछ को सुरक्षा प्रदान करने की कोशिश की है, जबकि अन्य ने सुरक्षा लेने से मना कर दिया है.”

प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया, इंडियन वुमेन प्रेस कॉर्प्स, द प्रेस एसोसिएशन और द फेडरेशन ऑफ़ प्रेस क्लब्स जैसे संगठनों ने भी ब्लॉग की संभावित रूप से भड़काऊ सामग्री की तरफ केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का ध्यान आकर्षित किया है.

इन संगठनों ने गृह मंत्री से कहा है कि ऐसे समान आईपी, ब्लॉग्स और लेखों- जिनमें किसी खास व्यक्ति के साथ हिंसा होने की सम्भावना है- के खिलाफ जल्द से जल्द उचित और पूर्ववत कार्रवाई की जाए.

घावों पर नमक छिड़कना

अभी कश्मीर के लोग पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या से उबरे भी नहीं थे कि भाजपा के पूर्व मंत्री चौधरी लाल सिंह ने कश्मीरी पत्रकारों को दो चेतावनियां जारी कर दीं- या तो वो अपने “तरीके सुधार लें” या फिर “जैसा बशरत (बुखारी का जिक्र करते हुए) के साथ हुआ वैसे झेलने को तैयार रहें.”

लाल सिंह की टिप्पणी की राजनीतिक स्तर पर चौतरफा आलोचना हुई, लेकिन फिर भी कुछ प्रश्न उठते हैं. सबसे पहले यह कि जो भी सरकारी नियंत्रण की लक्ष्मण रेखा में नहीं रहेगा क्या उसको हमेशा के लिए चुप करा दिया जायेगा? दूसरा यह कि अगर ऐसी टिप्पणी एक मंत्री से आ रही है जो कि अभी कुछ समय पूर्व तक सरकार में था, तो शुजात बुखारी को किसने मारा?

इस पहेली को समझाते हुए कश्मीर लाइफ के पत्रकार शम्स इरफ़ान ने बताया- “कश्मीरी पत्रकारों के खिलाफ भाजपा की धमकाने वाली टिप्पणी हमारे घावों पर नमक छिड़कने जैसा है. इसकी जांच की जानी चाहिए. उनके इस बयान ने पूरी पत्रकार बिरादरी को कमजोर कर दिया है. एक निर्वाचित सदस्य कैसे इतनी आसानी से हिंसा को प्रचारित कर सकता है और इससे अपना पल्ला झाड़ सकता है? मैं इसको समझ नहीं पा रहा हूं.”

हां, कश्मीरी पत्रकार डरे हुए हैं. एक समय में लाल चौक के बीचोबीच चहल-पहल वाली प्रेस एन्क्लेव फिलहाल निर्जन सी दिखती है. ज्यादातर पत्रकार अपने एन्क्लेव में बाहर आने के बजाय ऑफिस में बैठना पसंद करते हैं. पत्रकार बिरादरी में व्याप्त डर को समझाते हुए शम्स कहते हैं, “एक पत्रकार के रूप में हम अभी तक सदमे से बाहर नहीं आये हैं. उनको प्रेस इन्क्लेव के बाहर मारने का मतलब यह है कि हम सभी असुरक्षित हैं.”

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like