पानी गए न ऊबरैं, मोती, मानस, चून

पीने योग्य पानी की किल्लत साल दर साल महामारी का रूप धरती जा रही है.

WrittenBy:विक्रांत बंसल
Date:
Article image

इस लेख का शीर्षक रहीम का एक दोहा है जो पंद्रहवी सदी के आस पास लिखा गया था. पानी की महत्ता उस दौर में भी इतनी व्यापक थी कि रहीम को कहना पड़ा पानी बचा कर रखिए क्योंकि एक बार पानी खत्म हुआ मोती, मनुष्य और चूना फिर कभी उबर नहीं सकते.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute

 दिल्ली के कई इलाकों में इन दिनों दिखने वाली एक आम तस्वीर है जहां कोई कहता है मेरे बच्चे घर पर अकेले है, किसी ने कहा मेरी मां बीमार है, तो किसी ने कहा कि मुझे ऑफिस के लिए लेट हो रहा है. तभी भीड़ से एक आवाज़ आई- ख़बरदार अगर किसी ने लाइन तोड़ी, पानी तो पहले मुझे ही मिलेगा क्योंकि यहां पहले मैं ही आया था. अगर किसी ने लाइन तोड़ी तो मैं उसकी टांग तोड़ दूंगा.

यह गर्मी के महीनों में आमतौर पर दिखने वाली तस्वीर है. यह पढ़कर आपको अच्छा नहीं लग रहा होगा. ये बातें न तो लिखने में अच्छी लगती है, न पढ़ने में, न बोलने में और न ही सुनने में. लेकिन देश की बड़ी आबादी ऐसी आवाज़ें रोज़ सुनती है और ये आवाज़ें किसी भी दिन आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बन सकती हैं.

आज भारत के लगभग सभी हिस्से में पानी की समस्या मुंह बाएं खड़ी है. गर्मियों में तो ये समस्या कई बार बहुत सी जिंदगियां भी लील लेती है. आए दिन खबरें आती है कि देश के इस कोने में सूखा पड़ गया तो कभी देश के उस कोने में सूखा पड़ गया. इस समस्या का सबसे पहला शिकार होते है हमारे किसान और शहरी गरीब. भारत की ज्यादातर आबादी आज भी गांवों में बसती है और खेती पर आश्रित है.

हम सिर्फ इतना ही सोच पाते हैं कि गर्मी है तो पानी का संकट तो होगा ही लेकिन अब क्या सर्दी और क्या गर्मी. बारहों महीने देश के हर कोने में लोगों को पानी के लिए जूझना पड़ रहा है.

हाल ही में नीति आयोग ने एक इंडेक्स निकाला है, जिसे कंपोसिट वॉटर मैनेजमेंट इंडेक्स कहते है.

क्या कहती है नीति आयोग की रिपोर्ट

नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि देश में पानी का अकाल है. देशभर में 75% घरों में पीने के पानी का संकट मंडरा रहा है और 2030 तक तो देश की 40 फीसदी आबादी के पास पीने का पानी तक नहीं होगा. इसमें राजधानी दिल्ली भी शामिल है. दिल्ली समेत देश के 21 बड़े शहरों में 2020 तक भूजल लगभग नहीं बचेगा.

रिपोर्ट आगे कहती है कि इतिहास में पानी की ऐसी कमी पहले कभी नहीं देखी गई. तो सवाल ये है कि सरकारें क्या कर रही हैं, क्योंकि 84 फीसदी ग्रामीण घरों में पाइप से पानी आता नहीं, देश का 70% पानी आर्सेनिक और फ्लोराइड से दूषित है. पानी की गुणवत्ता के मामले में 122 देशों में भारत का स्थान 120वां है.

तमिलनाडु में करीब 374 इलाके ऐसे है जहां ग्राउंड वॉटर की स्थिति चिंताजनक है. देश के 91 बड़े जलाशयों में क्षमता के मुकाबले आधा पानी भी नहीं है. ग्रामीण भारत के 6 करोड़ 30 लाख लोगों की पहुंच साफ पानी तक नहीं है. दुनिया भर के करीब 10 फीसदी प्यासे लोग भारत के ग्रामीण इलाकों में रहते हैं.

खत्म हो रहा है पानी

देश में पानी के स्रोत्र लगातार खाली हो रहे है. देश पानी की कमी की ओर लगातार बढ़ रहा है. ध्यान रहे कि उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गंगा-यमुना नदियों को जीवित व्यक्ति का वैधानिक दर्जा दिया हुआ है. कोर्ट ने कहा कि ना सिर्फ गंगा, यमुना बल्कि इनकी सहायक नदियों और इनसे निकलने वाली नदियों को भी जीवित व्यक्ति का दर्जा दिया जाए. लेकिन क्या कोर्ट के कह देने भर से ज़मीनी स्तर पर सब कुछ ठीक हो गया है, क्या सरकारें कोर्ट के ऑर्डर का क्रियान्वन करवा पा रही है, क्या लोग पानी की बर्बादी को लेकर संजीदा है.

 ये हमारा नहीं बल्कि यूनाइटेड नेशन (यूएन) का कहना है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक पूरी दुनिया में 180 करोड़ लोग दूषित पानी पीने के लिए मजबूर हैं. नदियां प्रदूषण का शिकार है. यमुना और गंगा जैसी सभ्यता को आश्रय देने वाली महान नदियां भी लगातार प्रदूषण से तंग हो कर सूखती जा रही है.

समस्या और समाधान

समस्या 1–  पानी की किल्लत की सबसे ज्यादा मार गरीब किसान पर पड़ती है. सूखा शब्द से तो आप सब वाकिफ होंगे लेकिन किसान इस शब्द को हर साल देश के किसी न किसी इलाके में जीता है. सूखे के कारण किसानों की आत्महत्या के बारे में आपने खबरों में भी सुना होगा.

समस्या 2- भारत में तकरीबन 40% भूमिगत जल का इस्तेमाल किया जाता है. खास बात ये है कि अमेरिका और चीन मिलकर जितना भूमिगत जल का उपयोग करते है उतना तो अकेला भारत ही कर लेता है. लिहाजा धीरे-धीरे भूमिगत जल कम होता जा रहा है,  क्या हमने कभी सोचा है कि अगर ये भूमिगत जल खत्म हो गया तो हम क्या करेंगे.

समस्या 3-  2016-17 पूरी दुनिया के लिए सबसे गर्म साल रहा है. गर्मी बढ़ने से पानी का भाप में बदलना स्वभाविक है जिससे नदियां तालाब सूखने लगते है और बायो डाइवर्सिटी के ऊपर नकारात्मक प्रभाव होता है.  धीरे-धीरे हम गलोबल वॉर्मिंग की जद में जकड़ते जा रहे हैं.

कितना जरुरी है पानी

जिंदगी की हर जरुरत के लिए पानी चाहिए.  विज्ञान कहता है इंसान हद से हद 4 दिन बिना पानी के जिंदा रह सकता है. पानी के बिना हमारे आस-पास के पेड़-पौधे, पशु-पक्षी सब मर जाएंगे.

लेकिन, रुकिए जनाब… हम इतनी चिंता क्यों कर रहे हैं जबकि धरती का 71 फीसदी हिस्सा तो पानी में डूबा हुआ है. यहां हम आपको ये बात याद दिला दें कि ये पानी हमारी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए नाकाफी है.

इस पानी में पीने लायक पानी 3% से भी कम है, और इस 3 फीसदी पानी का भी एक बड़ा हिस्सा हमारी पहुंच से बाहर है.

क्या है वजह?

 पीने लायक पानी का 30 फीसदी हिस्सा भूमिगत जल है, जिसे हम अंधाधुंध निकालते जा रहे हैं और अपनी हालिया जरुरतें पूरी करते जा रहे हैं.  दुखद बात तो ये है कि तेजी से बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के चक्कर में हमने इस पानी के रिस्टोर या रिचार्ज के सभी रास्ते बंद कर दिए है.

इसीलिए ये कोहराम मचा है और पूरी दुनिया संकट में है. यही हाल रहा तो साल 2030 तक दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी पीने के पानी से तो महरूम हो जाएगी.

यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट बताती है कि 2050 के मध्य तक भारत के मौजूदा पानी में और 40 फीसदी की कमी आ जाएगी.

समाधान 

देखा जाए तो प्राकृतिक तौर पर भारत में पानी की कमी नहीं है, लेकिन पानी की बर्बादी से ये मुसीबत पैदा हो गई है. पानी से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए  कुछ कदम उठाने जरुरी हैं जैसे- नीतियों पर दोबारा विचार करने जरुरत है, इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना होगा लेकिन पानी की बर्बादी न हो इसका ध्यान रखकर, जन जागरुकता कार्यक्रमों को प्रसारित करने की जरुरत आदि.

इतना ही नहीं बोरवेल और सबमर्सिबल लगावाने के बढ़ते चलन को रोकना भी जरुरी है. जरुरी नहीं है कि अगर किसी ने जमीन का एक टुकड़ा खरीद लिया तो उसकी नीचे के पानी पर उसका अधिकार हो गया और जो जब चाहें सबमर्सिबल या बोरवेल निकाल अपनी जरुरत को पूरा कर ले. इसे राष्ट्रहित का ध्यान रखते हुए बंद करने की जरुरत है.

जैसे बिजली के लिए मीटर जरुरी है वैसे ही पानी के लिए भी मीटर जरुरी है ताकि लोग अपनी जरुरत का ध्यान रखें और उसके मुताबिक ही इस्तेमाल करें. फ्री वॉटर देश को कल के आने वाले बड़े संकट में डाल सकता है. इससे कम से कम इतना तो होगा कि लोग बिना मीटर के मिलने वाले फ्री पानी के मजे लेना बंद कर घंटों तक अपनी गाड़ियों को चमकाना बंद करेंगे और ये पानी देश के दूसरे इलाकों जहां पानी की किल्लत हैं वहां काम आ सकेगा. 

बारिश का पानी

हर बार बरसात में हम बारिश के पानी का करीब 8 फीसदी हिस्सा ही हम बचा पाते हैं लेकिन तकरीबन 92 फीसदी पानी बेकार हो जाता है. ये हमारे पास इतना बड़ा रिसोर्स है, लेकिन हम इसके बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए. इसे बचाने के पुख्ता इंतजाम करना सरकारी की प्राथमिकता में होना चाहिए.

अकेली सरकारें नहीं है दोषी 

दरअसल, सभी अपने अधिकारों के प्रति आंकाक्षित लेकिन किंकर्तव्यविमूढ़ हैं. मतलब ये कि अधिकार और कर्तव्य के बीच हम अधिकारों को तो महत्व देतें है लेकिन कर्तव्य भूल जाते हैं.

जनता की सेवा करना सिर्फ सरकारों की ही नहीं बतौर नागरिक हमारा भी उतना ही दायित्व हैं. जबतक हम, मैं और तू से ऊपर उठ, देश और समाज के लिए नहीं सोचेंगे तब तक ये संभव नहीं हो पाएगा. जितना हमारे दौर की सरकारें इसके लिए जिम्मेदार हैं, उतना ही हम भी. ये बदलाव हर घर से होगा तभी दूर तलक जाएगा.

subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like