हामिद अंसारी क्या कहना चाहते थे और क्या बताया गया

पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी द्वारा विक्टोरिया मेमोरियल और एएमयू में जिन्ना की तस्वीर की तुलना का तर्क.

WrittenBy:मोहम्मद सज्जाद
Date:
Article image
  • Share this article on whatsapp

पत्रकार सागरिका घोष को दिए एक साक्षात्कार में (टाइम्स आफ इंडिया, 13 जुलाई, 2018), भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी से जिन्ना व साथ-साथ गांधीजी, अम्बेडकर, नेहरु, कुछ नोबल पुरस्कार विजेता इत्यादि की तस्वीर, जो की अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र संघ हॉल में मौजूद हैं, के बारे में पूछा गया. अटल बिहारी वाजपेयी, मोरारजी देसाई के साथ-साथ, इन लोगों को छात्र संघ द्वारा अजीवन सदस्यता प्रदान की गई थी. इस वर्ष यह मुद्दा मीडिया में काफ़ी गर्म रहा और इसके लिए तरह-तरह के स्पष्टीकरण भी दिए गये.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute

हामिद अंसारी एएमयू के पूर्व छात्र रह चुके हैं, और उन्होंने वहां कुलपति (2000-2002) के रूप में भी अपनी सेवाएं प्रदान की हैं.

अर्थव्यवस्था की असफलता, और रोज़गार (और राज्यों में शासन व्यवस्था पर) के मोर्चे पर बुरी तरह असफल होने के कारण, मुसलमानों की बुरी छवि गढ़ने के इस दौर में, सत्तारूढ़ बीजेपी की अपनी राजनति और हताशा के कारण यहां हर मुद्दा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की दिशा में घूम जाता है. और यही बात, ऊपर दिए गए सभी मसलों की व्याख्या कर देती है.

अंसारी, अपने पूरे साक्षात्कार में, इस मुद्दे के बारे में बहुत स्पष्ट थे. वह कहते हैं, “तस्वीरों और इमारतों पर हमला करना हमारी परम्परा नहीं है. जिन्ना वहां पर किसी विचारधारा का प्रचारक बनने से काफ़ी पहले वहां गये थे. वे वहां पर 1938 के आसपास थे. अगर उनकी तस्वीर यहां है तो इसमें ग़लत क्या है? उन्होंने यह भी स्पष्ट किया की हम औपनिवेशिक अधीनता और शोषण का विरोध करते हैं, फिर भी, इसे नष्ट करने के बजाए, हम कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरीयल हॉल समेत कई ऐसी तस्वीरों और इमारतों को हम बचा कर रखते हैं. हमारे पास ब्रिटिश न्यायाधीशों, प्रशासनिक अधिकारियों, वाइसरायों की तस्वीरें भी कुछ जगहों पर या कुछ संस्थानों में लगी हुई हो सकती हैं. हम इन सबको नष्ट क्यों नहीं कर देते?”

स्पष्ट है, वे देश को विभाजित करने में जिन्ना की भूमिका का बचाव नहीं कर रहे थे. न ही वे भारत विभाजन के जटिल इतिहास, जिसके लिए यक़ीनन जिन्ना अकेले ज़िम्मेदार नहीं थे, को सरल बनाने का प्रयास कर रहे थे. अंग्रेजों, जो की उस समय सत्ता में थे, द्वारा समर्थित और प्रोत्साहित प्रतिस्पर्धात्मक रूप से बढ़ती संप्रदायिकता के कारण भारत विभाजित हुआ. इस प्रकार की साम्प्रदायिक ताक़त और क्षमता केवल मुस्लिम लीग, जिसके नेता जिन्ना थे, तक ही सीमित नहीं थी. इसे हिंदू महासभा, आरएसएस द्वारा भी समर्थन प्राप्त था. समय-समय पर इतिहासकारों ने इस बात के सबूत भी दिए हैं कि कांग्रेस की निचली इकाइयां हिंदू महासभा-आरएसएस के साथ काफी हद तक मिली हुई थी. भारत विभाजन के लिए ये सभी एक साथ जिम्मेदार थे.

सत्ता के लिए अवसरवादी और वोट के भूखे लोगों, सत्तारूढ़ दल के कुछ नेताओं और विधायकों के विपरीत, अंसारी का ऐतिहासिक कलाकृतियों को बर्बाद करने के खिलाफ अलग दृष्टिकोण है. यह इतिहास को मिटाने जैसा है. माना जाता है कि बेहतरीन उपन्यासकार मिलन कुंद्रा ने कहा है: सम्पूर्ण मानव इतिहास भूलने के खिलाफ एक लड़ाई है.

इसके अलावा, ऐतिहासिक साक्ष्यों/कलाकृतियों को बर्बाद न करने के एक विश्वविद्यालय के ज्ञान पर कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा हमेशा से ही सवाल उठाया गया है. वे विश्वविद्यालय को डरा धमकाकर ऐसे अनैतिक तत्वों के आगे झुकने के लिए विवश कर रहे हैं. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.

ऐतिहासिक घटनाओं की जटिलताओं को ऐसे कुछ समूहों की सनक के आगे समर्पण नहीं किया जाना चाहिए. और सबसे बुरी बात तो ये है: कुछ प्रमुख टीवी समाचार चैनलों ने कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के कार्यों को एकसाथ मिलकर स्वयं ही मध्ययुगीन कोर्ट की तर्ज पर फैसले देने का प्रयास किया. इन समाचार चैनलों ने भी एएमयू को ही दोषी बताया.

एक प्रमुख टीवी हिंदी न्यूज़ चैनल (कर्नाटक विधानसभा चुनाव के सिर्फ दो दिन पहले) 7 मई, 2018 को इसी विषय पर पांच घंटे की लंबी बहस का आयोजन किया. यह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का एक स्पष्ट प्रयास था. इसके एक हफ़्ते बाद, जिन्ना की तस्वीर का यह मुद्दा कैराना लोकसभा उपचुनाव के चुनाव अभियान में भी उभर कर सामने आया. मुझे नहीं लगता कि ऐसे चैनल कभी इसी तरह की बेजा अदालत उन मामलों में लगाते हैं जिनमें किसी को पीट-पीटकर मार दिया जाता है और सरकार के मंत्री उन अपराधियों को माला पहनाने का काम करते हैं.

मीडिया के यह हिस्सा देश के निचले स्तर पर अधिक तर्कपूर्ण, जागरुक और ज़िम्मेदार नागरिक बनाने के लिए कोशिश नहीं करने दे रहे हैं. यह हमारे लोकतंत्र के लिए बहुत बुरा है.

अच्छी बात यह है कि हाल के नतीजे दिखा रहे हैं कि मतदाताओं की अच्छी खास तादात संभवतः इस विभाजनकारी खेल के अलावा दूसरी चीजों को भी देख पा रही है. मीडिया और बुद्धिजीवियों को आम लोगों को इन विनाशकारी खेल के बारे में जागरुक करने पर जोर देना चाहिए.

हामिद अंसारी को बधाई दी जानी चाहिए कि उन्होंने पत्रकारों द्वारा किए गए विशिष्ट प्रश्नों के जवाब में ऐतिहासिक साक्ष्य/कलाकृतियों को बर्बाद न करने के मुद्दे को स्पष्ट किया. भारतीय लोगों को इन मुद्दों से ऊपर उठकर इनकी वास्तविकता और उद्देश्य देखना चाहिए.

subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like