एनएल चर्चा 37: 377, समलैंगिकता, कन्हैया कुमार और नोटबंदी

हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.

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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया गया, बीते जनवरी में जिग्नेश मेवानी की रैली के दौरान रिपब्लिक के अर्नब गोस्वामी द्वारा तथ्यहीन रिपोर्टिंग और अपमानजनक टिप्पणियों पर एनबीएसए की फटकार, संभावना कि कन्हैया कुमार बेगूसराय सीट से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं और रिजर्व बैंक का नोटबंदी से जुड़ा ताजा आंकड़ा जहां आरबीआई ने कहा कि 99 फीसदी से ज्यादा पैसा बैंकों में वापस आ गया. इन विषयों पर आधारित रही इस हफ्ते की न्यूज़लॉन्ड्री चर्चा.

सुप्रीम कोर्ट में धारा 377 को निरस्त करने की याचिका डालने वाले याचिकाकर्ता यशवेन्द्र सिंह इस बार चर्चा में बतौर मेहमान शामिल हुए. साथ ही पैनल में जुड़े न्यूज़लॉन्ड्री के विशेष संवाददाता अमित भारद्वाज और स्तंभ लेखक आनंद वर्धन. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

2001 में पहली बार गैर सरकारी संस्था नाज़ एलजीबीटी समुदाय के भीतर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट गई थी. 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट ने धारा 377 को निरस्त कर दिया था. लेकिन 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया. अब 2018 में पांच अलग-अलग याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि सहमति से बनाये गए समलैंगिक संबंध अपराध नहीं होंगे.

याचिकाकर्ता और चर्चा के मुख्य अतिथि यशवेन्द्र ने कहा, “यह बहुत खुशी का दिन है. भारतवासियों को जो खुशी 15 अगस्त, 1947 को मिली थी. ठीक वैसी ही खुशी 6 सितंबर, 2018 को हमें मिली है. जो हक़ हमें देश की आजादी के साथ मिल जाने चाहिए थे, वह हमें 2018 में मिले हैं. आज हमें और हमारे प्यार को पहचान मिली है. यह अंग्रेजों द्वारा अपनी सत्ता को बने रखने के लिए बनाया गया कानून था. वो हर तरीके से भारतीयों को अपराध के दायरे में लाकर उन्हें दबाए रखना चाहते थे.”

अतुल ने यशवेन्द्र की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “यह संभव है कि अंग्रेजों ने धारा 377 जैसे बर्बर कानून भारतीयों को नियंत्रित करने के बनाये हों, लेकिन आज की तारीख में जब हम सुप्रीम कोर्ट में इस कानून के पक्ष में खड़े लोगों को देखते हैं तो पाते हैं कि इसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा सभी धर्मों के धर्मगुरु हैं. चाहे वो हिंदू हों, मुसलमान हों या ईसाई.”

इस पर यशवेन्द्र ने कहा कि अगर धार्मिक ग्रंथों और मंदिरों की कलाकृतियों पर ही गौर किया जाए तो हमें पता चलेगा कि हमारे समाज में विभिन्न सेक्सुअलिटी मौजूद रही है और उसे एक हद तक सामाजिक मान्यता भी रही है.

आनंद वर्धन ने 377 के धार्मिक द्वंद के संदर्भ को और विस्तार देते हुए कहा, “हिंदू धार्मिक मान्याताओं के बारे में तरह-तरह के ग्रंथ हैं. ऐसी स्थिति में किस ग्रंथ को माना जाएगा और किसे खारिज किया जाए यह समस्या तो है ही. दूसरी बात, लोगों में धार्मिक मान्याताओं के प्रति आस्था में कमी देखी जा रही है. जो भी लोग समलैंगिकता को अप्राकृतिक बता रहे हैं, उन्हें वेद-पुराणों में ही इसके समर्थन में कई सारे तर्क मिल जाएंगे. लेकिन लोगों को संस्कृत का भी ज्ञान नहीं है. लिहाजा कुछ लोग धार्मिक रचनाओं की मनमुताबिक व्याख्या करते हैं, और इसे धर्म के खिलाफ बताते रहते हैं.”

आनंद के अनुसार, अब एलजीबीटी समुदाय को सामाजिक बाधा खत्म करनी होगी. उन्होंने इस बाधा का एक पहलु खुद के जरिए बताया कि, यशवेन्द्र ऐसे पहले व्यक्ति हैं एलजीबीटी समुदाय से जिनसे उनकी मुलाकात हो रही है. तो ये जो मेल-मिलाप का अभाव है उससे भी इस समुदाय को समझने में लोग चूकते रहे हैं.

अमित भारद्वाज जो इस फैसले के दिन सुप्रीम कोर्ट परिसर में मौजूद थे, उन्होंने कहा, “शहरों और खासकर मेट्रो सिटी में जिस तरह से फैसले का स्वागत किया गया, उससे एक सकारात्मक तस्वीर बनती हुई दिखती है. समलैंगिकता लोगों की बातचीत का हिस्सा बन रहा है. जब फैसला आया, लोगों की आंखें नम थी. वो खुश थे, खुशी में चीख रहे थे. समलैंगिकता को सामाजिक स्वीकृति मिलने में वक्त लगेगा, लेकिन बात करने से ही बात बनेगी.”

पूरी बातचीत सुनने के लिए पॉडकास्ट सुनें.

पत्रकारों की राय, क्या पढ़ा, सुना या देखा जाए-

अतुल चौरसिया

लेख समलैंगिकता और धर्म

लेख ट्रंप प्रशासन के भीतर विरोध

आनंद वर्धन

बीफ माफिया के खिलाफ

अमित भारद्वाज

राजधानी दिल्ली में 18वीं सदी की तस्वीर क्यों?

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