सेरेना के संघर्ष को ऑस्ट्रेलियाई अख़बार का कार्टून क्यों नहीं समझ सकता?

ऑस्ट्रेलियाई अख़बार हेरल्ड सन का कार्टून ऑस्ट्रेलियाई समाज की नस्लवादिता और पितृसत्ता की अनगिनत कहानियों का विस्तार है.

WrittenBy:अतुल चौरसिया
Date:
Article image

भौगोलिक रूप से भले ही ऑस्ट्रेलिया बाकी दुनिया से कटा-छंटा एक भू-भाग है लेकिन इक्कीसवीं सदीं में वो तमाम सहूलियत जिन्हें इंसानी सभ्यता का पैमाना माना जाता है, वो इसके हर नगर में मौजूद हैं. लेकिन सभ्यता का एक पैमाना मानवीय संवेदना भी है. ऐसे अनेक अवसर आए हैं जब ऑस्ट्रेलियाई इस पैमाने पर क्रूरता की हद तक असफल सिद्ध हुए हैं. पूरे ऑस्ट्रेलिया का सामान्यीकरण न भी करें तो भी यहां का एक बड़ा बहुमत मानवीय संवेदना के धरातल पर अक्सर निर्मम सिद्ध हुआ है.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute

यूएस ओपेन के फाइनल में सेरेना विलियम्स ने खीज में या जानबूझकर जिस तरह से अंपायर के साथ कहासुनी की उसके कई पहलु हैं. मसलन वो इतिहास बनाने के मुकाम से एक क़दम दूर खड़ी थी इसलिए वो हर हाल में जीतना चाहती थीं. पहले उनके ऊपर अपने कोच से सलाह लेने का आरोप लगा. इसके बाद उन्हें कोर्ट में अपना रैकेट तोड़ने के लिए दंड मिला. इससे भन्नाई सेरेना ने अंपायर को ‘झूठा’ और ‘चोर’ कहा. सेरेना का आरोप था कि अंपायर पुरुषों के साथ अलग रवैया अपनाते हैं और महिला खिलाड़ियों के साथ अलग. टेनिस के महान खिलाड़ी जॉन मैकेनरो ने भी सेरेना के इस आरोप से सहमति जताई- “सेरेना बिल्कुल सही कह रही है. लड़कों के साथ अंपायरों का बर्ताव अलग होता है.”

संभव है कि सेरेना संभावित हार को पचा नहीं पायी क्योंकि वो एक 20 साल की युवा खिलाड़ी नाओमी ओशाका से पिछड़ रही थीं, इसलिए बेकाबू हो गई. संभव है कि अंपायर ने भी जाने-अनजाने कोई चूक की हो. लेकिन ऑस्ट्रेलियाई अख़बार हेरल्ड सन ने पूरी तरह से जानबूझकर सेरेना के ऊपर एक कार्टून छापा जिसके मूल में नस्लवाद और काले रंग के प्रति एक गोरी दुर्भावना काम करती है.

हेरल्ड सन के इस कार्टून ने खेल के मैदान में तात्कालिक कुंठा और उग्रता से उपजी एक अप्रिय स्थिति को नारीवादी विमर्श की अंतहीन दुनिया में पहुंचा दिया.

imageby :

संडे हेराल्ड का कार्टून

हाल के कुछ सालों में घटी कुछ घटनाओं से ऑस्ट्रेलियाई समाज की संवेदना और तासीर को ज्यादा स्पष्टता से समझा जा सकता है. पहला मामला 2008 की बदनाम भारत-ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट सिरीज से जुड़ा है. उस वक्त ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम के ओपनर मैथ्यू हेडेन ने ब्रिस्बेन रेडियो स्टेशन से बातचीत के दौरान भारतीय क्रिकेटर हरभजन सिंह को “लिटिल एबनॉक्सियस” वीड यानी अवांछित खर-पतवार की संज्ञा दी. इस टिप्पणी के बाद एंकर और हेडेन ठहाका लगाकर हंसते रहे. जिन लोगों को 2008 की टेस्ट सिरीज याद है, उन्हें पता है कि इस पूरे विवाद की शुरुआत हरभजन सिंह और ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज ऐंड्य्रू सायमंड्स के बीच हुई तकरार से हुई थी.

एेंड्य्रू सायमंड्स ने आरोप लगाया था कि हरभजन ने उनके ऊपर नस्ली टिप्पणी की है. साइमंड के मुताबिक वह शब्द “मंकी” था. भारतीयों को पता है कि यह हिंदुस्तानी संदर्भ में किसी तरह की नस्ली टिप्पणी नहीं है बल्कि साइमंड का हिंदी न समझ पाने का फेर है. असल में जो शब्द संभावित रूप से हरभजन सिंह ने इस्तेमाल किया था वह था “तेरी मां की…”

हम मैथ्यू हेडेन के बयान पर आते हैं. उस पूरी श्रृंखला में ऑस्ट्रेलियन खिलाड़ियों की गालीगलौज और छींटाकशी की अति हो चुकी थी. इसके बावजूद खेल की मर्यादा और स्पोर्ट्समैन स्पिरिट का तकाजा है कि खिलाड़ी अपनी खट्टी-मीठी लड़ाइयां खेल के मैदान में ही दफ़न कर आते हैं. लेकिन यहां एक ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर, दूसरे समकालीन क्रिकेटर को मैदान से बाहर, निजी बातचीत में गाली दे रहा था. यह एक ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी का सांस्कृतिक चरित्र है. खिलाड़ियों के बारे में यह भी माना जाता है कि वह अपने देश का सांस्कृतिक राजदूत होता है.

इसके कुछ ही समय बाद भारतीय टीम के कोच रहे ग्रेग चैपल ने भारतीय मीडिया के सवालों से झुंझला कर अपनी बीच वाली उंगली का इशारा किया. खैर हम इससे भी ज्यादा गंभीर वाकए का जिक्र करने जा रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया के पड़ोसी देश न्यूजीलैंड के एक टीवी एंकर पॉल हेनरी ने 2010 में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नाम के साथ अश्लील मजाक अपने शो के दौरान किया. वह लगातार उनके उपनाम ‘दीक्षित’ के अंग्रेजी स्पेलिंग की खिल्ली उड़ाते रहे. बाद में इस मामले में न्यूजीलैंड की सरकार ने माफी मांगी. आज के समय में एक महिला के प्रति इस दर्जे की असंवेदनशीलता दुनिया के इस हिस्से में सार्वजनिक रूप से मौजूद है. हेनरी की गलती इसलिए भी ज्यादा बड़ी है कि उनके शो में एक महिला भी मौजूद थीं लेकिन उन्होंने विरोध दर्ज कराने की बजाय भीड़ में शामिल होकर मजा उठाना मुनासिब समझा.

ऑस्ट्रेलियन के रूखे व्यवहार की जड़ें इसके अतीत में भी खोजी जा सकती है. ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी एबोरिजनल्स के साथ शुरुआती ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के कारनामे किसी भी सभ्य समाज के लिए कलंक है. ऑस्ट्रेलिया सरकार के दस्तावेजों में दर्ज आंकड़ों के मुताबिक 1788 यानी उपनिवेशवादियों के यहां पहुंचने से लेकर 1872 के बीच एबोरिजनल के नरसंहार की 170 वारदातें हुई. ये अंग्रेज सैनिक एबोरिजनल्स की हत्या शिकार की शक्ल में करते थे. यानी जिस तरह से जंगल में जानवरों का शिकार किया जाता है उस तरह से उन्होंने एबोरिजनल्स का शिकार किया. यह पशुता 20वीं सदी तक जारी रही.

एबोरिजनल्स के साथ बर्बरता इसके बाद भी जारी रही. सभ्यता की पश्चिमी अवधारणा के मुताबिक ढालने के लिए ओबोरिजनल्स को सुधार केंद्रों में कैद कर दिया गया और उनके बच्चों को उनसे छीन लिया गया इस तर्क के आधार पर कि उन्हें आधुनिक पश्चिमी पद्धति से शिक्षित करके उन्हें जंगलीपने से मुक्त किया जाएगा. इस तरह से एबोरिजनल्स की एक पूरी संस्कृति को समाप्त कर दिया गया.

इस नृशंस इतिहास पर ऑस्ट्रेलिया की वर्तमान सभ्यता टिकी हुई है. हेरल्ड सन अख़बार ने न सिर्फ सेरेना के ऊपर कार्टून प्रकाशित किया बल्कि इसके अगले दिन उसने व्यंग्य, ह्यूमर और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में इस कार्टून को दोबारा से पूरे पेज पर प्रकाशित किया.

ह्यूमर और अभिव्यक्ति के तर्क की एक सीमा है लिहाजा इस तर्क की आड़ में हेरल्ड सन का छुपना असल में अपनी सदियों पुरानी नस्ली श्रेष्ठता, पुरुषवादी सत्ता के अंहकार से पैदा हुआ इग्नोरेंस यानी अनदेखी के चलते हुआ है.

स्त्रियों के खिलाफ सोच, नस्लवाद की समस्या, भारतीय समाज के हिसाब से देखें तो जातिवाद की समस्या आज की तारीख में ऐसी समस्याएं हैं जो अभिव्यक्ति की आजादी, दुनिया में हास्य और व्यंग्य की सीमा तय करती हैं.

सेरेना विलियम्स की आलोचना के अनेक बिंदु हैं. मैदान के भीतर और बाहर उनका व्यवहार इसकी जद में आ सकता था. अब तक सेरेना के मैदान में व्यवहार के चलते 17,000 यूएस डॉलर का आर्थिक दंड लग चुका है. ये कुछ वजहें हैं जिनके आधार पर सेरेना की समीक्षा की जा सकती है. लेकिन सेरेना के जरिए एक पूरे मानव समाज के रंगरूप, शारीरिक बनावट के ऊपर व्यंग्य करना अस्वीकार्य है. हर लिहाज से अस्वीकार्य है. इसीलिए कहना जरूरी है कि ऑस्ट्रेलिया को अभी और सभ्य होने की जरूरत है.

subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like