दसों के सीईओ एरिक ट्रैपिए कई सवालों के ऐसे उलझे जवाब देते हैं, जिससे रफाल सौदे पर सवाल और गहराते हैं.
दसों एविएशन के सीईओ एरिक ट्रैपिये के इंटरव्यू के एक ही हिस्से की चर्चा हुई, शायद इसलिए क्योंकि गोदी मीडिया को लगा होगा कि इन जनाब ने मोदी सरकार को सर्टिफिकेट दे दिया है. एएनआई की संपादक स्मिता प्रकाश के इंटरव्यू से जो जवाब मिला है, उसे अगर ध्यान से देखा जाए तो एरिक ट्रेपिये या तो इस डील से अनजान मालूम पड़ते हैं या फिर वही बोल रहे हैं जो उन्हें बोलने के लिए रटाया गया है. आप ख़ुद भी हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड को हटा कर अनिल अंबानी की कंपनी को ऑफसेट पार्टनर बनाए जाने के सवालों पर उनके जवाब को ध्यान से सुनिए, सारे संदेह फिर से बड़े होते दिखने लगेंगे.
The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.
Contribute13 सितंबर को इकोनॉमिक टाइम्स में मनु पबी ने रिपोर्ट की थी कि यूपीए के समय मुकेश अंबानी की कंपनी ने दसों एविएशन के साथ करार के लिए पहल की थी मगर 2014 के बाद वे पीछे हट गए और एविएशन के धंधे से किनारा कर लिया. पुरानी डील के अनुसार दसों एविशन एक लाख करोड़ का निवेश करने वाला था जिससे वह अपने ऑफसेट की जवाबदेही को पूरा करता. इस रिपोर्ट में इस मामले में मुकेश अंबानी और दसों एविएशन से जवाब मांगा गया मगर वह नहीं मिला.
13 नवंबर, 2018 को एएनआई की स्मिता प्रकाश दसों के सीईओ से पूछती हैं कि अनिल अंबानी को कैसे कांट्रेक्ट मिला. स्मिता प्रकाश याद दिलाती हैं कि फ्रांस्वा ओलांद ने कहा है कि दसों को अपना ऑफसेट पार्टनर चुनने का विकल्प नहीं दिया गया. भारत सरकार ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं हुआ यानी दबाव नहीं डाला गया.
अब इस सवाल के जवाब में एरिक ट्रेपिए कहते हैं, “फ्रांस्वा ओलान्द ने अपनी बात का खंडन कर दिया है, साफ है कि दोनों साझीदारों ने ख़ुद ये करार किया, रिलायंस को चुनने का यह फैसला फ्रांस सरकार या भारत सरकार का नहीं था. मेरे पास अच्छा उदाहरण है. मैंने रिलायंस के साथ 2011 में चर्चा शुरू की. तब फ्रांस्वा ओलांद राष्ट्रपति नहीं थे. मोदी प्रधानमंत्री नहीं थे. हमने 2012 में समझौता किया.”
यहां स्मिता प्रकाश कहती हैं कि तब तो वो रिलायंस भी अलग थी. वे दूसरे भाई थे. भारत के प्रधानमंत्री और फ्रांस के राष्ट्रपति भी अलग थे. लेकिन आप तब भी थे, और अब भी आप हैं.
इस सवाल पर दसों एविएशन के सीईओ लपक कर जो जवाब अंग्रेजी में देते हैं उसका सार कुछ यूं है, “तभी तो मैंने कहा कि हमने आगे बढ़ने का फ़ैसला किया तो हमने रिलायंस के साथ ही बढ़ने का फ़ैसला किया. उसी ग्रुप के भीतर क्योंकि वे दो भाई हैं और पूर्व लीडर अंबानी के बेटे हैं इसलिए यह पूरी तरह से उसी लाइन में था, एक ही ग्रुप की एक या अन्य कंपनी के साथ था.”
क्या दसों के सीईओ ये कह रहे हैं कि 2011 में मुकेश अंबानी की कंपनी से बात कर रहे थे, फिर 2015 में उसी रिलायंस समूह के अनिल अंबानी की कंपनी से बात करने लगे? उनकी यह बात भ्रामक है. सही है कि दोनों एक ही पिता की संतान हैं और भाई हैं लेकिन क्या उन्हें नहीं पता कि दोनों की अलग अलग कंपनियां हैं और उनके समूह हैं. मुकेश अंबानी की कंपनी से बात करें और ठेका अनिल अंबानी की कंपनी को दे दें, क्योंकि दोनों अंबानी कहलाते हैं?
एरिक ट्रेपिए जी, भारत की व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी में लतीफों की कमी नहीं है कि आप और लतीफा ठेल रहे हैं. इस जवाब से तो लगता है कि बात मुकेश अंबानी से कर रहे थे, वे अचानक उठ कर चले गए और फिर अनिल अंबानी आ गए. दोनों का चेहरा एक जैसा लगता था तो हमने अनिल अंबानी को कांट्रेक्ट दे दिया.
सबको पता है कि मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी 2005 में अलग हो गए थे. मुकेश अंबानी का समूह रिलायंस इंडस्ट्री के चेयरमैन हैं. उनका ग्रुप अलग है. जिसके मुनाफे की चर्चा होती है. अनिल अंबानी का ग्रुप अलग है. उनकी कंपनियों पर हज़ारों करोड़ के घाटे और लोन की ख़बरें छपती रहती हैं. अगर दोनों एक ही ग्रुप की कंपनियां होतीं तो दोनों का कुल मुनाफा और घाटा भी एक सा होता. जबकि ऐसा नहीं है. अगर दसों के सीईओ को इतना पता नहीं है तो ज़रूर उनकी कंपनी लड़ाकू विमान नहीं बनाती होगी, सत्तू की पैकिंग करती होगी. बम में सत्तू भर कर बेचती होगी.
क्या दसों के सीईओ मज़ाक कर रहे हैं? इतने संवेदनशील मामले में एक सीईओ का ऐसा बयान हो सकता है क्या. यह जवाब ही बताता है कि एरिक के पास जवाब नहीं है. आप खुद पढ़ें और बताएं कि क्या ये जवाब अपने आप में नहीं बताता है कि इनके पास इस सवाल पर कोई जवाब नहीं है.
फ्रांस के अख़बार ‘ला मों‘ के पत्रकार जुलियन बस्सां ने ट्विट कर उनके बयान की यह कमी उजागर की है. बस्सां ने इस जवाब पर भी चुटकी ली है कि अनिल अंबानी की कंपनी को इसलिए मौका मिला क्योंकि शून्य से शुरू करना बेहतर रहता है. इस पर भी सीईओ साहब बता दें कि कितनी ऐसी कंपनियों को आफसेट पार्टनर बनाया है जिनके पास अनुभव नहीं हैं. क्या रक्षा मामलों में अनुभवहीन कंपनियों में सिर्फ अनिल अंबानी की ही कमी है या फिर और भी पार्टनर हैं जो शादी ब्याह के प्लेट बनाती हैं और उन्हें भी फाइटर प्लेन के कल–पुर्ज़े बनाने का मौका दिया गया है.
15 अप्रैल, 2015 को पेरिस में प्रधानमंत्री मोदी और पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बीच रफाल डील पर साइन होता है. इसके बीस दिन पहले पेरिस में ही 25 मार्च को इसी सीईओ साहब का एक वीडियो है. जहां वे खुशी–खुशी पुरानी डील के एलान होने की बात कह रहे हैं और उनके सामने वायु सेना के चीफ़ बैठे हैं, हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड के चेयरमैन बैठे हैं. वे अपनी बात में दोनों का ज़िक्र भी करते हैं.
25 मार्च के इस वीडियो में एरिक कहते हैं, “बहुत सारी मेहनत और शानदार चर्चाओं के बाद आप मेरे संतोष की कल्पना कर सकते हैं. जब भारतीय वायु सेना के चीफ कहते हैं कि उन्हें रफाल जैसा लड़ाकू विमान चाहिए. दूसरी तरफ एचएएल के चेयरमैन कहते हैं कि हम अपनी ज़िम्मेदारियों को साझा करने के लिए तैयार हैं. मैं यह मानता हूं कि कॉन्ट्रैक्ट पूरा करने और दस्तखत करने का काम जल्दी हो जाएगा.”
इस बयान के बीस दिन बाद जब 15 अप्रैल, 2015 को करार होता है तब डील से एचएएल बाहर हो जाती है. दसों के इसी सीईओ का यह बयान है तो उन्हीं को बताना चाहिए था कि वे 25 मार्च को किस यकीन से कह रहे थे कि एचएएल तैयार है. 13 नवंबर, 2018 को एएनआई की स्मिता प्रकाश को क्यों नहीं बताते हैं कि डील से कब एचएएल बाहर हो गई.
सीईओ एरिक ट्रेपिए कहते हैं, “सप्लायर होने के नाते हम इस डील के लिए काफी प्रयास कर रहे थे. 2012 में हम विजेता थे. इसलिए हम इस डील को चाहते थे. 126 एयरक्राफ्ट के लिए डील था. तो हम उस डील पर काम कर रहे थे. जैसा कि मैंने कहा एचएएल और भारतीय वायु सेना के साथ. यह सही है कि मैंने ऐसा कहा था. मैं मानता हूं कि भारत सरकार ने कहा है कि 126 विमानों की डील काफी लंबी और मुश्किल है. इसलिए 36 विमानों की डील करते हैं. फ्रांस सरकार सप्लाई करेगी. 2015 में यही हुआ था.”
आप खुद पढ़ें और अंग्रेज़ी में पूरा इंटरव्यू सुनें. बताएं कि क्या सीईओ एरिक ट्रेपिए ने एचएएल के बाहर किए जाने को लेकर कोई जवाब दिया है. क्या वे किनारा नहीं कर गए हैं? सवाल यही है कि पुराना ऑफसेट पार्टनर कैसे बाहर हो गया और नया कैसे आ गया तो इस महत्वपूर्ण सवाल पर सीईओ के जवाब का आप ख़ुद भी मूल्यांकन करें. उनके जवाब से संदेह दूर होते हैं या गहरे हो जाते हैं.
आपने कई अखबारों में खासकर हिन्दी अखबारों में सीईओ के बयान की ख़बर पढ़ी होगी– “मैं सच बोल रहा हूं. हम झूठ नहीं बोलते हैं. हमारी कंपनी क्लीन है.” क्या वहां आपको यह जानकारी मिली कि 1998 में इस कंपनी के पूर्व निदेशक को 18 महीने की सजा हुई थी. वे कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए बेल्जियम के नेताओं को पैसे खिलाने के आरोप में धरा गए थे.
इस कंपनी का सीईओ खुलेआम कह रहा है कि यूपीए की डील की तुलना में 9 प्रतिशत सस्ते दरों पर विमान दिया है. क्या यह एक तरह से दाम नहीं बता रहा है? फिर कोर्ट में सरकार क्यों कहती है कि फ्रांस से पूछे बग़ैर दाम नहीं बता सकते. तो सीईओ किससे पूछ कर रेट का अंदाजा पूरी दुनिया को दे रहा है. क्या भारत सरकार ने अनुमति दी है?
General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?