हेमा मालिनी का आदर्श गांव जहां आज भी महिलाएं कर रही हैं खुले में शौच

अपने काम की तरह ही अपने गोद लिए गांव ‘पैठा’ को भी भूल गई हैं हेमा मालिनी.

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25 मार्च को एक बार फिर बीजेपी उम्मीदवार के रूप में हेमा मालिनी ने मथुरा लोकसभा सीट से अपना नामांकन दाखिल कर दिया.

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नामांकन दाखिल करने के बाद हेमा मालिनी ने मीडिया से बातचीत के दौरान दिलचस्प बात कही, “मैंने मथुरा में बहुत काम किया है तभी मुझे दोबारा इस धरती से चुनाव लड़ने का मौका मिला है.” इस पर पत्रकारों ने उनके किए गए कुछ कामों का ब्यौरा मांगा तो उन्होंने कहा कि मैंने काम तो बहुत किया है लेकिन अभी मुझे याद नहीं है.

हेमा मालिनी को मथुरा में अपने द्वारा किए गए कामों की भले ही याद नहीं हो लेकिन सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत हेमा मालिनी द्वारा गोद लिए गए मथुरा जिले के पैठा गांव के लोगों के पास उनके कामकाज का पूरा लेखा-जोखा मौजूद है. लोगों को हेमा मालिनी के वो सारे वादे याद हैं जो उन्होंने समय-समय पर किए, पर उन्हें पूरा करने में वो कहां तक पहुंची उसी की पड़ताल है यह ग्राउंड रिपोर्ट.

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खुले में शौच जाने को मजबूर पैठा की महिलाएं

गोवर्धन तहसील से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद पैठा गांव में जब हम पहुंचे तो हमारा सामना उन्हीं सच्चाइयों से हुआ जिसके लिए इस देश के तमाम गांव, कस्बे, मोहल्ले जाने जाते हैं. पैठा गांव के बाहर ही एक भव्य गेट बना हुआ और उसके बगल से ही कच्ची, बजबजाती नाली बह रही थी. हालांकि, गोवर्धन से डीग ब्लॉक की ओर जाने वाली सड़क से सटे होने की वजह से गांव में जाने के लिए रोड बनी हुई है.

यहां हमारा सामना एक और ऐसे सच से हुआ जिसके बारे में वर्तमान सरकार के दावे बहुत बड़े हैं. हेमा मालिनी जिस दल और सरकार से ताल्लुक रखती हैं उसका दावा है कि 96 प्रतिशत भारत को खुले में शौच से मुक्ति दिला दी गई है. पैठा गांव को भी खुले में शौच से मुक्त होने का तमगा मिल चुका है, हालांकि ज़मीनी हकीकत कुछ और है.

गांव में रहने वाली 65 वर्षीय वृद्धा संतोष का घर गांव के अंत में है. संतोष के मुताबिक उनके आसपास के घरों की ज्यादातर महिलाएं शौच करने के लिए बाहर खेतों में ही जाती हैं. हालांकि, संतोष के घर में स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय बनाया गया है, लेकिन इसके बावजूद संतोष शौच के लिए बाहर ही जाती हैं. संतोष ने घर में शौचालय होने के बावजूद शौच के लिए बाहर जाने की दो वजहें बताईं. उन्होंने कहा, “एक तो शौचालय बनने के कुछ ही दिनों बाद छत गिर गई और दूसरा, घर में पानी की कोई सुविधा नहीं है.” एक किलोमीटर दूर से पानी लाकर शौचालय में डालने की बजाय वृद्धा संतोष एक लोटा पानी लेकर शौच के लिए बाहर जाना ज्यादा बेहतर समझती हैं.

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(गांव की वृद्धा संतोष का शौचालय जिसका छत बनने के कुछ दिनों बाद ही गिर गया)

यह एक तस्वीर है हेमा मालिनी के गोद लिए आदर्श गांव की. यहां हमें यह बात स्पष्ट तरीके से समझ लेना चाहिए कि सांसद आदर्श ग्राम योजना का उद्देश्य क्या है.

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(गांव के प्रवेश द्वार से पहले खुला नाला)

2014  में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने ‘प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना’ का शुभारंभ किया. इस योजना के तहत हर सांसद को एक साल के लिए एक गांव को गोद लेकर उसे विकास के उस मानक तक पहुंचाना था जहां वहां आदर्श गांव कहलाने की स्थिति में हो. इस योजना के कुछ लक्ष्य हैं-

  • शिक्षा की सुविधा
  • स्वच्छता
  • स्वास्थ्य सुविधाएं
  • कौशल विकास
  • बिजली, पक्के घर, पक्की सड़क
  • बेहतर प्रशासन

इस योजना के तहत सरकार का उद्देश्य मार्च 2019 तक हरेक संसदीय क्षेत्र में कम से कम तीन गांवों को आदर्श ग्राम बनाना था. इसी योजना के तहत मथुरा की सांसद और गुजरे जमाने की ड्रीमगर्ल हेमा मालिनी ने रावल, पैठा और मानागढ़ी नाम के तीन गांवों को गोद लिया था.

पैठा गांव के रहने वाले रामदत्त बताते हैं, “देखो जी हेमा मालिनी के गोद लिए गांव में ही हमारी बहू-बेटी शौच के लिए बाहर जाती हैं.” रामदत्त के मुताबिक पैठा गांव ओडीएफ यानि पूरी तरह से खुले में शौच से मुक्त गांव घोषित हो गया है लेकिन, हकीकत ये है कि अभी भी गांव के 50 से भी ज्यादा घरों की महिलाएं शौच करने के लिए बाहर जाती हैं. यही नहीं  ग्रामीणों के मुताबिक जिनके घरों में शौचालय बने वो भी अब शो-पीस बन कर रह गए हैं.

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(गांव में फैली गंदगी)

रोजगार की कमी से बदहाल युवा

गांव के ही रहने वाले गिरधारी ने बताया कि जब हेमा मालिनी ने पैठा गांव को गोद लेने की बात कही तो बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जिंदगी जी रहे ग्रामीणों ने तमाम उम्मीदें बांध ली थी. लेकिन सच्चाई यह है कि हेमा मालिनी ने बड़े-बड़े वायदे जरूर किए लेकिन गांव के और गांववालों के विकास के लिए कोई कोशिश नहीं की. गांव के कुछ ही लोगों के पास खेती है, ज्यादातर लोग कामगार हैं. आय का कोई मजबूत साधन नहीं होने की वजह से गांव के लोग रोजगार के लिए या तो पलायन करते हैं या फिर गोवर्धन या मथुरा जाकर दिहाड़ी पर कोई रोजगार देखते हैं.

सरकारी आंकड़े के मुताबिक गोवर्धन ब्लॉक के पैठा गांव की जनसंख्या लगभग 3,822 है. गांव में करीब 566 परिवारों के घर हैं. पिछली जनगणना मेंसामने आया था कि पैठा गांव में 1,158 लोग ऐसे थे जो या दिहाड़ी करके या खेतों में मजदूरी करके जीविकोपार्जन करते थे. पिछले कुछ सालों में गांव की जनसंख्या और बढ़ी है, इसके साथ ही रोजगार की समस्या और बढ़ी है.

गांव में ब्राह्मण जाति के लोगों की संख्या सबसे अधिक है. अंतिम जनगणना के मुताबिक गांव में रहने वाले दलित समुदाय के लोगों की संख्या 563 थी. इसके अलावा गांव में पिछड़ी जातियों के लोग भी रहते हैं.

गांव के उच्च जाति के परिवारों के पास खेती के साधन जरूर हैं लेकिन, रोजगार के मामले में सभी जाति के लोगों की हालत लगभग एक जैसी है. लोगों का कहना है कि हम लोग मथुरा और दिल्ली जैसे शहरों में जाकर रोजी-रोटी कमाते हैं. रोजगार हमारे लिए मुख्य समस्या है.

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(पैठा गांव)

नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक मथुरा जिले में महिला साक्षरता दर मात्र 56.89 प्रतिशत है. जिसकी वजह गांव में स्कूलों की कमी भी है. गांव की रहने वाली साक्षी जोशी ने हमें बताया कि पढ़ाई के नाम पर गांव में महज आठवीं तक ही स्कूल है. आठवीं पास होने के बाद हाई स्कूल की पढ़ाई करने के लिए गांव से कई किलोमीटर दूर गोवर्धन जाना होता है. साक्षी की मानें तो गांव में कम-से-कम 10वीं तक की पढ़ाई जरूर होनी चाहिए.

गांव के सिट्टू शर्मा ने हमें बताया कि गांव के लोगों को पहले राशन गांव में ही मिल जाता था. अब राशन लेने के लिए हम लोगों को दूसरे गांव जाना होता है. ऐसे में गांव के लोगों के लिए राशन की समस्या बढ़ गई है. सिट्टू ने यह भी बताया कि हेमा मालिनी की जगह पर कोई और होता तो भाजपा को जरूर वोट करते लेकिन जमीन पर काम करने वाले ठाकुर नरेंद्र सिंह को गठबंधन से टिकट मिला है. ऐसे में हम लोग ठाकुर साहब को ही वोट देंगे.

ग्रामीण मुकेश की मानें तो हेमा मालिनी अब तक तीन बार गांव आई हैं. एक बार वोट मांगने और दो बार गौशाला व हेलीपैड का शिलान्यास करने के लिए आई हैं. गांव में 1 करोड़ 20 लाख रूपए के स्वीकृत लागत से गौशाला बनाने की बात हुई थी. गांव गोद लेने के बाद सांसद ने गौशाला का शिलान्यास किया था. करीब एक साल हो गए फिर भी अब तक कुछ भी नहीं हुआ है. इसी तरह 4.34 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले हेलीपैड का शिलान्यास हेमा मालिनी करके गई तो सही, लेकिन इसके बाद जमीन पर कुछ भी काम नहीं हुआ है. मुकेश ने कहा कि सोचने वाली बात है कि जब पैसा स्वीकृत हो गया है तो अब तक जमीन पर कुछ भी काम क्यों नहीं हो रहा है?

हालांकि इस योजना का विचारणीय पहलू यह भी है कि खेती-बाड़ी, मजदूरी करने वाले ग्रामीणों के लिए हेलीपैड जैसी योजना का औचित्य क्या है. जाहिर है यह ऐसी लग्जरी है जिसका संबंध सांसद महोदया के सुगम आवागमन से है न कि ग्रामीणों के जीवनस्तर में किसी तरह के सुधार से.

मुकेश से जब रिपोर्टर ने पूछा कि गांव में हेलीपैड बनने से आप लोगों की आय में क्या बदलाव आएगा, तो उन्होंने बताया कि काम का टेंडर बाहरी लोगों को दिया गया था. स्थानीय लोगों की इसमें कोई भूमिका नहीं दी गई. कोई बड़ी कंपनियां जब टेंडर लेती है तो वो अपने मजदूरों को एक जगह से दूसरे जगह भेज देती हैं. ऐसे में यहां कंपनी द्वारा बाहर से मजदूर लाए जाएंगे.

हालांकि, गांव के ही उमेश ने हमें बताया कि इस बार चुनाव में गांव के लोग भाजपा और गठबंधन दोनों को वोट करेंगे. हेमा मालिनी और ठाकुर नरेंद्र सिंह दोनों ही उम्मीदवारों में किसको कम और किसको अधिक वोट मिलेगा अभी कहना मुश्किल है. उमेश ने बताया कि गांव में लोग भाजपा को मोदी के नाम पर वोट करेंगे न कि हेमा मालिनी के नाम पर वोट करेंगे.

जिम्मेदार लोगों ने क्या कहा?

पैठा गांव की प्रधान मछला देवी  से जब हमने शौचालय के संबंध में बात की तो उन्होंने बताया कि गांव के लोगों के आरोप निराधार हैं. उन्होंने कहा, “अभी-अभी हेमाजी ने गांव को गोद लिया है, चीजें धीरे-धीरे बदलेगी. हमारे पास शौचालय के लिए जितना पैसा आया उसके हिसाब से हमने काम किया है.” इसके बाद उन्होंने सड़क, नाली आदि से संबंधित सवालों पर बात करने से मना कर दिया.

पंचायत प्रधान से रुखसत होकर हमने भारतीय जनता पार्टी के मथुरा जिलाध्यक्ष नागेंद्र सिकरवार से फ़ोन पर बात की. उन्होंने गौशाला के मामले में बताया कि जमीन को लेकर विवाद पैदा होने के चलते गौशाला नहीं बन पायी है. इसी तरह उन्होंने हेलीपैड मामले में कहा कि हेलीपैड अब पास के दूसरे गांव में भी बन सकता है. इसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है. यह मामला नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल के पास है. जब उनका कोई फैसला आएगा तभी आगे कुछ कहा जा सकता है. जिलाध्यक्ष से जब हमने शौचालय के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, “देखिए, सारे घरों में शौचालय बन गया है, वहां के लोगों की आदत ही ख़राब है. वो बाहर जाने के आदी हैं.” शौचालय में डालने के लिए जरूरी पानी की सुविधा नहीं होने की बात पर जिलाध्यक्ष ने कहा कि सब धीरे-धीरे हो जाएगा.

गोवर्धन से कुछ दूरी पर स्थित इस गांव में हेमा मालिनी की घोषणाओं के मुताबिक अब तक बहुत कुछ हो जाना चाहिए था, लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि यह गांव अभी भी आदर्श के उस स्वप्न की तरह ही यथार्थ से दूर है, जितना की ज्यादातर सपने होते हैं.

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