पुलिसकर्मियों की कमी और बढ़ते अपराध को कब तक छिपायेगी योगी सरकार?

बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में लिखा था कि उत्तर प्रदेश पुलिस में 1.5 लाख रिक्त पदों को एक साल के भीतर भरा जायेगा. लेकिन भारतीय जनता पार्टी अपने इस वादे पर खरी नहीं उतर पायी है.

WrittenBy:बसंत कुमार
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उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था मज़बूत करने के दावे के साथ सत्ता में आयी योगी आदित्यनाथ सरकार के राज में प्रदेश में होने वाले अपराधों में कोई कमी नज़र नहीं आ रही है. सरकार दावे करती है कि राज्य में अपराधों की संख्या में कमी आयी है, लेकिन सरकार द्वारा ही समय-समय दिये गये आंकड़ों से पता चलता है कि अपराध में बढ़ोतरी हुई है. बढ़ते अपराध की कई वजहें हो सकती हैं, लेकिन एक बड़ी वजह प्रदेश में भारी संख्या में पुलिसकर्मियों की कमी भी है.

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2 जुलाई को लोकसभा में देश के अलग-अलग राज्यों में पुलिसकर्मियों की कमी को लेकर पूछे गये सवाल पर गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने लिखित में जवाब दिया था. गृह राज्यमंत्री के दिये जवाब के अनुसार देश के सभी राज्यों (केंद्रशासित प्रदेशों को छोड़कर) में 23,79,728 पुलिसकर्मियों की ज़रूरत है, लेकिन वर्तमान में 18,51,332 पुलिसकर्मी ही काम कर रहे हैं. यानी इन राज्यों में पुलिस के 5,28,396 पद अभी खाली हैं.

लोकसभा में गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी द्वारा दिये गये आंकड़ों के अनुसार सबसे ज़्यादा पुलिसकर्मियों के पद उत्तर प्रदेश में खाली हैं. उत्तर प्रदेश में 4,14,492 पुलिसकर्मियों में पदों पर सिर्फ 2,85,540 पुलिसकर्मी मौजूद हैं. यानी प्रदेश में पुलिसकर्मियों के 1,28,952 पद खाली हैं. गृह मंत्रालय ने जो आंकड़े जारी किये हैं, वो 01-01-2018 तक के हैं.

उत्तर प्रदेश में अपराध की स्थिति

कई मौकों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दावा करते रहे हैं कि जबसे प्रदेश में उनकी सरकार आयी तब से अपराधियों के हौसले पस्त हैं. लेकिन योगी सरकार द्वारा ही समय-समय पर दिय गये आंकड़े योगी आदित्यनाथ के दावे को ख़ारिज करते नज़र आते हैं.

22 जुलाई 2017 को बीबीसी हिंदी पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार विधानसभा में एक सवाल के जवाब में संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने बताया था कि सरकार के गठन से लेकर 9 मई तक राज्य में कुल 729 हत्याएं, 803 बलात्कार, 60 डकैती, 799 लूट और 2682 अपहरण की घटनाएं हुई हैं.

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार 19 मार्च 2017 से सत्ता में है. बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट में संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना द्वारा 9 मई  2017 तक के आंकड़ों का ज़िक्र है.

वहीं, 8 सितंबर 2018 को इकोनॉमिक्स टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2018 में योगी सरकार ने विधानसभा में दिये एक लिखित जवाब में कहा था कि यूपी में अपराध में बढ़ोतरी हुई है. सरकार ने अपनी पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार के शासन काल 2016-17 में हुए अपराध से तुलना करते हुए बताया था कि 1 अप्रैल 2017 से 31 जनवरी 2018 के बीच बलात्कारों में 25%, सार्वजानिक रूप से अपमानित करने की घटनाओं में 40%, महिलाओं के अपहरण के मामलों में 35% और छेड़छाड़ के मामले में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

बढ़ते अपराध पर उत्तर प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी बताते हैं, “प्रदेश में महिलाओं के उत्पीड़न के मामलों में ज़रूर इज़ाफ़ा दिख रहा है, लेकिन इसकी  वजहें दूसरी हैं. पूर्व में, प्रदेश में महिलाओं और दलितों पर हुए अत्याचारों के मामले दर्ज़ ही नहीं होते थे. स्थानीय स्तर पर राजनीतिक दबाव द्वारा इन मामलों का समाधान कर दिया जाता था, लेकिन हमारी सरकार आने के बाद एफआईआर होने लगे, जिसकी वजह से ये संख्या ज़्यादा दिख रही है.”

बातचीत में राकेश त्रिपाठी दावा करते हैं कि प्रदेश में जो संगठित रूप से अपराध होते थे, मसलन अपहरण, लूट, रंगदारी वसूली, डकैती इन पर हमारी सरकार ने रोक लगायी है. इसलिए इनमें काफी कमी आयी है और तकरीबन 40 प्रतिशत गिरावट दर्ज़ की गयी है.”

पुलिसकर्मियों की संख्या में कमी

भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर लोक कल्याण संकल्प पत्र जारी किया था. घोषणापत्र में ‘न गुंडाराज न भ्रष्टाचार’ शीर्षक लेख में पुलिस तंत्र में सुधार का वादा किया गया था.

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बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में लिखा है कि पुलिस में 1.5 लाख रिक्त पदों को संवैधानिक आरक्षण व्यवस्था का सम्मान करते हुए बिना जाति और धर्म के पक्षपात के, सिर्फ मेरिट के आधार पर भरा जायेगा. पुलिस के सभी रिक्त पदों को एक साल के भीतर भरा जायेगा. यही नहीं, बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में यह भी दावा किया था कि प्रदेश में 15 मिनट में पुलिस सहायता सुनिश्चित करायी जायेगी.

लेकिन भारतीय जनता पार्टी अपने इस वादे पर खरी नहीं उतर पायी है. उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एंव प्रोन्नति बोर्ड, लखनऊ के कंट्रोल रूम अधीक्षक गुलाम सर्वर से हमने योगी आदित्यनाथ की सरकार में पुलिसकर्मियों की भर्ती को लेकर सवाल किया तो उन्होंने कहा, ”हाल ही में लगभग 34 हज़ार पदों पर कॉस्टेबल्स की भर्ती हुई है. हालांकि मुझे पूरी जानकारी नहीं है.”

देश में भर्ती में देरी को लेकर आंदोलन करने वाले संगठन हल्ला बोल से जुड़े गोविंद मिश्र बताते हैं, ”सरकार अपने वादे को पूरा नहीं कर पायी है, लेकिन कुछ भर्तियां ज़रूर निकली हैं और भर्तियां हुई भी हैं. हालांकि, पूर्व की अखिलेश सरकार में कुछ चयनित युवाओं को योगी सरकार ने अब तक जॉइनिंग लेटर नहीं दिया है. इसको लेकर हम कई दफा आंदोलन कर चुके हैं.”

गोविंद मिश्र के अनुसार, ”साल 2015 में उत्तर प्रदेश में 34716 पदों के लिए कॉन्स्टेबल की भर्ती निकली थी. इसमें युवाओं का फाइनल चयन 2019 में हुआ. जब ये वेकेंसी निकली थी, तब प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी. सत्ता में आने के बाद योगी सरकार ने जनवरी 2018 में 41568 पदों पर कॉन्स्टेबल की भर्ती निकाली थी, जिसके नतीजे दिसंबर 2018 में आये. इसके अलावा, योगी सरकार ने 16 नवंबर 2018 को कॉन्स्टेबल के लिए 49568 पदों पर वेकेंसी की घोषणा की थी, जिसके नतीजे अभी नहीं आये हैं.”

यानी योगी सरकार में वेकेंसी तो निकल रही है, लेकिन सत्ता में दो साल बीत जाने के बाद भी पुलिसकर्मियों के खाली पदों को नहीं भरा गया है. सिर्फ 34716 पुलिसकर्मियों की अभी तक ज्वाइन हुई है. जबकि भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणापत्र में दावा किया था कि सरकार बनते ही एक साल के भीतर ही पुलिस के खाली पड़े 1.5 लाख पदों को भरा जायेगा.

उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व आईजी एस आर दारापुरी न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ”पुलिसकर्मियों की कमी बढ़ते अपराध की एक बड़ी वजह है. ज़रूरत के हिसाब से पुलिस में कर्मचारी नहीं होने से पुलिसकर्मियों पर काम का दबाव बढ़ता है. पेट्रोलिंग करनी हो या किसी मामले की जांच करनी हो, उस पर इसका साफ़ असर होता है. दूसरी बात, हमारी सरकारें पुलिस को अपने पक्ष में फायदा लेने के लिए इस्तेमाल करने के प्रति उत्सुक तो रहती हैं, लेकिन पुलिस के लिए कुछ नहीं करती हैं.”

प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह भी एस आर दारापुरी की बातों से इत्तेफ़ाक़ रखते हुए कहते हैं, “पुलिसकर्मियों की कमी की वजह से पूरा प्रशासन अपंग हो जाता है. इससे पुलिस की कार्य संस्कृति पर काफी असर पड़ता है. अकेले यूपी में हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर और मध्यप्रदेश के बराबर अपराध होता है.  इतनी बड़ी संख्या में अगर पुलिसकर्मियों की कमी होगी, तो जो कर्मचारी मौजूद हैं उन पर काम का बोझ बढ़ेगा. वे सो नहीं पायेंगे, छुट्टी पर नहीं जा पायेंगे. जिस वजह से काम की गुणवत्ता और विवेचना की गुणवत्ता पर भी असर दिखेगा. जिसके कारण, अंततः अपराधियों का मनोबल बढ़ेगा.”

उत्तर प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, “उत्तर प्रदेश में पुलिसकर्मियों की कमी है, लेकिन हमारी सरकार बनने के बाद हमने भर्ती प्रक्रिया शुरू की है. इस समय 43 हज़ार पदों पर भर्ती प्रक्रिया चल रही है.”

पूर्ववर्ती सरकारों पर आरोप लगाते हुए राकेश त्रिपाठी कहते हैं, “उत्तर प्रदेश में पुलिस ट्रेनिग सेंटर की हालत सही नहीं है. ट्रेनिंग के लिए बेहतर इंतज़ाम नहीं होने की वजह से हम बड़ी संख्या में भर्ती करने की स्थिति में नहीं हैं. इसके लिए हम पुलिस ट्रेनिंग सेंटर को भी मज़बूत कर रहे हैं, ताकि पुलिसकर्मियों को बेहतर ट्रेनिग की सुविधा हम दे सकें. दिक्कतें हैं, लेकिन हमारी सरकार ने जो संकल्प लिया है, उसे जल्द से जल्द और ज़रूर पूरा करेगी. हम यूपी में पुलिसकर्मियों के खाली पदों को जल्द से जल्द भरेंगे.’

गलत रास्ता अपना रही है योगी सरकार

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2017 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को यूपी में प्रचंड बहुमत प्राप्त हुआ. योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार बनी. सरकार बनने के बाद से ही प्रदेश में अपराध रोकने के लिए कई कोशिशें होती नज़र आयीं. महिलाओं के प्रति अपराध रोकने के लिए एंटी रोमियो स्क्वाड बनाया गया, तो अपराधियों के मन में डर भरने के लिए पुलिस ने ताबड़तोड़ एनकाउंटर करने शुरू कर दिये. एक वक़्त ऐसा था कि प्रदेश से हर रोज एक-दो एनकाउंटर की ख़बरें सुनने में आती थीं. योगी सरकार की इस ठोको नीति की हर तरफ आलोचना हुई. पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने भी इसे ग़लत बताया. कई फर्जी एनकाउंटर के भी मामले सामने आये. लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एनकाउंटर को सही बताते हुए कई दफा कहा कि इससे अपराध में कमी आयी है. अपराधियों के मन में डर समाया हुआ है.

एस आर दारापुरी योगी आदित्यनाथ सरकार के इस दावे से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते हैं. दारापुरी कहते हैं, ”योगी सरकार के दौरान अपराध में इज़ाफ़ा हुआ है. सरकार अपराध रोकने के लिए ग़लत तरीके अपना रही है. एनकाउंटर करने से अपराध कभी कम नहीं हो सकता है. सत्ता में आते ही योगी आदित्यनाथ ने पुलिसकर्मियों को एनकाउंटर करने का टारगेट दे दिया. पुलिसकर्मी जो अपराधी नहीं थे, उनका भी एनकाउंटर करने लगे. एक पुलिसकर्मी होने के बावजूद मैं कहता हूं कि सरकार के दबाव में किये गये 99 प्रतिशत एनकाउंटर फर्जी होते हैं.”

एस आर दारापुरी आगे कहते हैं, ”अपराध नियंत्रण की स्थिति उत्तर प्रदेश में अच्छी नहीं है. यहां पर जो कार्रवाई हो रही, वो गलत लाइन पर हो रही है. सरकार को लगता है कि एनकाउंटर के ज़रिये वो अपराधियों में डर पैदा करेगी. लेकिन जिस तरह से यूपी में फर्जी एनकाउंटर के मामले सामने आये हैं, उससे आम लोगों में भय पैदा हो गया है. उन्हें डर है कि पुलिस वाले कब उन्हें या उनके किसी जानने वाले का एनकाउंटर न कर दें.”

बाकी राज्यों में क्या है पुलिसकर्मियों की स्थिति

गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने जो आंकड़े जारी किये हैं, उसमें ज़्यादातर राज्यों में पुलिसकर्मियों की कमी ही नज़र आ रही है. आंकड़ों के अनुसार, बिहार में 1,28,286 पुलिस के पद है, लेकिन 77,995 पुलिसकर्मी ही मौजूद है. यानी 50,291 पद खाली हैं. गुजरात जहां पिछले 20 साल से भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, वहां भी  1,09,337 पुलिसकर्मियों की ज़रूरत है, लेकिन सिर्फ  88,267 पुलिसकर्मी ही मौजद हैं. यानी  21,070 पद खाली हैं. पश्चिम बंगाल में 48,981 पद खाली हैं. हाल में बने तेलंगाना राज्य में भी पुलिसकर्मियों की भारी कमी है. यहां 76,407 पुलिसकर्मियों की ज़रूरत है, लेकिन सिर्फ 46,062 ही पुलिसकर्मी मौजूद हैं, यानी 30,345 पद खाली हैं.

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एक हिंदी वेबसाइट पर लिखे अपने लेख में पूर्व आईपीएस अधिकारी प्रकाश सिंह बताते हैं, ”यह भी समझना होगा कि अंतरराष्ट्रीय मानक क्या हैं और भारत उसकी तुलना में कहां खड़ा है. अंतरराष्ट्रीय मानक के मुताबिक प्रति एक लाख लोगों पर 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए. जबकि भारत में जो स्वीकृतियां हैं, वो 182 पुलिसकर्मी प्रति लाख की है. यह संख्या भी पूरी तरह भरी नहीं है. जमीन पर यह मापदंड 139 की ही है. यानी भारत में एक लाख लोगों की सुरक्षा के लिए महज 139 पुलिस बल मौजूद हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि बड़ी संख्या में पद खाली हैं, जिसका ज़िक्र गृह मंत्रालय ने अपनी हालिया रिपोर्ट में किया है.”

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