कबाड़ का व्यापार कितना सही?

नगर निगम कचरा फेंकने लिए ज़मीन उपलब्ध करायेगा, लेकिन इसके पुनर्चक्रण के लिए नहीं. हमारे शहरों की योजनाओं में कबाड़ की दुकानों के लिए स्थान कहां हैं?

WrittenBy:सुनीता नारायण
Date:
Article image

मैं कचरे के विशालकाय टीले देख पा रही हूं, लेकिन एक अंतर के साथ. हमारे घरों से निकले इस कचरे को छांटकर अलग किया गया है और अलग-अलग किस्म के कचरे के साफ-सुथरे ढेर बना दिये गये हैं. मैं पूरे एशिया के सबसे बड़े कबाड़ के थोक बाज़ार में हूं. दिल्ली के टिकरी कलां में स्थित यह बाज़ार शहर के बाहरी इलाके में है. ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि कचरा न केवल हमारी नज़र, बल्कि हमारे ज़ेहन से भी बाहर रहना चाहिए.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute

इसके बाद हम इस बाज़ार के हरियाणा वाले हिस्से में जाते हैं, जो दिल्ली से सटे बहादुरगढ़ जिले में स्थित है. यहां फिर से हम छांटे एवं बिना छांटे हुए कूड़े के टीले देखते हैं. दिल्ली का बाजार कुछ हद तक औपचारिक है और दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा उपलब्ध करायी गयी भूमि पर बसा है, जबकि हरियाणा वाला हिस्सा कृषि योग्य भूमि पर बसा है.

मैंने किसानों से यह जानना चाहा कि उन्होंने अपनी ज़मीन इस कचरे के व्यापार के लिए लीज पर क्यों दी. उन्होंने विकास की ओर इशारा किया और विडंबना यह है कि इसे मॉडर्न इंडस्ट्रियल एस्टेट कहा जाता है. उनका आरोप है कि कारखानों ने औद्योगिक अपशिष्ट को ”रिवर्स बोरिंग” के माध्यम से वापस जमीन में पंप कर दिया है. नतीजतन उनका भूजल प्रदूषित हो चुका है और खेती असंभव. हम इस आधुनिक मैदान पर लगी चिमनी और उससे निकलता धुआं देख सकते थे. हमारे साथ आये प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने कहा कि अगर हम उन्हें सबूत उपलब्ध करायेंगे तो वे ”रिवर्स बोरिंग” करने वाले उद्योगों को बंद कर देंगे. यह एक बेकार सवाल था क्योंकि हम देख पा रहे थे कि खेतों से लगे कारखानों से गंदी नालियां निकलकर आ रही थीं, कचरे एवं दुर्गंध से भरी हुई. उसी हरियाणा सरकार के बनाये नियमों के अनुसार, उसके प्रदूषण बोर्ड के अधिकारी पांच साल में केवल एक बार किसी कारखाने का निरीक्षण कर सकते हैं. यह वाकई बेकार की बात हुई.

imageby :

कचरे के इस दुष्चक्र को हमारे जमाने की विकृत चक्रीय अर्थव्यवस्था का नाम दिया जा सकता है. पहले तो हम कचरा पैदा करते हैं और भूमि एवं आजीविका को नष्ट कर देते हैं. उसके बाद गरीब किसानों के पास कोई चारा नहीं बचता और वे इस कचरे का व्यापार करने पर मजबूर हो जाते हैं.

मैं पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण के अध्यक्ष के साथ वहां गयी थी. हम जानना चाहते थे कि कचरे को खुले में जलाने से रोकने के लिए किस तरह के उपाय किये गये थे. अध्यक्ष भूरे लाल ने पिछली बार इस क्षेत्र का दौरा किया था और उन्होंने मुंडका प्लास्टिक फैक्ट्री क्षेत्र के साथ-साथ टिकरी में भी बड़े पैमाने पर कचरा पाया था. उनके निर्देशानुसार कचरे को वहां से उठाकर ऊर्जा संयंत्रों में ले जाया गया, जहां उसे नियंत्रित माहौल में जलाया गया. पिछली सर्दी में इससे काफी अंतर पड़ा था.

इस बार, खुले में बहुत कम अपशिष्ट था. यह कचरा दरअसल एक संसाधन है, जैसा कि व्यापारियों ने हमें सूचित किया. वे इसे जलने देने का जोखिम नहीं उठा सकते. लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि ऐसा कचरा भी होता है जिसका पुनर्चक्रण नहीं किया जा सकता और उसे जलाना पड़ता है. उदाहरण के लिए, हमारे छोड़े गये जूतों का ऊपरी हिस्सा नष्ट न होने वाला मल्टीलेयर्ड प्लास्टिक है, जिसे जलाया नहीं जा सकता.

लेकिन यह भी निर्विवाद है कि ये बाज़ार, जिनमें जनता सबसे गरीब तबका काम करता है, इनकी ही बदौलत हम अपने स्वयं के कचरे में डूबने से बचे हैं. ये बाज़ार उन गरीबों के श्रम से बने हुए हैं जो हमारे कचरे में से काम की वस्तु ढूंढ़कर निकालते हैं और फिर उसे पुनर्संस्करण के लिए देते हैं. यह एक अनौपचारिक व्यापार है, लेकिन बहुत अच्छी तरह से व्यवस्थित है. मुझे बताया गया था कि बाज़ार में कचरे की कुछ 2,000 अलग-अलग किस्में हैं जिनका मूल्य 5 रुपये से 50 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच है. व्यापारी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का भुगतान करते हैं. अतः सरकार को इस व्यापार से कमाई होती है. इस व्यापार का समर्थन होना चाहिए, क्योंकि यह संसाधन व्यवसाय को एक स्रोत तो प्रदान करता ही है, साथ ही साथ लैंडफिल साइटों को बनाने की ज़रूरत भी नहीं रह जाती. हम इस व्यवसाय के बारे में कुछ नहीं जानते, लेकिन हमारा मानना है कि यह धंधा गंदा है. नगर निगम कचरा फेंकने लिए ज़मीन उपलब्ध करायेगा, लेकिन इसके पुनर्चक्रण के लिए नहीं. हमारे शहरों की योजनाओं में कबाड़ की दुकानों के लिए स्थान कहां हैं?

लेकिन एक मुद्दा है जो रह-रह कर मेरे ज़ेहन में आता रहता है और मेरे विचारों को प्रभावित करता है. इस अपशिष्ट व्यवसाय के लिए सही मॉडल क्या होना चाहिए? क्या हमें इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिए कि यह व्यापार गरीबों के लिए आजीविका प्रदान करता है इसलिए यह अच्छा है? इसका मतलब होगा कि हमें अधिक उपयोग करना चाहिए. क्या यह आगे का रास्ता है? मैं यह केवल टिकरी के संदर्भ में नहीं, बल्कि हमारे आसपास के वैश्वीकृत विश्व के बारे में भी पूछ रही हूं. जब से चीन ने अपनी सीमाएं विदेशी कचरे के लिए बंद की हैं, तभी से इस कचरे को बेचने के लिए कबाड़ व्यवसायियों ने नये देशों की तलाश शुरू कर दी है. क्या यही है कबाड़ का जवाब? निश्चित तौर पर नहीं! हम आगे भी इस विषय में चर्चा जारी रखेंगे.

(लेख डाउन टू अर्थ से साभार)

subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like