कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन के साथ कश्मीर के मौजूदा हालात और पत्रकारिता की दुरूह चुनौतियों पर बातचीत.
केंद्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म करने और उसे दो केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के फैसले के बाद से कश्मीर में सूचना के तमाम माध्यम ठप पड़े हैं. इसका बुरा असर वहां से प्रकाशित होने वाले अख़बारों पर भी पड़ रहा है. कश्मीर घाटी में 5 अगस्त के बाद से अख़बारों का प्रकाशन नहीं हो पा रहा है. कुछ अखबार जैसे तैसे छप भी रहे हैं तो उनकी संख्या बहुत कम है. सुरक्षा कड़ी होने और कर्फ्यू के चलते कम छप रहे अखबार उससे भी कम लोगों तक पहुंच रहे हैं. इसके चलते लोगों तक खबरें भी नहीं पहुंच रही हैं.
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Contributeकश्मीर में देश के अलग-अलग हिस्सों से रिपोर्टिंग करने पहुंचे पत्रकारों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. वहां से ख़बरें भेजना टेढ़ी खीर हो गया है. लोग एयरपोर्ट पहुंचकर दिल्ली आ रहे अनजान यात्रियों के हाथ पेन ड्राइव आदि से ख़बरें भेज रहे हैं. श्रीनगर में सरकार ने पत्रकारों के लिए एकाध जगहों पर इंटरनेट को खोला है, लेकिन सुरक्षा कारणों से ज्यादातर पत्रकार इसका इस्तेमाल करने से बच रहे हैं.
5 अगस्त से लगभग ब्लॉक हो चुके सूचना माध्यमों को फिर से शुरू करवाने को लेकर ‘कश्मीर टाइम्स’ की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अनुराधा भसीन का पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रख रही वकील वृंदा ग्रोवर के मुताबिक संचार माध्यमों को बंद किए जाने के कारण जम्मू से तो अखबार छप रहे हैं, लेकिन कश्मीर से नहीं छप रहे हैं.
इस पर केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा कि कश्मीर में किसी भी प्रकाशन पर कोई पाबंदी नहीं है और प्रकाशन नहीं होने के दूसरे कारण हो सकते हैं. उन्होंने अदालत में बताया कि घाटी में जैसे-जैसे हालात ठीक हो रहे हैं वैसे-वैसे पाबंदियां हटाई जा रही हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर अभी कोई फैसला नहीं सुनाया है. इन्हीं तमाम मुद्दों के इर्द-गिर्द अनुराधा भसीन से न्यूज़लॉन्ड्री ने बात की.
आपको सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की ज़रूरत क्यों पड़ी?
इसकी ज़रूरत इसलिए पड़ी की क्योंकि घाटी में जिस तरह का इन्फॉर्मेशन ब्लॉकेड इस बार हुआ है वैसा पहले हमने कभी नहीं देखा. कश्मीर और जम्मू के कई इलाके हैं जहां पर हमारे अपने संवाददाताओं के साथ हमारा या हमारे ब्यूरो का कोई सम्पर्क नहीं है. ऐसा पहली बार हुआ है. पहले भी घाटी में कई दफा सूचना के माध्यमों पर रोक लगाई जाती रही है, लेकिन सूचना का कोई ना कोई जरिया ज़रूर रहता था. इस बार पूरी तरह से सूचना के तमाम माध्यम ठप्प पड़ गए हैं. इसलिए हम सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए मजबूर हो गए.
सुप्रीम कोर्ट में आपकी याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार का क्या पक्ष रहा?
देखिए सरकार का पक्ष तो उदासीन रहा. उन्होंने कहा कि जम्मू से तो एडिशन निकल रहा है तो कश्मीर से क्यों नहीं निकाल रहे हैं? लेकिन शायद उन्होंने हमारी याचिका को ठीक से पढ़ा नहीं. हमारी याचिका में साफ़ लिखा है कि जम्मू से एडिशन निकल रहा, लेकिन कश्मीर घाटी से नहीं निकल पा रहा है. और जम्मू में भी जो अख़बार छप रहे हैं उनमें घाटी की सूचना नदारद है. हम जो रिपोर्ट छाप रहे हैं वो बाहर की मीडिया की रिपोर्ट के आधार पर कर रहे हैं. क्योंकि वे कुछ-कुछ रिपोर्ट कर रहे हैं. कश्मीर में छपने वाले तमाम अख़बारों के पास संसाधन भी कम हैं तो वे रोज भाग दौड़ नहीं कर सकते हैं. दूसरी दिक्कत ये है कि स्थानीय पत्रकारों को कर्फ्यू पास नहीं दिया जा रहा है वहीं बाहरी पत्रकारों को कर्फ्यू पास आसानी से मिल जा रहा है.
घाटी में जब भी स्थिति ख़राब होती है तो सूचना माध्यमों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है. कर्फ्यू लग जाता है तो लोगों का आना जाना कम हो जाता है. पत्रकार अपने काम करने के लिए कई दफा सुरक्षा बलों से मार भी खाते हैं. उनके कैमरे तोड़ दिए जाते है. फिर भी संपर्क का कोई न कोई जरिया हमारे पास रहता है, पर इस बार तो बहुत ही बुरा हाल है.
आपका अख़बार ‘कश्मीर टाइम्स’ कब से प्रकाशित नहीं हुआ है?
मेरे अख़बार का कश्मीर एडिशन 5 अगस्त के बाद से प्रकाशित नहीं हुआ है. जम्मू का एडिशन लगातार प्रकाशित हो रहा है. जम्मू के जो इलाके ज्यादा प्रभावित हैं. जहां कर्फ्यू लगा हुआ है. वहां अख़बार नहीं जा पा रहा है. उन इलाकों से सूचनाएं भी नहीं आ पा रही हैं.
इससे पहले भी कभी ऐसी स्थिति आई है जब अख़बार प्रकाशित करने में दिक्कत आई हो?
इससे पहले 2010, 2013 और 2016 में कुछ दिनों के लिए हम अख़बार प्रकाशित नहीं कर पाए थे. 2016 में तो वहां की सरकार ने ही प्रतिबंध लगाया था. लेकिन हमारा ब्यूरो ऑफिस चल रहा था. रिपोर्टिंग हो रही थी. वहां से कुछ ना कुछ सूचनाएं जम्मू स्थित हमारे मुख्य कार्यालय में आ रही थी.
आप लम्बे समय से जम्मू कश्मीर में पत्रकारिता कर रही हैं. 370 हटने के बाद घाटी से जो ख़बरें आ रही है उसमें भारतीय मीडिया के एक हिस्से और विदेशी मीडिया की ख़बरों में साफ़ अंतर दिख रहा है. भारतीय मीडिया का एक हिस्सा जहां कश्मीर में सबकुछ शांत बता रहा है वहीं विदेशी मीडिया और कुछ भारतीय मीडिया की रिपोर्ट्स के अनुसार कश्मीर में हालात ठीक नहीं है? ऐसा क्यों है?
जब एक ही जगह से रिपोर्ट हो रही है, लेकिन अलग-अलग ख़बरें आ रही है तो थोड़ा सा अंदाजा लगाने पर आप समझ जाएंगे कि ऐसा क्यों है. जिस जगह पर इतनी परेशानी रही है, लोगों में इतना गुस्सा रहा है, घाटी की बड़ी आबादी जो हर बात पर नाराजगी दर्ज कराती है, वहां पर इतने बड़े निर्णय के बाद कैसे लोग खुश होंगे. आपने उनके राज्य की पूरी राजनीतिक स्थिति बदल दी है, उनके मुख्यधारा के नेता जेल में हैं, जो वहां भारत का झंडा भी उठाते थे उन्हें अगर हिरासत में रखा गया है तो ये तो अटपटा लगता है कि वहां के लोग खुश होंगे.
आप व्यक्तिगत रूप से 370 हटाने के सरकार के इस फैसले को कैसे देखती हैं. कश्मीर में इसका आगे क्या प्रभाव दिख सकता है?
अभी क्या असर होगा इस पर कुछ भी कहना जायज नहीं है लेकिन जो भी असर होगा वो अच्छा नहीं होगा. धारा 370 को हटाया गया है. इस धारा का एक ऐतिहासिक कनेक्शन था. वो किसी वजह से यहां पर लागू हुआ था. लेकिन चुपचाप अचानक हटा लेना, जैसे कोई सर्जिकल ऑपरेशन किया गया हो और लोगों की राय बिल्कुल नहीं लेना. ये अच्छी बात नहीं है. इससे वहां के लोगों में नाराजगी होगी क्योंकि धारा 370 कश्मीरियों के इमोशन से जुड़ा हुआ है.
सरकार कह रही है कि आर्टिकल 370 की वजह से यहां बेरोजगारी थी, भ्रष्टाचार था. अब वो खत्म हो जाएगा.
कश्मीर में कोई बेरोजगारी नहीं थी. बाकी हिंदुस्तान में बेरोजगारी और भ्रष्टाचार खत्म हो गया क्या. क्या भारत की अर्थव्यवस्था बेहतर चल रही है. हम तो खुद ही देख रहे है कि हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था की स्थिति कितनी खराब है. कहा हैं आर्थिक विकास जो आप वहां लाने की बात कर रहे हैं. जम्मू कश्मीर में 1950 में भूमि सुधार लागू हुआ जिस वजह से आज वहां के हर एक इन्सान के पास अपनी ज़मीन है. ज़मीन होने के कारण सामाजिक पहचान मिलती है. इस वजह से यहां गरीबी कम है. यहां गरीबी है, लेकिन भुखमरी नहीं है. तो आज कश्मीर इतना पिछड़ा हुआ इलाका हो गया कि उसे विकास की जरूरत है? मुझे लगता है सरकार को बड़े-बड़े पूंजीपतियों के स्टाइल का जो विकास है उसकी ज़रूरत है. लेकिन इसके साथ आती है शोषण और ऊंच-नीच वाली संस्कृति. कश्मीर एक पर्वतीय इलाका है, यहां का पर्यावरण काफी नाजुक है. इस पूंजीवादी विकास से कश्मीर को नुकसान ही होगा.
सरकार के फैसले से जम्मू और लद्दाख के लोगों में ख़ुशी है सिर्फ कश्मीरी लोग नाराज़ हैं. यह बात सरकार का पक्ष लेने वाले ज्यादातर लोग कह रहे हैं. इसमें धर्म को भी शामिल किया जा रहा है. आप इसे कैसे देखती हैं?
जम्मू-कश्मीर की सारी राजनीति का बीजेपी ने फायदा उठाया है धार्मिक बंटवारे के जरिए. बाकी पार्टियों ने उठाया है. यहां पर धार्मिक बंटवारा पिछले कई सालों से बढ़ाया जा रहा है. तो आर्टिकल 370 में भी यही जारी है. जहां तक जम्मू और लद्दाख की बात है वहां से धीरे-धीरे चीजें सामने आएंगी. जम्मू की राजनीति अलग है. वहां अभी बीजेपी के प्रति झुकाव है. क्या आगे भी ये झुकाव बीजेपी की ओर रहेगा या फिर वे लोग कुछ समय बाद अपने व्यक्तिगत भविष्य को तरजीह देंगे. जम्मू में मुस्लिम बाहुल्य इलाके भी हैं, वहां क्या हो रहा किसी को पता नहीं है. मुझे इस बात का भी डर है कि जम्मू में महौल साम्प्रदायिक न हो जाए. जम्मू में अभी मुस्लिम खामोश हैं. वहीं लद्दाख के लोग खुश हैं तो ये उनकी पुरानी मांग थी.
अब कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी संभव हो पाएगी?
देखिए कश्मीरी पंडितों की वापसी धारा 370 हटने या रहने पर निर्भर ही नहीं है. वो तो हमेशा से यहां के नागरिक हैं. कश्मीरी पंडितों की वापसी निर्भर करता है कि कश्मीर की क्या स्थिति रहेगी. क्या यहां की कानून व्यवस्था मजबूत होगी. राजनीतिक स्थिति बदलने से महौल सही हो जाएगा ऐसा नहीं कह सकते हैं.
कहा जा रहा है कि प्रतिबंध अगर लगातार जारी रहा तो लोगों में नाराजगी बढ़ेगी. और हालात ख़राब होंगे.
90 के दशक में कश्मीर नहीं जाएगा. तब की स्थिति दूसरी थी. आज की जो नाराजगी है वो 90 के दशक जैसा नहीं है. नाराजगी काफी ज्यादा है लेकिन मिलिटेंसी उस स्तर की नहीं. वैश्विक स्थिति भी बिलकुल अलग है. तो मैं नाइंटीज रिटर्न नहीं कहूंगी, लेकिन घाटी में एक खतरनाक स्थिति ज़रूर बन सकती है. लोगों में खासकर युवाओं में काफी ज्यादा गुस्सा है. वे बंदूक उठाने को तैयार हैं. अगर आप हाल में कुछ नेशनल और इंटरनेशनल मीडिया में प्रकाशित ख़बरें पढ़ें तो उसमें युवा कह रहे हैं कि हम बंदूक पकड़ने को तैयार हैं. अगर पाकिस्तान इसमें थोड़ा भी मदद करता है तो ये उसके लिए बेहद लो-कॉस्ट वॉर होगा. इससे पाकिस्तान को फायदा होगा.
आपके अनुसार सरकार को 370 को कैसे हटाना चाहिए था?
भारत एक लोकतांत्रिक देश है. लोकतांत्रिक देश में जनता की राय से फैसले लिए जाते हैं. अगर आपको लगता है कि कश्मीरियों की भलाई के लिए आप कुछ कर रहे हैं. अगर ये बहुत अच्छी चीज है तो आप लोगों के बीच जाते. आपके पास हर तरह के साधन मौजूद हैं. प्रोपेगेंडा के भी साधन हैं. आप कम से कम लोगों के पास तो जाते, उन्हें सहमत करते. अगर लोगों की सहमति होती है तो हटा देते. वैसे तो क़ानूनी तौर पर आर्टिकल 370 में कोई भी बदलाव लाने के लिए वहां की विधानसभा से इजाजत लेनी थी. अगर विधानसभा नहीं है तो ये पॉवर राज्यपाल को, संसद को या राष्ट्रपति को नहीं मिल जाता है. ये तो हमारे संविधान के भी अगेंस्ट जाता है. तो लोगों से बात किया जाना चाहिए था क्योंकि उन्हें ऐसा न लगे कि हमसे पूछे बगैर हमारे भाग्य का फैसला किया गया. हमारे पास जो अधिकार थे उसे छीन लिया गया.
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