जन्मदिन मुबारक मोदी जी : समस्त भारतीय मीडिया परिवार

लगभग समूचे मुख्यधारा के मीडिया में लगी मुबारकबाद की होड़ का सम्यक अवलोकन.

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बीता हुआ कल (17 सितंबर) भारतीय राजनीति में एक अलग तरह की घटना के रूप में दर्ज हो गया है. यह शायद पहली बार हुआ है कि किसी प्रधानमंत्री का जन्मदिन राजकीय योगदान के साथ ही पूरी मीडिया के लिए दिन भर धूमधाम का बायस बना रहा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जन्मदिन पूरे देश में सरकार और बीजेपी ने मिलकर पूरे उल्लास के साथ मनाया. प्रधानमंत्री मोदी ने हर बार की भांति इस बार भी तितलियां उड़ाने जैसे कुछ अभिनव प्रयोग किए. वह अपने जन्मदिन पर अपने गृह प्रदेश गुजरात के केवड़िया पहुंचे थे जहां सरदार सरोवर बांध के बगल में कैक्टस गार्डन में उन्होंने यह काम अंजाम दिया.

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि शायद यह पहली बार हुआ है कि देश के लगभग सभी कथित बड़े अखबारों ने अपने संपादकीय पेज पर न सिर्फ बीजेपी के नेताओं को बल्कि कई ‘ख्यातिप्राप्त’ लोगों को भी प्रधानमंत्री की तारीफ में ‘आशीर्वचन के कुछ शब्द’ उवाचने का अवसर दिया.

आज जिन ‘बौद्धिकों’ ने मोदीजी के महान, बहुआयामी व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला है, उनमें अमित शाह और प्रकाश जावडेकर जैसे बड़े काबीना मंत्री शामिल हैं. बौद्धिकों की इस होड़ में पहले नंबर पर हैं गृहमंत्री अमित शाह रहे. अमित शाह ने 17 सितबंर को हिन्दुस्तान टाइम्स अखबार में ‘ए मल्टी फेसेटेड पीएम (बहुआयामी प्रधानमंत्री) शीर्षक से प्रशस्ति गान किया. अमित शाह के इस लेख को हिंदुस्तान टाइम्स ने अपने हिन्दी अखबार हिन्दुस्तान ने भी ‘जन अपेक्षाओं पर खरा नेतृत्व’ शीर्षक से छापा है. अमित शाह के उसी लेख को गुजरात के दूसरे सबसे बड़े अखबार संदेश ने अपने संपादकीय पेज पर जगह दी है. इसके अलावा अमित शाह के उसी लेख को पूर्वोत्तर के असम ट्रिब्यून, आंध्र प्रदेश के सबसे बड़े अखबार इनाडू और कन्नड़ के बड़े अखबार विजयवाणी ने अग्रलेख के रूप में छापा है.

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मोदीजी की प्रतिभा को पहचानने वाले दूसरे बड़े ‘विद्वान’ हैं सूचना एवं प्रसारण सह वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर. प्रकाश जावडेकर ने ‘ए लीडर पार एक्सलेंस’ (एक उत्कृष्ठ राजनेता) के नाम से एक लेख देश के प्रतिष्ठित अखबार इंडियन एक्सप्रेस में लिखा. वह मोदीजी और जावडेकर का प्रताप ही है कि उसी लेख को भुवनेश्वर से निकलने वाला ओडिसा पोस्ट और धारित्री ने भी छापा है जबकि बंगाल के बड़े अखबार प्रतिदिन ने उसे संपादकीय पेज पर प्रकाशित किया.

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झारखंड के सबसे बड़े अखबार प्रभात खबर ने बीजेपी के महासचिव व सांसद भूपेन्द्र यादव का संपादकीय पेज पर ‘नए भारत के जननायक’ के नाम से एक लेख छापा है जिसे उस अख़बार ने अपने दसों संस्करणों में अग्रलेख के रूप में छापा है. इतना ही नहीं, प्रभात ख़बर जिसकी टैग लाइन थी ‘अखबार नहीं आंदोलन’ उसने एक क़दम आगे बढ़ते हुए क्रांतिकारी काम किया और दूसरा लेख भी प्रधानमंत्री की वीरगाथा को ही समर्पित कर दिया. इस लेख के लेखक कोई और नहीं बल्कि सेन्ट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन के चेयरमैन प्रसून जोशी हैं. उन्होंने ‘मस्तक ऊंचा रखने का विश्वास’ शीर्षक से लेख लिखा है. गीतकार और सेंसर बोर्ड के चेयरमैन प्रसून जोशी के उसी लेख को बेनेट कोलमैन कंपनी के हिन्दी अखबार नवभारत टाइम्स ने ‘सीधी रीढ़ और मस्तिष्क ऊंचा रखने का विश्वास’ शीर्षक से छापा है.

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इसी तरह आध्यात्मिक गुरू जग्गी के लेख को बेनेट कोलमैन ने अपने अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादकीय पेज पर जगह दी है जिसका शीर्षक है- ‘मोदी इज द मैन ऑफ मोमेंट, ही हैज मेट इंडिया’ज डिटरमाइंड एंड सेल्फलेस लीडरशिप’.

इसी तरह कर्नाटक के विजय संकेश्वर बीजेपी के पूर्व सांसद रहे हैं और बहुत बड़े ट्रांसपोर्टर भी हैं. उनके स्वामित्व में निकलने वाले अखबार विजयवाणी ने पूरा एक पेज मोदी के जन्मदिन को एक्सक्लूसिव बनाकर छापा है. इंडियन एक्सप्रेस के सहयोगी प्रकाशन जनसत्ता में एक लेख पत्रकार आलोक मेहता ने लिखा है. मेहता ने ‘खतरों से सफलता के सेनापति नरेन्द्र मोदी’ शीर्षक लेख में अपने निजी अनुभव को विस्तार देते हुए लिखा है कि किस तरह शायद वह राजधानी के अकेले ऐसे पत्रकार हैं जो वर्ष 1972-76 के दौरान गुजरात में रहकर हिन्दुस्तान समाचार के पूर्णकालिक संवाददाता के रूप में काम किया है.

आलोक मेहता के अनुसार, “इमरजेंसी के दौरान वह भूमिगत रूप से संघ-जनसंघ और विरोधी नेताओं के बीच संपर्क और सरकार के दमन संबंधी समाचार-विचार की सामग्री गोपनीय रूप से पहुंचाने का काम कर रहे थे. उन दिनों तो उनसे भेंट नहीं हो सकी. लेकिन संयोग से नरेन्द्र भाई के अनुज पंकज मोदी भी हिन्दुस्तान समाचार कार्यालय में काम कर रहे थे. पंकज भाई और ब्यूरो प्रमुख भूपत पारिख से इस परिवार और नरेन्द्र भाई के संघ तथा समाज सेवा के प्रति गहरी निष्ठा और लेखन क्षमता की जानकारी मिली.”

आलोक मेहता ने अपने संस्मरणात्मक लेख में लिखा है, “गिरफ्तारी से पहले सोशलिस्ट जॉर्ज फर्नांडीज़ भी भेष बदलकर गुजरात पहुंचे थे और नरेन्द्र भाई से सहायता ली थी.” यहां यह याद दिलाना जरूरी है कि जब गुजरात में राज्य सरकार समर्थित दंगे हो रहे थे तब संसद में सचमुच जार्ज फर्नांडीज़ नरेन्द्र मोदी का यह कहते हुए बचाव कर रहे थे कि जेपी (जय प्रकाश नारायण) को भी नरेन्द्र मोदी की आंखों में इमरजेंसी के दौरान चमक दिखाई पड़ी थी.

तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर ने जॉर्ज की इस टिप्पणी पर कहा था कि अध्यक्ष महोदय, जेपी के साथ मुझे भी काम करने का अवसर मिला है. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि जेपी ने ऐसी बात कभी नहीं कही. हां, कुछ जीव वैसे होते हैं जिन्हें अंधेरे में ही रौशनी दिखाई पड़ती है, और जार्ज फर्नाडीज वैसे ही जीव हैं. आलोक मेहता के इसी लेख को इसी ग्रुप के मराठी भाषा में निकलने वाला अख़बार लोकसत्ता ने संपादकीय पेज पर छापा है.

यह हमेशा से ही होता आया है कि किसी बड़े नेता के जन्म दिन पर किसी न किसी अखबार में पत्रकार या पार्टी के कोई नेता-प्रवक्ता कुछ न कुछ लिखते रहे हैं, लेकिन जिस रूप में यह पहली बार प्रायोजित हुआ है उसके संदेश लोकतंत्र व मीडिया के लिए बेहद दूरगामी है. क्या हम इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि जो कोई मंत्री मोदीजी को महामानव की तरह पेश करने में असफल रहे हैं, उनकी आने वाले दिनों में क्या हालत होगी? उदाहरण के लिए रविशंकर प्रसाद, जिन्हें पढ़ना आता है, बोलना भी आता है, और भी कई गुण हैं उनमें जिनकी बहुत लोगों में कोई शानी नहीं है, लेकिन वह इस दौड़ में कल एकाएक पिछड़ गए हैं. अगर कुछ दिनों में या फिर आज के कैबिनेट बैठक में अगर उनकी मोदीजी से आंखें चार हो जाती हैं, तो वह मोदीजी के आंखों का सामना कैसे कर पाएगें? क्या उनका मंत्रीपद सुरक्षित रहेगा? और यह सवाल सिर्फ रविशंकर प्रसाद के लिए नहीं है, यह सवाल उन सभी मंत्रियों के लिए है, जो उनके कैबिनेट में शामिल हैं और जिन्हें थोड़ा बहुत पढ़ना लिखना आता है.

यही खतरा सबसे अधिक लगता है. अगली बार से येनकेन प्रकारेण मोदीजी के जन्मदिन पर यशगान लिखने की होड़ लगेगी, बचे-खुचे संपादकीय पेज खरीदे जाएगें, संपादक और अधिक असहाय महसूस करेंगे और इस बार आडवाणी (मन ही मन) जरूर बोलेगें कि “इस बार तो तुम लोग बिना कहे ही रेंगने लगे.”

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