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Contributeइस सप्ताह एनएल चर्चा सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के इर्द-गिर्द रही. सुप्रीम कोर्ट से कई सारे फैसले आए हैं. अयोध्या में लम्बे समय से चल रहे राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय हिन्दू पक्ष में दिया. कोर्ट ने कहा कि विवादित जमीन हिन्दुओं को मिलेगी और उसके बदले में पांच एकड़ जमीन मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही अन्यत्र दी जाएगी. इसके अलवा सबरीमाला मंदिर मामले को अब सुप्रीम कोर्ट ने सात जजों की बड़ी बेंच को भेज दिया है. इस मामले में पहले कोर्ट ने पिछले साल मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दी थी जिसको कोर्ट में चुनौती दी गई. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश के दफ्तर को आरटीआई के अंतर्गत लाने का फैसला लिया है. इसे बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है. महाराष्ट्र में नई सरकार बनाने के लिए चल रही उठापटक के बीच वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है. अब ख़बर आ रही है कि एक नए समझौते के तहत शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस सरकार बनाने पर सहमत हो चुके हैं. इसके अवाला जेएनयू में फीस वृद्धि को लेकर छात्र सड़कों पर है. प्रसार भारती द्वारा द गार्डियन में लिखे एक लेख पर हमला किया गया.
इस चर्चा में दो खास मेहमान, द क्विंट वेबसाइट के लीगल एडिटर वकाशा सचदेवा और आनंदवर्धन शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत करते ही अयोध्या मामले से हुई. अतुल चौरसिया ने कहा कि ये निर्णय आया उस पर फिलहाल लोगों ने सधी हुई प्रतिक्रिया दी है. लोग कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी से बच रहे थे पर एक चीज देखी जा रही है कि धीरे-धीरे फैसले की समीक्षा हो रही है. मैं इसे आलोचना नहीं कहूंगा. वकाशा ने अपने यहां लिखे एक लेख में कहा है कि फैसला बहुत ज्यादा कानून सम्मत नहीं है. आप हमें बताये कि आपको क्यों ऐसा लगा. इसमें ऐसा क्या है जो संवैधानिक मूल्यों से नहीं मेल खाता?
इस सवाल का जवाब देते हुए वकाश ने कहा, “इस फैसले में अगर हम देखें तो जो हम उम्मीद कर रहे थे उस आधार पर फैसला सही है. इलाहाबाद हाईकोर्ट का जो फैसला था उसको देखे तो उसमें आस्था और धर्म फैसले का बहुत ज़रूरी तत्व था. पूरा फैसला उसी पर आधारित था. अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी उसी पर आधारित होता तो हमें काफी परेशानी होती. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फैसला देते वक़्त हम आस्था और विश्वास का ध्यान नहीं रखेंगे, लेकिन फैसले को देखे तो अंत में सब कुछ आस्था पर ही आ जाता है, क्योंकि हिन्दुओं की आस्था ही तो है कि वहां पर राम का जन्म हुआ था. वहां पहले भी पूजा पाठ हो रहा था. किसी के पास जमीन का कागज तो था नहीं.”
इस मसले पर आनंद वर्धन कहते हैं, “क़ानूनी मामले पर मैं कोई प्रतिक्रिया नहीं दूंगा. कोर्ट ने खुद कहा है कि ऐसी कोई जानकारी नहीं कि कुछ ध्वस्त करके ही मस्जिद बनी है. एएसआई की रिपोर्ट भी इस पर चुप है. इस पर उसने भी कोई जानकरी नहीं दी है. उसमें भी कहा है कि इससे पहले जो कुछ था उसका मूल इस्लामिक नहीं है. लेकिन ये कि वह क्या ध्वस्त करके बना है इस पर कोई बात नहीं की गई. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इतिहास को सही करना कोर्ट का काम नहीं है.”
अयोध्या के फैसले पर विभिन्न पहलुओं से एक लंबी चर्चा हुई है. पूरी चर्चा सुनने के लिए ‘‘एनएल चर्चा’’ का ये पूरा पॉडकास्ट सुनें.
पत्रकारों की राय, क्या देखा, सुना और पढ़ा जाय:
अतुल चौरसिया
द अयोध्या डिग
आनंद वर्धन
वशिष्ठ नारायण सिंह पर प्रभात खबर अख़बार का लेख
वकाशा सचदेवा
गौतम भाटिया का द हिंदू में छपा अयोध्या मामले पर लेख
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