झारखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-झामुमो गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ रहे पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी से बातचीत
बीते लोकसभा में झारखंड में कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) ने मिलकर चुनाव लड़ा था. नतीजे बेहतर नहीं आए. अब महज चार महीने बाद ही यह गठबंधन टूट गया है. राज्य में जल्द ही होने जा रहे विधानसभा चुनाव में एक तरह जहां कांग्रेस और जेएमएम मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं बाबूलाल मरांडी की जेवीएम अलग से चुनाव लड़ रही है. आखिर ऐसी स्थिति क्यों बनी कि जेवीएम को अलग से चुनाव लड़ना पड़ा और गठबंधन टूट गया.
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Contributeगठबंधन टूटने और राज्य के राजनीतिक हालात को लेकर न्यूज़लॉन्ड्री संवाददाता बसंत कुमार ने झारखंड के पहले मुख्यमंत्री और जेवीएम प्रमुख बाबूलाल मरांडी से लम्बी बातचीत की है.
2019 का लोकसभा चुनाव जो चार महीने पहले ही खत्म हुआ है. उस समय कांग्रेस, जेएमएम और जेवीएम का गठबंधन था. चार महीने बाद ही आप गठबंधन से क्यों अलग हो गए?
हम गठबंधन के हमेशा हिमायती रहे हैं. 2006 में हमने झारखंड विकास मोर्चा का गठन किया. उसके बाद पहला आम चुनाव 2009 में हुआ था. 2009 में हमने कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन किया था. उस समय एक अनुभव हुआ कि गठबंधन बिलकुल आखिरी समय पर हुआ. हमने जैसे-तैसे चुनाव लड़ा.
उसके बाद 2014 का विधानसभा चुनाव आया. उस समय भी हमने गठबंधन की कोशिश की. लेकिन दिल्ली आना-जाना, यहां बैठना, वहां बैठना. ऐसा करते-करते फिर विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई. चुनाव की घोषणा के बाद कांग्रेस पार्टी द्वारा दिल्ली बुलाया गया तो मैं नहीं गया. अपनी पार्टी के दो सीनियर नेता प्रवीण सिंह और प्रदीप यादव को भेजा. दोनों दिल्ली गए. बैठक हुई. रात में फोन करके बताया कि गठबंधन फाइनल हो गया. सीटों के बारे में भी सब तय हो गया है. उन्होंने बताया कि कल हम प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इसकी घोषणा करेंगे. फिर दुसरे दिन सुबह दोनों ने फोन किया और बताया कि गठबंधन खत्म हो गया. अब मेरे लिए बड़ी अजीबोगरीब स्थिति हो गई. उस वक़्त मेरी हालत खराब थी. जैसे-तैसे हम 2014 का चुनाव लड़े. लेकिन राज्य की जनता ने हमारा साथ दिया. आठ विधानसभा जीते और तीसरी बड़ी ताकत भी बने. उसके बाद का खेल सबको पता है.
2019 लोकसभा चुनाव के वक़्त भी काफी मशक्कत के बाद गठबंधन हुआ था. चुनाव बिलकुल करीब आने तक चर्चा चल रही थी. जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आ गए. उसके दुसरे दिन से विधानसभा चुनाव के लिए हमने गठबंधन करने की मांग की. दोनों ही दलों (कांग्रेस और जेएमएम) के नेताओं से हमने कहा कि देखो गठबंधन करना हो तो हमें अभी तय कर लेना चाहिए ताकि हम बेहतर तरीके से तैयारी कर सकें. हम अपने कार्यकर्ता को अनावश्यक रूप से परेशान करने से बेहतर जहां से हम लड़ेंगे वहीं पर उनसे काम लेंगे. तो मई, जून और जुलाई खत्म हो गया. मैंने महसूस किया कि जो पुरानी और बड़ी पार्टी हैं वो गठबंधन को लेकर गंभीर नहीं है. फिर मुझे लगा कि अगर हम गठबंधन की आस में रहे तो हमारा हाल 2014 वाला हो जाएगा. तब हमने अगस्त से अकेले चलने का फैसला कर लिया.
गठबंधन नहीं होने पाने के पीछे कांग्रेस और झामुसो नेतृत्व की धीमी चाल और फैसले में देरी को आप जिम्मेदार मानते हैं?
नहीं मैं इसके लिए किसी को जिम्मेदार नहीं मानता. होता क्या है कि उन लोगों का गठबंधन को लेकर लॉजिक ये होता है कि आज अगर हम गठबंधन करेंगे तो सीटें कम होने पर हमारे बहुत से कार्यकर्ता भाग जाएंगे. स्वाभाविक है कि ऐसा मेरे साथ भी होगा.
लेकिन बड़ी पार्टियों के लिए मुश्किल नहीं होती क्योंकि उनके पास पुरखों की कमाई है. वो अपना गुजारा कर लेंगे. मेरे पास तो कुछ भी है नहीं. हम अगर काम नहीं करेंगे तो हमको कौन पूछेगा.
भारतीय जनता पार्टी इस विधानसभा चुनाव में 65 पार की बात कर रही है. आपकी पार्टी कितनी सीटें जीत रही है. आपका क्या अनुमान है?
इस तरह के जो भी नारे देता है वो दरअसल वोटर पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना चाहता है. वो जनता के बीच ये मैसेज देना चाहते हैं कि हम तो बहुत मजबूत हैं. इतनी सीटें हम जीतने वाले हैं. यह मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश है. अगर हम ये कहें कि इस बार जनता ने तय कर लिया है कि वो बीजेपी और रघुबर दास को झारखंड पार करा देगी. आप देखिएगा, इस बार ऐसा ही होगा. जहां तक रही हमारी पार्टी की बात है तो हम भविष्यवाणी तो नहीं कर सकते हैं. लेकिन हमारा विश्वास है कि झारखंड की जनता इस बार मजबूत सरकार बनाएगी. मजबूत सरकार इसलिए बनाना चाहेगी क्योंकि पिछले पांच वर्षों में यहां डबल इंजन की सरकार है.
रघुवर दास के नेतृत्व में किसान ठगे गए हैं. उनके खेतों तक पानी नहीं पहुंचा है. किसानों को आत्महत्या भी करनी पड़ी. इन पांच वर्षों में भूख से भी लोग मरे. नौजवान ठगा सा महसूस कर रहे हैं. पूरे पांच साल में यहां कोई बहाली नहीं हुई है. नौजवान भटकते रहे. रोजगार देने के नाम पर हाथी उड़ाते रहे. हाथी उड़ाने पर नौ सौ करोड़ रुपए खर्च कर दिया. नए उद्योग लगे नहीं, पुराने बंद हो गए. पारा शिक्षक दुखी हैं. सरकार बनते ही आदिवासियों की जमीन छीनने के लिए कानून बनाने की शुरुआत कर दी गई. तमाम लोगों को लग रहा है कि ये सरकार तो हमारा सब कुछ छीनने की कोशिश कर रही है.
जब रघुवर सरकार की इतनी विफलता आप बता रहे हैं तो पिछले पांच साल से विपक्ष क्या कर रहा था. सरकार के खिलाफ सड़कों पर शायद ही कभी विपक्ष उतरा हो?
हम तो लगातार सरकार की विफलताओं पर सवाल उठाते रहे. हम लोग आन्दोलन करते रहे. आज भी मेरे ऊपर मामला दर्ज है. हमने रांची की सड़कों पर कई बार प्रदर्शन किया. सरकार ने हम पर डंडे चलवाए. हम हर समय लड़ते ही रहे. गोडा में जमीन छीनने के खिलाफ हम लोग सड़कों पर उतरे. ये बात झारखंड की जनता जानती है कि हमने उसके लिए कितनी लड़ाई लड़ी है.
बीच में ऐसी खबरें आई कि बीजेपी चाहती है कि जेवीएम का उसमें विलय हो जाए. इसमें क्या सच्चाई है?
यह बिलकुल बकवास बात है. जब हमने पार्टी बनाई है तो विलय करने का सवाल ही नहीं है. वह पार्टी हमारे जीते हुए छह विधायकों को पद और पैसों का लालच देकर ले गई. अभी भी हमारे एक विधायक को तोड़कर के ले गए हैं. 2014 में सरकार बनने के एक महीने बाद ही हमारी पार्टी को तोड़ दिया. जिसकी लड़ाई विधानसभा में साढ़े चार साल तक लड़े और अभी भी हाईकोर्ट में मामला लटका हुआ है. जिस पार्टी को समाप्त करने की बीजेपी कोशिश कर रही थी उस बीजेपी से बाबूलाल मरांडी विलय करेंगे? बीजेपी वाले अप्रोच करते हैं. अप्रोच करना उनका काम है, लेकिन विलय का निर्णय करना हमारा काम है. हम उस पार्टी के साथ कैसे जायेंगे जो हमें रोज समाप्त करने में लगी हुई है.
आप बीजेपी के पुराने नेताओं में से एक हैं. आप आरएसएस के भी कार्यकर्ता रहे है. आज देश में राष्ट्रवाद एक बड़ा मुद्दा बन गया है. आप बीजेपी के राष्ट्रवाद को कैसे देखते हैं?
मैं वहीं से आया हूं, लेकिन आज आप देखते होंगे कि बीजेपी के मंच पर क्या नारा होता है- ‘भारत माता की जय.’ लेकिन भारत माता की जयकार दुनिया में तब होगी जब यहां के किसान और मजदूरों के चेहरे पर मुस्कान हो. यहां लोग गरीबी से मर रहे हैं. आपके जय-जय करने से भारत की जय-जय नहीं होगी. देशभक्ति का मतलब क्या होता है? देशभक्ति का मतलब ये होता है कि हमारे एक-एक किसान, एक-एक मजदूर भूखे नहीं मरें. हर गरीब के बच्चे को उसकी योग्यता के हिसाब से शिक्षा मिले. उसके लिए पैसा सरकार खर्च करे. तब भारत की जय-जयकार संसार में होगी. आज जिस देश (पाकिस्तान) को कोसते हैं भुखमरी के मामले में हमसे उनकी स्थिति बेहतर है. जिस बांग्लादेश को हमने बनाया वो हमसे बेहतर स्थिति में है. तो हमें सोचना चाहिए कि हम कहां हैं. आज तो सरकार सब जगह कटोरा लेकर भीख मांग रही है. आपके लोग भूखे मर रहे हैं. उसके बाद आप कहते हैं कि आप विश्वगुरु हैं तो आपको कौन मानेगा. किसी को कोई गुरु तब मानता है न जब धर्म से मजबूत हो, ज्ञान से मजबूत हो, शरीर से मजबूत हो. आप क्या हैं?
केंद्र की मोदी सरकार के काम काज को आप कैसे देखते हैं?
मोदीजी से मुझे उम्मीद थी, लेकिन अब मैं निराश हूं. हम तो कहते हैं कि मोदी जी को ये कहना चाहिए था कि इस देश के हर गरीब के बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर बन सकते हैं. उनकी पढ़ाई लिखाई का खर्च सरकार देगी लेकिन आज तो आईआईएम का फीस आपको पता ही है. रांची के आईआईएम में 15 से 16 लाख रुपए खर्च आता है. बताओ झारखंड का एक भी आदिवासी, दलित और गरीब का बच्चा वहां पढ़ पाएगा. आईआईटी में अब कितना फीस लग रहा है. मेडिकल में अब इतना डोनेशन लगता है. आज एक छात्र 50 से 60 लाख रुपए देकर डॉक्टर बनता है. उससे हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वो समाज सेवा करेगा. मोदीजी को इसको कम करना चाहिए लेकिन वो ये काम कर नहीं रहे हैं. क्या कर रहे हैं. किसान को पांच हज़ार टका देंगे. पांच हजार टका में उनके बच्चे आईआईएम या आईआईटी में कैसे पढ़ेंगे.
झारखंड को बने लगभग बीस साल हो गए. 20 सालों में आप क्या देखते हैं कि जिस उम्मीद के साथ अलग राज्य की स्थापना हुई थी वह मकसद पूरा हुआ?
उद्देश्य अब भी अधूरा है. अगर मकसद पूरा हो गया होता तो दो दर्जन लोग भूख से नहीं मरते. जो लोग भूखे से मरे वो सब दलित और आदिवासी वर्गों से आते थे. चूंकि गरीब सभी तबके में हैं लेकिन अधिकांश दलित और आदिवासी तबके से हैं. अगर बदलाव हुआ होता तो इतने लोग नहीं मरते. किसानों को आत्महत्या करने की ज़रूरत नहीं पड़ती. सरकार भले ही भुखमरी को नकराती रही लेकिन अख़बारों में छपा और सबके सामने है. सरकार कहती रही कि बिमारी से मरा है लेकिन भूख लगने के बाद ही बीमारी होती है.
हम अगर सत्ता में आते हैं तो किसानों के खेत तक पानी पहुंचा देंगे. गरीब के बच्चों को फ्री शिक्षा का इंतजाम करेंगे. यह सुनिश्चित करेंगे कि राज्य में कोई भूख से न मरे. किसान आत्महत्या न करें.
आपको लोग झारखंड का किंगमेकर बता रहे हैं?
यह तो जनता के हाथ में हैं. हम तो जनता के सामने उनकी सेवा करने के लिए जा रहे हैं. बाकी जनता को ही तय करना है.
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