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Contributeचर्चा के 94 वें संस्करण में बातचीत मुख्यत: नागरिकता कानून संशोधन अधिनियम के इर्द-गिर्द घूमती रही. इस कानून को लेकर पूरे देश में विरोध की स्थिति पैदा हो गई है. विश्वविद्यालयों में विरोध चल रहा है. शहरों में विरोध चल रहे हैं. इसे अलावा दिल्ली के कई इलाकों में विरोध प्रदर्शन और आगजनी की घटनाएं हुई हैं. जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पुलिस द्वारा छात्रों पर जबर्दस्त बल प्रयोग की घटना सामने आई. इसी तरह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भी पुलिस के बल प्रयोग की बात सामने आई है. असम में जहां से इस कानून की विरोध की शुरुआत हुई थी और पूर्वोतर के अन्य राज्यों में विरोध का सुर धीरे धीरे कम होने लगा है. लेकिन देश के दूसरे हिस्से में विरोध तेज हो गया है. ज्यादातर जगहों पर आंदोलन अहिंसक रहे है लेकिन कुछ जगहों से हिंसा की खबरें भी सामने आई हैं.
इस सप्ताह चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम और न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अजीत अंजुम के साथ चर्चा की शुरुआत करते अतुल ने पूछा कि सरकार ये सफाई दे रही है कि नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी ये दोनों अलग अलग चीजें है. विपक्षी इसको एक साथ मिलाकर लोगों को भरमा रहे हैं. आपकी का राय है? सरकार जो कह रही है वो सही है या इसकी आड़ में सरकार कुछ छुपा रही है?
इस पर अजीत अंजुम ने कहा, “एनआरसी और नागरिकता संशोधन कानून अलग–अलग तो हैं, इसमें कोई शक़ नहीं है. लेकिन संसद में अपने भाषण में अमित शाह ने कहा कि पहले पर सीएबी लाएंगे और उसके बाद ध्यान से सुनना भाईयों हम एनआरसी भी लाएंगे. एनआरसी केवल असम में नहीं देश के बाकी हिस्सों में भी लाएंगे. आप नागरिकता कानून जो लाए है उसमें छह धर्मों को शामिल किया. सिर्फ एक धर्म को छोड़कर. आज चेतन भगत ने सीएए को लाइफ जैकेट कहा है. यानी जब एनआरसी आयेगा तो यह कुछ लोगों के लिए लाइफ जैकेट का काम करेगा. इस सबको एक साथ देखें तो बेहद खतरनाक स्थिति की तरफ देश को ले जाया जा रहा है. बहुलतावादी ये देश है. उस देश में अचानक ऐसी चीज की क्या ज़रूरत थी. इसके खतरे बहुत बड़े है आने वाले समय में.”
इसी पर अपनी बात रखते हुए आंनद वर्धन कहते हैं, “पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश, इन तीनों देशों में मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं हैं. तो वहां के लिए तो सीएए ठीक है. लेकिन एनआरसी के साथ व्यवहारिकता की समस्या है. नौकरशाही इतनी सक्षम नहीं है कि इतने बड़े देश में सबकी नागरिकता संबंधी कोई सफल व्यवस्था कर सके. खासकर भारतीयों में दस्तावेजों की जो स्थिति है. उसे लागू करने में चुस्ती दिखानी होगी. नहीं तो छोटी-छोटी वजहों से लोग नागरिकता खो सकते हैं.”
इस पूरे विवाद को लेकर गर्मागरम, दिलचस्प और तथ्यपरक चर्चा हुई. पूरी चर्चा सुनने के लिए पूरा पॉडकास्ट सुनें.
पत्रकारों की राय, क्या देखा, सुना और पढ़ा जाय:
अजीत अंजुम
इंडिया आफ्टर गांधी
इंडिया बिफोर गांधी
लेखक- रामचन्द्र गुहा
अतुल चौरसिया
देश गाँव
लेखक-अभिषेक श्रीवास्तव
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