हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ्ते भर के सवालों और बवालों की चर्चा करते हैं.
The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.
Contributeन्यूज़लॉन्ड्री चर्चा पॉडकास्ट का यह 100 वां संस्करण है. चर्चा को प्यार देने के लिए सभी श्रोताओं को शुक्रिया. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें और गर्व से कहें- ‘मेरे खर्च पर आज़ाद हैं ख़बरें.’
चर्चा के 100 वें संस्करण में वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ख़ास मेहमान रहे. इसके अलावा इस हफ़्ते की चर्चा में हिंदी साहित्यकार वंदना राग और न्यूज़लॉन्ड्री के मेघनाद शामिल रहे. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
न्यूज़लॉन्ड्री चर्चा के इस 100 वें संस्करण में बीजेपी के नए अध्यक्ष जेपी नड्डा की ताजपोशी और उनके आने के बाद पार्टी में आने वाले संभावित बदलावों, दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन के दौरान अरविन्द केजरीवाल को हुई परेशानी, दिल्ली पुलिस को दिल्ली के गवर्नर द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत दिया गया गिरफ्तारी का विशेषाधिकार, बीजेपी की लखनऊ में हुई रैली में अमित शाह का सीएए की वापसी के संबंध में बरकरार अड़ियल रवैया, जेएनयू के सर्वर रूम में मारपीट के संबंध में आरटीआई के तहत मिली चौंकाने वाली जानकारी और निर्भया मामले में वकील इंदिरा जयसिंह के बयान पर मचे बवाल आदि पर चर्चा हुई.
चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल ने रवीश से अमित शाह और जेपी नड्डा से जुड़ा सवाल किया, “अध्यक्ष पद से अमित शाह के जाने और जेपी नड्डा के अध्यक्ष बनने से भारतीय जनता पार्टी की जो संस्कृति है जिसे हम पिछले पांच छः साल से देखते आ रहे हैं, उसमें आप किस तरह का बदलाव होते देख रहे हैं?”
अतुल के सवाल का जवाब देते हुए रवीश ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि कोई नया बदलाव आएगा क्योंकि अमित शाह तो गए नहीं हैं. अभी तक अमित शाह को ही प्रधानमंत्री का डिप्टी माना जा रहा था और अब डिप्टी के भी डिप्टी आ गए हैं. तो जेपी नड्डा को उसी फ्रेम में देखना जिसमें अमित शाह को देखते थे. वो वाकई एक अलग तरह के अध्यक्ष दिखते थे, अपने साजो सामान के साथ, अपनी भाषा के साथ, अपनी ऊर्जा के साथ. जेपी के सामने ये चुनौती है कि वो उसको पार कर पाएंगे या नहीं. लेकिन वो फिलहाल तो वैसे ही लगते हैं जैसे कांग्रेस में सीताराम केसरी आया करते थे. तो इस स्तर के वो नेता हैं. हालांकि वो बहुत दिनों से राजनीति में हैं.”
अमित शाह और जेपी नड्डा के ही सन्दर्भ में अतुल, वंदना और मेघनाद से अगला सवाल करते हैं, “भारतीय जनता पार्टी में दो तरह के अध्यक्ष बहुत साफ-साफ देखने को मिलते हैं. एक तो वो जिनके द्वारा पार्टी की संरचना बनी है जिनकी बहुत धमक रही है. इसमें अटल बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आडवानी या अमित शाह जैसों को रखा जा सकता है. और दूसरे धारा वो जिसमें जनकृष्ण मूर्ति, कुषाभाऊ ठाकरे, वेंकैया नायडू जैसे लोग आते हैं. सवाल यह है कि जेपी नड्डा इनमें से किस तरह की नेता की भूमिका में होंगे?”
जवाब देते हुए वंदना कहती हैं, “जैसा कई अखबारों की हैडलाइन में भी आया था कि “द सॉफ्ट स्पोकन अध्यक्ष हैज टेकन ओवर”. मुझे लगता है कि उनकी छवि एक शांत नेता की रही है और उसी को प्रोजेक्ट करने की कोशिश है.”
इसपर मेघनाथ जवाब देते हैं, “अभी तक मैं यही सोच रहा था कि हमारे गृहमंत्री, जो अमित शाह हैं, वो पार्टी अध्यक्ष भी थे. मैं बार-बार यही सोचता था कि वो दोनों काम साथ में कैसे करते हैं. गृहमंत्री का काम आसान नहीं होता है. वो संसद में भी अब बहुत बात करने लगे हैं. वो पहले एक काम करते थे, चुनाव में भी उनको चाणक्य कहा जाता था. ये अब मुझे बहुत खटकता है कि वो दोनों काम एक साथ कैसे करते थे. अभी आप अगर जेपी नड्डा को ही देखें तो मुझे लगता है वो सिर्फ चेहरा ही रहने वाला हैं. पहले जैसे अप्रत्यक्ष रूप से अमित शाह कमान संभाल रहे थे, मुझे लगता है वैसा ही चलता रहेगा, बस चेहरा अलग होगा.”
चर्चा की कड़ी में अन्य विषयों पर भी विस्तृत व रोचक चर्चा हुई. पूरी चर्चा को सुनने के लिए पूरा पॉडकास्ट सुनें.
पत्रकारों की राय, क्या देखा, सुना और पढ़ा जाय:
रवीश कुमार:
पड़ने का तरीका बदलें और उन ख़बरों को पढ़े जिन्हें अब मुख्यधारा की मीडिया ने छापना छोड़ दिया है.
वंदना राग:
माधव खोसला की इंडियास फाउंडिंग मोमेंट
फिल्म - गर्म हवा
सवर्ण देश की कथाएं- मनोज पाण्डेय
गौसेवक- अनिल यादव
मेघनाद:
पार्लियामेंटल- मेघनाद
पुलादेश पांडेय की- महिस और तुम्हाला कौन वाहित साहे
बाला
अतुल चौरसिया:
General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?