दिल्ली चुनाव में नीतीश कुमार और सुशील मोदी कौन सा बिहार मॉडल दिखा रहे हैं?

दिल्ली चुनाव में प्रचार के लिए आए बिहार मुख्यमंत्री नितीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ‘बिहार मॉडल’ की बात कर रहे हैं.

WrittenBy:बसंत कुमार
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तस्वीर में हाफ पैंट पहने सुशील कुमार मोदी दोनों हाथों को बांधकर एक पुल पर अपने परिवार के साथ फंसे हुए हैं. उनकी पत्नी और साथ में दो अधिकारी, जिन्होंने अपने पैंट को घुटने से ऊपर तक मोड़ लिया था. यह तस्वीर तब की है जब लगातार हो रही बारिश के बाद जल निकासी का इंतजाम नहीं होने के कारण पटना यानि बिहार की राजधानी हफ्तों जलमग्न रही. बाढ़ का पानी सुशील मोदी के राजेन्द्र नगर स्थित आवास के अंदर तक भर गया था तब उन्हें एनडीआरएफ की टीम ने वहां से सुरक्षित निकाला था.

सुशील मोदी का आवास जिस राजेन्द्र नगरमें है वह पटना का एक पॉश इलाका है. हालांकि तब सिर्फ सुशील मोदी के आवास में ही पानी नहीं भरा था बल्कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सतेन्द्र नारायण सिंह और जीतन राम मांझी के घरों में भी पानी भर गया था. बाढ़ की स्थिति बनने के पीछे कारण था पानी निकासी का इंतजाम नहीं होना.

तो क्या नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी बिहार के इसी ‘विकास मॉडल’ की बात कर रहे हैं. अगर हम उनकी बातों पर भरोसा करें तो यह लाजिम है कि उनके लगभग 15 सालों के शासन काल का एक आकलन मानव विकास के तमाम सूचकांकों पर कर लिया जाय.

2014लोकसभा चुनाव के कुछ साल पहले से देश में गुजरात के विकास मॉडल की चर्चा होती रही. गुजरात के विकास मॉडल की नाव पर सवार होकर नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने, अब बिहार का विकास मॉडल?क्या सच में विकास का कोई बिहार मॉडल है?मानव विकास सूचकांक में जो राज्य लम्बे अरसे से सबसे नीचते पायदान पर स्पर्धा करता है उस बिहार का भी कोई विकास मॉडल हो सकता है? जिस बिहार में बच्चे इलाज के आभाव में दम तोड़ने को मजबूर हों उस राज्य का कोई विकास मॉडल हो सकता है? जिस राज्य में शिक्षा का स्तर इतना बुरा हो कि पढ़ाई के लिए हजारों-हाजर की संख्या में बच्चे इसी दिल्ली शहर में दड़बों में रहकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं उस राज्य का क्या कोई विकास मॉडल हो सकता है. जिस राज्य में नौकरी और मजदूरी की शून्यता के चलते बड़ी आबादी दिल्ली, मुंबई और बंगलुरू जैसे शहरों में दर-दर की ठोकरें खाती है वहां का कोई विकास मॉडल दिल्ली की जनता अपने यहां लागू करना चाहेगी?

दिल्ली में बीजेपी और कांग्रेस का मुकाबला सत्ता में बैठी आम आदमी पार्टी से है. चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी दिल्ली के स्थानीय मुद्दों को छोड़ धारा 370, ट्रिपल तलाक, अयोध्या में राममंदिर, नागरिकता संशोधन कानून और उसके हो रहे विरोध को लेकर मैदान में हैं वहीं आम आदमी पार्टी शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी समेत अपने बाकी कामों के आधार पर चुनाव लड़ने की कोशिश कर रही है. केजरीवाल खुलकर कह रहे हैं कि अगर मैंने काम नहीं किया तो मुझे वोट मत दीजिएगा.बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में बीजेपी गठबंधन की सरकार पिछले लगभग 15 सालों से है. अरविंद केजरीवाल जिन मुद्दों पर चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं उसपर बिहार की नीतीश सरकार को परखें तो हैरान करने वाली स्थिति सामने आती है.

शिक्षा

बिहार में शिक्षा की स्थिति बेहद खराब है जिस वजह से छात्र पढ़ाई के लिए वहां से लगातार देश के अलग-अलग हिस्सों में पलायन करते हैं.

बिहार की बदहाल शिक्षा का उदाहरण दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पढ़ाई कर रहे छात्र मुकुंद हैं. मुकुंद ने साल 2014 में सहरसा के बीएन मंडल यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन के लिए एडमिशन लिया था. जिसके बाद पहले साल का एग्जाम साल 2016 के मई महीने में हुआ. यानी पूरे दो साल बाद. लेटलतीफी को देखते हुए मुकुंद को दिल्ली आना पड़ा यहां उन्होंने जामिया में साल 2017 में एकबार फिर सेग्रेजुएशन के लिए एडमिशन लिया. इसतरह बिहार सरकार की वजह से एक छात्र का तीन साल बर्बाद हो गया.

मुकुंद बताते हैं, ‘‘मेरे साथ जो लोग पढ़ाई कर रहे थे और आर्थिक क्षमता की वजह से दिल्ली या बाहर नहीं जापाए उनका ग्रेजुएशन का कोर्स दिसम्बर 2018 में पूरा हुआ यानी तीन साल का कोर्स चार साल में. हालांकि यह सबसे जल्दी हुआ. अमूमन यहां ग्रेजुएशन का कोर्स सात साल से पांच साल के बीच पूरा होता है.’’

इस तरह की कहानी सिर्फ मुकुंद की नहीं है बल्कि बिहार के ज्यादातर विश्वविद्यालयों में तीन साल में ग्रेजुएशन पूरा होना एक घटना से कम नहीं है जो शायद ही कभी घटती है.

एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार के सबसे मशहूर पटना यूनिवर्सिटी में शिक्षकों की भारी कमी है. रिपोर्ट के अनुसार टीचिंग सेक्शन के 810 पदों में 500 और नॉन टीचिंग सेक्शन में 1300 से ज्यादा पद रिक्त हैं. ये हालात तब है बिहार के तीनों बड़े नेता सुशील कुमार मोदी, लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार इसी यूनिवर्सिटी से पढ़े हुए है.

बीते साल रवीश कुमार ने बिहार के विश्वविद्यालयों की स्थिति पर कई प्राइम टाइम किया था. उनकी एक रिपोर्ट के अनुसार पटना साइंस कॉलेज में 112 पद मंज़ूर हैं. मगर इस कॉलेज में मात्र 28 प्रोफेसर हैं. जीव विज्ञान 2, गणित में 3 और वनस्पति विज्ञान में 6 शिक्षक हैं. अंग्रेज़ी में 1 और हिन्दी में 2 ही शिक्षक हैं.पटना लॉ कॉलेज में 14 टीचर के पद हैं मगर 9 पद ख़ाली हैं. पटना लॉ कालेज सिर्फ 5 प्रोफेसरों के दम पर चल रहा है. हिन्दी विभाग में 34 पद हैं लेकिन 11 प्रोफेसर ही पढ़ा रहे हैं. पटना कॉलेज में ढाई हज़ार छात्र हैं और पढ़ाने के लिए मात्र 30 शिक्षक हैं. पटना कॉलेज के हिन्दी विभाग में 6 की जगह 2 ही पढ़ा रहे हैं. यहां के इतिहास विभाग में 6 की जगह एक ही प्रोफेसर पढ़ा रहे हैं.

पटना यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग का तो हाल और भी बुरा है. दस साल पहले यहां 25 प्रोफेसर हुआ करते थे, अब सिर्फ 6 हैं. मगध महिला कॉलेज में कभी 100 प्रोफेसर थे, आज 32हैं. मगध महिला कॉलेज में पांच हज़ार लड़कियां पढ़ती हैं. क्या 32 प्रोफेसर पांच हज़ार छात्राओं को पढ़ा सकते हैं?

ये तमाम आंकड़ेउच्च शिक्षा की बदहाली की कहानी कहने के लिए काफी हैं. सिर्फ उच्च शिक्षा ही नहीं बल्कि बिहार में प्राथमिक शिक्षा की भीयहीदशा है. सरकारी स्कूलों की बदहाली की वजह से आज बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में कुकुरमुत्ते की तरह प्राइवेट स्कूल खुल रहे हैं. जिसका नतीजा हुआ कि सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या लगातार कम होती गई. यू डायस नाम की संस्थान की एक रिपोर्ट की माने तो 2016-17 के सरकारी स्कूलों में 1.99 करोड़ बच्चों का नामांकन था, जबकि 2017-18 में यह घटकर 1.8 करोड़ पर आ गया है.

साल 2017 में प्रकाशित इण्डिया स्पेंड की एक रिपोर्ट बिहार की बदहाली प्राथमिक शिक्षा की पोल खोलती है. रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम के मापदंड के आधार पर हमारे द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार बिहार के प्राथमिक विद्यालयों (कक्षा 1 से 8) में आवश्यक शिक्षकों की तुलना में 37.3 फीसदी कम शिक्षक हैं. साथ ही राज्य में 278,602 शिक्षकों की कमी है.

बिहार में पत्रकारिता कर रहे एसए शाद बताते हैं, ‘‘बिहार में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति में कुछ ज्यादा सुधार नहीं हुआ है. स्कूल के लिए इमारत तो ज़रूर पहले से बेहतर हुए हैं लेकिन शिक्षकों की क्वालिटी में गिरावट आई है. जिसका असर पढ़ाई पर ही साफ़ दिख रहा है और बच्चे भी क्वालिटी वाले सामने नहीं आ रहे हैं. शिक्षा की स्थिति अगर बदली होती तो लोग प्राइवेट स्कूलों या राज्य से बाहर पढ़ाई के लिए नहीं जाते.’’

बिहार सरकार ने जहां साल 2019-20 के बजट में 34,798 करोड़ रुपए शिक्षा के क्षेत्र में दिया था वहीं दिल्ली सरकार ने अपने बजट का 15,601 करोड़ रुपए शिक्षा के विकास के लिए दिया था. बिहार सरकार का साल भर का बजट 200,501.01 करोड़ का था जबकि दिल्ली सरकार का कुल बजट 60,000 करोड़ है. यानी बिहार सरकार ने अपने कुल बजट का 17 प्रतिशत शिक्षा के लिए दिया वहीं दिल्ली सरकार ने 26 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च के विकास के लिए दिया था.

स्वास्थ्य

बिहार के लगभग हर अस्पताल में मूलभूत सुविधाओं की कमी है. बिहार में साल 2019 में चमकी बुखार की वजह से हुई सैकड़ों बच्चों की मौत सरकार की स्वास्थ्य सुविधाओं का पोल खोल दिया था.

मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार के दौरान बिहार के कई युवाओं ने एक टीम बनाकर पीड़ित परिवारों की मदद की थी और अस्पताल में पीने का पानी, पंखा आदि का इंतजाम किया था. उसके बाद टीम ने एक रिपोर्ट भी जारी किया. उस टीम से जुड़े पत्रकार पुष्पमित्र बिहार की स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर कहते हैं, ‘‘सरकार ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि हमारे पास जितनी ज़रूरत है उसके तुलना में 57 प्रतिशत डॉक्टर कम हैं वहीं 71 प्रतिशत नर्स की कमी है. उसके बाद भी कोई नई भर्ती नहीं हुई है. यह अपने आप में बिहार में स्वास्थ्य की स्थिति को जाहिर करता है.’’

चमकी बुखार के दौरान के अनुभवों का जिक्र करते हुए पुष्पमित्र एक हैरान करने वाली जानकारी देते हैं जो बिहार सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलते नजर आता है. उनके अनुसार, ‘‘जब हम वहां ग्लूकोज और थर्मामीटर बांट रहे थे तो एक सरकारी डॉक्टर ने थर्मामीटर मांगा था. उन्होंने कहा था कि हमारा थर्मामीटर टूट गया है.तो समझना आसान है कि क्या स्थिति है.’’

साल 2019-20 में दिल्ली सरकार ने जहां 60 हज़ार करोड़ के बजट में से 7,485 करोड़ रुपए स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के मद में दिया तो वहीं बिहार सरकार ने अपने200,501.01 करोड़ रुपए में से9,157 करोड़ रुपए स्वास्थ्य सुविधाओं के बेहतर करने के लिए दिए. यानी बिहार सरकार ने अपने कुल बजट का 5 प्रतिशत स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च किया वहीं आप की दिल्ली सरकार ने अपने कुल बजट का 12 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च के लिए दिया.

पानी

आम आदमी पार्टी जिन मुद्दों पर चुनाव लड़ने की कोशिश कर रही है उसमें पानी भी एक बड़ा मुद्दा है. आप सरकार लोगों को मुफ्त पानी देने के वादे के साथ सत्ता में आई थी. इसको पूरा करने में पार्टी सफल नज़र आती है. ज्यादातर इलाकों में पानी पहुंचने लगा है. हालांकि इसबार आप सरकार अपने गारंटी कार्ड में पानी को लेकर एकबार फिर वादा किया है. पार्टी के अनुसार हर परिवार को 20 हज़ार लीटर मुफ्त पानी की योजना जारी रहेगी इसके साथ ही हर घर 24 घंटे शुद्ध पीने का पानी की सुविधा दी जाएगी.

बिहार में पिछले कुछ सालों में पानी एक गंभीर समस्या बनकर उभरा है. शहरी इलाकों की बात छोड़ भी दें तो ग्रामीण इलाकों में भी जल स्तर लगातार गिरावट नजर आ रही है. एक दौर में जिन ग्रामीण क्षेत्रों में 80 से 90 फुट की गहराई से साफ़ पानी मिल जाता था वहां अब 200 से 300 फुट की खुदाई करानी पड़ रही है.

पानी के लगातार खराब होने से सरकार ने नल जल योजना की शुरुआत की. इसके जारिए हर घर में नल के जरिए साफ़ पानी पहुंचाने की व्यवस्था की जानी है. इस योजना की तय सीमा खत्म होने को है लेकिन लक्ष्य कोसों दूर है.

नेशनल सैम्पल सर्वे (एनएसएस) की रिपोर्ट के आधार पर लिखी गई डाउन टू अर्थ की खबर के अनुसार जिस नल जल योजना को मार्च 2020 में पूरा हो जाना है उसमें अगरबिहार के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों को मिला लें, तो पाइप के जरिए पानी की सप्लाई महज 2.9 प्रतिशत घरों में हो पायी है.

दिल्ली के लोग क्या सोचते हैं

दिल्ली के पड़पड़गंज विधानसभा क्षेत्र के मयूर विहार फेस दो में सुशील कुमार मोदी की नुक्कड़ सभा शनिवार शाम पांच बजे होनी थी. शाम चार बजे से ही 30-35 कुर्सी लगाकर बीजेपी की स्थानीय निगम पार्षद भावना मलिक लोगों को संबोधित करती नज़र आती हैं. उनका मकसद ज्यादा से ज्यादा लोगों को मंच के पास लाने का होता है.

काफी देर मेहनत के बाद जब लोग मंच के आसपास नहीं आते तोनाराजगी के साथ भावना कहती हैं, ‘‘मान लीजिए आप एक शादी करते हैं. वहां पर आप लोगों को बुलाये और लोग ना आए तो लगता है कि वह शादी जैसे बहुत प्रभावी नहीं है. बेशक मैं जानती हूं कि आप सही पार्टी चुनेगे लेकिन जब समाज जब समाज कोई आग्रह करता है तो लोगों को आगे आना चाहिए अपना जुड़ाव दिखाना चाहिए. यहीं हिन्दुओं की कमी है. मैं आपको बता रही हूं यहीं हिन्दुओं की कमी है. कल मैंने ट्रक पर लिखा देखा था हॉर्न धीरे बजाएं यहां हिन्दू सो रहा है. यह एक मिसाल है कि हिन्दू सो रहा है कि हिन्दू वाकई में सो रहा है.’’

सुशील मोदी थोड़ी देर बाद पहुंचते हैं. लोगों का अभिवादन स्वीकार करने के बाद वे बोलना शुरू करते हैं. अपने लगभग 20 मिनट के भाषण के दौरान 17 मिनट तक वे शाहीन बाग़, कश्मीरी पंडित और सीएए पर बोलते हैं. केजरीवाल के काम पर कोई कमेन्ट करने से इनकार करते हुए वे कहते हैं हमारे पूर्व के वक्ताओं ने उनकी नाकामियां बताई ही होगी. मैं उसपर बात नहीं करूंगा. यहां पूर्वांचल के काफी लोग है. आप बिहार में अपने लोगों की चिंता छोड़ दीजिए. हम उनके लिए हैं. हम दिल्ली में एनडीए की सरकार बनवाइए. अब कुर्ता (केंद्र सरकार) पहना दिया तो पायजामा (राज्य सरकार) भी पहना दीजिए.’’

सुशील कुमार जिस विधानसभा क्षेत्र में खड़ा होकर बोल रहे थे उस इलाके में ज्यादातर आबादी बिहार और यूपी की है. त्रिलोकपुरी और कल्याणपुरी में काफी संख्या में बिहार से आए मजदूर रहते हैं.

बिहार तो पलायन का दंश शुरू से भोग रहा है जिसकी तस्दीक सालों पहले भिखारी ठाकुर के लिखे नाटक बिदेसिया में देखने को मिल जाता है. लालू शासन के दौरान बढ़ते अपराध और कम होते रोजगार की वजह से पलायन में तेजी आई थी. नीतीश कुमार जो लालू के शासन को ‘जंगलराज’ कहकर सत्ता में आए तो लोगों को उम्मीद बंधी कि शायद रोजगार के नव अवसर पैदा हों और लोगों का पलायन रुके लेकिन ऐसा हुआ नहीं. आज भी बिहार से लोगों का पलायन बदस्तूर जारी है.

बिहार में पलायन को तस्दीक तो रेलवे द्वारा साल भर में यात्रा कर रहे लोगों से होती है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2016-17 में सबसे ज्यादातर जिन 10 ट्रेनों में भीड़ देखने को मिली उसमें से छह ट्रेनें ऐसी थी जो दिल्ली से बिहार और बिहार से दिल्ली आई.

पत्रकार एसए शाद रोजगार के अवसर को लेकर बिहार की स्थिति पर कहते हैं, ‘‘ग्रामीण इलाकों में काम के अवसर पैदा करना था वो सरकार नहीं कर पाई है. मनरेगा जो ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का अवसर देता था. लेकिनपिछले 10 से 12 साल में एक प्रोजेक्शन था कि हम ढाई हज़ार करोड़ डिमांड आधारित लेबर बजट बना लेंगे लेकिन ये लोग बना नहीं पाए. अभी लेबर बजट सोलह सौ करोड़ तक पहुंचा है. उसमें भी पैसा जो खर्च होता है वो 80 से 85 प्रतिशत होता है. ग्रामीण इलाकों में जो खेत से जुड़े लोग है उनको समय से काम नहीं मिलता है. किसानों को मुनाफा मिल नहीं रहा है तो ग्रामीण इलाके की अर्थव्यवस्था है उसमें सुधार नहीं हो पा रहा जिस वजह से पलायन जारी है.’’

बिहार का विकास मॉडल

क्या सच में नीतीश कुमार अपने 15 साल के शासन में कोई विकास मॉडल पेश कर पाए हैं. इसको लेकर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता निर्देशक नितिन चंद्र कहते हैं, ‘‘पटना में सड़क पर चलता युवा जब कहने लगे की बिहार में ही पढ़ना है, बिहार से किसान पलायन करके पंजाब-केरल तक मज़दूर ना बने, बिहार से नौकरी के लिए स्नातक के बाद पलायन ना करना पड़े, बिहार में बाढ़ और सूखाड़ से पहले तैयारी हो,बिहार में कोई भी व्यवसायी भययुक्त हो कर काम कर सके और आम बिहारी के अंदर बिहार के लिए संवेदनशीलता और प्रेम जगा पाए तो नीतीश कुमार का विकास मॉडल सफल माना जाएगा.’’

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