आलू, प्याज और अंगूर की खेती पर लॉकडाउन की मार

एन कटाई के वक्त लागू हुए देशव्यापी लॉकडाउन के चलते इन फसलों की खरीद-फरोख्त पर पड़ा है उल्टा असर.

WrittenBy:विवेक मिश्रा
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"बीते साल खेती से कुछ फायदा नहीं मिला था. बारिश के कारण आलू की फसल खराब हो गई थी और आलू-प्याज भाव भी काफी नीचे चला गया था. इस वर्ष लागू हुए देशव्यापी लॉकडाउन का हमारे यहां स्थानीय खुले बाजारों पर ज्यादा असर नहीं पड़ा है बल्कि मुझे बीते वर्षों के मुकाबले इस बार आलू-प्याज का अच्छा दाम मिल गया. लेबर की कमी थी जिससे प्याज को खेतों से निकालकर स्थानीय बाजार तक पहुंचाने में बड़ी तकलीफ हुई. ज्यादातर के आलू तो बाजार तक पहुंच गए लेकिन लेबर की कमी के चलते कई खेतों में प्याज रखे हुए हैं.

"हुगली के बालागढ़ ब्लॉक निवासी किसान बिकास मौलिक ने यह बात कही.उन्होंने बताया कि इस बार लॉकडाउन के चलते स्थानीय बाजार में ही आलू-प्याज बेचना पड़ा. एक बीघा खेत मे 50 किलो प्रति बोरा वजन वाले 40 से 45 बोरे आलू के पैदा हुए थे. इसी तरह से करीब 40 किलो वजन वाले 40 बोरे प्याज के एक बीघा से हासिल हुए. 40 किलो वाले प्याज के प्रति बैग का थोकभाव करीब 600 रुपये प्रति बोरा मिला, जबकि लॉकडाउन से पहले प्रति बोरा का थोक भाव 350 रुपये से लेकर 400 रुपये चल रहा था. वहीं, एक किलो प्याज का स्थानीय बाजार में खुदरा भाव 40 रुपये है. जबकि उन्हें करीब 15 से 16रुपए प्रति किलो ही मिला.

बिना श्रमिक और तालाबंदी के कारण किसानों का कोल्ड स्टोरेज पहुंच पाना मुश्किल हो गया. दूसरी तरफ स्थानीय बाजारों में अच्छी कीमत मिलने के चलते यूपी और पश्चिम बंगाल के किसानों का झुकाव इसकी ओर बढ़ गया. नतीजन ज्यादातर किसान इस बार कोल्ड स्टोरेज नहीं पहुंचे जिसके चलते उत्तर प्रदेश और बंगाल के कोल्ड स्टोरेज मालिकों का सरदर्द बढ़ गया है.

बंगाल के कोल्ड स्टोरेज मालिकों का आकलन है कि हुगली और आस-पास की जगहों से सामान्य के मुकाबले सिर्फ 80 फीसदी आलू ही अब तक स्टोरेज पहुंच पाया है. ऐसा अनुमान है कि श्रमिकों की कमी की वजह से यह आलू करीब दो महीने तक अभी कोल्डस्टोरेज से किसान निकाल नहीं पाएंगे. ऐसे में इस बात की प्रबल आशंका है कि 2 महीने बाद आलू सप्लाई की मुश्किलें बढ़ सकती हैं और साथ ही आलू का अगला सीजन शुरू होने से पहले कीमतें आसमान छू सकती हैं.

यूपी में करीब 50 फीसदी खाली हैं

स्टोरेज फेडरेशन ऑफ कोल्ड स्टोरेज एसोसिएशन ऑफ इंडिया के पूर्व प्रेसिडेंट महेंद्र स्वरूप ने बताया, " मैंने 1945 में खत्म हो रहे द्वितीय विश्वयुद्ध को देखा है तब भी ऐसे हालात नहीं थे, जैसे आज हैं. मौजूदा व्यवस्था में एक अविश्वास पैदा हो गया है और ज्यादातर लोग कोल्ड स्टोरेज में पैसा लगाना नहीं चाह रहे हैं."

उन्होंने बताया कि यूपी में 2,000 कोल्ड स्टोरेज हैं जिनमें अभी तक क्षमता का 50 फ़ीसदी ही आलू पहुंच पाया है. इस वक्त घरों में आलू की खपत काफी ज्यादा हो गई है इसलिए या तो किसानों ने आलू अपने घरों में ही रखा हुआ है या फिर वह खुले बाजारों में सीधे बेच रहे हैं. फरवरी के अंत तक आलू आना शुरू हो जाता था लेकिन इस बार लगातार होती रही बारिश के कारण किसान कोल्ड स्टोरेज तक मार्च के पहले और दूसरे हफ्ते तक भी नहीं पहुंच पाए. जब आना शुरू हुआ तब तक देश में तालाबंदी लागू हो गई और अभी तक बहुतकम आलू पहुंच पाया है. निश्चित ही जून-जुलाई में आलू को लेकर मारा-मारी मचेगी.

हुगली के नालीकुल में स्थित एक कोल्ड स्टोरेज के मालिक ने नाम न छापने कीशर्त पर बताया कि आलू स्टोरेज तक आया तो जरूर है लेकिन श्रमिकों की भारी कमी है. ऐसे में किसानों को यहां से आलू उठाने में काफी परेशानी होगी. यदि किसान ज्यादा माल खुले बाजार में ही बेच देंगे तो कोल्ड स्टोरेज और आगे बाजार प्रभावित होंगे.

पश्चिम बंगाल कोल्ड स्टोरेज एसोसिएशन के तरुण शांति घोष ने बताया कि अभी तक स्टोरेज में 80 फीसदी आलू स्टोर हुआ है. यह पिछले समान अवधि की तुलना में करीब 8 फीसदी कम है. श्रमिकों की कमी से ऐसी मुसीबत आई है, राज्य सरकार मदद करेगी तो आगे बाजार पर असर नहीं होगा.

नेशनल हॉर्टीकल्चर बोर्ड के मुताबिक देश में कुल आलू उत्पादन का 75 फीसदी कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है. देश में 5 फीसदी सरकारी और सामुदायिक कोल्ड स्टोरेज के साथ ही 95 फीसदी निजी कोल्ड स्टोरेज में मिलाकर देश के 75 फीसदी हॉर्टीकल्चर उत्पादों का भंडारण होता है.

पश्चिम बंगाल में हुगली वेजिटेबल्स ग्रोवर्स प्रोड्यूसर्स कंपनी लिमिटेडके प्रबंध निदेशक सुब्रत कर्मकार ने बताया कि उनसे हुगली के 1024 छोटीजोत (एक एकड़ के आस-पास वाले) वाले किसान सम्बद्ध हैं. यह किसान मुख्यरूप से आलू और प्याज की पैदावार करते हैं. लॉकडाउन से पहले ही मार्च के पहले हफ्ते तक आलू को कोल्ड स्टोरेज में पहुंचा दिया गया था. इसके बाद जैसे ही 25 मार्च को लॉकडाउन शुरू हुआ बड़ी संख्या में मजदूर अपने-अपने राज्यों या घरों की ओर पलायन कर गए. किसानों के आलू कोल्ड स्टोर में ही रखे हुए हैं. हमारे पास दो महीने का स्टॉक बचा हुआ है जिससे हम आलू को बाजार तक पहुंचा रहे हैं. यदि दो महीने के भीतर हालात नहीं सुधरते हैं तो बड़ा संकट हो सकता है.

इस बार बुलबुल तूफान के चलते आलू की पैदावार भी देर से हुई थी और कोल्ड स्टोरेज में भंडारण भी देर से शुरु हुआ. 10 मार्च के करीब आलू कोल्ड स्टोरेज पहुंचना शुरू हुआ. कोलकाता में करीब 450 कोल्ड स्टोरेज हैं जिन्हें भरने में 20 से 25 दिन लगता है. लेकिन 23 मार्च से देश में तालाबंदी लागू हो गई. हर वर्ष आलू की पैदावार करने वाले किसान इनमें अपने खर्चे पर अच्छे दाम की उम्मीद से भंडारण कर देते हैं. लेकिन इस बार लॉकडाउन के कारण यह प्रक्रिया टूट गई. कुछ किसान कोल्ड स्टोरेज पहुंचने के बजाए स्थानीय बाजारों या बिचौलियों को ही आलू थोड़ा-थोड़ा करके बेच रहे हैं.

बांग्लादेश करना था निर्यात

सुब्रत कर्मकार ने बताया कि लॉकडाउन के चलते सबसे ज्यादा खराब हालत प्याज की है. जो भी नया प्याज तैयार हुआ है वह अभी खेतों में ही पड़ा है. जबकि हम पुराने प्याज के स्टॉक से काम चला रहे हैं. नया प्याज ज्यादा से ज्यादा 15 से 20 दिन ही बचाया जा सकता है. इसे बचाने के लिए हमें अतिरिक्त लागत लगानी पड़ रही है. इससे हमें प्याज की असली कीमत नहीं मिल पाएगी. करीब 35 से 40 रुपये किलो बाजार भाव वाले प्याज को किसान 10 से 15 रुपये प्रति किलो बेचने पर मजबूर हैं. लॉकडाउन लगते ही लेबर की कमी हो गई और प्रति बीघा कम से कम 10 लेबर की जरूरत होती है. कुछ लेबर रुक गए थे लेकिन बाद में वो भी चले गए. प्याज पूरी तरह से हार्वेस्ट नहीं हो पाया.

हुगली का आधे से ज्यादा प्याज बांग्लादेश निर्यात होता है. उत्तर 24 परगना और नदिया जिले के कुछ सीमावर्ती इलाकों से यह प्याज बांग्लादेश पहुंचाया जाता है लेकिन लॉकडाउन के चलते प्याज का निर्यात नहीं हो पा रहा है. साथ ही असम, बिहार और झारखंड के बाजारों में भी हमारा माल नहीं जा रहा है. इस लॉकडाउन में सबसे ज्यादा नुकसान प्याज का हो सकता है, जिसका सीधा असर छोटे किसानों पर पड़ने वाला है. कर्माकर ने बताया कि उनके यहां पंजीकृत किसानों के जरिए 500 एकड़ में प्याज की खेती हुई.

महेंद्र स्वरूप ने बताया कि देश में प्याज भंडारण के लिए अभी तक कोई खास व्यवस्था नहीं हो पाई है क्योंकि प्याज कोल्ड स्टोरेज में नहीं रखा जा सकता. यदि प्याज कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है तो वे जल्दी ही सड़ सकता है. ऐसे में प्याज ज्यादातर खुले बाजारों की तरफ जा रहे हैं.

बंपर पैदावार, करीब 5 लाख मजदूर प्रभावित

आलू पैदावार के मामले में सर्वाधिक उत्तर प्रदेश और दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल फिर बिहार, गुजरात और मध्य प्रदेश का स्थान है. यह पांचो राज्य कुल आलू पैदावार में करीब 75 फीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं. कृषिमंत्रालय के मुताबिक 2019-20 में आलू के कुल उत्पादन का पहला एडवांस अनुमान 519.47 लाख टन है.

लॉकडाउन के चलते देश के विभिन्न किसानों व फार्मर प्रोड्यूसर कंपनियों और संगठनों से बातचीत के मुताबिक आलू की खेती और कोल्ड स्टोरेज से जुड़े 5 लाख से ज्यादा मजदूर उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के प्रभावित हुए हैं.

अंगूर किसानों को 17 हजार करोड़ नुकसान

लॉकडाउन का समय किसानों पर बेहद भारी बीत रहा है. देश का सबसे बड़ा अंगूर उत्पादक महाराष्ट्र का किसान भी इसकी चपेट में है. अंगूर पैदा करने वाले किसानों के लिए 15 मार्च से 15 अप्रैल की अवधि बेहद खास होती है. अंगूर की हार्वेस्टिंग के लिए यह पीक अवधि है. किसी भी हाल में उन्हें अपने खेतों को खाली करना है. लेकिन लॉकडाउन व पुलिस से भय से पूरा ट्रांसपोर्ट सिस्टम ठप पड़ा है. किसानों की पैदावार बागों में ही बर्बाद हो रही है. महाराष्ट्र में अंगूर किसानों ने लॉकडाउन की अवधि में करीब 17 हजार करोड़ रुपये के नुकसान का शुरुआती आकलन किया है.

राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष और कृषि आर्थिक समिति से जुड़े शंकर दरेकर ने हमें बताया कि जलवायु परिवर्तन के चलते असमय वर्षा भी बहुत हुई है. इसके कारण पहले ही उत्पादन में करीब 30 से 40 फीसदी गिरावट आ गई है. अब कोरोना संक्रमण के फैलाव और भय के बाद अंगूर की सप्लाई नहीं हो पा रही है. मांग सुस्त होने के कारण बाजार भाव भी निचले स्तर पर हैं. हमें इस बंदी से करीब 30 फीसदी नुकसान उठाना पड़ रहा है.भाव न होने के कारण इस बार लागत निकालना भी मुश्किल होगा. हम लोग इस वक्त मजदूरों की अनुपस्थिति में खुद ही ट्रकों में माल लोडिंग के लिए तैयार हैं लेकिन ट्रांसपोर्टर तैयार नहीं हो रहे. हमारी खेती अगले पांच साल केलिए बर्बाद हो गई है.

केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक 2017-18 के दौरान देश में कुल अंगूर का उत्पादन 29.20 लाख टन था. इसमें महाराष्ट्र में 1.05 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर 22.86 लाख टन उत्पादन हुआ. इसके अलावा दूसरे स्थान पर कर्नाटक था जहां 5.24 लाख टन अंगूर उत्पादन हुआ.

(डाउन टू अर्थ से साभार)

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