हिंदुस्तान की सड़कों पर इन दिनों भयावह मंजर है. एक बच्चा जो घसीटने वाली ट्रॉली बैग पर सो जाता है और मां उसे खींचते हुए चली जा रही है. अपने विकलांग बच्चे को कंधे पर लादे मां-बाप गांव की तरफ भाग रहे हैं. कोई टैंपो से मुंबई से यूपी के लिए निकला और रास्ते में सड़क दुर्घटना में मारा गया, बीवी बच्चों को छोड़ गया. मानवता के तार-तार होने की अनगिनत कहानियां हैं, जो इन दिनों भारत की सड़कों पर लिखी जा रही हैं.
यह हमारे शहरों के, हमारे राजनीतिक नेतृत्व के असफल हो जाने के जीवित प्रमाण हैं. जिस चकाचौंध का लालच दिखाकर लोगों को गांवों से शहर में बसाने के सब्जबाग दिखाए गए थे वो ध्वस्त हो चुके हैं. दो महीनों में बनी इस नई दुनिया ने दिखाया है कि शहर के भीतर अपना कुछ भी बचा नहीं हैं. शहरों का सब्जबाग दिखाने वाले हमारे महामानव का एक वीडियो आप सबने देखा होगा. दिल्ली से दोगुना बड़ा धौलेरा शहर का दिवास्वप्न दसियों साल पहले दिखाया गया था. उसके बाद स्मार्ट सिटी भी आई और गई. इस कोरोना ने सिर्फ शहरों के खोखलेपन को ही उजागर नहीं किया है बल्कि राजनीतिक नेतृत्व के दिवालिएपन को भी उखाड़ कर रख दिया है.
लिहाजा लोग शहरों से भाग रहे हैं. जिस दिल्ली में देश का सर्वशक्तिमान सत्ता प्रतिष्ठान मौजूद है, वह दिल्ली भी कोई भरोसा नहीं दे पा रही है. उस दिल्ली से भी लाखों लोग भाग रहे हैं. भागने वाले ऐसे ही सात दुस्साहसी, शहरों से मोहभंग हुए मजदूरों की कहानी हमारे सामने लेकर आए हैं पत्रकार और फिल्मकार विनोद कापड़ी. 7 मजदूर जो 7 दिन और 7 रातों तक अनवरत साइकलें चलाकर गाजियाबाद से बिहार के सहरसा जिला पहुंचे. उनके साथ अपनी यात्रा के कुछ संस्मरण विनोद कापड़ी ने न्यूज़लॉन्ड्री से साझा किया है. देखिए यह वीडियो इंटरव्यू.
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