पतंजलि वाले आचार्य बालकृष्ण का कोरोना इलाज संबंधी दावे की पड़ताल

कोरोना के इलाज को लेकर पतंजलि के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण के दावे को मेरठ के सीएमओ ने बताया गलत.

WrittenBy:बसंत कुमार
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भारत में कोरोना संक्रमण दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है. यह रिपोर्ट लिखे जाने तक देशभर में मरीजों की संख्या 4 लाख 25 हज़ार तक पहुंच चुकी है. हर दिन अब दस हज़ार से ज्यादा कोरोना के नए मरीज देशभर में आ रहे हैं. वहीं कोरोना से मरने वालों की संख्या भी 12 हज़ार से ज्यादा हो गई है.

देश में लगातार बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच कई तरह के दावे किए जा रहे हैं. ऐसा ही एक दावा पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण ने इंडिया टुडे पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में किया है.

इंडिया टुडे के ताजा अंक में शुभम शंखधर और सोनाली आचार्जी ने ‘परीक्षण के लिए तैयार प्राचीन ज्ञान!’’ शीर्षक से एक ख़ास रपट किया है. इस रिपोर्ट में आचार्य बालकृष्ण का इंटरव्यू भी शामिल है. इस इंटरव्यू का शीर्षक ‘क्लिनिकल ट्रायल के अंतिम चरण में है कोरोना की दवा’’ है.

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इंडिया टुडे में छपा आचार्य बालकृष्ण का इंटरव्यू

इंटरव्यू की शुरुआत करते हुए पत्रिका ने लिखा है कि कोविड-19 से संक्रमित हजारों मरीजों का इलाज करने के बाद पतंजलि अपनी दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल के अंतिम दौर में है. इसके आगे कंपनी की क्या रणनीति है, इस मुद्दे पर पतंजलि लिमिटेड के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण से एक्सक्लूसिव बातचीत के प्रमुख अंश:

इसमें बताया नहीं गया है कि इंटरव्यू कौन कर रहा है. इंटरव्यू के पहले सवाल और उसके जवाब को हम पत्रिका में जैसे है वैसे ही लिख रहे हैं.

सवाल. किन राज्यों में इसके क्लिनिकल ट्रायल हो रहे हैं?

जवाब- पतंजलि कोविड-19 के मरीजों पर अपनी आयुर्वेदिक दवाओं का क्लिनिकल ट्रायल अखिल भारतीय स्तर पर करने की योजना बना रहा है. इलाज में हमारी दवाओं का इस्तेमाल उत्तर प्रदेश, उतराखंड, गुजरात, राजस्थान जैसे कई राज्यों में हो रहा है और कई हज़ार रोगी इससे लाभान्वित भी हुए हैं. मिसाल के तौर पर मेरठ को लीजिए. यहां के दो प्रसिद्ध अस्पतालों के कई डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ के दूसरे लोग कोरोना पॉजिटिव रोगी के संपर्क में आने के कारण संस्थागत तौर पर क्वारंटाइन कर दिए गए थे. ऐसे लगभग 70 लोगों को हमने अपनी आयुर्वेदिक औषधियां दी. हमें यह कहते हुए अत्यंत प्रसन्नता है कि 5 से 7 दिनों के ट्रीटमेंट के बाद ये सभी मेडिकल स्टाफ कोरोना निगेटिव पाए गए.

दावा

इस जवाब में बालकृष्ण दावा करते हैं कि पतंजलि की आयुर्वेदिक औषधियों से मेरठ के दो अस्पतालों के डॉक्टर और मेडिकल स्टाप, जिनकी संख्या 70 रही उनका कोरोना निगेटिव 5 से 7 दिनों में आ गया.

अपने जवाब में बालकृष्ण ये नहीं बताते कि ये लोग कोरोना पॉजिटिव आए भी थे या नहीं, या फिर इनका कोरोना टेस्ट हुआ था या नहीं. बालकृष्ण कहते हैं कि वे 70 लोग कोरोना पॉजिटिव मरीजों के संपर्क में आए थे. सिर्फ संपर्क में आने से ही कोई व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव नहीं हो जाता. इसको तय करने का एक पूरा प्रोटोकॉल आईसीएमआर और भारत सरकार ने तय किया हुआ है. इसके तहत सबसे पहले कोरोना टेस्ट होता है. लिहाजा जिन लोगों को बालकृष्ण 5 से 7 दिन में ठीक करने का दावा कर रहे हैं वह पूरा दावा ही संदेहास्पद हो जाता है.

क्या ये मेडिकल स्टाफ कोरोना पॉजिटिव थे ये सवाल हमने पतंजलि के प्रवक्ता एसके तिजरावाला से किया तो उन्होंने भी कोई जवाब नहीं दिया.

एम्स के डॉक्टर विजय कुमार बताते हैं, “किसी कोरोना पॉजिटिव मरीजों के संपर्क में आने वाला हर शख्स कोरोना जांच में पॉजिटिव आए यह ज़रूरी नहीं है. बहुत बार ऐसा हुआ कि लोग कोरोना मरीज के संपर्क में आए और उनका रिजल्ट निगेटिव आया. ऐसे में यह दावा सही नहीं है.’’

क्लिनिकल ट्रायल को लेकर पतंजति का दावा

दो अस्पताल, कोरोना और हकीकत

एक तरफ जहां आचार्य बालकृष्ण के इंटरव्यू के दौरान दावा किया गया है कि संक्रमित हजारों मरीजों का इलाज पतंजलि की दवाओं से हुआ है वहीं इसी रिपोर्ट में आगे पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन की टीम के सह प्रमुख वैद्य निश्चल नरेंद्र पंड्या दावा करते हैं, ‘‘कोरोना वायरस के 100 से ज्यादा मरीज आयुर्वेदिक औषधियों से ठीक हुए हैं. यह हल्के लक्षण वाले मामले थे.’’

हजारों और सौ से ज्यादा में काफी अंतर होता है.

इसी में आगे मेरठ स्थित आनंद अस्पताल के बारे में लिखा गया है- ‘‘आनंद अस्पताल में स्टाफ के 45 क्वारंटाइन कर्मचारियों के कोविड-19 से संक्रमित होने का शक था. आयुर्वेदिक इलाज के 14 दिन बाद उनकी टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आई है.’’

यहां फिर से वही सवाल खड़ा होता है कि जिनके पॉजिटिव होने का ही कोई टेस्ट नहीं हुआ, जिन्हें सिर्फ एहतियातन क्वारंटीन किया गया था, उनको अपनी दवा देकर बालकृष्ण द्वारा यह कहना कि वो 5 से 7 दिन में कोरोना निगेटिव आ गए, यह न सिर्फ भ्रामक और झूठ है बल्कि इतने गंभीर स्वास्थ्य संकट के समय में लोगों की जान जोखिम में डालने वाला कदम भी है.

यही नहीं मेरठ के अस्पतालों को लेकर जो दावा आचार्य बालकृष्ण ने पांच से सात दिन में जो इलाज का दावा किया था, खुद अस्पताल भी उससे इत्तेफाक नहीं रखते. अस्पताल वाले बताते हैं कि कि एहतियातन सभी लोगों को 14 दिन के लिए क्वारंटीन किया गया था, उसके बाद हुए टेस्ट में वो निगेटिव पाए गए. गौरतलब है कि कोरोना का साइकल 14 दिनों का होता है, ज्यादातर संदिग्ध 14 दिन बाद निगेटिव आ जाते हैं. यहां जिनका पॉजिटिव था ही नहीं उनका 14 दिन बाद निगेटिव आने पर उसे अपनी दवाओं का असर बताना कितना सही है?

आनंद अस्पताल के सीनियर अर्थोपेडिक सर्जन डॉक्टर संजय जैन से हमने इस संबंध में जब पूछा कि अगर किसी मरीज का कोरोना पॉजिटिव आया ही नहीं तो उसका रिजल्ट निगेटिव आने पर पतंजलि की दवा को कारण बताना कितना जायज है? डॉक्टर जैन इस पर गोलमोल जवाब देते हैं, ‘‘इसमें कोई दो राय नहीं की वे कोरोना मरीजों के संपर्क में आए थे. इसमें भी कोई दो राय नहीं की संपर्क में आने से ही कोई कोरोना पॉजिटिव नहीं आता है. हमने अपने डॉक्टर्स को पतंजलि की दवाई दी है. अब उनका इस वजह से निगेटिव आया या उनका इम्युन सिस्टम मजबूत था, हम कुछ नहीं कह सकते है. लेकिन अभी पतंजलि की दवा को क्लिनिकल ट्रायल से गुजरना बाकी है.’’

आनंद अस्पताल के अलावा मेरठ के युग अस्पताल में भी पतंजलि ने अपनी दवाएं भिजवाई थी. युग के मालिक और डॉक्टर अलोक अग्रवाल से न्यूज़लॉन्ड्री ने बात की. वे हमें बताते हैं कि यहां पतंजलि के लोग हर अस्पताल के संपर्क में हैं. उन्होंने कहा है कि आपके यहां कोई कोरोना मरीज आए तो हमें सूचना दें. हम उन्हें मुफ्त में दवाई देंगे. बीते दिनों हमारे यहां कोरोना मरीज के संपर्क में 12 लोग आए. उनका टेस्ट कराया गया तो छह लोगों का निगेटिव था और छह लोगों का ए-सिम्टोमैटिक था. उनका इलाज शहर के मुलायम सिंह यादव मेडिकल कॉलेज में चला. इस दौरान हमने पतंजलि को बता दिया की हमारे यहां छह लोग कोरोना पॉजिटिव आए हैं तो उन्होंने दवाई भेज दी.’’

आयुर्वेदिक दवाई लेने से ही उन छह लोगो का कोरोना निगेटिव आया, क्या यह बात कहना सही है, जबकि उनका इलाज शहर के एक बड़े सरकारी अस्पताल में चल रहा था. इसपर डॉक्टर अग्रवाल कहते हैं, “वे अगर दावा कर रहे है तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है. मेरे छह लोग ठीक हो गए मुझे बस यह पता है. हालांकि मेरे लोग ए-सिमटेमैटिक थे. ऐसे लोग तो जल्दी ही ठीक हो जाते है. भारत में वैसे भी कोरोना से ठीक होने वालों की संख्या बाकी देशों की तुलना में बेहतर है. तो पतंजलि के लोग क्रेडिट ले रहे तो मुझे कोई परेशानी नहीं है. उनकी दवाओं से ठीक हुए इसका जवाब हांया ना में नहीं दिया जा सकता है.’’

हकीकत

आचार्य बालकृष्ण का दावा पहली नज़र में ही संदेह से घिरा नज़र आता है. हमने इसकी और हकीकत जानने के लिए हमने मेरठ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) राजकुमार से बात की.

हमने राजकुमार को इंडिया टुडे में छपे आचार्य बालकृष्ण के दावे को पढ़कर सुनाया. इसपर उन्होंने कहा, ‘‘यह दावा गलत है. हमारे यहां कोई डॉक्टर तो पॉजिटिव आया नहीं है. आनंद में लगभग दो महीना पहले एक मरीज पॉजिटिव आया था. जिसके बाद यहां के लोगों कोक्वारंटाइन किया गया. 14 दिनों बाद सब काम पर लौट आए. हमने उन्हें पतंजलि का कुछ भी खाने के लिए बोला नहीं था. वो खुद खा रहे हों तो अलग बात है. लेकिन उनका पॉजिटिव आया ही नहीं तो निगेटिव आने पर अपनी दवाई को इसका कारण बताना सही नहीं है. जो उनकी दवाई नहीं ले रहे हैं वो भी क्वारंटाइन में 14 दिन रहने के बाद निगेटिव आ जा रहे हैं.’’

युग हॉस्पिटल में तो कोरोना पॉजिटिव मरीजों को पतंजलि ने दवाई दी है. इस पर राजकुमार कहते हैं, ‘‘मैं उस समय मुलायम सिंह यादव अस्पताल देख रहा था. वहां इलाज के दौरान कोई अगर आयुर्वेदिक दवाई ले रहा है तो उससे उसकी इम्युनिटी मजबूत हो सकती है लेकिन उससे ठीक होने का दावा करना सही नहीं है.’’

क्या आपसे पतंजलि के किसी सीनियर अधिकारी ने या बालकृष्ण ने संपर्क किया इस दवा के संबंध में. इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, “हमसे किसी ने संपर्क नहीं किया है और ना ही जिले में पतंजलि के इस्तेमाल को लेकर कोई आदेश जारी हुआ है.’’

राजकुमार आगे बताते हैं, ‘‘यहां पांच अस्पतालों, मेडिकल कॉलेज, सुभारती मेडिकल कॉलेज, मुलायम सिंह यादव मेडिकल कॉलेज, श्रीराम मेडिकल कॉलेज और सीएचसी पासली में कोरोना मरीजों का इलाज हो हो रहा है. लेकिन यहां कोई डॉक्टर या मेडिकल स्टाफ कोरोना पॉजिटिव नहीं आया है या उसके क्वारंटाइन नहीं किया गया.’’

कोरोना प्रोटोकॉल के तहत हर जिले का कोरोना संबंधी शीर्ष अधिकारी उस जिले का सीएमओ होता है और मेरठ के सीएमओ पतंजलि के हर दावे को नकराते है.

हमने इसको लेकर मेरठ के जिलाधिकारी से संपर्क करने की कोशिश की तो उनके सहयोगी ने बताया कि वे कोरोना वायरस को लेकर अस्पतालों की व्यवस्था देखने में व्यस्त थे.

क्या यूपी में आयुर्वेदिक दवाओं से हो रहा इलाज

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल है. इसके कुलपति डॉक्टर एमएलबी भट्ट से जब हमने इस संबंध में सवाल किया तो उन्होंने भी इसपर हैरानी जताई.

एमएलबी भट्ट कहते हैं, ‘‘आज अख़बारों में मैंने इसी तरह की ख़बर पढ़ी है, लेकिन उसके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है. इस तरह का दावा करना अतिशयोक्तिपूर्ण भी होगा. हम लोग आयुर्वेदिक दवाओं को ‘एड ऑन ट्रीटमेंट’ के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. एड ऑन ट्रीटमेंट का मतलब होता है कि जो मानक इलाज चल रहा है उसके सहयोग के लिए किसी दवाई का इस्तेमाल करना.’’

डॉक्टर भट्ट कहते हैं, ‘‘आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल हम अभी इम्युनिटी बढ़ाने के लिए कर सकते हैं. अगर इम्युनिटी बढ़ेगी तो शरीर वायरस से ठीक से फाइट कर पाएगा. यही मकसद भी है आयुर्वेद का. गिलोय, आंवला, च्यवनप्राश इन सब का प्रयोग तो आयुष मंत्रालय भी शोध के लिए कह रहा है. भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने कहा है कि आयुष में कोई ऐसी दवा नहीं है जिससे कोरोना का ठीक हो जाए. इस बात को सबको ध्यान में रखना है.’’

एक तरफ जहां डॉक्टर भट्ट कह रहे हैं कि आयुष मंत्रालय ने कहा है कि अभी आयुष में कोई दवाई नहीं जिससे कोरोना ठीक हो सके. हम लोग इम्युनिटी बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं. वहीं इसी इंटरव्यू के दूसरे सवाल में ही बालकृष्ण दावा करते हैं कि हम सिर्फ इम्युनोबूस्टर या इम्यूनोमोड्युलेटर की ही बात नहीं कर रहे हैं. हमारी औषधियां मनुष्य की स्वास्थ्य कोशिकाओं में कोरोना वायरस के प्रवेश को भी रोक सकती है.

डॉक्टर भट्ट कहते हैं, ‘‘अगर वे ऐसा दावा कर रहे हैं तो उनको पता होगा की किस आधार पर दावा कर रहे हैं.’’

दावा संदेहास्पद

हमने पतंजलि का पक्ष जानने के लिए उसके प्रवक्ता एसके तिजारावाला को फोन किया. उन्होंने हमें बताया कि वे लगातार टीवी स्टूडियो पर लाइव चर्चा में शामिल हो रहे हैं इसलिए हम उन्हें सवाल भेज दें वो जवाब दे देंगे. न्यूजलॉन्ड्री ने उन्हें कुछ सवाल भेजा है. हमें अब तक इन सवालों का जवाब नहीं मिला है. अगर जवाब आता है तो हम उसे इस खबर में जोड़ देंगे. हमने उन्हें दोबारा फोन भी किया लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई.

बहरहाल हमें इतना तो पता चल गया है कि पतंजलि का कोरोना इलाजा और दवा संबंधी दावा भ्रामक और आधारहीन है. उसके इस दावे में मेरठ के निजी अस्पतालों की भूमिका पर भी कई सवाल खड़े होते हैं.

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