‘‘कंपनी में काम करते वक़्त हमारी उंगलियां कट गई, अब नौकरी से निकाल दिया गया’’

फरीदाबाद स्थित वीनस इंडस्ट्रियल कारपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड ने अपने 65 कर्मचारियों को निकाल दिया है. इसमें 26 कर्मचारी ऐसे हैं जिनकी उंगलियां काम के दौरान ही कट गई थीं.

WrittenBy:बसंत कुमार
Date:
   
  • Share this article on whatsapp

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के रहने वाले 47 वर्षीय मोहन सिंह से हमारी मुलाकात हरियाणा के फरीदाबाद जिले के सेक्टर 12 स्थित लेबर ऑफिस के गेट पर हुई. अपने तमाम साथियों के साथ वे भी न्याय की उम्मीद में यहां पहुंचे थे. दरअसल मोहन सिंह और उनके 64 साथियों को वीनस इंडस्ट्रियल कारपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने नौकरी से निकाल दिया है और इनकी जगह अब नई भर्तियां कर रहा हैं. यह कंपनी फरीदाबाद के सेक्टर 24 और 25 में है.

लेबर ऑफिस के गेट के बगल में एक छोटी दुकान है जो आजकल बंद है. उसी दुकान के बाहर धूप से बचने के लिए पेड़ की छांव में मोहन सिंह अपने कुछ साथियों के साथ बैठे हुए थे. बातचीत शुरू होते ही वे अपना दायां हाथ हमें दिखाते हैं. उनके दायें हाथ में सिर्फ दो उंगली बची हुई है. उसे दिखाते हुए वे कहते हैं, ‘‘मैं वीनस में बहुत पहले से काम कर रहा था, लेकिन मुझे रेगुलर साल 2012 में तब किया गया जब मेरी उंगलियां एक रात काम के दौरान मशीन में आ गई और मैं लगभग बे हाथ हो गया.’’

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute
मोहन सिंह के दायें हाथ में सिर्फ दो उंगलियाँ है.

मोहन सिंह एक हैरान करने वाली बात बताते हैं, ‘‘जब मेरी उंगलियां कटी तो कंपनी के मैनेजमेंट और मजदूर यूनियन के लोगों ने कहा की तुम पुलिस में शिकायत मत करो. हम तुम्हें एक से डेढ़ लाख रुपए का मुआवजा दिलाएंगे. तुमको 58 साल तक नौकरी पर रखा जाएगा. तुम्हें अभी रेगुलर कर रहे हैं आने वाले समय में तुम्हें पक्का भी कर देंगे. मैं सोचा की जिंदगी तो मेरी बर्बाद हो ही गई है. किसी काम का तो रहा नहीं तो इनकी बातों पर भरोसा कर लेता हूं. लेकिन कुछ दिनों बाद ही इन्होंने मुझे परेशान करना शुरू कर दिया. मेरी बीमारी के दौरान मेरी पत्नी को एक हज़ार रुपए मुझे जूस पिलाने के लिए दिए थे. जब मैं काम पर लौटा तो मेरी सैलरी से वो पैसे काटने की कोशिश की गई. मैं लड़ा और सिर्फ छह सौ रुपए कटने दिया. मुझे एक रुपए का मुआवजा नहीं मिला और बार-बार मानसिक रूप से परेशान किया गया. ( इस दौरान बीच में वकील के जरिए मोहन सिंह ने शिकायत भी की थी, उसकी कॉपी दिखाते है.) मैं यहां से नौकरी किसी हालात में छोड़ना नहीं चाह रहा था. लेकिन इनको कोरोना ने मौका दिया और वे मुझे निकाल दिए.’’

मोहन सिंह की एक्सीडेंट रिपोर्ट

कोरोना के दौर में लोग एक तरफ बीमारी और बीमारी की डर से बेहाल है वहीं रोजगार संकट ने लोगों की मुसीबतें बढ़ा दी है. आये दिन लोगों को नौकरी से निकाला जा रहा है. यह स्थिति तब है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद लोगों से किसी कर्मचारी को नौकरी से नहीं निकालने का अनुरोध कर चुके हैं. हर क्षेत्र में छटनी जारी है. लोग आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं और कई जगह इसके नकारात्मक असर भी दिखने लगे हैं. एमबीए, ग्रेजुएशन और कई अलग-अलग प्रोफेसनल कोर्स करने के बाद शहरों में नौकरी कर रहे युवा अब अपने गांवों में लौटकर मनरेगा में मजदूरी करने को अभिशप्त हो रहे हैं. लॉकडाउन के बाद बेपटरी हुआ कारोबार उधोग अभी पटरी पर लौटता नजर नहीं आ रहा है.

मोटर पार्ट्स बनाने वाली कंपनी विनस ने फरीदाबाद स्थित अपने दो प्लांट सेक्टर 24 और सेक्टर 25 में काम करने वाले 65 लोगों को नौकरी से निकाला दिया है. जिसमें से 26 ऐसे हैं जिनमें से किसी की दो उंगलियां नहीं है तो किसी की चार उंगलियां. यहीं काम करते वक़्त दुर्घटना के दौरान इन्होंने अपनी उंगलियां खो दी है. ज्यादातर मोहन सिंह की तरह ही झूठे दिलासे के शिकार हुए और अपने साथ हुई दुर्घटना के लिए कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई. कंपनी ने तमाम वादे तो ज़रूर किए, लेकिन कुछ भी लिखित में नहीं दिया और आज कोरोना की आड़ लेकर सबको नौकरी से निकाल दिया गया.

मर जाने का मन करता है...

मोहन सिंह के ऊपर परिवार की जिम्मेदारी हैं. वे कहते हैं, ‘‘मेरा एक बेटा 12 वीं में हैं और दूसरा दसवीं क्लास में. गांव में एक टूटा घर है, जिसमें रहना मुश्किल है. यहां किराए के कमरे में रहते हैं. जिसके लिए मुझे हर महीने 3 हज़ार रूपए देने होते है. लॉकडाउन के बाद जब काम बंद हो गया तब से बचे हुए पैसे खर्च करके खाना-पीना किया. दो महीने से कमरे का किराया नहीं दिया. मकान मालिक किराया मांग रहे हैं उन्हें कहां से पैसे लाकर दें. हर रोज इस उम्मीद से कंपनी के बाहर, नेताओं के पास जाते हैं कि आज नौकरी मिल जाएगी, लेकिन हमें कंपनी के गेट पर से ही भगा दिया जा रहा है.’’

बातचीत के दौरान तकलीफ से मोहन सिंह का गला भर जाता है और आंखों से आंसू टपक जाता है. वे हताश भाव से कहते हैं, ‘‘दुःख इतना बढ़ गया है कि कभी-कभार मन करता है मर जाए. इस हालात में कोई काम दे नहीं रहा है. जिसने इस हालात में पहुंचाया उसने काम से निकाल दिया. अब हम क्या करें. जमीन है नहीं की जाकर खेती कर सकें. यहां कोई काम देगा नहीं क्योंकि मेरे इस हाथ से मेहनत वाला काम होता नहीं है.मालिक ने मुझे धोखा दिया है.’’

65 में से 26 मजदूरों की उंगलियां कंपनी में काम के दौरान कटी

मरने की बात कहने पर दूकान के आसपास मौजूद मोहन सिंह के साथ कंपनी से निकाले गए बाकी साथी कहते हैं,‘‘अरे ऐसे कैसे मरोगे भाई. बेकार की बात मत करो. अपना हक हम लेंगे. चाहे जो करना पड़े. जवानी कंपनी को दे दिए बुढ़ापे में दर-दर की ठोकर खाने इधर-उधर नहीं जाएंगे.’’

पिछले आठ साल से वीनस में काम कर रहे मोहन सिंह को चौदह हज़ार रुपए महीने का वेतन मिलता था.

जब उनके साथी उनका हौसला बढ़ा रहे होते है तो एक सहकर्मी चुप खड़े नजर आते हैं. माथे पर गमछा बांधे उतराखंड के ही टिहरी गढ़वाल के रहने वाले राजवीर सिंह अपने आप को बदनसीब बताते हुए कहते हैं कि मैं भी उन 26 लोगों में से एक हूं जो काम के दौरान अपनी उंगली खो बैठे और मालिकों के झूठे भरोसे को सच मानकर चुप रहे. ये देखिए मैं अब किस लायक हूं.’’

राजवीर सिंह की बाएं हाथ की दो उंगलियां कटी हुई है, वहीं एक उंगली टेढ़ी है. घर की जिम्मेदारी और गरीबी की वजह से 49 साल के राजवीर साल 1995 में रोजगार की तलाश में दिल्ली आए. यहां उन्होंने 2003 तक इधर-उधर कई जगहों पर नौकरी की. 2003 में वीनस में काम करना शुरू किए. 2003 से 2007 के बीच सब कुछ बेहतर रहा, लेकिन 2007 के पांच जनवरी का दिन उनके लिए बड़ी मुसीबत लेकर आया. राजवीर कहते हैं "उस दिन मैं काम कर रहा था तभी मशीन में मेरा हाथ आ गया और देखते-देखते मेरी दो उंगलियां कट गई. एक ऊँगली टेढ़ी है.’’

राजवीर सिंह की दो उंगलियां 2007 में कट गई और एक टेढ़ी हो गई है

मोहन सिंह की तरह यूनियन और मैनेजमेंट ने अपनी मीठी बातों और वादों की चासनी में राजवीर सिंह को भी रखा और कई तरह के वादे किए जिसमें कुछ भी कागजी नहीं था. सबकुछ मौखिक रूप से था. इनको भी कहा गया कि आपको कभी नौकरी से नहीं निकाला जाएगा. आपको मुआवजा दिया जाएगा, लेकिन कोरोना की आड़ में इन्हें भी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है. मुआवजा के नाम पर इन्हें कुछ नहीं दिया गया.

राजवीर भी अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाते हैं. वे बताते हैं, ‘‘मेरी तीन बेटियां हैं और एक बेटा है. वे सभी अभी पढ़ रहे हैं, किसी की भी शादी नहीं हुई है. मेरे मां-बाप नहीं है. गांव में थोड़ा बहुत खेत हैं तो उसमें खेती करने के लिए बारिश पर निर्भर रहना पड़ता है. परिवार यहां किराए के दो कमरे में रहता है. जिसके लिए हमें हर महीने 4,500 रूपए देने होते हैं. लॉकडाउन शुरू होते ही काम बंद हो गया. काम बंद होने की स्थिति में हमारे पास जो कुछ भी था खर्च कर दिए. कमरे का किराया ले-देकर दिया. अब तो भूखे मरने की स्थिति आने वाली है. राशन वाले का भी उधार चल रहा है.’’

राजवीर सिंह की एक्सीडेंट रिपोर्ट

राजवीर उदास मन से कहते हैं, ‘‘मैं एक जगह नौकरी के लिए गया था तो उन्होंने कह दिया की तेरा हाथ तो कटा हुआ तू काम कैसे करेगा. यहां पर तो छोटा कंपोनेंट है तो हम काम कर लेते हैं. अभी इधर-उधर भाग रहे है ताकि काम पर रख लें. गेट पर जाने पर हमें भगा दिया जाता है. यहां मत खड़े रहो, यहां से निकलो. कोशिश कर रहे हैं अगर नौकरी पर रख लिए तो शायद जिंदगी कुछ ठीक हो जाए नहीं तो सब कुछ अंधकारमय ही दिख रहा है.’’

राजवीर सिंह कंपनी के यूनियन पर धोखा देने का आरोप लगाते हैं. वे हर साल यूनियन को दिए चंदे की लिस्ट दिखाते हुए कहते हैं. हमने उन्हें हर साल चंदा दिया, लेकिन उन्होंने हमें धोखा दिया है. हमारे पक्ष में खड़े तक नहीं हो रहे हैं.

राजवीर सिंह द्वारा यूनियन को दिया गया चंदा

शादी के एक साल बाद हो गया दुर्घटना का शिकार

बिहार के मुंगेर जिला के रहने वाले फंटूस ठाकुर भी उन 26 लोगों में से एक हैं जिनकी उंगलियां कंपनी में काम के दौरान कट गईं और इस बुरे दौर में कंपनी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा रही है.

36 वर्षीय फंटूस कहते हैं, ‘‘शादी के एक साल बाद एक रोज काम के दौरान मेरा बायां हाथ मशीन में फंस गया. जिसके बाद दो उंगलियां खत्म हो गई. अब तो इस हाथ से भारी समान नहीं उठा पाता हूं.’’

फंटूस के साथ यह दुर्घटना तब हुई थी जब उनकी उम्र महज 26 साल थी. एक्सीडेंट रिपोर्ट के अनुसार उनके साथ दुर्घटना 22 जुलाई 2009 की सुबह ग्यारह बजे हुई थी. वे उस दिन को याद नहीं करना चाहते हैं. वे कहते हैं, ‘‘एक साल पहले शादी हुई थी. साला (पत्नी का भाई)काम दिलाने के लिए लेकर यहां आया. अभी काम शुरू किए छह से सात महीने हुए थे की मशीन की चपेट में हाथ आ गया. सबकुछ अचानक से खत्म हो गया. हाथ में जख्म होने के बाद सेक्टर तीन के ईएसआईसी अस्पताल में भर्ती करा दिया गया. किसी ने देख रेख तक नहीं की. गांव से मेरा भाई आया और इलाज करवाया.’’

बिहार के मुंगेर जिला के रहने वाले हैं फंटूस ठाकुर

कंपनी के अधिकारियों और यूनियन के लोगों ने राजवीर और मोहन सिंह की तरह फंटूस को भी मुगालते में रखा. अस्पताल से लौटने के बाद यूनियन के लोगों ने दबाव बनाया की तुम शिकायत मत करो. हम तुम्हें हर ज़रूरत पर मैनेजमेंट से मदद करवाएंगे. तुम्हें मुआवजा दिलाएंगे. एकाध बार मदद किया भी लेकिन बाद भी मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया गया और जो मदद दिया था वो मेरी ही सैलरी से धीरे-धीरे काट लिया गया.’’

बेहद कम उम्र में हुए इस हादसे ने उन्हें तोड़ दिया, लेकिन कंपनी ने उन्हें शिकायत नहीं करने की शर्त पर काम पर रख लिया. पहले तो उन्हें हल्के काम दिए गए, लेकिन धीरे-धीरे उनसे भारी काम कराए जाने लगा. ऐसा जानबुझकर और साजिश के तहत किया गया ताकि वे परेशान होकर काम छोड़ दें, लेकिन कहीं और रोजगार नहीं मिलने के डर के कारण जैसे तैसे हालात में फंटूस काम करते रहे. कोरोना में जब लॉकडाउन हुआ तो कंपनी में सभी कर्मचारियों को छुट्टी दे दी. लॉकडाउन खत्म होने के बाद जब काम शुरू हुआ तो इन्हें काम से निकाल दिया गया और इनकी जगह नए लोगों की भर्ती शुरू हो गई.

फंटूस ठाकुर की एक्सीडेंट रिपोर्ट

फंटूस बताते हैं, ‘‘कोरोना और लॉकडाउन ने हमें बर्बाद कर दिया. इसी ने इन्हें बहाना दिया ताकि हमें नौकरी से निकाला जा सके. मैं यहां पत्नी और बेटी के साथ रहता हूं. लॉकडाउन में जैसे तैसे गरज चला, लेकिन अब तो परेशानी हो रही है. काम की तलाश में जहां जा रहा हूं लोग उंगली देखकर ही काम पर रखने से मना कर दे रहे हैं. पढ़े-लिखे तो है नहीं तो मजदूरी वाला ही काम करेंगे न. उसके लिए तो मजबूत हाथ चाहिए ही. अगर हमें काम पर वापस नहीं बुलाया जाता तो ज़िन्दगी कैसे गुजरेगी इसको लेकर हमें सोचने से डर लग रहा है. आठ-नौ हज़ार रुपए मकान मालिक का बकाया हो गया है. राशन वाले का 15 हज़ार तक कर्ज हो गया है. कैसे सब दिया जाएगा समझ ही नहीं आ रहा है.’’

ऐसे हमारी यहां और कई और लोगों से मुलाकात हुई जिन्होंने काम के दौरान हुए हादसे में अपनी उंगली खो दी, लेकिन आज उन्हें नौकरी से निकाला जा रहा है. सब किसी तरह यहां नौकरी पा लेना चाहते है, क्योंकि उन्हें बाहर काम मिलना मुश्किल होगा. जो लोग इधर-उधर कोशिश किए है उनका अनुभव भी ऐसा ही रहा है.

क्यों नौकरी से निकाला गया?

वीनस कंपनी में बीते सत्रह-अठारह साल से काम कर रहे कर्मचारियों को चौदह से अठारह हज़ार तक का वेतन मिलता है. ज्यादातर शहर में ही अपना परिवार रखते हैं. ऐसे में महीने के रहने खाने का खर्च भी काफी ज्यादा होता हो. लॉकडाउन के दौरान जब इन मजदूरों के पास पैसों की तंगी हुई तो स्थायी और रेगुलर दोनों तबके के मजदूरों ने साथ मिलकर मैनेजमेंट से कुछ आर्थिक मदद की मांग की. इसको लेकर बहस हो गई. (स्थायी कर्मचारी ही यूनियन का नेतृत्व करते हैं) हालांकि बाद में जिनकी बहस हुई थी उन्होंने माफ़ी मांग ली. यह कहना है वीनस के ही निकाले गए कर्मचारी अरविन्द कुमार का. अरविन्द कुमार उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के रहने वाले हैं.

अरविंद कहते हैं, ‘‘यहां 70 स्थायी कर्मचारी है. 70 स्टाफ हैं. वहीं 65 के करीब हम रेगुलर कर्मचारी थे. स्थायी कर्मचारियों और रेगुलर कर्मचारियों में खास अंतर नहीं होता है. जब लॉकडाउन के बाद काम शुरू हुआ तो शुरुआत में हमारे कुछ रेगुलर साथियों को भी पास बनाकर दिया गया और वे काम पर लौटे, लेकिन बाद में हमें बुलाना बंद कर दिया गया. हम इंतजार में बैठे थे की शायद जल्द ही बुलाया जाए, लेकिन तभी हमारी जगह नए लड़कों की भर्ती शुरू हो गई. यह हमारे साथ धोखा हुआ. हमारे स्थायी साथियों ने कहा था कि हम अंदर चले जायेंगे तो तुमको भी बुला लेंगे. लेकिन उन्होंने ने भी हमें हमारे हाल पर छोड़ दिया.’’

अरविंद आगे कहते हैं, ‘‘सुप्रीम कोर्ट का आदेश आ गया की मालिकों को भी परेशान ना किया जाए तो उसका नजायज फायदा उठाकर इन्होंने हमें बाहर का रास्ता दिखा दिया. इनका मकसद कम दरों पर नए मजदूर लाना है. वहीं हममें से काफी साथियों के हाथ में जख्म है तो वो थोड़ा कम काम करते ही थे. इन्हें मौका मिला और ये हमें बाहर का रास्ता दिखा दिए.’’

नौकरी से निकाले गए प्रेम सागर की नहीं है चार उँगलियाँ

हरियाणा में अभी भारतीय जनता पार्टी और जेजेपी की साझा सरकार है जिसका नेतृत्व मनोहरलाल खट्टर कर रहे हैं. ये मजदूर जब कंपनी के गेट पर अपने मालिकों और यूनियन के साथियों से मिलने पहुंचे तो इन्हें भगा दिया गया. जिसके बाद उन्होंने इधर-उधर कोशिश करना शुरू कर दिया. इसी सिलसिले में स्थानीय सांसद और भारत सरकार में केन्द्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर समेत कई लोगों को पत्र लिखकर मदद की गुहार लगाई.

इस पत्र में मजदूर लिखते हैं कि काम कम होने का बहाना करके कंपनी ने उन्हें काम पर आने से मना कर दिया लेकिन उनकी जगह पर नए लोगों की भर्ती की जा रही है. जिन कर्मचारियों को निकाला गया उसमें से 30 प्रतिशत दिव्यांग है. कोरोना काल में सेवाएँ देने के बावजूद हमारे साथ ऐसा किया गया. जिससे समस्त कर्मचारियों मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न हुआ है. कृपया हमारी मदद की जाए और हमें कंपनी में अपने पद पर वापस लिया जाए.

मजदूरों द्वारा फरीदाबाद के सांसद और केन्द्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर को लिखा पत्र

कांग्रेस विधायक मजदूरों के साथ खड़े हुए

अपना रोजगार वापस पाने की चाह में मजदूर इधर से उधर भटक रहे थे, लेकिन उनकी कोई सुन नहीं रहा था. ऐसे में एनआईटी क्षेत्र से विधायक पंडित नीरज शर्मा जो आजकल फरीदाबाद में मजदूरों की लड़ाई लड़ रहे हैं और इसके लिए जेसीबी चौक के सामने प्रदर्शन करते हुए रामचरितमानस का पाठ कर रहे हैं वे इनकी मदद के लिए आगे आए.

जिस रोज हम मजदूरों से मिलने पहुंचें थे उसी दिन नीरज शर्मा मजदूरों की बहाली को लेकर ज्ञापन देने लेबर ऑफिस पहुंचे थे. उन्होंने यहां सहायक श्रम आयुक्त से मुलाकात कर ज्ञापन दिया और तत्काल कंपनी पर कार्रवाई की मांग की.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए विधायक नीरज शर्मा ने बताया कि "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा की इस आपदा को अवसर बनाइए. उन्होंने शायद अच्छे तरीके से कहा होगा, लेकिन इस शहर के पूंजीपति, उद्योगपति और कुछ नेताओं ने मिलकर लोगों का शोषण करना शुरू कर दिया. मजदूरों को बिना सरकार से इजाजत लिए निकालना शुरू कर दिया. जो की गैरकानूनी है. जिस भी कंपनी के अंदर 300 से ज्यादा कर्मचारी हैं वहां से किसी को भी निकालने से पहले सरकार से अनुमति लेनी होती है. हमारे जिले के अंदर हरियाणा सरकार गूंगी-बहरी बनी बैठी है. इन मजदूरों के पक्ष में हम हरियाणा सरकार को जगा रहे हैं.’’

सहायक श्रम आयुक्त कोे मजदूरों का ज्ञापन सौपतें कांग्रेस विधायक नीरज शर्मा

नीरज शर्मा आगे कहते हैं, ‘‘मेरी लड़ाई मजदूरों के हक में तब तक जारी रहेगी जब तक इन्हें काम पर वापस नहीं बुला लिया जाता है. अरे अगर आपके यहां काम की कमी है तो एक दिन अंतर देकर बुला लो. बिना वेतन के छुट्टी पर भेज दो. आज महौल अच्छा नहीं है कल तो होगा. कम से कम आदमी नौकरी तलाशने जाए तो उसके बायोडाटा में लिखा होगा की फलाने जगह काम कर रहा है. इन सबकी जवानी चली गई. किसी की उंगलियां कट गई है. ऐसे में इन्हें अब कौन काम देगा.’’

इसके बाद हमने फरीदाबाद के सहायक श्रम आयुक्त भगत प्रताप नीरज से बात की. उन्होंने कहा, ‘‘वीनस कंपनी को लेकर ज्ञापन विधायक नीरज शर्मा ने हमें सौंपा है. सेक्टर 24 और सेक्टर 25 का यह मामला है. सेक्टर 24 की जिम्मेदारी मेरे पास है तो मैं आज ही कंपनी को नोटिस भेजूंगा. और जो भी इस मामले में उचित कर्रवाई होगी तत्काल की जाएगी.’’

वीनस में काम करते हुए मजदूरों की उंगलियां कट गई. उन्हें एफआईआर तक दर्ज नहीं करने दिया गया. उन्हें तरह-तरह के लालच दिया गया. लालच और अपना भविष्य अंधकारमय देखकर मजदूरों ने मैनेजमेंट पर भरोसा किया, लेकिन ना तो उन्हें मुआवजा मिला और नहीं अब नौकरी बची हुई है. क्या इस मसले पर भी कार्रवाई की जाएगी. इस सवाल के जवाब में सहायक श्रम आयुक्त कहते हैं, ‘‘जो भी शिकायतें होंगी सबपर कार्रवाई की जाएगी.’’

भारतीय मजदूर संघ के महासचिव ब्रिजेश उपाध्याय से जब हमने जानना चाहा की क्या अब ये मजदूर कंपनी के खिलाफ शिकायत कर सकते हैं तो उन्होंने कहा की पहले उन्हें साबित करना होगा की दुर्घटना कंपनी में ही घटी थी. अगर वे साबित कर देते हैं तो कोर्ट में मामला जाएगा. उसके बाद थोड़ी संभावना बनेगी.

कंपनी में कोई बात करने को तैयार नहीं

हम कंपनी का पक्ष जानने के लिए सेक्टर 24 पहुंचे. यहां कंपनी में काम चल रहा है. गेट पर मजदूरों की साइकिलें खड़ी थी. वहीं दूसरी तरह गाड़ियों में सामान भरा जा रहा था. हमने गेट में मौजूद मुख्य गार्ड जयप्रकाश पाठक से कंपनी के अधिकारियों से बात कराने के लिए कहा तो वे थोड़ी देर के लिए कार्यालय के अंदर गए और लौटकर उन्होंने बताया की कोई भी अधिकारी मौजूद नहीं है.

इसके बाद हमने कंपनी मजदूर यूनियन के अधिकारी हरवीर सिंह, मिश्री लाल और मनोज कुमार तीनों को बुलाने के लिए कहा तो एकबार फिर जयप्रकाश पाठक ऑफिस के अंदर गए और आकर उन्होंने कहा की कोरोना के कारण कोई भी कर्मचारी बाहर आकर किसी नहीं मिल सकता है. आप शाम पांच बजे आइये तो आपकी मुलाकात हो जाएगी.

कंपनी में नए लोगों की भर्ती हुई है इसका सबूत हमें गेट पर मौजूद एक ड्राईवर ने दिया. ड्राईवर ने हमें बताया की वे पहले यहां पुलिस चौकी में गाड़ी चलाते थे लेकिन वहां से काम छूट जाने पर वे पिछले महीने ही यहां ड्राईवर के रूप में ज्वाइन किए है.

मजदूरों को गेट से भगाने की बात गेट पर मौजूद एक गार्ड दबी जुबान स्वीकार करते हैं. वे कहते हैं कि हम आदेश का पालन करते हैं. नहीं तो किसी को हम क्यों भगाते.

वीनस कंपनी में काम जारी

हमने फोन पर इन तीनों लोगों से संपर्क करने की कोशिश की. मजदूर बार-बार इनका ही नाम मैनेजमेंट के साथ मिलकर खेल रचने में ले रहे हैं. हरवीर सिंह और मनोज कुमार ने बातचीत का विषय जानते ही बाद में बात करने के लिए कह दिया. हमने दोबारा इन तीनों को एक दिन बाद फोन मिलाया तो मनोज कुमार ने फोन उठाया. उनसे हमने कहा की आपके यहां से 65 लोगों को नौकरी से निकाल दिया है. इसकी जानकारी आपको है? उन्होंने कहा-हां. इसके बाद हम अगला सवाल पूछते तब तक उन्होंने फोन काट दिया. इसके बाद उनका फोन नहीं लगा.

वीनस कंपनी के एचआर टीम के प्रमुख वेग पाल चापराना से हमने फोन पर बात की तो उन्होंने कहा, ‘‘अभी मामला अदालत में है. ऐसे में इसपर कोई बयान देना सही नहीं होगा. कल भी इसपर सुनवाई थी और आज भी है.’’

जब हमने आगे कहा की मजदूरों को निकालने की ज़रूरत क्यों पड़ी तो वे हंसते हुए कहते हैं कि आप तो ऐसे बात कर रहे हैं जैसे भारत के बाहर से आए हैं. आज कारोबार की जो हालत है वो सभी को पता है. जहां पर दो सौ आदमियों की ज़रूरत है वहां पर 50 आदमी आज की डेट में काम कर रहे हैं. क्या करें?’’

जिन मजदूरों की उँगलियां कटी है उसको लेकर हमने जब सवाल किया की ये कहते हैं, ‘‘वो हमारे नहीं है. मामला कोर्ट में हैं. वहीं तय हो जाएगा.’’

प्रेम सिंह

वीनस कंपनी की वेबसाइट पर ग्रुप के चेयरमैन डीएन कथूरिया का संदेश छपा हुआ है. अपने संक्षिप्त संदेश में उन्होंने अपने कर्मचारियों को लेकर लिखा है, ‘‘हमारे कर्मचारी और आपूर्तिकर्ता हमारे सहभागी हैं. उनके समर्थन और सहयोग के साथ हम इन ऊंचाइयों तक पहुंचे हैं.’’

Our employees and suppliers are our associate members and with their support and Co-operation we have reached to these heights.

आज भले ही वीनस जिन मजदूरों की हाडतोड़ मेहनत और अपने हाथ खोने की वजह से ऊँचाइयों को छू रहा हो, लेकिन मजदूर बेहाल है. वो किसी तरह अपना रोजगार वापस चाहते हैं.

जब हम वहां से लौटने लगे तो एक मजदूर ने कहा- दिल्ली में बात पहुंच जाए तो शायद हमारा कुछ भला हो जाए.

दिल्ली और फरीदाबाद आपसे में सटा हुआ शहर है फिर भी उनकी आवाज़ दिल्ली तक नहीं पहुंच पा रही है. लॉकडाउन के बाद केन्द्रीय श्रम मंत्री भी गायब हैं और तमाम मजदूर संगठन भी. ऐसे में इनकी आवाज़ दिल्ली कौन पहुंचाए और किसके पास पहुंचाए? सबसे बड़ा सवाल सुनेगा कौन? मजदूरों की कोई सुन भी रहा है क्या?

Also see
article imageप्रवासी मजदूर: नए दौर के नए अछूत
article imageलाख दावों के बावजूद 45 डिग्री की झुलसाती गर्मी में रह रहे प्रवासी मजदूर
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like