कानपुर में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या करने वाले विकास दुबे की अपराध-यात्रा.
कानपुर में बृहस्पतिवार की देर रात विकास दूबे और उसके गैंग के अन्य शातिर बदमाशों को पकड़ने गई पुलिस टीम पर हुई ताबड़तोड़ फायरिंग में सीओ समेत आठ पुलिसकर्मियों के शहीद होने के बाद उत्तर प्रदेश के पुलिस महकमे में ग़म का माहौल है. बिठूर थानाध्यक्ष समेत 6 अन्य पुलिसकर्मी गोली लगने से घायल हुए हैं जिन्हें गंभीर हालत में कानपुर के रीजेंसी अस्पताल में भर्ती किया गया है.
शुक्रवार की शाम तक प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कानपुर पहुंच कर घायलों का हालचाल पूछा और उसके बाद वे इस घटना में शहीद हुए पुलिसकर्मियों को श्रद्धांजलि देने भी गये. गौरतलब है कि पुलिस टीम 2/3 जुलाई, 2020 की मध्य रात्रि में चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव में दबिश देने गयी थी. वहां पुलिस पार्टी को घेर कर उसके ऊपर जमकर फायरिंग की गई और पुलिस के कई असलहे भी लूट लिये गये.
गोली लगने से घायल हुए बिठूर थानाध्यक्ष कौशलेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि "देर रात को चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव निवासी विकास दुबे के घर पर हमारी पुलिस टीम दबिश देने गई थी, हमने छापेमारी करके विकास के घर को चारों तरफ से घेर लिया था और हम दरवाजा तोड़कर बदमाशों को पकड़ने का प्रयास कर रहे थे कि विकास के साथ मौके पर मौजूद बदमाशों ने हम पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. इसी बीच एक गोली मेरी जांघ और हाथ पर लग गई, और हमारे कुछ साथी मौके पर ही शहीद हो गये इसके बाद अपराधी मौके से भाग निकले.”
पुलिस के एक सूत्र ने बताया कि जैसे ही पुलिस टीम की जीप गांव के भीतर पहुंची विकास के लोगों ने गांव का रास्ता एक जेसीबी मशीन से रोक रखा था. इसलिए पुलिस को गाड़ी से उतर कर बाहर आना पड़ा. जैसे ही पुलिस टीम पैदल सड़क पर आई वैसे ही विकास के किलेनुमा गेट वाले मकान की छत से कुछ लोगों ने गोलियों की बौछार कर दी, सबसे पहले शिवराजपुर थानाध्यक्ष महेश यादव को गोली लगी और वे गिर कर छटपटाने लगे. लगभग 50 की संख्या में लोगों ने गोलियों और बमों से पुलिस टीम पर हमला कर दिया. कानपुर जोन के अपर पुलिस महानिदेशक जय नारायण सिंह ने 8 पुलिसकर्मियों के मारे जाने की पुष्टि की.
उन्होंने बताया है कि चार और पुलिसकर्मियों की हालत नाजुक है. वे सभी कानपुर के रीजेंसी हॉस्पिटल के आईसीयू में भर्ती हैं, इसमें दो सिपाहियों के पेट में गोली लगी है.
पुलिस को हमला होने की भनक तक नहीं मिल पायी
घायल पुलिसकर्मियों ने स्थानीय मीडिया को बताया है कि दबिश के दौरान अपराधियों ने अचानक इस तरह से ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी कि जैसे उन्हें पहले से ही पुलिस के आने की सूचना थी. पुलिस जब तक कुछ समझ पाती या मोर्चा संभालती तब तक सात लोगों को गोली लग चुकी थी. इसके अलावा स्थानीय थाने की पुलिस को आपरेशन में शामिल न होने और कानपुर मंडल एवं जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का आपरेशन के बारे में आपसी समन्वय न होने पर भी उंगलियां उठ रही हैं.
उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक डॉ विक्रम सिंह ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा की जा रही कार्यवाही पर कई सवाल उठाये हैं. उन्होंने कहा, "पहली गलती स्थानीय पुलिस की है जिन्होंने अगर विकास के छूट कर आने के बाद उसकी निगरानी की होती तो आज वो इतना बड़ा अपराधी नहीं बन पाता. दूसरी गलती हमारी ख़ुफ़िया इकाई की है जिसने इसके रिश्तों पर नज़र नहीं रखी और विकास ने बीते सालों में पुलिस विभाग के भीतर अपना सूचना तंत्र इतना मजबूत कर लिया कि उसे पुलिस के आने की सूचना पहले ही मिल गयी. उसने जेसीबी लगाकर रास्ता बंद करवा दिया और अपने लोगों के साथ पुलिस पर हमला कर दिया. दो तरफ से घिरे हमारे पुलिसकर्मी जब तक कुछ समझ पाते तब तक उनके साथी शहीद हो चुके थे."
डॉ सिंह ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि ऐसे बड़े आपरेशन में पुलिस के स्वात एवं एसटीएफ जैसी प्रशिक्षित एवं संसाधनों से लैस टीमों को शुरुआत में ही क्यों नहीं शामिल किया गया? "इस आपरेशन पर जाने से पहले पुलिस टीम ने अगर बुलेट प्रूफ जैकेट पहना होता तो शायद कुछ जानें बच सकती थी. इसके अलावा इस ऑपरेशन में शामिल पुलिसकर्मियों को फील्ड क्राफ्ट समेत टैक्टिक्स, एम्बुश से बाहर आने की ट्रेनिंग दी गयी थी या नहीं? उनके पास नाइट विजन उपकरण भी नहीं थे, ऐसे में उन सबकी जान खतरे में ही थी. प्रदेश की पुलिस की नियमित ट्रेनिंग हो भी रही है या नहीं इसमें संशय है. ऐसे में बगैर अनुभव के पुलिसकर्मी ऐसे मौकों पर क्या कर सकते हैं."
कानपुर की यह घटना पिछली सपा सरकार के शासन काल में हुई मथुरा के जवाहरबाग जैसी घटना की पुनरावृत्ति लग रही है जहां बिना किसी तैयारी और बिना किसी रणनीति के पुलिस फोर्स को सीधी लड़ाई में झोंक दिया गया था.दूसरी तरफ कानपुर मंडल के तमाम वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा इस आपरेशन का नेतृत्व न किये जाने की चर्चायें चल रही हैं.
दशकों बाद हुई ऐसी मुठभेड़
उत्तर प्रदेश में संभवतः यह पहली घटना है जहां आमने सामने की मुठभेड़ में इतने पुलिसकर्मी एक साथ शहीद हुये हैं. लगभग 40 साल पहले नथुआपुर काण्ड में पुलिस की छबिराम गिरोह के साथ ऐसी ही मुठभेड़ 21 सितम्बर 1981 को एटा जिले के अलीगंज थाना क्षेत्र में हुयी थी. इस मुठभेड़ में तत्कालीन इन्स्पेक्टर राजपाल सिंह समेत 11 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे और अलीगंज थाना का पूरा स्टाफ ही शहीदों की सूचि में शामिल था.
हालांकि वह मुठभेड़ एक दस्यु गिरोह के साथ हुयी थी.इसके बाद 2009 में चित्रकूट में डकैत घनश्याम केवट के साथ हुई मुठभेड़ में 4 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे. 17 जून से लेकर 18 जून 2009 के बीच 52 घण्टे तक चली मुठभेड़ में दस्यु घनश्याम की गोलियों का निशाना बनते हुए 4 जाबांज शहीद हो गए थे जिनमें पीएसी के कम्पनी कमांडर बेनी माधव सिंह, एसओजी सिपाही शमीम इक़बाल और वीर सिंह शामिल थे. दस्युओं की गोलियों से तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक पीएसी वीके गुप्ता और उपमहानिरीक्षक सुशील कुमार सिंह सहित 6 पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल भी हुए थे.
उस मुठभेड़ में घनश्याम केवट भी मारा गया था. बीते सालों में विकास दुबे पुलिस से बचने के लिए लखनऊ के कृष्णा नगर स्थित अपने घर पर लम्बे समय से छिपा हुआ था. शासन ने इस बार उसे पकड़ने के लिए लखनऊ एसटीएफ को लगाया था. 2017 में एसटीएफ ने उसे कृष्णा नगर से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. लखनऊ में एसटीफ ने विकास के पास से एक स्प्रिंगफील्ड रायफल समेत कुछ कारतूस और दो मोबाइल फोन भी बरामद किये थे. पेरोल पर छूट कर आने के बाद विकास ने इस वारदात को अंजाम दिया है.
अपनी उम्र से भी ज्यादा रहा है विकास दूबे का आपराधिक इतिहास
कानपुर के बिठूर के शिवली थाना अन्तर्गत बिकरु गांव के निवासी विकास की हिस्ट्रीशीट उत्तर प्रदेश की राजनीति और अपराध के ताने बाने का एक छोटा सा सिरा है. यह दीगर बात है कि लगभग 60 से अधिक वारदातों में नामज़द विकास दुबे के बारे में जानते सब थे लेकिन बोलता कोई कुछ नहीं था. बहरहाल आज चर्चा का विषय बने विकास के आपराधिक जीवन की शुरुआत लगभग 30 साल पहले नब्बे के दशक में हो चुकी थी. विकास ने उन दिनों छोटे-मोटे अपराध करना शुरू किया था और पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद स्थानीय रसूखदारों की पैरवी के बाद उसे अभयदान मिलता रहा. इससे उसका हौसला बढ़ता गया.
इस दौर में कानपुर देहात के इलाकों में ब्राह्मणों की संख्या बाहुलता वाले गांवों में भी कुर्मियों और यादवों का राजनैतिक वर्चस्व बढ़ रहा था. यह बात अगड़ी जातियों के गले नहीं उतर रही थी. राजनैतिक उत्थान ने पिछड़ी जातियों को काफी मजबूत कर दिया था. उनका प्रभाव क्षेत्र कृषि और पशुपालन से इतर सरकारी ठेकों एवं अन्य व्यवसायों में बढ़ने लगा था. दूसरी तरफ अगड़ी जातियों के पास न खेत बचे थे और न ही कांग्रेस के ज़माने का राजनैतिक प्रभाव. ऐसे में उस दौर में आये दिन पिछड़ी जातियों के लोगों के द्वारा अगड़ी जातियों के साथ संघर्ष की खबरें आम हुआ करती थी.
उसी दौर में किसी स्थानीय मामले को लेकर बगल के गांव के कुछ चौधरी लोगों ने विकास के पिता का अपमान किया. जिसका बदला लेने के लिये विकास ने बिकरू से सटे गांव दिब्बा निवादा में घुस कर चौधरी समुदाय के लोगों को जमकर पीटा. विकास के ऊपर मामला दर्ज हुआ और पुलिस उसे पकड़कर थाने भी ले आयी लेकिन पूर्व विधायक नेकचन्द्र पाण्डेय की पैरवी के चलते विकास जल्द ही बाहर आ गया.
कहते हैं इस घटना के बाद कानपुर के अगड़ी जाति के नेताओं को विकास के रूप में एक औजार मिल गया था. हर बार जातिगत क्षत्रपों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिये विकास नाम के औज़ार का इस्तेमाल तकरीबन हर राजनैतिक दल के नेताओं ने किया और विकास ने बेहद शातिर तरीके से इस पिछड़ा बनाम अगड़ा के संघर्ष के बीच अगड़ी जातियों और विशेष रूप से ब्राह्मणों के बीच पनप रहे अपने संभावित दुश्मनों को भी नेस्तनाबूद करना शुरू कर दिया.
नब्बे के दशक के पूर्वार्ध में बिल्हौर के पास राजन कटियार की हत्या हुयी जिसमें विकास के बहनोई रामखेलावन पाण्डेय को नामजद किया गया. माना जाता है कि उक्त घटना को विकास के इशारे पर अंजाम दिया गया था. इस घटना के कुछ समय बाद ही बिकरू गांव के ही एक स्थानीय दबंग ब्राह्मण झुन्ना बाबा की हत्या हुई जिसमें कथित तौर पर विकास का हाथ बताया गया.
विकास की नज़र उनकी 16 बीघा ज़मीन के एक चक पर थी और उसी को हथियाने के लिए इस घटना को अंजाम दिया गया था. इस घटना का मामला दर्ज हुआ था लेकिन पीड़ित परिवार ने बाद में शिकायत वापस ले लिया. इस घटना के बाद विकास के नाम की गूंज कानपुर मण्डल के राजनैतिक धुरंधरों तक पहुंच चुकी थी. इसी बीच उसे एक स्थानीय नेता का पूर्णकालिक राजनीतिक वरदहस्त प्राप्त हुआ. उन भाजपा नेता का चुनाव क्षेत्र तत्कालीन चौबेपुर विधानसभा क्षेत्र में होने के कारण विकास उनके लिये एक मज़बूत सेनापति साबित हुआ. बिकरू से लगायत शिवली तक विकास का वर्चस्व स्थापित होने लगा और नेताजी को वोट मिलने लगे.
विकास ने इस वरदहस्त का फायदा उठाते हुए ज़मीनों पर कब्ज़ा, स्थानीय ठेकों और व्यापारियों से वसूली का विस्तार किया. इसी बीच विकास के रिश्ते तत्कालीन सांसद श्याम बिहारी मिश्र से भी प्रगाढ़ हो गये. इसके बाद मानो उसकी महत्वाकांक्षा को पंख लग गये. उसने अपने प्रभाव क्षेत्र को कानपुर से सटे जनपदों में विस्तार देना शुरू कर दिया.
लल्लन बाजपेयी से दुश्मनी और वर्षों तक चला खूनी संघर्ष
1996 में उत्तर प्रदेश की राजनीतिक उथल पुथल अपने चरम पर थी. भाजपा का मंदिर आन्दोलन का नशा अब वोटरों के मन से धीरे धीरे उतर रहा था और कांग्रेस आपसी लड़ाई में हाशिये पर जा रही थी. भाजपा को सपा-बसपा की बढ़ती राजनैतिक पैठ से जगह जगह चुनौती मिल रही थी और इसी बीच कांशीराम की सोशल इंजीनियरिंग के तहत कई अगड़ी जातियों के कद्दावर नेताओं का बसपा में आना शुरू हो चुका था. इसी क्रम में भाजपा नेता हरिकिशन श्रीवास्तव जो कि भाजपा के नेता थे, ने भी बसपा का दामन थाम लिया, तो उनके साथ उनका सबसे ख़ास सिपहसालार विकास भी बसपा में शामिल हो गया.
उस साल हुए चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार संतोष शुक्ल थे जिनके चुनाव संचालन की कमान एक अन्य स्थानीय दबंग लल्लन के हाथ में थी. इस चुनाव में भाजपा और बसपा के बीच कड़ी टक्कर हुयी और विकास की लल्लन के साथ झड़प के कई छोटे बड़े मामले हुए. अंततः विकास का सिक्का चला और हरिकिशन श्रीवास्तव कुछ हज़ार वोटों के अंतर से विजयी हुए. उनके विजय जुलूस पर शिवली बाजार में हमला हुआ और उसी दिन से विकास और लल्लन एक दूसरे के जानी दुश्मन बन बैठे.
चुनाव बीतने के कुछ हफ़्तों के बाद ही लल्लन के भाई पर गोलियां बरसायी गई. इस मामले में विकास समेत उसके भाईयों को भी नामजद किया गया. नब्बे के दशक के अंत में कानपुर देहात के इलाकों में बढ़ती आबादी के बीच कस्बायी इलाकों का गैर योजनाबद्ध विस्तार अपने चरम पर था और ज़मीनों के दाम आसमान छूने लगे थे. विकास ने ज़मीनों पर कब्ज़े बढ़ाये और वसूली के नये आयाम खोज कर खुद को आर्थिक रूप से मजबूत बना लिया.
साथ ही उसने न सिर्फ अपने परिवार के सदस्यों को तीन गांवों की प्रधानी दिलवायी बल्कि खुद के लिये भी जिला पंचायत सदस्य का पद प्राप्त किया. इस पद पर वो 15 वर्षों तक काबिज़ रहा. विकास का प्रभाव क्षेत्र अब शिवली समेत मंधना, बिल्हौर, शिवराजपुर और कानपुर शहर तक फैल चुका था. 2000 में विकास को कानपुर के शिवली थानाक्षेत्र स्थित ताराचंद इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या के मामले में नामजद किया गया था. इसी साल उसके ऊपर रामबाबू यादव की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगा था. बताया जाता है कि रामबाबू की हत्या की साजिश उसने जेल से बैठकर रची थी.
बसपा से नजदीकियां और उससे मिला प्रश्रय
विकास को लगातार मिलते राजनैतिक प्रश्रय का नतीजा वर्ष 2001 में दिखा. उसने जीवन की सबसे दुःसाहसिक घटना को अंजाम दिया. विकास ने 11 नवंबर, 2001 को कानपुर के थाना शिवली के अंदर घुसकर तत्कालीन श्रम संविदा बोर्ड के चैयरमेन, राज्यमंत्री भाजपा नेता संतोष शुक्ला की हत्या कर दी थी. संतोष शुक्ला हत्याकांड ने पूरे प्रदेश में हड़कंप मचा दिया था लेकिन पुलिस विकास का कुछ नहीं बिगाड़ पायी और वो कई दिनों तक फरार घोषित रहा.
जानकारों की मानें तो विकास अपने इलाके में ही रहता था लेकिन राजनैतिक दबाव के कारण उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती थी. विकास ने इस मामले में आत्मसमर्पण भी उसी साल के अक्टूबर महीने में बसपा सरकार आ जाने के बाद किया, इस आत्मसमर्पण को बड़े ही नाटकीय अंदाज़ में नेताओं और पुलिस कर्मियों की मौजूदगी में अंजाम दिया गया.
उसके बाद विकास जेल में बैठकर ही जरायम की दुनिया में आगे बढ़ने लगा. बाद में विकास की नज़दीकियां चौबेपुर के तत्कालीन बसपा विधायक अशोक कटियार से भी हो गई. इस बीच उसे बसपा से निष्कासित भी किया गया, लेकिन विकास द्वारा खुलेआम यह दावा किया गया कि तत्कालीन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मायावती ने उसे भाजपा के राजनैतिक दबाव के चलते निकाला. इसके बावजूद उनका आशीर्वाद उसे सदैव प्राप्त होता रहता है.
उसी दौर की तत्कालीन मंत्री प्रेमलता कटियार पर भी विकास को प्रश्रय देने के आरोप तब लगे थे जब विकास के प्रभाव के कारण प्रेमलता के पुत्र को जिला पंचायत चुनावों में जीत मिली थी. विकास के ऊपर 5 दर्जन से अधिक मामले दर्ज़ हैं जिसमें प्रमुख रूप से 2004 में एक केबल व्यवसाई दिनेश दुबे की हत्या, 2013 में अन्य रसूखदार की हत्या समेत 2018 में अपने चचेरे भाई अनुराग पर जानलेवा हमला करवाने का मामला भी है. इस मामले में अनुराग की पत्नी ने विकास समेत चार लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी.
खुद को शिवली का स्वघोषित डॉन बताने वाले विकास ने कई स्थानीय और आस-पास के जनपदों के युवाओं की टीम तैयार कर रखी है जो उसके इशारों पर कानपुर नगर से लेकर कानपुर देहात तक लूट, डकैती, मर्डर जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देते हैं.
विकास ने करोड़ों रुपये की संपत्ति अर्जित की है. विकास के दो पुत्र हैं जिसमें से एक इंग्लैण्ड में शिक्ष्रा प्राप्त कर रहा है एवं दूसरा पुत्र कानपुर शहर में रहता है. विकास ने अपने गांव के समीप ही एक स्कूल एवं डिग्री कालेज समेत एक विधि महाविद्यालय भी बनवाया है.
सोशल मीडिया पर भी होता रहा घमासान
कानपुर की घटना के बाद विपक्ष ने उत्तर प्रदेश सरकार को सोशल मीडिया पर सुबह से ही घेरना शुरू कर दिया था. समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और उनके समर्थकों ने जगह जगह प्रदर्शन कर दिवंगत पुलिसकर्मियों के लिये शोकसभा भी आयोजित की. दोपहर होने तक विकास दुबे की पत्नी के चुनाव प्रचार में बीते दिनों इस्तेमाल हुए सपा समर्थित पोस्टर जारी होने के बाद विपक्ष थोड़ा शांत हुआ. प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय लल्लू ने भी इसे शहादत करार देते हुए मामले की जांच की मांग की.
इसी आपधापी में विपक्षी दलों के समर्थकों द्वारा एक अन्य भाजपा नेता विकास दूबे की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत वरिष्ठ नेत्री उमा भारती एवं अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ तस्वीरें जारी की गयीं जिसके बाद उक्त नेता को अपना वीडियो सन्देश जारी कर सफाई देनी पड़ी. इसी बीच विपक्ष द्वारा प्रदेश के कैबिनेट मंत्री बृजेश पाठक के साथ विकास दूबे की नज़दीकियों को जाहिर करती एक तस्वीर भी जारी की गयी, हालांकि बाद में स्पष्ट हुआ है उक्त तस्वीर बृजेश पाठक के बसपा में रहने के दिनों की है.
फोटो क्रेडिट: एनडीटीवी