एनएल चर्चा 124: फिल्मी तर्ज पर हुआ विकास दुबे का एनकाउंटर

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एनएल चर्चा

एनएल चर्चा के 124वें अंक में विकास दुबे का एनकाउंटर, सीबीएसई द्वारा पाठ्यक्रम से हटाए गए सब्जेक्ट, अमेरिका आधिकारिक तौर पर डब्लूएचओ से अलग हुआ, दैनिक भास्कर के पत्रकार की आत्महत्या और ऑनलाइन एक्जाम पर बढ़ता विरोध समेत कई और विषयों पर बातचीत हुई.

कतिपय कारणों से इस बार चर्चा में अतुल चौरसिया शामिल नहीं हो सके, लिहाजा चर्चा का संलाचन न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस ने किया. इस बार की चर्चा में पूर्व आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह, शार्दूल कात्यायन और न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन भी शामिल हुए.

चर्चा की शुरुआत करते हुए मेघनाद ने विकास दूबे मामले में जानकारी देते हुए बताया कि विकास दुबे और उसके साथियों ने 8 पुलिस कर्मियों की हत्या कर दी थी. यह घटना तब घटी जब पुलिस विकास के घर पर उसे पकड़ने जा रही थे. कई दिनों तक छुपे रहने के बाद वह उज्जैन के महाकाल मंदिर से गिरफ्तार हुआ. पुलिस ट्राजिट में बहुत ही नाटकीय घटना में उसको मार गिराया गया. मेघनाथ ने सूर्य प्रताप सिंह से सवाल पूछा कि इस पूरे मामले में कौन-कौन से प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया?

सूर्यप्रताप सिंह कहते है, “पुलिस जब भी रेड करने जाती है तो वह अपने साथ पूरी तैयारी कर के जाती है. लेकिन इस मामले में कई कमी रह गई, यह तो नहीं पता ऐसा क्यों हुआ, जो भी कारण हो, लेकिन स्थानीय पुलिस की मिलीभगत से विकास दुबे ने इतने जघन्य अपराध को अंजाम दे सका. वर्तमान सरकार जो काफी समय से अपराधियों का एनकाउंटर कर रही थी उससे लोगों को लगा की इससे अपराध कम होगा लेकिन एनकाउंटर में छोटे-छोटे लोगों को मारना शुरू कर दिया गया, इससे एनकाउंटर पॉलिसी पर लोगों का विश्वास कम हुआ.”

यहां पर मेघनाद ने हस्तक्षेप करते हुए कहा, “विकास दुबे पर 60 से ज्यादा केस हैं, लेकिन कानपुर में हुई 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद ही क्यों उसका एनकाउंटर किया गया. इस घटना से पहले भी तो उसने कई निर्दोष लोगों की हत्या की थी.”

इस पर सूर्य प्रताप सिंह कहते हैं, “पुलिस फोर्स के जब 8 लोगों को मारा गया तब, पुलिस का मनोबल टूटा. विकास जैसे अपराधी उनके टुकड़ो पर पलते हैं, तो अगर विकास मर भी जाएगा तो कोई दूसरा विकास आ जाएगा, पुलिस का अपना काम चलता रहेगा. वहीं पुलिस को भी दिखाना था कि, किसी अपराधी की हिम्मत ना हो की वह पुलिस को मार सकता है.”

मेघनाथ ने चर्चा में आनंद और शार्दूल को चर्चा में शामिल करते हुए कहा कि यह पूरा एनकाउंटर पहले से तय किया हुआ लगता है. क्योंकि दो दिन पहले भी विकास दूबे गैंग के एक अन्य गुर्गें को भी पुलिस ने ऐसे ही मारा था. दूसरी तरफ जो भी मीडियाकर्मी विकास दुबे के काफिलों का पीछा कर रहे थे, उन्हें अचानक से रोक दिया गया, और दो किलोमीटर आगे ले जाकर उसका एनकाउंटर कर दिया गया. आनंद आप इस पूरे घटनाक्रम को कैसे देखते हैं.

आनंद कहते है, “इस तरह की अगर घटना को देखे तो, हैदराबाद पुलिस ने भी कुछ समय पहले भी ऐसा ही किया गया था. ऐसे घटनाओं के समय प्रतिक्रियाएं तीन तरह की रहती है. पहला बहुत प्रशंसनीय होता है, दूसरा आलोचनात्मक, तीसरा संदेहास्पद होता है. तत्काल न्याय की जो प्रवृत्ति है वह तुरंत जस्टिस की मांग करता है, लोगों में इस तरह की स्वीकृति है उन्हें लगता है ऐसे मामलों को न्यायपालिका में ना ले जाया जाए.”

शार्दूल को शामिल करते हुए मेघनाथ कहते है, इस पूरी घटना में कानून का पालन नहीं हुआ. जो जंगलराज का तमगा उत्तर प्रदेश को मिला हुआ है, वह फिर से स्थापित हो रहा है, इस पर आप क्या कहेंगे.

शार्दूल कहते हैं, “जैसा दो अन्य पैनेलिस्ट ने कहा बिना जांच के किसी भी स्थिति पर नहीं पहुंचा जा सकता. एक तरफ जहां विकास के साथी का एनकाउंटर उसी तरह किया गया, वहीं दूसरी तरफ एनकाउंटर के कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की गई थी कि कोर्ट पूरे मामले को संज्ञान में ले क्योंकि विकास का एनकाउंटर हो सकता है. इस समय हमारे देश में पुलिसिया कार्रवाई क़ानूनों के तहत नहीं हो रही है, क्योंकि उसे भी पता हैं कि अगर केस न्यायलय में गया तो केस चलता रहेगा और अपराधी सजा नहीं होगी.”

अन्य विषयों पर भी विस्तार से चर्चा हुई. पूरी चर्चा सुनने के लिए यह पॉडकास्ट सुने.

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सूर्य प्रताप सिंह

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