हिंदुओं की नाराजगी संबंधी पत्र पर हाईकोर्ट ने लगाई दिल्ली पुलिस को फटकार

आठ जुलाई को दिल्ली पुलिस के स्पेशल सीपी प्रवीर रंजन ने पत्र लिखा कि स्थानीय हिंदुओं की नाराज़गी को ध्यान में रखते हुए दिल्ली दंगों में गिरफ्तारियां की जाए.

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शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस के विशेष पुलिस आयुक्त (अपराध) प्रवीर रंजन द्वारा दंगे से जुड़े मामलों में गिरफ्तारी को लेकर दिए एक आदेश पर दायर याचिका पर सुनवाई की. सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैट ने इस आदेश को शरारतपूर्ण बताया.

आठ जुलाई को दिल्ली पुलिस के विशेष सीपी प्रवीर रंजन ने दिल्ली में फरवरी महीने में हुए दंगों की जांच कर रहे अधिकारियों को एक आदेश दिया था. इस आदेश में दंगे से जुड़े मामलों में गिरफ्तारी के दौरान एहतियात रखने के लिए कहा गया था. उन्होंने अपने पत्र में लिखा था कि गलत गिरफ्तारियों से स्थानीय हिंदू समुदाय के लोगों में नाराज़गी है.

इस आदेश पर विवाद तब शुरू हुआ जब इंडियन एक्सप्रेस में 15 जुलाई को इसके आधार पर रिपोर्ट प्रकाशित हुई. रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद दिल्ली पुलिस ने इस पर सफाई देते हुए दो पेज का प्रेस रिलीज जारी किया था.

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प्रवीर रंजन द्वारा जारी किए गए इस आदेश को लेकर हाईकोर्ट में दायर याचिका पर न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैट ने सुनवाई की.

सुनवाई के दौरान प्रवीर रंजन ने कहा कि इस तरह के आदेश ‘अन्य एजेंसियों से मिली सूचनाओं’ के आधार पर हमेशा दिया जाता रहा है. इसपर कैट ने कहा कि ठीक है, ‘‘अगले दो दिन के अंदर आप पांच ऐसे आदेश की कॉपी कोर्ट को सौंपे जो आपने या आपके पहले किसी अधिकारी ने शिकायत मिलने पर दी हो.’’

इस मामले की अगली सुनवाई 7 अगस्त को होगी.

प्रवीर रंजन के पत्र में क्या लिखा है...

आठ जुलाई को दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी प्रवीर रंजन ‘उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगे को लेकर इनपुट’ विषय के साथ एक आदेश अपने अधीनस्थ अधिकारियों को दिया था.

इसमें लिखा है- “हाल ही में दिल्ली दंगों के सिलसिले में उत्तर-पूर्व दिल्ली के चांदबाग़ और खजूरी खास इलाकों से कुछ हिन्दू युवाओं को गिरफ्तार किया गया है. एक खुफ़िया इनपुट के अनुसार इस गिरफ्तारी से हिन्दू समुदाय के लोगों में कुछ हद तक नाराज़गी है. समुदाय के प्रतिनिधियों का आरोप है कि ये गिरफ्तारियां बिना किसी सबूत के हुई है. यहां तक कि कुछ गिरफ्तारियां व्यक्तिगत कारणों से की जा रही है.”

8 जुलाई को जारी हुआ आर्डर

आगे लिखा है, “इलाके के हिंदुओं में नाराज़गी है और उनका आरोप है कि पुलिस की निष्क्रियता की वजह से दंगे और सीएए के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन में सक्रिय रूप से शामिल रहे चांदबाग़ गली नम्बर एक के निवासी राशीद खान और मोहम्मद अज़ान पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है.”

आगे इस आदेश में लिखा गया है कि किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय उचित एहतियात बरती जाए. हर गिरफ्तारी में प्रत्यक्ष और तकनीकी सबूत समेत सभी सबूतों को ठीक से देखा जाए. किसी भी मामले में कोई मनमानी गिरफ्तारी नहीं की जाए. पर्याप्त सबूत होने पर ही गिरफ्तारी की जाए.

आदेश के सबसे आखिरी में लिखा गया कि एसीपी/ डीसीपी, एसआईटी और अतिरिक्त सीपी/अपराध (मुख्यालय) अपने तरीके से जांच अधिकारियों को गाइड करें.

कोर्ट में क्या हुआ?

प्रवीर रंजन द्वारा दिए इस आदेश के सामने आने के बाद दंगे के दौरान अपने पिता को खोने वाले साहिल परवेज और अपनी मां को खोने वाले मोहम्मद सईद सलमानी ने हाईकोर्ट में इसको लेकर एक याचिका दायर की है. जिसमें इनका पक्ष वकील महमूद प्राचा ने कोर्ट में रखा.

शुक्रवार दोपहर एक बजे इस मामले की सुनवाई शुरू हुई. याचिकाकर्ताओं के वकील महमूद प्राचा ने आठ जुलाई के आदेश और इंडियन एक्सप्रेस में ख़बर प्रकाशित होने के बाद दिल्ली पुलिस द्वारा दी गई सफाई को पढ़कर सुनाया. प्राचा ने अपना पक्ष रखते हुए कहा, ‘‘यह आदेश गैरक़ानूनी ही नहीं बल्कि आपराधिक कृत्य भी है.’’

जिसके बाद न्यायमूर्ति कैट ने दिल्ली पुलिस के वकील अमित महाजन से मुखातिब होकर कहा, ‘‘इस तरह का आदेश क्यों जारी किया गया था? वह (प्रवीर रंजन) एक वरिष्ठ अधिकारी हैं. उन्हें पता है कि क्या आदेश देना चाहिए और क्या नहीं.’’

न्यायमूर्ति कैट ने आगे पूछा- “इस आदेश की ज़रूरत क्या थी? ऐसे मामलों में बहुत सारे लोग कई तरह की बातें करते है, आरोप लगाते हैं. दो समुदायों के बीच लड़ाई होती है, तो क्या वे इस तरह के आदेश जारी होता हैं?’’

इसके बाद महाजन ने कोर्ट को आदेश देने की ज़रूरत को समझाते हुए कहा, ‘‘चांदबाग़ और खजुरी ख़ास में रहने वाले हिंदू समुदाय की तरफ से सूचना मिली कि वे चाहते है कि उनके खिलाफ कार्रवाई न हो और दूसरे समुदाय के खिलाफ हो.’’ इस आदेश के दूसरे पैराग्राफ में लिखा गया है, ‘‘हर गिरफ्तारी में एहतियात बरती जाए और किसी की भी गिरफ्तारी के पहले तमाम सबूतों को देखा जाए.’’

इसके बाद महाजन ने अपना पक्ष रखते हुए याचिका दायर करने वालों पर पत्र को गलत तरीके से पढ़ने और उसकी व्याख्या करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, ‘‘यह पत्र केवल एक समुदाय तक ही सीमित नहीं है. इसे गलत तरीके से पढ़ा और इसकी व्याख्या की जा रही है.”

न्यायमूर्ति कैट ने दोबारा अपने पुराने सवाल को दोहराते हुए कहा कि “इस आदेश के अनुसार पुलिस ने गलत गिरफ्तारियां की हैं जिसके वजह से एक समुदाय में नाराज़गी थी. आपने इसके बाद क्या कार्रवाई की? और गलत गिरफ्तारी नहीं हुई तो इस आदेश की क्या ज़रूरत थी?’’

इसके आगे उन्होंने कहा, ‘‘ये (रंजन) एक वरिष्ठ अधिकारी है. इन्होंने किस नियम के तहत यह आर्डर जारी किया?’’

इसके बाद महाजन ने जवाब दिया कि इस आदेश के मध्यम से स्पेशल सीपी केवल अधिकारियों को गिरफ्तारी के दौरान सबूतों को ठीक से देखने और एहतियात बरतने के लिए कह रहे है. इस पर न्यायमूर्ति कैट ने कहा, ‘‘किसकी गिरफ्तारी करनी है यह उस मामले की जांच कर रहे अधिकारी को निर्णय लेना होता है. जांच कर रहा अधिकारी मौके पर देखेगा कि गिरफ्तारी करनी है या नहीं. उसे कोई धक्का देगा तो वह अपने सीनियर से पूछेगा, सर, वह मुझे धक्का दे रहा है, क्या मुझे उसे पीछे धकेलना चाहिए? वह पथराव कर रहा था, क्या मुझे भी करना चाहिए या नहीं? उन्हें पता है कि उन्हें क्या करना है. स्पेशल सीपी उन्हें सिखाने के लिए नहीं गए हैं कि उन्हें क्या करना है.’’

इसके बाद न्यायमूर्ति कैट ने स्पेशल सीपी प्रवीर रंजन से पूछा कि इस आदेश को क्यों जारी करना पड़ा?

इसका जवाब देते हुए प्रवीर रंजन ने कहा कि यह आदेश एक प्रतिनिधि मंडल और अन्य एजेंसियों से मिली सूचना के बाद दिया गया. हालांकि आदेश दंगों से जुड़े मामलों में गिरफ्तारी होने के बाद दिया गया.

स्पेशल सीपी प्रवीर रंजन

इसके बाद न्यायमूर्ति कैट ने नाराज़गी भरे लहजे में कहा कि जब भी आपके पास शिकायत आती है तो आप उस पर आदेश देते है? आप सिर्फ संबंधित एसएचओ को कहते है कि इस मामले को देखो? यह आप क्या कर रहे हैं? क्या ऐसा होता रहता है?

इसपर प्रवीर रंजन ने कहा, ‘‘जब भी इस तरह से प्रतिनिधिमंडल की शिकायत या इनपुट मिलता है तो हम हमेशा अपने अधिकारियों को सचेत करते हैं कि ये चीजें हैं और आपको उचित देख-रेख और एहतियात बरतनी चाहिए.’’

प्रवीर रंजन का पक्ष सुनने के बाद न्यायमूर्ति कैट ने कहा, ‘‘आप पांच ऐसे आदेश कोर्ट के सामने रखे जो अतीत में किसी शिकायत के बाद दी गई हो. जिन शिकायतों में कहा गया हो कि फलाना अधिकारी मामले को ठीक से नहीं देख रहे हैं या फलाना अधिकारी दोषियों को गिरफ्तार नहीं कर रहे हैं. क्या आपने अतीत में ऐसे पांच आर्डर दिए हैं?’’

इसके बाद रंजन ने क्राइम ब्रांच के काम करने की प्रक्रिया के बताने की कोशिश की तो न्यायमूर्ति ने उसे बीच में रोक दिया और बोला कि आठ जुलाई से पहले दिए गए ऐसे पांच आदेश अगले दो दिन के अंदर कोर्ट में आप जमा कराए. इसपर महाजन ने पूछा कि क्या आदेश की कॉपी सील बंद कवर में पेश किया जा सकता है?

‘यह आर्डर गैरक़ानूनी ही नहीं, आपराधिक कृत्य भी है’

याचिकाकर्ताओं का पक्ष रख रहे वकील महमूद प्राचा ने कहा कि दिल्ली पुलिस का यह आदेश ग़ैरक़ानूनी ही नहीं है बल्कि आपराधिक कृत्य भी है. यह भारतीय न्याय व्यवस्था के भी खिलाफ है. कोई भी क़ानूनी प्रावधान ऐसा नहीं है जिसके तहत इस तरह के आदेश दिए जा सकें.

कोर्ट में सुनवाई के दौरान प्राचा ने कहा, ‘‘इस आर्डर के दूसरे पैराग्राफ में गिरफ्तारी की जो बात कहीं गई है उसका संदर्भ पहला पैराग्राफ है जिसमें सिर्फ एक समुदाय की नाराज़गी का जिक्र किया गया है. वहीं दूसरे पैराग्राफ में दूसरे समुदाय के दो लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात की गई है.’’

प्राचा आगे कहते हैं, ‘‘दंगे दो समुदाय के बीच नहीं होते है लेकिन इस आदेश के माध्यम से पुलिस यहीं संदेश देने की कोशिश की है. ऐसा नहीं हो सकता. दंगे स्थानीय इलाकों से संबंधित लोगों के समूह, इलाके के राजनीतिक या सामाजिक समूहों के बीच होते हैं.’’

प्राचा ने हमें बताया, ‘‘पुलिस द्वारा 8 जुलाई को दिया गया आदेश भारतीय कानून के खिलाफ है. कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं हैं, जिसके तहत ऐसे आदेश जारी किया जाए. कोई भी सीनियर पुलिस अधिकारी अपने जूनियर अधिकारी को किस तरह से किसी मामले की जांच करनी है इसको लेकर आदेश नहीं दे सकता है. यह विशेष रूप से पुलिस अधिनियम (1861) और दिल्ली पुलिस अधिनियम (1978) के खिलाफ है.’’

प्राचा इस मामले पर न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘इस आदेश में साफ़-साफ़ लिखा है कि हिंदू समुदाय के लोगों में नाराज़गी है इसलिए आप अपनी जांच अलग तरीके से करो. निष्पक्ष होकर ना करो. क्या पुलिस के सीनियर अधिकारी चाहते है कि नागरिकों की नाराज़गी देखकर कार्रवाई हो और कानून और सबूत को भूला दिया जाए.’’

दिल्ली दंगे के दौरान और उसकी जांच में पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े हो ही रहे थे. दिल्ली पुलिस के कर्मचारियों का दंगे के दौरान कई वीडियो सामने आया जिसमें वे हिंदू दंगाइयों के साथ पत्थर चलाते नजर आ रहे हैं. अब प्रवीर रंजन द्वारा लिखे इस पत्र ने लोगों को शक जाहिर करने का एक और मजबूत कारण दे दिया है.

प्राचा आगे कहते हैं, ‘‘सबसे ख़ास बात है कि यह है कि यह पत्र गुप्त रूप से भेजा गया है. मीडिया में खबर आ गई इसलिए इसकी सफाई भी पुलिस को देनी पड़ी. हो सकता और इसकी संभावना बहुत ज्यादा है कि इस तरह की मौखिक आदेश भी दिए गए हो. शायद कुछ ईमानदार पुलिस अधिकारी मौखिक आदेश ना मान रहे हो तो मजबूर होकर यह आर्डर जारी करना पड़ा हो.’’

न्यूजलॉन्ड्री ने पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई और कोर्ट में जमा किए गए चार्जशीट के आधार पर अब तक दो मामलों की तीन हिस्सों में रिपोर्ट की है जिसमें पुलिस की एकतरफा कार्रवाई के संकेत मिलते हैं. बिना ठोस सबूतों के आधार पर एक समुदाय के लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है.

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2020 दिल्ली दंगे में पुलिस द्वारा की जा रही जांच की इनवेस्टिगेटिव रिपोर्ट का यह हिस्सा है. दिल्ली दंगो पर पढ़िए हमारी एनएल सेना सीरीज.

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