कोरोना के बाद हुए लॉकडाउन का खुर्जा की सिरेमिक इंडस्ट्री पर हुए असर का आकलन.
कोरोना संकट और लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था पर गहरे प्रभाव हुए हैं. विशेषकर मध्यम और लघु उद्योगों की कमर टूट गई है. अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के बाद भी इसमें कोई खास सुधार होता नजर नहीं आ रहा है. आरबीआई यानि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बृहस्पतिवार 6 अगस्त को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसे स्वीकार किया-“कोरोना का अर्थव्यवस्था पर फिर से असर हुआ है. साल की पहली छमाही में जीडीपी विकास दर के निगेटिव जोन में ही रहने के आसार हैं.”
छोटे और स्थानीय स्तर पर काफी समृद्ध रही औद्यैगिक इकाइयों में एक है पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में पड़ने वाला खुर्जा का सिरेमिक उद्योग. यह भी कोरोना की चपेट में है. अपने सिरेमिक उद्योग के लिए देश- विदेश में पहचान रखने वाले खुर्जा पर कोरोना और लॉकडाउन का बुरा असर देखने को मिला. खासकर वे उद्यमी जो अपना माल देश में ही बेचते हैं उनकी इस लॉकडाउन ने कमर तोड़ दी.
अनलॉक के बावजूद मेलों और सार्वजनिक हाट बाजारों पर लगे प्रतिबंध ने इसे और नुकसान पहुंचाया है. दरअसल पॉटरी उद्योग का 70 से 80 प्रतिशत व्यापार उन लोगो के जरिए होता है जो फुटपाथ, ठेले और मेले जैसी जगहों पर बिक्री पर निर्भर हैं.
खुर्जा में सिरेमिक से बनने वाले रोजमर्रा के सामानों के साथ-साथ साज-सज्जा वाले सामानों का बड़ा पैमाने पर उत्पादन होता है. खुर्जा में घुसते ही आपको जगह-जगह पॉटरी और सिरेमिक से बने सामान दिखने लगते हैं.
राजधानी दिल्ली से लगभग 90 किलोमीटर दूर एनएच-91 परस्थित खुर्जा में चीनी मिट्टी के बर्तन, फूलदान, सजावटी वस्तुएं, बिजली के फ्यूज सर्किट, इन्सुलेटर, कारों में इस्तेमाल होने वाले कई कलपुर्जे बनाए जाते हैं. इसकी वजह से देश-विदेश में इस कस्बे की अपनी एक अलग पहचान है.
कहा जाता है कि खुर्जा में सिरेमिक उद्योग की नींव 14वीं शताब्दी में तैमूर लंग ने रखी थी. सैकड़ों साल बाद अब यह उद्योग यहां के लोगों की रग-रग में बहने लगा है. खुर्जा में बनने वाले सिरेमिक उत्पाद देश के दूसरे राज्यों में बिकने के अलावा बांग्लादेश, मिडिल ईस्ट, अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, श्रीलंका, थाईलैंड, सिंगापुर, जर्मनी, अफ्रीका, आदि देशों में भी निर्यात होते हैं. खुर्जा में इस तरह के अलग-अलग उत्पादों की लगभग 300 फैक्ट्रियां चल रही है. इनमें से अधिकतर जीटी-रोड और मूंडा खेड़ा रोड इलाके में स्थित हैं.
कोरोना के बाद हुए देशव्यापी लॉकडाउन से इस उद्योग पर काफी असर पड़ा है. उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से भी अभी तक इस उद्योग के लिए कोई राहत नहीं मिली है, जिससे कारोबारी अपने भविष्य को लेकर दुविधा में हैं.
जीटी रोड, NH-91 पर खुर्जा की सीमा में घुसते ही सड़क के दोनो तरफ पॉटरी के बड़े-बड़े विज्ञापन नजर आने लगे. इससे यह अहसास हो गया कि हम खुर्जा की पॉटरी नगरी में पहुंच चुके हैं. दिल्ली की तरफ से जब हम मुख्य खुर्जा में अंदर दाखिल हुए तो सिरेमिक उद्योग से जुड़ी फैक्टरियां नज़र आने लगीं.
“स्टोन क्राफ्ट इंडस्ट्री”
सबसे पहले हम “स्टोन क्राफ्ट इंडस्ट्री” में पहुंचे. यहां पहले इंसुलेटर बनाए जाते थे, लेकिन लगभग 6 साल पहले यहां क्रॉकरी बनाने का काम भी शुरू हुआ था. फैक्ट्री के गेट पर एक पोस्टर लगा था जिस पर लिखा था-“बिना मास्क पहने फैक्ट्री के अंदर आना कानूनी अपराध है”.
मास्क लगाए हम अंदर दाखिल हुए. वहां हमारे हाथों को सैनेटाइजर से धुलवाया गया. यहां हमारी मुलाकात फैक्ट्री के मालिक जितेंद्र अरोड़ा से हुई. अरोड़ा अपने मोबाइल में लूडो गेम खेलने में व्यस्त थे.
हमने उनसे कोरोना और लॉकडाउन के असर के बारे में पूछा तो शुरुआत में उन्होंने थोड़े अनमने ढंग से कहा कि कोई ‘खास फर्क नहीं हुआ है’. जाहिर है उनका मन लूडो के गेम में लगा हुआ था इसलिए वो बात खत्म करने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन थोड़ी देर इधर-उधर की बातचीत के बाद वो थोड़ा और खुले. उन्होंने स्वीकार किया कि 60 प्रतिशत काम घट गया है.
“कभी भी हमारा काम रक्षाबंधन पर बंद नहीं हुआ, लेकिन इस बार बंद पड़ा है. लोगों के पास जो बकाया है वह भी फंस गया है,” अरोड़ा ने कहा.
1973 में जितेंद्र अरोड़ा के पिताजी ने इस काम की शुरुआत की थी. इनके दो अन्य भाई भी सेरेमिक इंडस्ट्री से ही जुड़े हुए हैं.
अरोड़ा बताते हैं, “हमारा माल दो भागों में बनता है. 20 प्रतिशत तो उच्च परिवारों के हिसाब से और बाकि 80प्रतिशत मध्यम व निम्न परिवारों की जरूरतों के हिसाब से बनता है. अब मेलों और हाट-बजारों पर भी रोक है. वहीं हमारी सबसे ज्यादा खपत होती थी. इस वजह से नुकसान ज्यादा है.”
बातचीत के दौरान अरोड़ा ने सरकार की नीतियों से भी नाखुशी जाहिर की. “यहां गैस सप्लाई अडानी की कम्पनी करती है. जो अभी भी वैट जोड़कर गैस देते हैं. जबकि पूरे देश में जीएसटी लग चुका है. जब जीएसटी लग गया तो वैट क्यूं? वन नेशन वन टैक्स लग गया तो गैस वैट पर क्यूं? ‘वन नेशन वन टैक्स’का क्या फायदा हुआ? इस कारण हम तो एलपीजी की गैस का इस्तेमाल करते हैं. उसके सिलेंडर मंगाने पड़ते हैं,”अरोड़ा ने बताया.
सुमन रिफैक्ट्रीज एंड सेरेमिक
यहां से निकलकर हम पास ही में स्थित “सुमन रिफैक्ट्रीज एंड सेरेमिक” में पहुंचे. वहां हमारी मुलाकात इसके मालिक सुमित सैनी से हुई. इस फैक्ट्री में क्रॉकरी और छोटे कप बनते हैं. सुमित हमें फैक्ट्री के अंदर ले गए और सारी फैक्ट्री दिखाकर स्थिति को हमें समझाया.
कोरोना और लॉकडाउन के असर के बारे में सुमित ने हमें बताया, “हालत बहुत खराब है, सिर्फ 20 प्रतिशत काम रह गया है.पहले हमारे यहां परमानेंट कम से कम 20 वर्कर काम करते थे, इसके अलावा ठेकेदार के वर्कर अलग थे. आज 6-7 लोग बचे हैं, वह भी लोकल और अनट्रेंड. पुराने सब कारीगर अपने घर बिहार, बंगाल चले गए. लॉकडाउन में मैंने उन्हें अपने पास ही रखा, खाने-पीने का इंतजाम भी किया. लेकिन जैसे ही सरकार ने बसें चलाईं सब चले गए. मैंने काफी समझाया भी, लेकिन इस महामारी में हर आदमी अपने घर वालों के पास जाना चाहता है. कुछ वापस आने के लिए भी कहते हैं, लेकिन अब उतना काम ही नहीं बचा है.”
सुमित ने आगे बताया, “हमारा माल पूरे देश में जाता है. अब वह बकाया भी पड़ा है. स्थिति यह है कि उनसे जबरन मांग भी नहीं सकते, गुडविल खराब होने का डर.और अनलॉक के बाद भी कोई खास फर्क नहीं पड़ा है. रक्षाबंधन से दीपावली तक हमारा अच्छा सीजन होता है.लेकिन इस समय भी मक्खी मार रहे हैं.”
सरकार द्वारा किसी तरह का मुआवजा या आर्थिक सुविधा देने की घोषणा हुई है क्या? इस पर सुमित सरकार की अनदेखी का आरोप लगाते हुए कहते हैं, “हम अडानी की गैस इस्तेमाल करते हैं, वे सारे टैक्स हमसे लेते हैं. जब जीएसटी लग गया तो ये जीएसटी के अंदर क्यूं नहीं है. इसके अलावा बिजली बिल, सब्सिडी आदि के बारे में भी 7-8 साल से जद्दोजहद की लेकिन आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला.”
श्याम पॉटरी
खुर्जा की पुरानी पॉटरी फैक्ट्री में शुमार “श्याम पॉटरी” के मालिक योगेश कुमार से उनके ऑफिस में जब हम मिले तब वो कुछ हिसाब-किताब कर रहे थे.
क्रॉकरी, सेरेमिक का उत्पादन करने वाली श्याम पॉटरी 1965 में स्थापित हुई थी. तब इनके दादाजी ने इसे शुरू किया था. 1972 से इनके पिताजी ने संभाला और 1995 से योगेश कुमार चला रहे हैं.
कोरोना का प्रभाव और वर्तमान स्थिति का जिक्र करते ही 63 वर्षीय योगेश कुमार फट पड़े. वो बोले, “घर के खर्च नहीं चल पा रहे. हम जमा-पूंजी खा रहे हैं. मार्केट से पैसा आ नहीं रहा और सरकार कोई हेल्प नहीं कर रही. पहले 20 मजदूर काम करते थे, अब 2 बचे हैं. काम धंधा है नहीं, किसके लिए प्रोडक्शन करूं?”
“पूरी जिंदगी में ऐसा दिन नहीं देखा मैंने. किराया, बिजली बिल तक भरने का संकट है. ये जो सड़क देख रहे हैं आप यहां पैर रखने की जगह नहीं मिलती थी, अब देखो जैसे कर्फ्यू लगा है. यहां बैठे हम कागज पलट रहे हैं. अगर सरकार 25 प्रतिशत सब्सिडी दे-दे तो कुछ जीने लायक स्थिति बन जाएगी.”
हम योगेश कुमार से बातचीत कर ही रहे थे कि उनके दो बेटे भी वहां आ गए, जो उनके साथ इसी काम में हाथ बंटाते हैं.
उनमें से छोटे बेटे ने हमसे कहा, “इज्जत बचानी भारी है, भैया! घर की छत बच जाए वही काफी है.”
यहां से निकलकर हम खुर्जा के दूसरे छोर मूंड़खेड़ा रोड पर स्थित फैक्ट्रियों के बारे में जानने के लिए पहुंचे.
सलूजा इंडस्ट्रीज
यहां हमारी मुलाकात सलूजा इंडस्ट्रीज जो खुर्जा की शीर्ष पॉटरी फैक्ट्रियों में शुमार है के मालिक सरदार सतनाम सिंह से हुई.
सतनाम सिंह ने बताया कि हम पॉटरी मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के लोगों से मिलें तो वह ज्यादा अच्छे से बताएंगे. क्योंकि वही सरकार से बातें करते हैं.
“बाकि सरकार की सारी कोरोना की योजनाएं फेल रही हैं.कोविड अस्पतालों में कोई साफ-सफाई नहीं, क्वारंटीन का तरीका हो या कोई ओर. पैकेज किसे मिला किसे नहीं, कोई पता नहीं.योजनाएं सही से लागू नहीं हो पाईं हैं.और मार्केट की हालत खराब है. मार्केट में बने रहने के लिए काम चालू रखा है,” सतनाम सिंह ने कहा.
बीएनएस पॉटरी
मूंड़खेड़ा रोड़ पर ही स्थित “बीएनएस पॉटरी” के मालिक वसीम ने भी यही कहा, “अनलॉक के बाद कुछ सुधार जरूर हुआ है लेकिन पहले जैसी बात काम में नहीं है. लगभग 40 प्रतिशत की कमी तो आई है. बाकि वर्कर हमने जाने नहीं दिए उन्हें लॉकडाउन में सारी सुविधाएं उपलब्ध करा दी थीं.”
वसीम 10 साल से पॉटरी के काम से जुड़े हैं और पूरे देश में माल सप्लाई करते हैं.
हालांकि खुर्जा के पॉटरी उद्योग से जुड़े वो लोग कोरोना से कम प्रभावित दिखे जो अपना अधिकतर माल विदेशों में निर्यात करते हैं.विदेशों में निर्यात करने वाले कुछ लोगों से भी हमने बातचीत की.
मिन्हाज पॉटरी
“मिन्हाज पॉटरी” के मालिक गुलजीत सिंह से हमारी मुलाकात हुई जो अमेरिका, लंदन, मिडिल ईस्ट सहित 42 देशों में अपना माल निर्यात करते हैं. उन्होंने सबसे पहले हमसे यही कहा कि यहां मैं पहला और आखिरी आदमी रहूंगा जो सबसे अलग बातें बताऊंगा.
52 वर्षीय गुलजीत ने बताया, “लॉकडाउन का हमारे ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, बल्कि बढ़ा है. क्योंकि पहली बात तो ये कि जब हमारे देश में लॉकडाउन हुआ तो अन्य देशों में या तो खुल गया था या लगा ही नहीं था, भारत में लगभग सबसे आखिरी में लॉकडाउन हुआ. दूसरी बात ये कि पूरी दुनिया में कोरोना को लेकर चीन के खिलाफ एक गुस्सा था तो लोगों ने उनके सामान का बॉयकाट करना शुरू कर दिया. इसका फायदा भारत और ताइवान जैसे देशों को मिला. इस कारण हमारे ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ा,बल्कि हमारा काम बढ़ा है.”
गुलजीत आगे कहते हैं, “लॉकडाउन में भी हमारा काम चलता रहा, सब मजदूरों को हमने सारी सुविधाएं यहीं अंदर ही कर दी थीं, बाहर जाने की जरूरत ही नहीं. तो कोई कहीं गया भी नहीं. आज भी मेरे यहां 70 मजदूर काम कर रहे हैं.”
सुविधाओं का अंदाजा हमें भी लग गया था. जब हम गुलजीत की फैक्ट्री में दाखिल हुए तो सबसे आगे ही हमें बड़ी सी सैनेटाइज मशीन लगी मिली. जिसमें हमें भी पूरा सैनेटाइज करने के बाद ही एंट्री मिल पाई.
गुलजीत ने भी माना कि लोकल व्यापारियों को मेले आदि बंद होने की वजह से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है.
मिट्टी कला होमटेक
गुलजीत की तरह ही “मिट्टी कला होमटेक” के मालिक डॉ. रामअवतार प्रजापति भी उन लोगों में से एक थे जिनका कारोबार कोरोना के दौर में प्रभावित नहीं हुआ.
डॉ. रामअवतार ने बताया, “हम दुबई, न्यूजीलैंड सहित दुनिया भर में अपना माल निर्यात करते हैं. और हमारे पास माल का स्टॉक था तो लॉकडाउन में भी हमें कोई दिक्कत नहीं हुई. 2-4 आदमी जो यहां रहते थे वही काम भी करते रहते थे. बाकि जो चले गए थे वह अनलॉक के बाद वापस आ गए. वैसे भी हमारा काम बिल्कुल यूनिक है जो आपको पूरे खुर्जा में नहीं मिलेगा. हम रिसर्च करके ये सब बनाते हैं.”
रामअवतार को यूपी सरकार उनके काम के लिए सम्मानित भी कर चुकी है.
खुर्जा पॉटरी मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रवि राणा से हमने सिरेमिक इंडस्ट्री पर कोरोना के प्रभाव और सुधार की संभावनाओं के बारे में बात की. रवि ने बताया, “कोरोना के बाद तो इंडस्ट्री की हालत बिल्कुल खराब है. खुर्जा में सिरेमिक की लगभग 300 फैक्ट्रियां हैं जिनमें से लगभग 50 प्रतिशत बंद पड़ी हैं. बाजार में मांग नहीं है, और लोगों का उधार नहीं मिल पा रहा है, हालात खराब हैं.”
रवि आगे बताते हैं, “दरअसल हमारी इंडस्ट्री की अन्य से ज्यादा हालात खराब होने का मुख्य कारण ये है कि हमारा लगभग 70-80 प्रतिशत माल निम्न एवं मध्यम वर्ग को जाता है. जो ठेले, फुटपाथ और मेलों जैसी जगहों पर बिकता है. अभी फिलहाल मेले बंद हैं तो इस कारण ज्यादा मार पड़ी है.”
आपने सरकार से इसके सुधार संबंधी कोई मांग की है, इस सवाल पर रवि कहते हैं, “हमारी सभी उद्योग बंधुओं की हर महीने डीएम की अध्यक्षता में एक मीटिंग होती है. उसमें हमने कहा है कि अभी हम जो 12 प्रतिशत टैक्स दे रहे हैं उसे घटाकर 5 प्रतिशत किया जाए. अगर ये 5 प्रतिशत हो जाता है तो हमें काफी राहत मिल जाऐगी.”
अडानी की मंहगी गैस की उद्मियों की समस्या पर रवि कहते हैं, “लगभग 3-4 साल से लगातार हम इस समस्या को मीटिंग में डीएम के सामने उठा रहे हैं. लेकिन कुछ नहीं हुआ. कितने डीएम आए, कितने गए लेकिन किसी के कान पर जूं नहीं रेंगती. कोई सुनने को तैयार नहीं है. अब हम इस केस को उपभोक्ता फोरम में ले जाने पर विचार कर रहे हैं.”