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Contributeएनएल चर्चा के 130वें अंक में वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में फेसबुक द्वारा बीजेपी के नेताओं को हेट स्पीच मामले में ढील देने का आरोप, कांग्रेस द्वारा इस मामले पर की गई जेपीसी की मांग, प्रशांत भूषण के अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट में जारी सुनवाई, आमिर खान और टर्की के फर्स्ट लेडी से मुलाकात के बाद सोशल मीडिया पर हुई ट्रोलिंग, सुशांत सिंह राजपूत मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिया सीबीआई जांच का आदेश और बिहार में आई बाढ़ आदि मुद्दों पर चर्चा की गई.
इस बार की चर्चा में सिटीजन फोरम फॉर सिविल लिबर्टीज के सदस्य डॉ गोपाल कृष्ण, न्यूज़लॉन्ड्री से स्तंभकार आनंद वर्धन और न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस शामिल हुए. इसका संलाचन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल ने चर्चा की शुरुआत करते हुए बताया की अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में सामने आया है कि फेसबुक, बीजेपी के नेताओं के हेट स्पीच मामले में ढील देता है, उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करता जबकि विपक्षी दलों और राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई करता है. अतुल ने सवाल पूछते हुए कहा, “हमने 2018 में देखा जब कैम्ब्रिज एनालिटिका मामले में फेसबुक के संस्थापक मार्क ज़करबर्क को अमेरिकी सीनेट द्वारा तलब किया गया था. उस समय सीनेट में फेसबुक ने हेट स्पीच और डाटा लीक मामले में माफी मांगी थी. कंपनी अमेरिका में जिस चीज के लिए मांफी मांगती है, उन गाइडलाइन्स का भारत में क्यों पालन नहीं करती?”
सवाल का जवाब देते हुए गोपाल कृष्ण कहते हैं, “पहले द गार्डियन और न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट देखे, जिसमें कैम्ब्रिज एनालिटिका मामला सामने आया था. उस समय भी किसी पार्टी को फायदा पहुंचाया गया था, वैसा ही अभी भी किया गया है. इन कंपनियों का व्यापार आभासी सच पर निर्भर करता है. उन्हें यह फर्क नहीं पड़ता की बाद में जब सच्चाई सामने आएंगी तब क्या होगा. उनका एकमात्र लक्ष्य होता है तात्कालिक मुनाफा कमाना. जब तक सच्चाई सामने आती है तब तक वह अपना मोटा मुनाफा कमा कर आगे बढ़ चुके होते हैं. जैसा कैम्ब्रिज एनालिटिका मामले में हुआ था वैसा ही इस मामले में भी दिख रहा है.”
गोपाल आगे बताते हैं, “फेसबुक की फ्री इंटरनेट योजना जब फेल हो गई तो, उसने भारत में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए सत्तारुढ़ पार्टी में सेंधमारी की. उस पार्टी के नेताओं पर कारवाई नहीं किया ताकि सरकार में उसकी पकड़ मजबूत हो. आप देंखेगे जब प्रधानमंत्री मोदी फेसबुक के संस्थापक मार्क जगरबर्क से मिले थे, तो उन्होंने दावा किया था कि वह भारत के लिए स्वच्छ भारत मुहिम के लिए एप बना कर देंगे. इस तरह से सत्ताधारी दल को लाभ पहुंचाकर उसे प्रबावित किया जाता है.”
यहां पर अतुल ने कैंब्रिज एनालिटिका के बारे में बताया कि कैसे फेसबुक ने चोरी छिपे अपने पास मौजूद लोगों का डाटा कैंब्रिज एनालिटिका को सौंपा. कैंब्रिज एनालिटिका एक राजनीतिक-चुनावी परामर्शदाता कंपनी के तौर पर काम करती थी, जो पार्टियों को चुनाव जिताने में मदद करती है. इस कंपनी पर आरोप हैं कि उसने फेसबुक के डाटा का उपयोग कर अमेरिकी मतदाताओं को डोनल्ड ट्रंप के पक्ष में वोट करने के लिए प्रभावित किया. इस प्रक्रिया को साइकोलॉजिकल मैपिंग का नाम दिया गया था.
मेघनाथ को चर्चा में शामिल करते हुए अतुल कहते है, “भारत में फेसबुक के सबसे बड़े लाभार्थी के तौर पर बीजेपी का नाम सबसे आगे आता है. तो ऐसे में यह कहना सही होगा की फेसबुक के माध्यम से राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं की जानकारी का उपयोग चुनावों में कर रही है?”
इस पर मेघनाथ कहते हैं, “यह बहुत ही महत्वपूर्ण और गंभीर मामला है, क्योंकि यह कंपनी विश्व में सबसे ताकतवार कंपनियों में से एक है, जिसके पास इंस्टाग्राम और वाट्सअप जैसे ऐप हैं जो विश्व में सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता है. फेसबुक जैसी कंपनियां अपने प्लेटफॉर्म पर कंटेट मॉडरेशन का बेहतर तरीके से उपयोग करें तो यह दिक्कत नहीं आएगी लेकिन अभी तक हमें नहीं पता कि सरकार ने या कंपनी ने कितने कंटेट मॉडरेशन के लिए लोगों को नियुक्त किया है.”
मेघनाद कहते हैं, “भारत की बात कर तो सरकार ने कैंब्रिज एनालिटिका मामला सामने आने के बाद इंटरमीडिएट लायबिलिटी रुल्स बनाने की बात कही थी जो इन सोशल मीडिया कंपनियों को सरकार के प्रति उत्तरदायी बनाने का तरीका था. यह ड्राफ्ट जनवरी महीने में आया भी था. अभी हाल ही में हिंदुस्तानी भाऊ के मामले में भी देखने को मिला, जिसमें वह खुलेआम लोगों को मारने की धमकी दे रहा है. फेसबुक ने उस वीडियो को अपने प्लेफॉर्म से नहीं हटाया. उसका एकाउंट भी पेसबुक ने वेरीफाइ कर रखा है. जबकि वह एक समुदाय के खिलाफ बोल रहा था और गाली भी दे रहा था, तो यह जानना बहुत जरूरी हो गया है कि यह कंपनियां कंटेट माडरेशन कैसे करती हैं.”
यहां पर अतुल ने आनंद को चर्चा में शामिल करते हुए कहते है, फेसबुक एक बिजनेस कंपनी है. ऐसे में कंपनी किस कानून के तहत अमेरिका में क्या काम कर रही हैं, उसका किसी दूसरे देश से लेना-देना नहीं होता है. हर देश में कंपनी का नियम अलग है. ऐसे में जिस तरह का वॉल स्ट्रीट की रिपोर्ट में कहा गया हैं कि कंपनी ने सत्ताधारी पार्टी को फायदा पंहुचाने के लिए नियमों को दरकिनार कर दिया वह किस हद तक सही है.
इस पर आनंद कहते है, “चाहे ट्वीटर हो या फिर फेसबुक, इन माध्यमों का उपयोग करने वालों को एक विद्यार्थी के तरह होना चाहिए जिसका कोई पूर्वाग्रह नहीं होता. उसी मानसिकता के साथ किसी भी ख़बर पर ध्यान देना चाहिए. भारत में फैक्ट चेंकिग को लेकर भी कई पूर्वाग्रह है इसलिए मैं कह रहा हूं इन माध्यमों का उपयोग करने वालों को एक विद्यार्थी की मानसिकता के साथ इसका उपयोग करना चाहिए.”
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पत्रकारों की राय, क्या देखा पढ़ा और सुना जाए.
डॉ गोपाल कृष्ण
पब्लिक इंस्टीटूशन पर जनता को ध्यान देना चाहिए
गैब्रिल गार्सिया मार्खेज़ की किताब- वन हंड्रेड ईयर ऑफ सालिटियूट
मेघनाथ
लेयर नार्थ की किताब- द फस्ट फिफ्टीन लाइन ऑफ हैरी अगस्त
आनंद वर्धन
द हिंदू में प्रकाशित दिपांकर गुप्ता का लेख
बिफोर द मेमोरी फेड - फली नरीमन का संस्मरण
अतुल चौरसिया
वॉल स्ट्रीट जर्नल की फेसबुक और बीजेपी के रिश्तों पर प्रकाशित रिपोर्ट
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