एनएल चर्चा 132: माइनस में जाती अर्थव्यवस्था और संसद में प्रश्नकाल का संकट

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एनएल चर्चा के 132वें अंक में जीडीपी में आई भयावह गिरावट, संसद में प्रश्नकाल खत्म करने को लेकर विपक्षी पार्टियों का विरोध, सुदर्शन टीवी से अमूल द्वारा विज्ञापन वापसी, फेसबुक द्वारा टी राजा सिंह का अकांउट अपने प्लेटफॉर्म से हटाना और प्रशांत भूषण पर एक रुपए का जुर्माना आदि चर्चा का विषय रहे.

इस बार की चर्चा में द वायर की बिजनेस की एडिटर मिताली मुखर्जी, शार्दूल कात्यायन और न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस शामिल हुए. संलाचन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

अतुल ने जीडीपी के मुद्दे पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा भारत की अर्थव्यवस्था की विकास दर -23.9 प्रतिशत सिकुड़ गई है. मिताली से सवाल करते हुए अतुल कहते हैं, “यह आंकड़े क्या सही तस्वीर पेश करते हैं. क्योंकि सरकार ने पहली तिमाही का जो आंकड़ा दिया है वह सिर्फ आर्गनाइज्ड सेक्टर का है, जिसका डाटा सरकार के पास है. लेकिन हम जानते हैं कि हमारे देश में बहुत बड़ा अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर भी है, जहां करोड़ों लोग काम करते है, हाल ही में हुए लॉकडाउन ने अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर में काम करने वालों की तो कमर ही तोड़ दी है लेकिन उसका कोई डाटा इस रिपोर्ट में शामिल नहीं है. तो हम कह सकते हैं कि स्थिति इससे भी खतरनाक है.”

इस पर मिताली कहती हैं, “आपकी बात सही है. एक जीडीपी के आंकड़ों से अर्थव्यवस्था खराब है या नहीं यह हम नहीं बता सकते. दूसरी बात अनआर्गनाइज्ड सेक्टर ना तो जीडीपी के आंकड़ों में शामिल होते और ना ही किसी दूसरे डाटा में, इसलिए किसी को यह पता नहीं चल पाता है कि वो लोग किस हालत में है. एक अहम समस्या जो हमारे सामने आ रहा है वह हैं रोज़गार की, क्योंकि आने वाले दिनों में यह और बढ़ेगा.”

अतुल फिर से सवाल करते हुए कहते हैं, “बहुत से अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ये आंकड़े बहुत नियंत्रित हालात में इकट्ठा किया गए है, क्योंकि जब इसे जुटाया जा रहा था तब पूरे देश में लॉकडाउन था. इसलिए ये पूरी तरह से शुद्ध आंकड़े नहीं है और सरकार आने वाले समय में इसे रिवाइज़ भी कर सकती है. इस लिहाज से देखे तो -23.9 का आंकड़ा जो हमारे सामने है वह बदल भी सकता है, क्या अर्थव्यवस्था इससे भी अधिक खराब है.”

मिताली कहती हैं, “-23.9 का जो आंकड़ा है वह विश्व में सबसे खराब आंकड़ा है. दूसरी बात हमारे यहां सबसे कड़ा लॉकडाउन भी लगाया गया, लोगों को सिर्फ 24 घंटे का समय दिया गया अपना सबकुछ छोड़कर जाने के लिए. मुझे नहीं लगता इतना मुश्किल लॉकडाउन और किसी देश में लगाया गया हो. दूसरी बात आंकड़ा कम या ज्यादा हो सकता है, लेकिन अब यह क्वार्टर बीत गया है, समस्या तो तब आएगी जब सब कुछ फिर से खुलने लगा हैं और अगर हमारी अर्थव्यवस्था वैसी नहीं रिकवर हुई जैसा हमने सोचा है तो समस्या जटिल हो जाएगी. तीसरी बात, क्या हालात इतने खराब है, इसका उत्तर हमें अपने आस-पास देखने में ही मिल जाएगा, जहां हमारे बहुत से साथियों की नौकरी चली गई. लोगों के पास काम नहीं है.”

मेघनाथ ने मिताली से सवाल करते हुए कहा कि, जीडीपी के जो आंकड़े आए हैं उसमें सेक्टर के आंकड़े देखे तो, सभी क्षेत्र में गिरावट आई है, लेकिन कृषि क्षेत्र में बढ़ोतरी दिख रही है, इसका क्या कारण हो सकता है.

इस पर मिताली कहती हैं, “हमें किसानों का आभार मानना चाहिए, जो इतनी कड़ी मेहनत करते है. इस बढ़ोतरी का कारण है अच्छा मानसून. और बड़ी संख्या में लॉकडाउन के बाद लोग फसल के समय अपने गांव-घर पहुंच गए थे जिसके चलते ऐसा दिख रहा है. अच्छी फसल का मतलब यह नहीं है कि आप को आमदनी अच्छी होगी, क्योंकि जब अनाज मंडी में जाएगा, तो वहां मांग से अधिक मात्रा में अनाज होगा, ऐसे में रेट कम हो जाएगा. सवाल यह हैं कि आप क्या बनना चाहते है, क्या आप 5 ट्रिलियन इकॉनमी बनना चाहते हैं या आप विकसित देश बनना चाहते है. यहां एक बात और हम कृषि क्षेत्र पर निर्भर होकर अर्थव्यवस्था को मजबूत नहीं कर सकते, हमें आगे बढ़ने के लिए मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर को मजबूत करना होगा.”

शार्दूल को चर्चा में शामिल करते हुए अतुल सवाल करते हैं, “दुर्भाग्य है कि बीते छह सालों मेें देश को एक अदद विशेषज्ञ वित्तमंत्री नहीं मिला. पहले पांच साल एक वकील अरुण जेटली वित्तमंत्री रहे बाद में निर्मला सीतारमण को वित्तमंत्री बनाया गया, जिनकी इस क्षेत्र में कोई खास विशेषज्ञता नहीं है. अब जब ऐसे संकट में फंसे है तब लीडरशिप के स्तर पर खालीपन को बड़ी वजह माना जाना चाहिए.”

शार्दूल कहते हैं, “मिताली ने जो बात कही उसे हमें समझना चाहिए. हमें अर्थव्यवस्था की खबरों को भी उतना ही महत्व देना चाहिए, जितना हम अन्य खबरों को देते है. इस सरकार की 2019 के बाद से सभी रिपोर्ट संशोधित ही हुई है. बीजेपी में टैलेंट का बाव तो है लेकिन इसके लिए लोगों को स्वतंत्रता देनी होती है, यहां वैसा हो नहीं रहा है. दूसरी बात बहुत से लोग कह रहे हैं 1996 के बाद से यह सबसे खराब जीडीपी का डाटा है. जबकि सच्चाई यह हैं कि 1996 से ही पहली बार तिमाही आंकड़े आने शुरू हुए, उससे पहले तो यह आंकडे आते ही नहीं थे, तो लोगों को गुमराह करना बंद करना चाहिए.

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