एनएल टिप्पणी: जीडीपी से मुंह चुराते, सरकार से नैन लड़ाते खबरिया चैनल

दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और विवादों पर संक्षिप्त टिप्पणी.

WrittenBy:अतुल चौरसिया
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कोई ख़बर कितनी बड़ी है इसको तय करने का पैमाना यह है कि उससे कितनी बड़ी आबादी प्रभावित हो रही है. बीते हफ्ते एक ऐसी ही ख़बर आई जिसका दायरा इतना बड़ा है कि देश की 130 करोड़ आबादी का इसकी चपेट में आना तय है. भारत सरकार ने इस साल की पहली तिमाही का जीडीपी आंकड़ा जारी किया है. ये आंकड़ा भारतीय अर्थव्यवस्था की बहुत डरावनी तस्वीर पेश करता है.

इसे ऐसे समझिए कि अगर आप पहले 100 रुपए खर्च रहे थे तो अब आपका खर्च सिर्फ 76 रुपए रह गई. अब आप कहेंगे कि यह कौन सी बड़ी बात है, अगले साल फिर बढ़ जाएगी. पर अर्थव्यवस्था में मामला इतना सीधा नहीं होता, एक-एक परसेंट की कीमत कुछ लाख करोड़ में होती है.

अब हम सरकार द्वारा जारी -24 फीसद यानि अर्थव्यवस्था के लगभग 50 फीसद हिस्से की बात करें तो याद रखिए कि उसने ये आंकड़े देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान जुटाए हैं. अप्रैल से जून महीने के बीच. इसके मद्देनजर कई जानकारों का मानना है कि ये आंकड़ा पूरी तरह से शुद्ध नहीं हैं क्योंकि लॉकडाउन के कारण कई तरह के प्रतिबंधों के बीच जुटाया गया है. इसलिए सरकार आने वाले समय में इसे रिवाइज़ भी कर सकती है.

इस स्थिति में सरकार की तरफ से तर्क दिया जा रहा है कि ये आंकड़े लॉकडाउन के दौरान के हैं, जब सबकुछ बंद था इसलिए चिंता की जरूरत नहीं है, आने वाली तिमाही में इसमें सुधार होगा और तस्वीर गुलाबी हो जाएगी. सरकार के इस दावे को कुछ तथ्यों की रोशनी में देखने की जरूरत है.

तथ्य यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था कोरोना और लॉकडाउन शुरू होने से पहले ही सुस्ती के कुचक्र में फंस चुकी थी.

बीते साल की अंतिम तिमाही में अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 3.1 फीसदी थी जो 7.5 प्रतिशत की स्थायी वृद्धिदर से लगातार गिरते हुए 3.1 फीसद तक पहुंची थी.

और जब इतना बड़ा संकट सामने आया तब खबरिया चैनलों ने अपने नागरिकों को इस ख़बर से मुस्तैद किया क्या? इन्हीं सवालों के जवाब ढूंढ़ती यह टिप्पणी.

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