अर्नब बनाम अन्य चैनलों की झौं-झौं में धृतराष्ट्र-संजय संवाद की वापसी

दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.

इस हफ्ते एक बार फिर से टिप्पणी में धृतराष्ट्र-संजय संवाद की वापसी हो रही है. धृतराष्ट्र का मन कुछ उचाट सा था. किसी अनहोनी की आशंका से घिरे हुए थे. उन्होंने संजय से पूछा- “बहुत दिनों से जम्बुद्वीप की कोई खबर नहीं आई. डंकापति के हाल कैसे हैं संजय.”

संजय को सहसा अपने होने का भान हुआ लिहाजा संयत होकर बोले, “जंबुद्वीप में सर्कस का क्लाइमैक्स चल रहा है महाराज.”

धृतराष्ट्र बोले- “थोड़ा खुल कर बोलो संजय, बात समझ नहीं आई.”

संजय बोले- “जंबुद्वीप में एक जिला हुआ हाथरस. वहां एक दलित बालिका की दुष्कर्म और हत्या हो गई. तब से वहां धमाचौकड़ी मची हुई है.”

महाराज बोले- “यह तो बड़ा अधर्म हुआ. डंकापति क्या कर रहे हैं इस मौके पर.”

संजय ने चित्त को एकाग्र कर कहा- “वो अंधेरी सुरंग में हाथ हिला रहे हैं.”

इसी तरह की दिलचस्प बतकही के साथ संजय-धृतराष्ट्र की बातचीत आगे बी कई समायिक मुद्दों पर विचार-विमर्श के बाद समाप्त हुई.

साथ में खबरिया चैनलों के अंडरवर्ल्ड से इस बार कई सनसनीखेज खबरें सामने आई है. पत्रकारिता में अंग्रेजी के दो जुमले काफी प्रचलित हैं. एक है बैलेंस रिपोर्टिंग, दूसरा है मंकी बैलेंसिग. दोनों अलग अलग चीजें हैं. जब आप ईमानदारी से किसी घटना के सभी पक्षों को सामने रखते हैं, उसे बैलेंस रिपोर्टिंग कहते हैं. लेकिन जब आप किसी घटना से सिर्फ संतुलन स्थापित करने के लिए गैरजरूरी गदहपचीसी करते हैं तो उसे मंकी बैलेंसिंग कहते हैं. इस हफ्ते हमने पाया कि हाथरस की घटना के बाद तमाम एंकर-एंकराओं ने शिद्दत से मंकी बैलेंसिग की कोशिशें की. हमने इसका एक समग्र जायजा इस बार की टिप्पणी में लिया है.

एंकर-एंकराएं ठहरी रंगमंच की कठपुतलियां. इनकी डोर जिस अदृश्य शक्ति के हाथों में थी, उसने जैसे ही डोर में थोड़ा सा तनाव दिया, सारे के सारे पुराने ढर्रे पर लौट आए.

इसके अलावा इस हफ्ते खबरिया चैनलों की दुनिया में एक शानदार दंगल का आयोजन हुआ. रिपब्लिक टीवी वाले अर्नब गोस्वामी के खिलाफ अन्य चैनलों ने खुला युद्ध छेड़ दिया है. इस दंगल से आपको कुछ समझ नहीं आएगा कि यह जनहित की पत्रकारिता के लिए हो रही लड़ाई है, यह खबरों की गुणवत्ता में एक दूसरे आगे निकलने की होड़ है या कुछ और. असल में यह लड़ाई कुछ चैनलों के संपादकों के अहंकार की लड़ाई है. यह लड़ाई असल में विज्ञापन की मलाई की लड़ाई है. इस लड़ाई में न तो आपकी बात है न आपका हित है. फिर भी उसे प्राइम टाइम पर सारी खबरों को दरकिनार करके आपको दिखाया जा रहा है. पत्रकारिता की मूल शर्त है उसका जनहित, लोकतांत्रिक और संविधान सम्मत होना. यह तभी संभव है जब इसमें आप खुद योगदान करें. न्यूज़लॉन्ड्री ऐसा ही प्रयास है. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें और गर्व से कहें मेरे खर्च पर आजाद हैं खबरें.

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