आईआईएमसी के छात्र क्यों कर रहे हैं दीपक चौरसिया का विरोध?

हाल के दिनों में सांप्रदायिक नफ़रत और फ़ेक न्यूज़ फैलाने का आरोप झेल रहे दीपक चौरसिया को आईआईएमसी में बुलाए जाने के खिलाफ उतरे वर्तमान और पूर्व छात्र.

WrittenBy:Ashwine Kumar Singh
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भारतीय जनसंचार संस्थान का नया शैक्षणिक सत्र 2020-21 हाल ही में आरंभ हुआ है. सत्र के उद्घाटन के मौके पर 23 नवंबर से लेकर 27 नवंबर तक ओरिएंटेशन क्लास के लिए कई मेहमान पत्रकारों को बुलाया गया है. जो अलग-अलग दिन अलग-अलग विषयों पर छात्रों से रूबरू होंगे. इस दौरान नए सत्र में चुने गए छात्र मेहमान पत्रकारों से सवाल-जवाब भी कर सकते हैं.

ओरिएंटेशन सत्र की शुरुआत 23 नवंबर से हो चुकी है. जिसमें सबसे पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने छात्रों को संबोधित किया. इस कार्यक्रम को लेकर विवाद की शुरुआत उस समय हुई जब संस्था की प्रोफेसर और इंग्लिश जर्नलिज्म की कोर्स डायरेक्टर सुरभि दहिया ने एक ट्वीट करके पहले दिन के कार्यक्रम के बारे में जानकारी दी. उन्होंने पूरे सत्र में आने वाले सभी मेहमानों का नाम भी इस ट्वीट में जाहिर किया.

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इस ट्वीट के बाद संस्थान के ही कई छात्र दीपक चौरसिया के बतौर मेहमान वक्ता बुलाए जाने के विरोध में उतर गए.अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए जब वर्तमान सत्र के छात्र दीपक चौरसिया का विरोध करने लगे तो आईआईएमसी के कई पूर्व छात्र भी उनके समर्थन में आ गए.

पूर्व छात्र ऋषिकेश शर्मा ने ट्वीट करते हुए लिखा, “आप के प्रतिरोध से पता चलता है कि आईआईएमसी अभी भी जीवित है. हमेशा गलत मूल्यों और उन्हें मंच देने वालों के खिलाफ खड़े रहें. मुझे आप के सीनियर होने के नाते गर्व महसूस हो रहा है.”

एक अन्य ट्वीट में ऋषिकेश लिखते हैं, मंत्री, ऑर्गेनाइजर के संपादक और दीपक चौरसिया जैसे लोग आपको पत्रकारिता सिखाने आ रहे है, यह संस्थान और पत्रकारिता मूल्यों के लिए शर्म की बात है. जब संस्थान इस तरह की चीजों को लागू करने की कोशिश करता है तो आप सभी इनके खिलाफ खड़े हों. यह उन सभी मूल्यों के बारे में है जिन पर आप विश्वास करते हैं.

आईआईएमसी की एक और पूर्व छात्रा अवंतिका तिवारी ने लिखा, “पहले से ही इस नए बैच पर इतना गर्व है. हम आपके साथ है. बस सत्ता में बैठे लोगों से सवाल करते रहें.”

विरोध की शुरुआत

इस पूरे मामले की शुरुआत सुरभि दहिया के ट्वीट से हुई. उनके ट्वीट पर जवाब देते हुए आईआईएमसी की छात्रा पल्लवी गुप्ता ने लिखा, “आदरणीय मैडम, हम सभी सत्र के उद्घाटन को लेकर बहुत उत्साहित हैं. हम जानते हैं कि इस स्तर पर कोई बदलाव करना संभव नहीं है. यहां, मैं दीपक चौरसिया को उद्घाटन समारोह में बुलाने के खिलाफ चिंतित हूं. मैं पत्रकारिता के छात्र के रूप में उनके जैसे घृणा फैलाने वाले को नहीं सुनना चाहती.”

पल्लवी के समर्थन में एक अन्य छात्रा अनामिका यादव ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा- “मैं बिल्कुल पल्लवी से सहमत हूं. हम आपकी कोशिशों की तारीफ करते हैं, लेकिन दीपक चौरसिया को सुनना ठीक नहीं है. वह उनमें से एक हैं जिन्हेंं पत्रकारिता में सिर्फ बुरे बदलाव के लिए जाना जाता है

आईआईएमसी के ही एक अन्य छात्र साजिद ने ट्वीट किया- “ज़रा दीपक चौरसिया का ट्विटर अकाउंट खोलकर देखो, हर दिन की शुरुआत ज़हर से होती है. मैं एक आईआईएमसी के ज़िम्मेदार छात्र होने के नाते अपना विरोध दर्ज करता हूं. एक ऐसे व्यक्ति को जो दिन रात समाज में नफ़रत फैलाने का काम करता हो उसको आमंत्रित करना एक गैर जिम्मेदाराना कार्य है.”

छात्रों का इस मुद्दे पर समर्थन धीरे-धीरे बढ़ता गया. पूर्व छात्रों समेत संस्थान के एक और छात्र विष्णु प्रताप ने लिखा, “मैं दीपक चौरसिया जैसे नफरती लोगों को हमारे उद्घाटन समारोह में आमंत्रित करने के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कर रहा हूं. हम अपने संस्थान से अधिक उम्मीद करते हैं. साथ ही, जिस प्रोफेसर ने गांधी को पाकिस्तान का पिता कहा था, वह हमारी संस्था और हमारे देश के लिए शर्मनाक है.”

बता दें कि अपने ट्वीट में विष्णु हाल ही में संस्थान में नियुक्त हुए प्रोफेसर अनिल सौमित्र की बात कर रहे है. यह सौमित्र वहीं है जिन्होंने महात्मा गांधी को पाकिस्तान का राष्ट्रपिता कहा था. वह इस नियुक्ति से पहले मध्य प्रदेश बीजेपी आईटी सेल के अध्यक्ष रह चुके हैं.

हमने इस विवाद की जड़ को समझने के लिए संस्थान के कई छात्रों से बातचीत की. नाम नहीं छापने की शर्त पर संस्थान के कई छात्रों ने हमें बताया कि अगर उनकी पहचान उजागर हुई तो उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. ट्वीट करने वाले छात्रों के अलावा कई अन्य छात्रों ने इस मुद्दे पर अपनी बात रखी है.

इन मेहमानों को बुलाए जाने पर उनका कहना था कि, “कैसे कोई एक ऐसे व्यक्ति को सुनना चाहेगा, जो हर दिन अपने चैनल से नफरत फैलाता हो. वैसे भी इस उद्घाटन समारोह में सिर्फ एक पक्ष के लोगों को ही बुलाया गया है. यहां एक पक्ष से छात्रों का मतलब हैं जो मेहमान बुलाए गए थे उनसे.

आईआईएमसी के नए डीजी संजय द्विवेदी ने 24 नवंबर को ट्वीट कर सत्र के दूसरे दिन, ‘एडिटोरियल फ्रीडम इन इंडियन मीडिया’ विषय पर बोलने के लिए आमंत्रित मेहमानों के बारे में जानकारी दी.

इस सत्र के बाद दीपक चौरसिया को बुलाने को लेकर नाराज एक छात्र ने कहा, “संस्थान के उद्घाटन समारोह में प्रफुल्ल केतकर जो आरएसएस के ऑर्गेनाइजर पत्रिका के एडिटर है और वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय को क्यों बुलाया गया. क्या और कोई पत्रकार नहीं बचा था, जिनको बुलाया जा सकता था?. इन दोनों ही पत्रकारों के ट्विटर हैंडल पर जाकर देखने पर आप को पता चल जाएगा कि यह लोग भी घृणा फैलाने वाली ही बातें करते हैं, जैसा दीपक चौरसिया करते है.”

उन्होंने आगे कहा, “कई वरिष्ठ पत्रकार आईआईएमसी एलुमनी हैं जिन्हें इस समारोह में बुलाया जा सकता था लेकिन सिर्फ एक विचारधारा के लोगों को बुलाया गया. इससे अच्छा संदेश नहीं जा रहा है.”

एक अन्य छात्रा ने कहा, “पत्रकारिता के छात्र के तौर पर हमें दोनों पक्ष जानने चाहिए, फिर चाहे वह राइट विंग हो गया लेफ्ट विंग. लेकिन इस समारोह में दूसरे पक्ष को बुलाया ही नहीं गया, तो फिर हम कैसे दूसरे पक्ष को जानेंगे.”

सत्र के दौरान मेहमानों से सवाल पूछने के तरीके पर भी छात्रों ने एतराज जताया. उनका कहना था कि हमें सीधे मेहमान से सवाल पूछने नहीं दिया जा रहा है. सत्र की होस्ट ही छात्रों द्वारा भेजे गए सवालों में से कुछ गिने-चुने सवाल पूछ लेती हैं. केतकर और उपाध्याय से पूछे गए कई सवालों को नजरअंदाज कर दिया गया, क्योंकि होस्ट को लगा कि वह सवाल मेहमानों को परेशान कर सकते हैं.

इस पूरे मुद्दे पर आईआईएमसी से जुड़े एक कर्मचारी बताते हैं, “इस मामले की मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है. वैसे भी सभी को बोलने की आजादी है और सभी स्वतंत्र हैं अपनी बात रखने के लिए. यह भी एक सच्चाई है कि आज के समय में पत्रकारों की पहचान अलग-अलग विचारधारा को लेकर बन गई है. हो सकता हैं कि कुछ लोगों को एक पक्ष सही नहीं लगता, कुछ को दूसरा पक्ष, जैसा मैंने पहले कहा, सभी स्वतंत्र हैं अपनी बात रखने को लेकर.”

उन्होने आगे कहा, “यह बहुत अच्छा है कि कई तरह के विचार हमारे समाज में हैं जिस पर लोग सवाल-जवाब कर रहे हैं. वैसे भी देश के सर्वश्रेष्ठ पत्रकारिता संस्थान में पढ़ने वाले छात्र अपने मुद्दे उठाना जानते हैं, उन्हें पता है क्या सही है और क्या गलत.”

छात्रों के आरोपों पर दीपक चौरसिया का जवाब

छात्रों द्वारा दीपक चौरसिया के विरोध का कारण जानने के बाद न्यूज़लॉन्ड्री ने उनसे बात कर उनका पक्ष जानना चाहा.

छात्रों द्वारा उन्हें घृणा फैलाने वाला और पत्रकारिता को सिर्फ बुरे के लिए याद किए जाने लायक क्यों कहा. इस सवाल पर चौरसिया कहते हैं, “देश में सभी लोग स्वतंत्र हैं अपनी बात रखने के लिए और मैं उनकी बातों का सम्मान करता हूं. जहां तक मेरी पत्रकारिता की बात हैं तो वह एक खुली किताब की तरह है. मैं हमेशा अतिवाद के खिलाफ हूं, चाहें वह आसाराम हो या फिर मुस्लिम समुदाय में कट्टरपंथी जिन्होंने एक विरोध प्रदर्शन के दौरान आजाद मैदान में तोड़फोड़ की. पत्रकार के तौर पर मेरी ड्यूटी है कि अगर कुछ गलत हो रहा है तो मैं आवाज उठाऊं, जो मैं करता रहूंगा. मेरे दर्शकों को अधिकार है कि वह मुझसे सहमत हों या ना हों.”

हर मुद्दे पर हिंदू-मुस्लिम करने वाले सवाल पर दीपक ने कहा, “मैंने आपके सवालों का जवाब दे दिया है, अब मैं इस मसले पर कुछ नहीं कहना चाहता.”

आईआईएमसी का पक्ष

इस विवाद पर न्यूज़लॉन्ड्री ने भारतीय जनसंचार संस्थान से उनका पक्ष जानने की कोशिश की. हम यह जानना चाहते थे कि छात्रों द्वारा कई मेहमानों का विरोध करने के सवाल पर क्या संस्थान ने कोई कदम उठाया है या नहीं.

न्यूज़लॉन्ड्री ने अंग्रेजी कोर्स की डायरेक्टर और इस समारोह की देखरेख कर रही प्रोफेसर सुरभि दहिया से बात की. उन्होंने कहा, “मैं इस मुद्दे पर बात करने के लिए अधिकृत नहीं हूं, इसलिए आप डीजी से इस मुद्दे पर बात करें.”

इसके बाद हमने संस्थान के डीजी संजय द्विवेदी से बात की, लेकिन उन्होंने फोन पर सिर्फ इतना कहा कि वह इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते.

बहरहाल यह पूरा विवाद पत्रकारिता में विचारधारा के आधार पर हो चुके बंटवारे को और अधिक गहरा कर दिया है.

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ओरिएंटेशन सत्र की शुरुआत 23 नवंबर से हो चुकी है. जिसमें सबसे पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने छात्रों को संबोधित किया. इस कार्यक्रम को लेकर विवाद की शुरुआत उस समय हुई जब संस्था की प्रोफेसर और इंग्लिश जर्नलिज्म की कोर्स डायरेक्टर सुरभि दहिया ने एक ट्वीट करके पहले दिन के कार्यक्रम के बारे में जानकारी दी. उन्होंने पूरे सत्र में आने वाले सभी मेहमानों का नाम भी इस ट्वीट में जाहिर किया.

इस ट्वीट के बाद संस्थान के ही कई छात्र दीपक चौरसिया के बतौर मेहमान वक्ता बुलाए जाने के विरोध में उतर गए.अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए जब वर्तमान सत्र के छात्र दीपक चौरसिया का विरोध करने लगे तो आईआईएमसी के कई पूर्व छात्र भी उनके समर्थन में आ गए.

पूर्व छात्र ऋषिकेश शर्मा ने ट्वीट करते हुए लिखा, “आप के प्रतिरोध से पता चलता है कि आईआईएमसी अभी भी जीवित है. हमेशा गलत मूल्यों और उन्हें मंच देने वालों के खिलाफ खड़े रहें. मुझे आप के सीनियर होने के नाते गर्व महसूस हो रहा है.”

एक अन्य ट्वीट में ऋषिकेश लिखते हैं, मंत्री, ऑर्गेनाइजर के संपादक और दीपक चौरसिया जैसे लोग आपको पत्रकारिता सिखाने आ रहे है, यह संस्थान और पत्रकारिता मूल्यों के लिए शर्म की बात है. जब संस्थान इस तरह की चीजों को लागू करने की कोशिश करता है तो आप सभी इनके खिलाफ खड़े हों. यह उन सभी मूल्यों के बारे में है जिन पर आप विश्वास करते हैं.

आईआईएमसी की एक और पूर्व छात्रा अवंतिका तिवारी ने लिखा, “पहले से ही इस नए बैच पर इतना गर्व है. हम आपके साथ है. बस सत्ता में बैठे लोगों से सवाल करते रहें.”

विरोध की शुरुआत

इस पूरे मामले की शुरुआत सुरभि दहिया के ट्वीट से हुई. उनके ट्वीट पर जवाब देते हुए आईआईएमसी की छात्रा पल्लवी गुप्ता ने लिखा, “आदरणीय मैडम, हम सभी सत्र के उद्घाटन को लेकर बहुत उत्साहित हैं. हम जानते हैं कि इस स्तर पर कोई बदलाव करना संभव नहीं है. यहां, मैं दीपक चौरसिया को उद्घाटन समारोह में बुलाने के खिलाफ चिंतित हूं. मैं पत्रकारिता के छात्र के रूप में उनके जैसे घृणा फैलाने वाले को नहीं सुनना चाहती.”

पल्लवी के समर्थन में एक अन्य छात्रा अनामिका यादव ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा- “मैं बिल्कुल पल्लवी से सहमत हूं. हम आपकी कोशिशों की तारीफ करते हैं, लेकिन दीपक चौरसिया को सुनना ठीक नहीं है. वह उनमें से एक हैं जिन्हेंं पत्रकारिता में सिर्फ बुरे बदलाव के लिए जाना जाता है

आईआईएमसी के ही एक अन्य छात्र साजिद ने ट्वीट किया- “ज़रा दीपक चौरसिया का ट्विटर अकाउंट खोलकर देखो, हर दिन की शुरुआत ज़हर से होती है. मैं एक आईआईएमसी के ज़िम्मेदार छात्र होने के नाते अपना विरोध दर्ज करता हूं. एक ऐसे व्यक्ति को जो दिन रात समाज में नफ़रत फैलाने का काम करता हो उसको आमंत्रित करना एक गैर जिम्मेदाराना कार्य है.”

छात्रों का इस मुद्दे पर समर्थन धीरे-धीरे बढ़ता गया. पूर्व छात्रों समेत संस्थान के एक और छात्र विष्णु प्रताप ने लिखा, “मैं दीपक चौरसिया जैसे नफरती लोगों को हमारे उद्घाटन समारोह में आमंत्रित करने के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कर रहा हूं. हम अपने संस्थान से अधिक उम्मीद करते हैं. साथ ही, जिस प्रोफेसर ने गांधी को पाकिस्तान का पिता कहा था, वह हमारी संस्था और हमारे देश के लिए शर्मनाक है.”

बता दें कि अपने ट्वीट में विष्णु हाल ही में संस्थान में नियुक्त हुए प्रोफेसर अनिल सौमित्र की बात कर रहे है. यह सौमित्र वहीं है जिन्होंने महात्मा गांधी को पाकिस्तान का राष्ट्रपिता कहा था. वह इस नियुक्ति से पहले मध्य प्रदेश बीजेपी आईटी सेल के अध्यक्ष रह चुके हैं.

हमने इस विवाद की जड़ को समझने के लिए संस्थान के कई छात्रों से बातचीत की. नाम नहीं छापने की शर्त पर संस्थान के कई छात्रों ने हमें बताया कि अगर उनकी पहचान उजागर हुई तो उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. ट्वीट करने वाले छात्रों के अलावा कई अन्य छात्रों ने इस मुद्दे पर अपनी बात रखी है.

इन मेहमानों को बुलाए जाने पर उनका कहना था कि, “कैसे कोई एक ऐसे व्यक्ति को सुनना चाहेगा, जो हर दिन अपने चैनल से नफरत फैलाता हो. वैसे भी इस उद्घाटन समारोह में सिर्फ एक पक्ष के लोगों को ही बुलाया गया है. यहां एक पक्ष से छात्रों का मतलब हैं जो मेहमान बुलाए गए थे उनसे.

आईआईएमसी के नए डीजी संजय द्विवेदी ने 24 नवंबर को ट्वीट कर सत्र के दूसरे दिन, ‘एडिटोरियल फ्रीडम इन इंडियन मीडिया’ विषय पर बोलने के लिए आमंत्रित मेहमानों के बारे में जानकारी दी.

इस सत्र के बाद दीपक चौरसिया को बुलाने को लेकर नाराज एक छात्र ने कहा, “संस्थान के उद्घाटन समारोह में प्रफुल्ल केतकर जो आरएसएस के ऑर्गेनाइजर पत्रिका के एडिटर है और वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय को क्यों बुलाया गया. क्या और कोई पत्रकार नहीं बचा था, जिनको बुलाया जा सकता था?. इन दोनों ही पत्रकारों के ट्विटर हैंडल पर जाकर देखने पर आप को पता चल जाएगा कि यह लोग भी घृणा फैलाने वाली ही बातें करते हैं, जैसा दीपक चौरसिया करते है.”

उन्होंने आगे कहा, “कई वरिष्ठ पत्रकार आईआईएमसी एलुमनी हैं जिन्हें इस समारोह में बुलाया जा सकता था लेकिन सिर्फ एक विचारधारा के लोगों को बुलाया गया. इससे अच्छा संदेश नहीं जा रहा है.”

एक अन्य छात्रा ने कहा, “पत्रकारिता के छात्र के तौर पर हमें दोनों पक्ष जानने चाहिए, फिर चाहे वह राइट विंग हो गया लेफ्ट विंग. लेकिन इस समारोह में दूसरे पक्ष को बुलाया ही नहीं गया, तो फिर हम कैसे दूसरे पक्ष को जानेंगे.”

सत्र के दौरान मेहमानों से सवाल पूछने के तरीके पर भी छात्रों ने एतराज जताया. उनका कहना था कि हमें सीधे मेहमान से सवाल पूछने नहीं दिया जा रहा है. सत्र की होस्ट ही छात्रों द्वारा भेजे गए सवालों में से कुछ गिने-चुने सवाल पूछ लेती हैं. केतकर और उपाध्याय से पूछे गए कई सवालों को नजरअंदाज कर दिया गया, क्योंकि होस्ट को लगा कि वह सवाल मेहमानों को परेशान कर सकते हैं.

इस पूरे मुद्दे पर आईआईएमसी से जुड़े एक कर्मचारी बताते हैं, “इस मामले की मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है. वैसे भी सभी को बोलने की आजादी है और सभी स्वतंत्र हैं अपनी बात रखने के लिए. यह भी एक सच्चाई है कि आज के समय में पत्रकारों की पहचान अलग-अलग विचारधारा को लेकर बन गई है. हो सकता हैं कि कुछ लोगों को एक पक्ष सही नहीं लगता, कुछ को दूसरा पक्ष, जैसा मैंने पहले कहा, सभी स्वतंत्र हैं अपनी बात रखने को लेकर.”

उन्होने आगे कहा, “यह बहुत अच्छा है कि कई तरह के विचार हमारे समाज में हैं जिस पर लोग सवाल-जवाब कर रहे हैं. वैसे भी देश के सर्वश्रेष्ठ पत्रकारिता संस्थान में पढ़ने वाले छात्र अपने मुद्दे उठाना जानते हैं, उन्हें पता है क्या सही है और क्या गलत.”

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छात्रों द्वारा उन्हें घृणा फैलाने वाला और पत्रकारिता को सिर्फ बुरे के लिए याद किए जाने लायक क्यों कहा. इस सवाल पर चौरसिया कहते हैं, “देश में सभी लोग स्वतंत्र हैं अपनी बात रखने के लिए और मैं उनकी बातों का सम्मान करता हूं. जहां तक मेरी पत्रकारिता की बात हैं तो वह एक खुली किताब की तरह है. मैं हमेशा अतिवाद के खिलाफ हूं, चाहें वह आसाराम हो या फिर मुस्लिम समुदाय में कट्टरपंथी जिन्होंने एक विरोध प्रदर्शन के दौरान आजाद मैदान में तोड़फोड़ की. पत्रकार के तौर पर मेरी ड्यूटी है कि अगर कुछ गलत हो रहा है तो मैं आवाज उठाऊं, जो मैं करता रहूंगा. मेरे दर्शकों को अधिकार है कि वह मुझसे सहमत हों या ना हों.”

हर मुद्दे पर हिंदू-मुस्लिम करने वाले सवाल पर दीपक ने कहा, “मैंने आपके सवालों का जवाब दे दिया है, अब मैं इस मसले पर कुछ नहीं कहना चाहता.”

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इस विवाद पर न्यूज़लॉन्ड्री ने भारतीय जनसंचार संस्थान से उनका पक्ष जानने की कोशिश की. हम यह जानना चाहते थे कि छात्रों द्वारा कई मेहमानों का विरोध करने के सवाल पर क्या संस्थान ने कोई कदम उठाया है या नहीं.

न्यूज़लॉन्ड्री ने अंग्रेजी कोर्स की डायरेक्टर और इस समारोह की देखरेख कर रही प्रोफेसर सुरभि दहिया से बात की. उन्होंने कहा, “मैं इस मुद्दे पर बात करने के लिए अधिकृत नहीं हूं, इसलिए आप डीजी से इस मुद्दे पर बात करें.”

इसके बाद हमने संस्थान के डीजी संजय द्विवेदी से बात की, लेकिन उन्होंने फोन पर सिर्फ इतना कहा कि वह इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते.

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