उपन्यास: "बन्दूक द्वीप- मायावी मिथक और गहन यथार्थों का कथा जाल"

यह उपन्यास पूरे उत्तर भारत के सामाजिक-आर्थिक तंत्र को झकझोर देने वाली कथा है.

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उपन्यास, "बन्दूक द्वीप- मायावी मिथक और गहन यथार्थों का कथा जाल" जो मूल रूप से एक आदमी की आत्म-खोज, सुंदरवन के लुप्त होते लोक कथाओं और हमारे समय के सबसे बेचैन करने वाली परेशानियों को एक साथ लाता है. यह उपन्यास 2019 में अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था. बिलकुल सरल और लयबद्ध अनुवाद किया है मनीषा तनेजा ने, इस उपन्यास का.

उपन्यास का मुख्य पात्र दीन (दीनानाथ दत्ता) है, जो कि 50 की उम्र का है, और दुर्लभ पुस्तकों का डीलर है. वह अमेरिका के ब्रुकलिन में रहता है, लेकिन हम उससे कोलकाता में मिलते हैं, जहां वह सर्दियों में रहता है.

अमिताव घोष के इतिहास प्रेम, और उनके अद्भुत कथा शिल्प से यह उपन्यास एक विश्वाश के साथ शुरू होता है. इस पुस्तक में जिस शिल्प का प्रयोग किया गया है वही दरअसल आज के भारत का कथ्य है. पुस्तक के आरंभ में, दीन मायावी द्वीप से जुड़ी हुई रहस्यों को टीपू के माध्यम से जनता है. इस उपन्यास में, घोष, जादुई किवदन्तिओ के माध्यम से एक गंभीर भू-राजनीतिक और पर्यावरण से जुड़ी संकट से सम्बंधित विमर्श खड़ा करते है. इसे पढ़ते हुए आपका मन हर उस कोने में जाता है जहां-जहां वर्णित समस्याओं की 'रेप्लिका' तैयार है या तैयार की जा रही है.

बाकी उपन्यास एक खोज है: मिथक में अर्थ के लिए दीन की खोज, और पश्चिम में सुरक्षित मार्ग के लिए टीपू की खोज. दीन पाठक के लिए एक प्रतिपुरुष है, जो दुनिया में हो रहे प्रतिक्षण बदलाव के बावजूद सीमाओं और तर्क में विश्वास रखता है. यहीं भारत में, एक अन्य रिश्तेदार दीन को बन्दूकी सौदागर या गन मर्चेंट की लोक कथा बताता है. पुस्तक दिखाती है कि कैसे एक सामान्य शब्द 'बन्दूक', या 'गन', दीन दत्ता की दुनिया को उलट देता है.

दीन जिसकी दुनिया अपने घर की चार दीवारी तक ही सीमित थी, लेकिन जैसे-जैसे उसकी दुनियाई समझ और धारणाएं बदलती है, वह एक असाधारण यात्रा पर निकलता है. वह यात्रा उसे भारत से लॉस एंजिल्स और वेनिस तक एक पेचीदा मार्ग से उन यादों और अनुभवों के माध्यम से ले जाता है जो उसे यात्रा के क्रम में मिलते हैं. इस कहानी में पियाली रॉय है, अमेरिका में पली-बढ़ी एक बंगाली लड़की जो उसकी यात्रा का कारण बनती है; पिया, जो की एक समुद्री जीव विज्ञानी भी है, जिसके शोध में सुंदरवन के नदी में डॉल्फ़िन की संख्या में तेजी से हो रही कमी के कारण होना भी शामिल है.

एक उद्यमी युवक टीपू, जो दीन को आधुनिक समय में विकास की वास्तविकता से अवगत कराता है. दूसरा, रफ़ी, जो ज़रूरतमंद की मदद करने के लिए हमेशा प्रयास करता रहता है. और वेनिस के इतिहास में विशेषज्ञता रखने वाले प्रोफेसर गिआकिंटा शियावोन या चीनता एक पुरानी दोस्त जो इस कहानी और उसके पात्रों के बीच की खोई कड़ियों को जोड़ती है.

यह एक बहुत बारीकी से गढ़ी कहानी है जिसका केंद्र आज के समय की वो दो सबसे भयावह चुनौतियां हैं जिनसे हम जूझ रहे हैं. जलवायु परिवर्तन और शरणार्थी संकट/मानव प्रवासन.

सुंदरवन विश्व के लुप्त हो रहे क्षेत्रों में से एक है, जो अपने जटिल भौगोलिक संरचनाओं के कारण, हमेशा से दुनियाभर के पर्यावरणविदों के लिए कौतुहल का विषय रहा है. यह कथा एक ऐसी साहसिक यात्रा की तरह है, जो प्रकृति और राष्ट्र की ताक़तों द्वारा सताये हुए लोगों के वितान को हमारे समक्ष लाता है.

1970 के विनाशकारी "भोला साइक्लोन" विशाल पृथ्वी ग्रह के इस छोटे से कोने में बसे पांच लाख लोगो की मृत्यु का कारण बना था. दीन ने यह कथा, अपने एक सम्बन्धी से सुना थी, जिसने उसे यह बताया था कि, कैसे कुछ चंद जीवित बचे लोगों की एक छोटी सी समूह ने सांपों की देवी “मानसा” द्वारा संरक्षित मंदिर में शरण लिया था. यह उपन्यास, संतुलित पारिस्थितिकी, लुप्तप्राय प्रजातियों, विकास और प्रकृति की शक्तियों के मध्य संघर्ष की भी कहानी है.

अमिताभ घोष का उपन्यास "बन्दूक़ द्वीप" एक ख़ूबसूरत अहसास है जो समय और सीमा को आसानी से पार करता है. यह एक ऐसी यात्रा है जिसमे दीन अपने बचपन की बंगाली किवदंतियों और उसके आसपास की दुनियां के बारे में जान पाता है. "बन्दूक द्वीप- मायावी मिथक और गहन यथार्थों का कथा जाल" एक खूबसूरती से महसूस किया जाने वाला उपन्यास है जो सहजता से अंतरिक्ष और समय का विस्तार करता है. यह बढ़ती विस्थापन और अजेय संक्रमण की कगार पर स्थित दुनिया की कहानी है. लेकिन यह एक उम्मीद की कहानी भी है. एक ऐसे व्यक्ति की जिसका विश्वास दुनिया और भविष्य में दो उल्लेखनीय महिलाओं द्वारा बहाल किया गया (है) था.

उपन्यास में एक जगह लिखा है कि, दीन लोक गीतों का सम्मान करता है लेकिन फिर भी संशयवादी है. यहां, थोड़ी सी और स्पष्टता कि आवश्यकता थी, अमिताभ घोष यहां अपने विचार के बारे में बताते हुए स्पष्ट नहीं हैं, और यह ज़िम्मेदारी अपने पाठकों विवेक पर छोड़ते हैं.

कथा की अंतर्वस्तु में बंगाल की एक लुप्त होती लोक कथा को वर्तमान परिस्थितियों से प्रवीणता के साथ जोड़ा गया है, जिसकी प्रतिध्वनि सभी महाद्वीपों में महसूस की जा सकती है. यह दिलचस्प उपन्यास “बन्दूक द्वीप- मायावी मिथक और गहन यथार्थों का कथा जाल” पाठकों के एक विस्तृत वर्ग को आकर्षित करेगा, बेशक वो इसे किसी भी भाषा में पढ़ें. अमिताभ घोष की अन्य कृतिओं की तरह, यह किताब भी अनिवार्य पुस्तक के तौर पर हमारे साथ रहेगी. यह पुस्तक सच्चे अर्थों में सभ्यता समीक्षा है.

उपन्यास, "बन्दूक द्विप- मायावी मिथक और गहन यथार्थों का कथा जाल"

लेखक - अमिताभ घोष

प्रकाशक - वेस्टलैंड - एका

मूल्य- 399.

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उपन्यास का मुख्य पात्र दीन (दीनानाथ दत्ता) है, जो कि 50 की उम्र का है, और दुर्लभ पुस्तकों का डीलर है. वह अमेरिका के ब्रुकलिन में रहता है, लेकिन हम उससे कोलकाता में मिलते हैं, जहां वह सर्दियों में रहता है.

अमिताव घोष के इतिहास प्रेम, और उनके अद्भुत कथा शिल्प से यह उपन्यास एक विश्वाश के साथ शुरू होता है. इस पुस्तक में जिस शिल्प का प्रयोग किया गया है वही दरअसल आज के भारत का कथ्य है. पुस्तक के आरंभ में, दीन मायावी द्वीप से जुड़ी हुई रहस्यों को टीपू के माध्यम से जनता है. इस उपन्यास में, घोष, जादुई किवदन्तिओ के माध्यम से एक गंभीर भू-राजनीतिक और पर्यावरण से जुड़ी संकट से सम्बंधित विमर्श खड़ा करते है. इसे पढ़ते हुए आपका मन हर उस कोने में जाता है जहां-जहां वर्णित समस्याओं की 'रेप्लिका' तैयार है या तैयार की जा रही है.

बाकी उपन्यास एक खोज है: मिथक में अर्थ के लिए दीन की खोज, और पश्चिम में सुरक्षित मार्ग के लिए टीपू की खोज. दीन पाठक के लिए एक प्रतिपुरुष है, जो दुनिया में हो रहे प्रतिक्षण बदलाव के बावजूद सीमाओं और तर्क में विश्वास रखता है. यहीं भारत में, एक अन्य रिश्तेदार दीन को बन्दूकी सौदागर या गन मर्चेंट की लोक कथा बताता है. पुस्तक दिखाती है कि कैसे एक सामान्य शब्द 'बन्दूक', या 'गन', दीन दत्ता की दुनिया को उलट देता है.

दीन जिसकी दुनिया अपने घर की चार दीवारी तक ही सीमित थी, लेकिन जैसे-जैसे उसकी दुनियाई समझ और धारणाएं बदलती है, वह एक असाधारण यात्रा पर निकलता है. वह यात्रा उसे भारत से लॉस एंजिल्स और वेनिस तक एक पेचीदा मार्ग से उन यादों और अनुभवों के माध्यम से ले जाता है जो उसे यात्रा के क्रम में मिलते हैं. इस कहानी में पियाली रॉय है, अमेरिका में पली-बढ़ी एक बंगाली लड़की जो उसकी यात्रा का कारण बनती है; पिया, जो की एक समुद्री जीव विज्ञानी भी है, जिसके शोध में सुंदरवन के नदी में डॉल्फ़िन की संख्या में तेजी से हो रही कमी के कारण होना भी शामिल है.

एक उद्यमी युवक टीपू, जो दीन को आधुनिक समय में विकास की वास्तविकता से अवगत कराता है. दूसरा, रफ़ी, जो ज़रूरतमंद की मदद करने के लिए हमेशा प्रयास करता रहता है. और वेनिस के इतिहास में विशेषज्ञता रखने वाले प्रोफेसर गिआकिंटा शियावोन या चीनता एक पुरानी दोस्त जो इस कहानी और उसके पात्रों के बीच की खोई कड़ियों को जोड़ती है.

यह एक बहुत बारीकी से गढ़ी कहानी है जिसका केंद्र आज के समय की वो दो सबसे भयावह चुनौतियां हैं जिनसे हम जूझ रहे हैं. जलवायु परिवर्तन और शरणार्थी संकट/मानव प्रवासन.

सुंदरवन विश्व के लुप्त हो रहे क्षेत्रों में से एक है, जो अपने जटिल भौगोलिक संरचनाओं के कारण, हमेशा से दुनियाभर के पर्यावरणविदों के लिए कौतुहल का विषय रहा है. यह कथा एक ऐसी साहसिक यात्रा की तरह है, जो प्रकृति और राष्ट्र की ताक़तों द्वारा सताये हुए लोगों के वितान को हमारे समक्ष लाता है.

1970 के विनाशकारी "भोला साइक्लोन" विशाल पृथ्वी ग्रह के इस छोटे से कोने में बसे पांच लाख लोगो की मृत्यु का कारण बना था. दीन ने यह कथा, अपने एक सम्बन्धी से सुना थी, जिसने उसे यह बताया था कि, कैसे कुछ चंद जीवित बचे लोगों की एक छोटी सी समूह ने सांपों की देवी “मानसा” द्वारा संरक्षित मंदिर में शरण लिया था. यह उपन्यास, संतुलित पारिस्थितिकी, लुप्तप्राय प्रजातियों, विकास और प्रकृति की शक्तियों के मध्य संघर्ष की भी कहानी है.

अमिताभ घोष का उपन्यास "बन्दूक़ द्वीप" एक ख़ूबसूरत अहसास है जो समय और सीमा को आसानी से पार करता है. यह एक ऐसी यात्रा है जिसमे दीन अपने बचपन की बंगाली किवदंतियों और उसके आसपास की दुनियां के बारे में जान पाता है. "बन्दूक द्वीप- मायावी मिथक और गहन यथार्थों का कथा जाल" एक खूबसूरती से महसूस किया जाने वाला उपन्यास है जो सहजता से अंतरिक्ष और समय का विस्तार करता है. यह बढ़ती विस्थापन और अजेय संक्रमण की कगार पर स्थित दुनिया की कहानी है. लेकिन यह एक उम्मीद की कहानी भी है. एक ऐसे व्यक्ति की जिसका विश्वास दुनिया और भविष्य में दो उल्लेखनीय महिलाओं द्वारा बहाल किया गया (है) था.

उपन्यास में एक जगह लिखा है कि, दीन लोक गीतों का सम्मान करता है लेकिन फिर भी संशयवादी है. यहां, थोड़ी सी और स्पष्टता कि आवश्यकता थी, अमिताभ घोष यहां अपने विचार के बारे में बताते हुए स्पष्ट नहीं हैं, और यह ज़िम्मेदारी अपने पाठकों विवेक पर छोड़ते हैं.

कथा की अंतर्वस्तु में बंगाल की एक लुप्त होती लोक कथा को वर्तमान परिस्थितियों से प्रवीणता के साथ जोड़ा गया है, जिसकी प्रतिध्वनि सभी महाद्वीपों में महसूस की जा सकती है. यह दिलचस्प उपन्यास “बन्दूक द्वीप- मायावी मिथक और गहन यथार्थों का कथा जाल” पाठकों के एक विस्तृत वर्ग को आकर्षित करेगा, बेशक वो इसे किसी भी भाषा में पढ़ें. अमिताभ घोष की अन्य कृतिओं की तरह, यह किताब भी अनिवार्य पुस्तक के तौर पर हमारे साथ रहेगी. यह पुस्तक सच्चे अर्थों में सभ्यता समीक्षा है.

उपन्यास, "बन्दूक द्विप- मायावी मिथक और गहन यथार्थों का कथा जाल"

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