अंसाजे के वकीलों ने कहा वह पत्रकार के तौर पर काम कर रहे थे, इसलिए वह दस्तावेज़ों को प्रकाशित करने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत संरक्षण के हक़दार हैं.
लंदन की जिला अदालत ने तीन हफ्ते से चल रहे 'विकीलीक्स' के संस्थापक जूलियन असांजे के केस में सोमवार को फैसला सुनाया.
एनडीटीवी पर प्रकाशित खबर के मुताबिक, जिला न्यायाधीश वैनिसा बाराइस्टर लंदन स्थित 'सेंट्रल क्रिमिनल कोर्ट' में फैसला सुनाते हुए कहा कि जूलियन असांजे को अमेरिका प्रत्यर्पित नहीं किया जाएगा.
इंडिया डॉट काम की खबर के मुताबिक, 49 वर्षीय अंसाजे के वकीलों ने कोर्ट में सुनवाई के दौरान दलील दी है कि वह पत्रकार के तौर पर काम कर रहे थे, इसलिए वह दस्तावेज़ों को प्रकाशित करने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत संरक्षण के हक़दार हैं. इन दस्तावेजों में अमेरिकी सैनिकों द्वारा इराक और अफगानिस्तान में किए गए कथित गलत कामों के बारे में जानकारी है.
बता दें कि 2010 में विकीलीक्स ने बड़ी संख्या में सेना से जुड़े अमेरिकी गोपनीय दस्तावेजों को पब्लिश किया. इसके अलावा असांजे ने अफगानिस्तान और इराक युद्ध से जुड़े दस्तावेजों को भी सार्वजनिक किया था.
इसके बाद साल 2012 में यौन उत्पीड़न मामले में स्वीडन प्रत्यर्पण से बचने के लिए उन्होंने ब्रिटेन स्थित इक्वाडोर के दूतावास में शरण ले ली थी. तब से लंदन में शरणार्थी के तौर पर रह रहे है.
लंदन की जिला अदालत ने तीन हफ्ते से चल रहे 'विकीलीक्स' के संस्थापक जूलियन असांजे के केस में सोमवार को फैसला सुनाया.
एनडीटीवी पर प्रकाशित खबर के मुताबिक, जिला न्यायाधीश वैनिसा बाराइस्टर लंदन स्थित 'सेंट्रल क्रिमिनल कोर्ट' में फैसला सुनाते हुए कहा कि जूलियन असांजे को अमेरिका प्रत्यर्पित नहीं किया जाएगा.
इंडिया डॉट काम की खबर के मुताबिक, 49 वर्षीय अंसाजे के वकीलों ने कोर्ट में सुनवाई के दौरान दलील दी है कि वह पत्रकार के तौर पर काम कर रहे थे, इसलिए वह दस्तावेज़ों को प्रकाशित करने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत संरक्षण के हक़दार हैं. इन दस्तावेजों में अमेरिकी सैनिकों द्वारा इराक और अफगानिस्तान में किए गए कथित गलत कामों के बारे में जानकारी है.
बता दें कि 2010 में विकीलीक्स ने बड़ी संख्या में सेना से जुड़े अमेरिकी गोपनीय दस्तावेजों को पब्लिश किया. इसके अलावा असांजे ने अफगानिस्तान और इराक युद्ध से जुड़े दस्तावेजों को भी सार्वजनिक किया था.
इसके बाद साल 2012 में यौन उत्पीड़न मामले में स्वीडन प्रत्यर्पण से बचने के लिए उन्होंने ब्रिटेन स्थित इक्वाडोर के दूतावास में शरण ले ली थी. तब से लंदन में शरणार्थी के तौर पर रह रहे है.