रिपोर्ट में दावा किया गया था कि यूनिवर्सिटी में शिक्षा और शोध का स्तर बेहद घटिया है.
अंग्रेज़ी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के ख़िलाफ एक भ्रामक रिपोर्ट छापने के लिए अदालत से माफी मांगी ली है. टाइम्स ऑफ इंडिया ने दिल्ली की एक सिविल अदालत में अपना माफीनामा दाख़िल किया है. अखबार ने यह रिपोर्ट 14 साल पहले 29 सितम्बर 2007 को छापी थी. जिसका शीर्षक था- ‘एएमयू: जहां डिग्री टॉफियों की तरह बंटती हैं.’
दरअसल 2007 में एएमयू को लेकर अखबार ने एक लीड स्टोरी छापी थी. अखिलेश कुमार सिंह की इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि यूनिवर्सिटी में शिक्षा और शोध का स्तर बेहद घटिया है. स्टोरी में कहा गया था कि एएमयू हॉस्टल, गुंडों के लिए आश्रय स्थल बन गए हैं और शिक्षा का राजनीतिकरण हो गया है. यूनिवर्सिटी के पास स्थित शमशाद मार्केट और चुंगी पर कई दुकान हैं जहां रिसर्च पेपर और डिजर्टेशन टॉफी की तरह बिकते हैं. छात्र इन्हें खरीद कर जमा कर देते हैं और यूनिवर्सिटी बिना इनको जांचे छात्रों को एम फिल और पीएचडी की डिग्री बांट देती है. सर सैयद अहमद खां की विरासत अपने आभूषण खो चुकी है. इसके अलावा यूनिवर्सिटी को लेकर और भी बहुत सी नकारात्मक बातें लिखी थीं.
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Contributeमाफीनामा
इस रिपोर्ट के छपने के बाद एएमयू के छात्रों में काफी ग़ुस्सा था. छात्रों ने अखबार से माफी मांगने के लिए कहा था, लेकिन तब अखबार ने माफी नहीं मांगी. आखिर में इस मामले को एएमयू छात्र संघ के सचिव रहे एडवोकेट डॉ. फर्रुख खान ने दिल्ली की एक अदालत में उठाया. उन्होंने अपने साथी वकील चंगेज़ ख़ान के साथ मिलकर टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार के ख़िलाफ मुकदमा कर दिया था. यह मुकदमा 14 साल से चल रहा था और 20 जनवरी को इसकी सुनवाई होनी थी.
बीती 14 जनवरी को अखबार ने अपने वकील के माध्यम से चुपचाप दिल्ली की सिविल कोर्ट में अपना माफीनामा दाख़िल कर दिया. इसमें लिखित में माफी की बात कहते हुए लिखा था कि मामले को सुलझा लिया गया है. हालांकि लेख अभी भी वेबसाइट पर उपलब्ध है.
अंग्रेज़ी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के ख़िलाफ एक भ्रामक रिपोर्ट छापने के लिए अदालत से माफी मांगी ली है. टाइम्स ऑफ इंडिया ने दिल्ली की एक सिविल अदालत में अपना माफीनामा दाख़िल किया है. अखबार ने यह रिपोर्ट 14 साल पहले 29 सितम्बर 2007 को छापी थी. जिसका शीर्षक था- ‘एएमयू: जहां डिग्री टॉफियों की तरह बंटती हैं.’
दरअसल 2007 में एएमयू को लेकर अखबार ने एक लीड स्टोरी छापी थी. अखिलेश कुमार सिंह की इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि यूनिवर्सिटी में शिक्षा और शोध का स्तर बेहद घटिया है. स्टोरी में कहा गया था कि एएमयू हॉस्टल, गुंडों के लिए आश्रय स्थल बन गए हैं और शिक्षा का राजनीतिकरण हो गया है. यूनिवर्सिटी के पास स्थित शमशाद मार्केट और चुंगी पर कई दुकान हैं जहां रिसर्च पेपर और डिजर्टेशन टॉफी की तरह बिकते हैं. छात्र इन्हें खरीद कर जमा कर देते हैं और यूनिवर्सिटी बिना इनको जांचे छात्रों को एम फिल और पीएचडी की डिग्री बांट देती है. सर सैयद अहमद खां की विरासत अपने आभूषण खो चुकी है. इसके अलावा यूनिवर्सिटी को लेकर और भी बहुत सी नकारात्मक बातें लिखी थीं.
माफीनामा
इस रिपोर्ट के छपने के बाद एएमयू के छात्रों में काफी ग़ुस्सा था. छात्रों ने अखबार से माफी मांगने के लिए कहा था, लेकिन तब अखबार ने माफी नहीं मांगी. आखिर में इस मामले को एएमयू छात्र संघ के सचिव रहे एडवोकेट डॉ. फर्रुख खान ने दिल्ली की एक अदालत में उठाया. उन्होंने अपने साथी वकील चंगेज़ ख़ान के साथ मिलकर टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार के ख़िलाफ मुकदमा कर दिया था. यह मुकदमा 14 साल से चल रहा था और 20 जनवरी को इसकी सुनवाई होनी थी.
बीती 14 जनवरी को अखबार ने अपने वकील के माध्यम से चुपचाप दिल्ली की सिविल कोर्ट में अपना माफीनामा दाख़िल कर दिया. इसमें लिखित में माफी की बात कहते हुए लिखा था कि मामले को सुलझा लिया गया है. हालांकि लेख अभी भी वेबसाइट पर उपलब्ध है.
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