भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता का आलम यह है कि इसे एक अलग धर्म की संज्ञा दी जाती है. क्रिकेट को देखने के लिए दर्शकों की जितनी भीड़ स्टेडियमों में जाती है उतनी शायद ही किसी दूसरे खेल में जाती हो. यह इस खेल के प्रति भारतीयों में दीवानेपन की सिर्फ एक तस्वीर है.
क्रिकेट के बड़े प्रशंसकों और टिप्पणीकारों में एक हैं प्रोफेसर रामचंद्र गुहा. रामचंद्र गुहा की जितनी छवि बतौर इतिहासकार है उतनी ही बड़ी प्रतिष्ठा क्रिकेट इतिहासकार की भी है. उनके क्रिकेट और समसामयिक विषयों पर लिखे लेख हिन्दुस्तान अखबार, द टेलीग्राफ, ख़लीज टाइम्स के साथ ही अलहदा समाचार माध्यमों में समय-समय पर प्रकाशित होते रहते हैं.
एनएल रीसेस के तहत बीते दिनों न्यूज़लॉन्ड्री के तमाम सब्सक्राइबर्स की रामचंद्र गुहा के साथ एक ऑनलाइन बैठक जमी. यहां उनकी हालिया प्रकाशित किताब द कॉमनवेल्थ ऑफ क्रिकेट के बारे में बात हुई. किताब के बहाने भारतीय क्रिकेट की यात्रा, प्रोफेसर गुहा के क्रिकेट से रिश्ते, देहरादून की बातें, बंगलोर की क्रिकेट दुनिया, बतौर क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेटर उनके अनुभवों पर विस्तार से बातचीत हुई. इस बातचीत के दौरान न्यूज़लॉन्ड्री के सब्क्राइबर्स ने भी उनसे अपने सवाल पूछे. प्रोफेसर गुहा ने उनके सवालों का फुरसत से जवाब दिया. उन्होंने बताया कि आखिर क्यों एक समय का अंतराल ऐसा भी आया जब कम्युनिज्म के प्रभाव में प्रोफेसर गुहा का क्रिकेट से मोहभंग हो गया, इसके बाद फिर एक ऐसी स्थिति आई जब उनका कम्युनिज्म से मोहभंग हो गया और वो फिर से क्रिकेट की तरफ वापस लौट आए.
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