इस समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दो तरह की महापंचायतें हो रही हैं. एक वह जो कृषि कानूनों के विरुद्ध हैं, और दूसरी जो राजनैतिक हैं और भाजपा विरोधी हैं. अमरोहा की महापंचायत दूसरे किस्म की थी.
अमरोहा महापंचायत में किसानों का मूड भाजपा के विरुद्ध तो था, लेकिन केवल कृषि कानूनों के कारण नहीं. "मैं यहां समझने आया हूं कि यह आंदोलन है क्या," करहला गांव से आए 62 साल के गन्ना किसान दुर्जन सिंह ने कहा. "लोग यहां नेताओं को सुनने आए हैं. मैं एक सामान्य गांव वाला हूं जो अपना विचार बनाने का प्रयास कर रहा हूं."
लेकिन दुर्जन सिंह पूरी तरह निष्पक्ष भी नहीं हैं. योगी सरकार में गन्ने की स्थिर कीमतें, समर्थन मूल्य से कम पर गेंहूं की खरीद और चीनी मिलों द्वारा देरी से भुगतान किए जाने के कारण वह आशंकित हैं कि केंद्र के कृषि कानून 'किसानों का घाटा कर सकते हैं'.
थोड़ी सी बातचीत में ही यहां किसान खुलकर भाजपा के खिलाफ बोलने लगते हैं. उनका गुस्सा अक्सर अपशब्दों का रूप ले लेता है.
31 साल के राजवीर सिंह, जो अमरोहा के जाजरु गांव से हैं, कहते हैं कि युवाओं ने केंद्र और राज्य में भाजपा को वोट देकर गलती कर दी. "एक बार गलती हो गई, दोबारा नहीं करेंगे," राजवीर कहते हैं.
फरीदपुर गांव के 55 वर्षीय भेर सिंह बिश्नोई कहते हैं कि वह महापंचायत में इसलिए आए क्योंकि उनसे साथी किसानों की दुर्दशा देखी नहीं गई. "हमने बैंक और कोऑपरेटिव सोसाइटी से गन्ना उगाने के लिए कर्ज़ लिया था. साल भर के बाद हमने फसल मिलों को बेच दी. वो हमें 10 रुपए आज देते हैं, 10 रुपए अगले महीने," बिश्नोई खीझते हुए बताते हैं.
"किसान पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं. मैंने 2017 में भाजपा का समर्थन किया था. लेकिन अब मैं पुनर्विचार कर रहा हूं क्योंकि इन्होंने हमें बर्बादी की कगार पर ला खड़ा किया है और देश की अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है," बिश्नोई ने कहा.
अमरोहा में भाजपा के प्रति आक्रोश जाट किसानों को रालोद की तरफ धकेल रहा है. किसान चौधरी चरण सिंह और प्रधानमंत्री रहते हुए किसानों के प्रति उनके कामों को याद कर रहे हैं.
"2017 में यहां यह सोच थी कि 'दिल्ली में मोदी, यूपी में योगी'," सिहारी गांव के 55 वर्षीय छोटे सिंह ने कहा. "लेकिन अब हम भुगत रहे हैं. मैंने हमेशा रालोद को वोट दिया है, लेकिन 2017 में पहली बार भाजपा को वोट दिया."
छोटे के पड़ोसी 80 वर्षीय ओम पाल सिंह, याद करते हैं कि जब चौधरी चरण सिंह राजनीति में सक्रिय थे तब जनसंघ भाजपा के राजनैतिक पूर्वज का चुनाव चिन्ह 'लैंप' था. "चौधरी जी कहते थे कि जिस दिन लैंप वाले सत्ता में आ जाएंगे, किसान ख़त्म हो जाएगा. वह बिल्कुल सही कहते थे," ओम पाल ने कहा.
अमरोहा महापंचायत में किसानों का मूड भाजपा के विरुद्ध तो था, लेकिन केवल कृषि कानूनों के कारण नहीं. "मैं यहां समझने आया हूं कि यह आंदोलन है क्या," करहला गांव से आए 62 साल के गन्ना किसान दुर्जन सिंह ने कहा. "लोग यहां नेताओं को सुनने आए हैं. मैं एक सामान्य गांव वाला हूं जो अपना विचार बनाने का प्रयास कर रहा हूं."
लेकिन दुर्जन सिंह पूरी तरह निष्पक्ष भी नहीं हैं. योगी सरकार में गन्ने की स्थिर कीमतें, समर्थन मूल्य से कम पर गेंहूं की खरीद और चीनी मिलों द्वारा देरी से भुगतान किए जाने के कारण वह आशंकित हैं कि केंद्र के कृषि कानून 'किसानों का घाटा कर सकते हैं'.
थोड़ी सी बातचीत में ही यहां किसान खुलकर भाजपा के खिलाफ बोलने लगते हैं. उनका गुस्सा अक्सर अपशब्दों का रूप ले लेता है.
31 साल के राजवीर सिंह, जो अमरोहा के जाजरु गांव से हैं, कहते हैं कि युवाओं ने केंद्र और राज्य में भाजपा को वोट देकर गलती कर दी. "एक बार गलती हो गई, दोबारा नहीं करेंगे," राजवीर कहते हैं.
फरीदपुर गांव के 55 वर्षीय भेर सिंह बिश्नोई कहते हैं कि वह महापंचायत में इसलिए आए क्योंकि उनसे साथी किसानों की दुर्दशा देखी नहीं गई. "हमने बैंक और कोऑपरेटिव सोसाइटी से गन्ना उगाने के लिए कर्ज़ लिया था. साल भर के बाद हमने फसल मिलों को बेच दी. वो हमें 10 रुपए आज देते हैं, 10 रुपए अगले महीने," बिश्नोई खीझते हुए बताते हैं.
"किसान पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं. मैंने 2017 में भाजपा का समर्थन किया था. लेकिन अब मैं पुनर्विचार कर रहा हूं क्योंकि इन्होंने हमें बर्बादी की कगार पर ला खड़ा किया है और देश की अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है," बिश्नोई ने कहा.
अमरोहा में भाजपा के प्रति आक्रोश जाट किसानों को रालोद की तरफ धकेल रहा है. किसान चौधरी चरण सिंह और प्रधानमंत्री रहते हुए किसानों के प्रति उनके कामों को याद कर रहे हैं.
"2017 में यहां यह सोच थी कि 'दिल्ली में मोदी, यूपी में योगी'," सिहारी गांव के 55 वर्षीय छोटे सिंह ने कहा. "लेकिन अब हम भुगत रहे हैं. मैंने हमेशा रालोद को वोट दिया है, लेकिन 2017 में पहली बार भाजपा को वोट दिया."
छोटे के पड़ोसी 80 वर्षीय ओम पाल सिंह, याद करते हैं कि जब चौधरी चरण सिंह राजनीति में सक्रिय थे तब जनसंघ भाजपा के राजनैतिक पूर्वज का चुनाव चिन्ह 'लैंप' था. "चौधरी जी कहते थे कि जिस दिन लैंप वाले सत्ता में आ जाएंगे, किसान ख़त्म हो जाएगा. वह बिल्कुल सही कहते थे," ओम पाल ने कहा.