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एनएल चर्चा 154: उत्तराखंड आपदा, प्रधानमंत्री का लोकसभा में बयान और अन्य

हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ़्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.

     
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एनएल चर्चा के 154वें एपिसोड में उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा, पीएम का संसद में दिया गया भाषण, उनका रोना, ट्वीटर पर अकाउंट बंद करने को लेकर सरकार का नोटिस, न्यूज़ क्लिक समाचार पोर्टल के दफ्तर और उसके संपादकों के घरों पर ईडी का छापा, 26 जनवरी हिंसा के मुख्य आरोपी दीप सिद्धू की गिरफ्तारी और भारत-चीन के बीच सीमा पर बनी सहमति जैसे मुद्दों का जिक्र हुआ.

इस बार चर्चा में दैनिक भास्कर के विशेष संवाददाता राहुल कोटियाल, न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस और सह संपादक शार्दूल कात्यायन शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

अतुल ने चर्चा की शुरुआत न्यूज़लॉन्ड्री के सब्सक्राइबर्स के सवालों और सुजावों को पढ़ कर किया. एक सवाल पत्रकार मनदीप पूनिया के इंटरव्यू को लेकर पूछा गया था. इस सवाल का जवाब देते हुए अतुल कहते है, “इंटरव्यू का एक अलग फ़ॉर्मेट होता है और रिपोर्ट एक अलग. इंटरव्यू में एक व्यक्ति से बातचीत की जाती है, वहीं रिपोर्ट में सभी पक्षों को शामिल करना फॉरमेट की जरूरत होता है. फिर भी आपकी यह बात सही हो सकती हैं कि किसी एक इंटरव्यूवी के प्रति आप की सहानुभूति हो सकती है और किसी अन्य के प्रति तल्ख हो सकते हैं.”

मनदीप के मामले में यह बात अलग हैं क्योंकि जब से यह आंदोलन हो रहा है हरियाणा और पंजाब में तब से वह इस मामले को कवर कर रहा है. जिन दिन सिंघु बार्डर से उसकी गिरफ्तारी हुई उस पूरी रात हमारी टीम और अन्य मीडिया संस्थानों के लोग भी पुलिस के मनदीप की जानकारी मांगते रहे लेकिन कोई जवाब पुलिस ने नहीं दिया.

अतुल कहते हैं, “मनदीप के मामले में जो कोर्ट ने बेल ऑर्डर दिया है उसमें कहा गया है कि पुलिस के पास ऐसा कोई सबूत नहीं है कि जिसके आदार पर मनदीप को न्यायिक हिरासत में रखा जाए. पुलिस हिरासत की बात ही छोड़ दीजिए. तो ऐसे में आप को लगा होगा कि मेरा मनदीप के प्रति एक सॉफ्ट कॉर्नर रहा होगा.”

एक दूसरे सब्सक्राइबर का सवाल था कि 2014 के बाद से मोदी सरकार ने कोई ऐसा काम नहीं किया हैं जिसकी आप लोग तारीफ कर सकें. एक तरफ अर्णब गोस्वामी है, दूसरी तरफ न्यूज़लॉन्ड्री. जहां अर्णब सरकार की तारीफ करते हैं वहीं आप लोग सरकार की बुराई. दोनों में अंतर क्या है.

इस प्रश्न का जवाब देते हुए अतुल कहते हैं, “बतौर पत्रकार हमारा काम यही है. अपने अच्छे या बुरे काम का प्रचार-प्रसार करने के लिए सरकार के पास असीमित संसाधन है. लेकिन मीडिया का काम उसके कामकाज की गड़बड़ियों को सामने लाना ही है. इस समय मीडिया के सामने दोहरी चुनौती है.”

इस प्रश्न पर मेघनाथ एक उदाहरण देते हुए कहते हैं, “उत्तराखंड में आई आपदा के लिए कौन जिम्मेदार हैं, इसका जवाब अभी कोई नहीं दे सकता, लेकिन जब यहां बिजली प्रोजेक्ट्स लगाए जा रहे थे तब सरकार ने कहा कि यह तो बहुत अच्छा है, रोजगार मिलेगा, स्वच्छ बिजली मिलेगी. यह सब सरकार के अच्छे काम हैं जो अखबार के पहले पेज पर विज्ञापन के रूप में दिख जाएगा. लेकिन असली पत्रकार यह जानने की कोशिश करेगा कि इस प्रोजेक्ट से पर्यावरण को कितना नुकसान हो रहा है.”

मेघनाद आगे कहते हैं, “अगर यह नहीं पता चलेगा कि इन प्रोजेक्ट से कितना नुकसान हो रहा हैं तो हर साल इस तरह की आपदा हमें देखने को मिल सकती है. इसलिए पत्रकारिता सरकार की हां में हां मिलने के लिए नहीं होती है, पत्रकारिता का असली काम सरकार के कामों की समीक्षा करना है, सवाल करना है.”

यहां अतुल ने राहुल को चर्चा में शामिल करते हुए पूछते है, यह तो हम जानते हैं कि आपदा के बाद सरकार ने वहां राहत-बचाव का कार्य शुरू कर दिया था और बहुत से लोगों को बचाया भी गया है. सवाल हैं कि क्या इस तरह की आपदा के लिए सरकार की नीतियां जिम्मेदार नहीं है. जिन क्षेत्रों को सुप्रीम कोर्ट संवेदनशील बता चुका है. केदारनाथ की आपदा के बाद गठित सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने कहा था कि उत्तराखंड में बन रहे बड़े पॉवर प्रोजेक्ट की वजह से आपदाओं की तीव्रता और परिमाण बढ़ गया. इसकी वजह से तबाही बढ़ गई. इसके बावजूद सरकारें वहां लगातार बड़े बाधों का निर्माण करवा रही हैं.”

इस प्रश्न का जवाब देते हुए राहुल कहते हैं, “इस मामले को सीधे-सीधे तौर पर ऐसे देख लीजिए कि अगर जिन दो प्रोजेक्ट का काम चमोली में हो रहा था अगर वह नहीं होता तो वहां किसी तरह की जनहानी नहीं होती. इस आपदा में जितने भी लोग मारे गए हैं वह, वे लोग हैं जो नीचे पावर प्रोजेक्ट में काम कर रहे थे.”

राहुल आगे बताते हैं, “ग्लेशियर के नीचे बन रहा यह प्रोजेक्ट अगर नहीं होता तो यह आपदा नहीं आती. क्योंकि फिर पानी सीधे नीचे चला जाता. वहीं अगर आप पहाड़ी के ऊपरी हिस्से पर मौजूद गावों की बात करे तो वहां कोई नुकसान नहीं हुआ है. जब हम प्रकृति पर अतिक्रमण करते हैं तो फिर प्रकृति भी उस अतिक्रमण को तोड़ने के लिए अलग रास्ता निकालती है.”

इस विषय पर शार्दूल कहते हैं, “अगर मैं वहां होता तो मैं ज़रूर वहां जाता. कई बार हम मानव त्रासदी की बात करते हैं तो तब हम बड़ी तस्वीर भूल जाते है. हमें इस पर्वतमाला का इतिहास जानना होगा. ग्लोबल वार्मिंग के कारण अब इस तरह की घटनाएं बढ़ गई है. हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, जितने भी ग्लेशियर हैं वह दोगुनी रफ्तार से पिघल रहे है. यह ग्लेशियर इस पूरे क्षेत्र को जिंदा रखे हुए है. हम विकास के गलत अवधारणा में पड़कर प्राकृति का विनाश करते जा रहे हैं जिससे यह आपदाएं हो रही हैं.”

इस विषय के तमाम और पहलुओं पर भी पैनल ने अपनी राय विस्तार से रखी. इसे पूरा सुनने के लिए हमारा पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.

टाइम कोड

0:52 - हेडलाइन

6:51 - भारत चीन सीमा के सुलझा सीमा विवाद

9:18 - डिस्कार्ड सब्सक्राइबर फीडबैक

18:22 - उत्तराखंड आपदा

52:11 - पीएम मोदी का लोकसभा भाषण

52:34 - ट्वीटर वर्सेस भारत सरकार

1:27:00 - सलाह और सुझाव

पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए.

राहुल कोटियाल

सुनीता कैंथोला की किताब - मुख जात्रा

मेघनाथ

निधि सुरेश की हाथरस घटना पर फॉलोअप रिपोर्ट

वीर दास का नया स्टैंडअप शो

लास्ट ऑफ अस - गेम

शार्दूल कात्यायन

चंडी प्रसाद भट्ट की किताब - प्यूचर ऑफ लार्ज प्रोजेक्ट इन हिमालय

सुनीता कैंथोला की किताब - मुख जात्रा

उत्तराखंड के गढ़वाल जिले की फूलों की घाटी

अनुपम मिश्र की किताब

अतुल चौरसिया

अकेले नहीं आते बाढ़ और आकाल - अनुपम मिश्र का लेख

ह्रदयेश जोशी की ग्राउंड रिपोर्ट्स

अजय सोडानी की किताब इरिणा लोक, राजकमल प्रकाशन

***

प्रोड्यूसर- लिपि वत्स

रिकॉर्डिंग - अनिल कुमार

एडिटिंग - सतीश कुमार

ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह.

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एनएल चर्चा के 154वें एपिसोड में उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा, पीएम का संसद में दिया गया भाषण, उनका रोना, ट्वीटर पर अकाउंट बंद करने को लेकर सरकार का नोटिस, न्यूज़ क्लिक समाचार पोर्टल के दफ्तर और उसके संपादकों के घरों पर ईडी का छापा, 26 जनवरी हिंसा के मुख्य आरोपी दीप सिद्धू की गिरफ्तारी और भारत-चीन के बीच सीमा पर बनी सहमति जैसे मुद्दों का जिक्र हुआ.

इस बार चर्चा में दैनिक भास्कर के विशेष संवाददाता राहुल कोटियाल, न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस और सह संपादक शार्दूल कात्यायन शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

अतुल ने चर्चा की शुरुआत न्यूज़लॉन्ड्री के सब्सक्राइबर्स के सवालों और सुजावों को पढ़ कर किया. एक सवाल पत्रकार मनदीप पूनिया के इंटरव्यू को लेकर पूछा गया था. इस सवाल का जवाब देते हुए अतुल कहते है, “इंटरव्यू का एक अलग फ़ॉर्मेट होता है और रिपोर्ट एक अलग. इंटरव्यू में एक व्यक्ति से बातचीत की जाती है, वहीं रिपोर्ट में सभी पक्षों को शामिल करना फॉरमेट की जरूरत होता है. फिर भी आपकी यह बात सही हो सकती हैं कि किसी एक इंटरव्यूवी के प्रति आप की सहानुभूति हो सकती है और किसी अन्य के प्रति तल्ख हो सकते हैं.”

मनदीप के मामले में यह बात अलग हैं क्योंकि जब से यह आंदोलन हो रहा है हरियाणा और पंजाब में तब से वह इस मामले को कवर कर रहा है. जिन दिन सिंघु बार्डर से उसकी गिरफ्तारी हुई उस पूरी रात हमारी टीम और अन्य मीडिया संस्थानों के लोग भी पुलिस के मनदीप की जानकारी मांगते रहे लेकिन कोई जवाब पुलिस ने नहीं दिया.

अतुल कहते हैं, “मनदीप के मामले में जो कोर्ट ने बेल ऑर्डर दिया है उसमें कहा गया है कि पुलिस के पास ऐसा कोई सबूत नहीं है कि जिसके आदार पर मनदीप को न्यायिक हिरासत में रखा जाए. पुलिस हिरासत की बात ही छोड़ दीजिए. तो ऐसे में आप को लगा होगा कि मेरा मनदीप के प्रति एक सॉफ्ट कॉर्नर रहा होगा.”

एक दूसरे सब्सक्राइबर का सवाल था कि 2014 के बाद से मोदी सरकार ने कोई ऐसा काम नहीं किया हैं जिसकी आप लोग तारीफ कर सकें. एक तरफ अर्णब गोस्वामी है, दूसरी तरफ न्यूज़लॉन्ड्री. जहां अर्णब सरकार की तारीफ करते हैं वहीं आप लोग सरकार की बुराई. दोनों में अंतर क्या है.

इस प्रश्न का जवाब देते हुए अतुल कहते हैं, “बतौर पत्रकार हमारा काम यही है. अपने अच्छे या बुरे काम का प्रचार-प्रसार करने के लिए सरकार के पास असीमित संसाधन है. लेकिन मीडिया का काम उसके कामकाज की गड़बड़ियों को सामने लाना ही है. इस समय मीडिया के सामने दोहरी चुनौती है.”

इस प्रश्न पर मेघनाथ एक उदाहरण देते हुए कहते हैं, “उत्तराखंड में आई आपदा के लिए कौन जिम्मेदार हैं, इसका जवाब अभी कोई नहीं दे सकता, लेकिन जब यहां बिजली प्रोजेक्ट्स लगाए जा रहे थे तब सरकार ने कहा कि यह तो बहुत अच्छा है, रोजगार मिलेगा, स्वच्छ बिजली मिलेगी. यह सब सरकार के अच्छे काम हैं जो अखबार के पहले पेज पर विज्ञापन के रूप में दिख जाएगा. लेकिन असली पत्रकार यह जानने की कोशिश करेगा कि इस प्रोजेक्ट से पर्यावरण को कितना नुकसान हो रहा है.”

मेघनाद आगे कहते हैं, “अगर यह नहीं पता चलेगा कि इन प्रोजेक्ट से कितना नुकसान हो रहा हैं तो हर साल इस तरह की आपदा हमें देखने को मिल सकती है. इसलिए पत्रकारिता सरकार की हां में हां मिलने के लिए नहीं होती है, पत्रकारिता का असली काम सरकार के कामों की समीक्षा करना है, सवाल करना है.”

यहां अतुल ने राहुल को चर्चा में शामिल करते हुए पूछते है, यह तो हम जानते हैं कि आपदा के बाद सरकार ने वहां राहत-बचाव का कार्य शुरू कर दिया था और बहुत से लोगों को बचाया भी गया है. सवाल हैं कि क्या इस तरह की आपदा के लिए सरकार की नीतियां जिम्मेदार नहीं है. जिन क्षेत्रों को सुप्रीम कोर्ट संवेदनशील बता चुका है. केदारनाथ की आपदा के बाद गठित सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने कहा था कि उत्तराखंड में बन रहे बड़े पॉवर प्रोजेक्ट की वजह से आपदाओं की तीव्रता और परिमाण बढ़ गया. इसकी वजह से तबाही बढ़ गई. इसके बावजूद सरकारें वहां लगातार बड़े बाधों का निर्माण करवा रही हैं.”

इस प्रश्न का जवाब देते हुए राहुल कहते हैं, “इस मामले को सीधे-सीधे तौर पर ऐसे देख लीजिए कि अगर जिन दो प्रोजेक्ट का काम चमोली में हो रहा था अगर वह नहीं होता तो वहां किसी तरह की जनहानी नहीं होती. इस आपदा में जितने भी लोग मारे गए हैं वह, वे लोग हैं जो नीचे पावर प्रोजेक्ट में काम कर रहे थे.”

राहुल आगे बताते हैं, “ग्लेशियर के नीचे बन रहा यह प्रोजेक्ट अगर नहीं होता तो यह आपदा नहीं आती. क्योंकि फिर पानी सीधे नीचे चला जाता. वहीं अगर आप पहाड़ी के ऊपरी हिस्से पर मौजूद गावों की बात करे तो वहां कोई नुकसान नहीं हुआ है. जब हम प्रकृति पर अतिक्रमण करते हैं तो फिर प्रकृति भी उस अतिक्रमण को तोड़ने के लिए अलग रास्ता निकालती है.”

इस विषय पर शार्दूल कहते हैं, “अगर मैं वहां होता तो मैं ज़रूर वहां जाता. कई बार हम मानव त्रासदी की बात करते हैं तो तब हम बड़ी तस्वीर भूल जाते है. हमें इस पर्वतमाला का इतिहास जानना होगा. ग्लोबल वार्मिंग के कारण अब इस तरह की घटनाएं बढ़ गई है. हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, जितने भी ग्लेशियर हैं वह दोगुनी रफ्तार से पिघल रहे है. यह ग्लेशियर इस पूरे क्षेत्र को जिंदा रखे हुए है. हम विकास के गलत अवधारणा में पड़कर प्राकृति का विनाश करते जा रहे हैं जिससे यह आपदाएं हो रही हैं.”

इस विषय के तमाम और पहलुओं पर भी पैनल ने अपनी राय विस्तार से रखी. इसे पूरा सुनने के लिए हमारा पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.

टाइम कोड

0:52 - हेडलाइन

6:51 - भारत चीन सीमा के सुलझा सीमा विवाद

9:18 - डिस्कार्ड सब्सक्राइबर फीडबैक

18:22 - उत्तराखंड आपदा

52:11 - पीएम मोदी का लोकसभा भाषण

52:34 - ट्वीटर वर्सेस भारत सरकार

1:27:00 - सलाह और सुझाव

पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए.

राहुल कोटियाल

सुनीता कैंथोला की किताब - मुख जात्रा

मेघनाथ

निधि सुरेश की हाथरस घटना पर फॉलोअप रिपोर्ट

वीर दास का नया स्टैंडअप शो

लास्ट ऑफ अस - गेम

शार्दूल कात्यायन

चंडी प्रसाद भट्ट की किताब - प्यूचर ऑफ लार्ज प्रोजेक्ट इन हिमालय

सुनीता कैंथोला की किताब - मुख जात्रा

उत्तराखंड के गढ़वाल जिले की फूलों की घाटी

अनुपम मिश्र की किताब

अतुल चौरसिया

अकेले नहीं आते बाढ़ और आकाल - अनुपम मिश्र का लेख

ह्रदयेश जोशी की ग्राउंड रिपोर्ट्स

अजय सोडानी की किताब इरिणा लोक, राजकमल प्रकाशन

***

प्रोड्यूसर- लिपि वत्स

रिकॉर्डिंग - अनिल कुमार

एडिटिंग - सतीश कुमार

ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह.

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