पुस्तक समीक्षा: "कॉमनवेल्थ ऑफ़ क्रिकेट", गुजरे हुए समय की याद दिलाने वाली पुस्तक

क्रिकेट पर गुहा की इससे पहली किताब 2004 में आई थी, एक लंबे अंतराल के बाद उन्होंने इस विषय पर यह पुस्तक लिखी है. उनके सभी चाहने वालों को उम्मीद है कि यह क्रिकेट पर उनकी आखिरी किताब नहीं है.

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इस किताब में गुहा अपने पसंदीदा पाकिस्तानी क्रिकेटरों के विषय में विस्तार से लिखते हैं. जावेद मियांदाद पर इसमें एक लंबा लेख है. गुहा एक शानदार संस्मरण का भी उल्लेख करते हैं जिसमें उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के कोपेनहेगन में एक पाकिस्तानी क्रिकेट प्रशंसक के साथ एक सुंदर और लंबी बातचीत की है. मुझे किताब के उस हिस्सों से व्यक्तिगत जुड़ाव जैसा है, जिसमें गुहा कुछ ऐसे क्रिकेट खिलाड़ियों के बारे में बात करते हैं, जो मेरे इस खेल के समझ के विकास होने से पहले ही रिटायर हो चुके थे.

मुझे खुशी हुई जब मैंने कीथ मिलर को समर्पित एक अनुभाग पढ़ा, जो मेरे पसंदीदा क्रिकेटर में से एक हैं. विजय हजारे पर भी एक लेख है जो बेहतरीन तरीके से लिखा गया है आप गुहा के इस कृति को पढ़ते हुए यादों के समन्दर में डूबते हैं और आप उन्हें याद करते हुए बार-बार भावनात्मक होते हैं. गुहा का सचिन तेंदुलकर वाला अध्याय थोड़ा खींचा गया है, इसके बावज़ूद, किताब सुंदर और परिपूर्ण है. इस कथा में बिशन सिंह बेदी और ईएएस प्रसन्ना के स्पिन मंत्रमुग्ध करता है, गुंडप्पा विश्वनाथ या विजय हजारे की आकर्षक बल्लेबाजी के रूप में यह हमें एक जादू की दुनिया में ले जाता है.

रामचंद्र गुहा हमारे समय के अग्रगण्य इतिहासकार, पर्यावरण विषय के शानदार लेखक के साथ एक गंभीर राजनीतिक टिप्पणीकार हैं. पर जब बात क्रिकेट की आती है तो वह अभी भी इस प्रिय खेल के अपने नायकों के साथ एक सेल्फी के लिए उत्साहित रहते है. देहरादून की उनकी यादों के केंद्र में क्रिकेट का खेल, असंख्य प्रकार के पेड़ों से घिरे मैदान और पहाड़ी राम गुहा की समृतियों में अभी भी जीवंत है. शायद यही वह जुड़ाव है, जिसने उन्हें कटुता से मुक्ति दिलाई, जिसका उन्हें बीसीसीआई के अल्पकालिक प्रशाशनिक कायर्भार के समय उन्हें सामना करना पड़ा था.

पुस्तक के अंतिम अध्याय में, जिसमें गुहा दार्शनिक विलियम जेम्स को "वेराइटीज ऑफ क्रिकेटिंग चौविनिज्म" कहकर एक संकेत देते हैं (विलियम जेम्स ने "द वेराइटीज ऑफ रिलीजियस एक्सपीरियंस" नामक एक पुस्तक लिखी, वह कहते हैं, "क्रिकेट की दो मौलिक धुरी हैं- राष्ट्रवाद और पीढ़ी. प्रत्येक क्रिकेट प्रशंसक लगभग बिना किसी अपवाद के पैदा होता है, और अधिकांश क्रिकेट प्रशंसक उसे कभी नहीं विस्मृत करते हैं."

क्रिकेट का सबसे परिष्कृत रूप टेस्ट क्रिकेट है और बाकी वास्तव में बकवास है. टेस्ट क्रिकेट सिंगल माल्ट व्हिस्की है जबकि एकदिवसीय (50-50) क्रिकेट भारतीय-निर्मित विदेशी शराब है, तथा आईपीएल सड़क के नीचे बिकने वाली देशी शराब है. आईपीएल क्रिकेट एक ऐसी ही लत है, इसलिए लोग एडिक्ट की तरह इसे देखते हैं, लेकिन उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता है. यह नशीली दवाओं की ख़राब लत की तरह है. रामचन्द्र गुहा, गंभीरता से यह सब बताते हैं!

क्रिकेट फैन होने के कारण को जानने के लिए, यह एक बेहतरीन किताब है. जब आप पढ़ेंगे तो आपको यह एहसास होगा कि गुहा जब अपने खुद के अनुभवों को हमारे समक्ष रखते हैं तब यह हमरे लिए यह एक आइना दिखाने का काम करते हैं. हम एक ही समय में बार-बार मुग्ध और विस्मित होते हैं. एक प्रशंसक, खिलाड़ी, लेखक, विद्वान,और प्रशासक के रूप में, रामचंद्र गुहा ने क्रिकेट के साथ बेहद भावनात्मक जीवन बिताया है. लेखक राम गुहा "कॉमनवेल्थ ऑफ़ क्रिकेट" के रूप में इस महान खेल क्रिकेट के इतिहास और वर्तमान का समाजशात्रीय विश्लेषण के साथ एक शानदार और दीर्घकालिक महत्व की पुस्तक लिखी है.

क्रिकेट पर गुहा की इससे पहली किताब 2004 में आई थी, एक लंबे अंतराल के बाद उन्होंने इस विषय पर यह पुस्तक लिखी है. मुझे और उनके सभी चाहने वालों को उम्मीद है कि यह क्रिकेट पर उनकी आखिरी किताब नहीं है. गुहा की नई पुस्तक क्रिकेट के खेल का सामाजिक इतिहास लेखन में महत्वपूर्ण योगदान के रूप में याद किया जायेगा.

पुस्तक समीक्षा: कॉमनवेल्थ ऑफ़ क्रिकेट- रामचंद्र गुहा

प्रकाशक: हार्पर कॉलिंस

भाषा: अंग्रेजी

मूल्य: 559 रुपये

(समीक्षक, आशुतोष कुमार ठाकुर बैंगलोर में रहते हैं. पेशे से मैनेजमेंट कंसलटेंट हैं और कलिंगा लिटरेरी फेस्टिवल के सलाहकार हैं)

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मुझे खुशी हुई जब मैंने कीथ मिलर को समर्पित एक अनुभाग पढ़ा, जो मेरे पसंदीदा क्रिकेटर में से एक हैं. विजय हजारे पर भी एक लेख है जो बेहतरीन तरीके से लिखा गया है आप गुहा के इस कृति को पढ़ते हुए यादों के समन्दर में डूबते हैं और आप उन्हें याद करते हुए बार-बार भावनात्मक होते हैं. गुहा का सचिन तेंदुलकर वाला अध्याय थोड़ा खींचा गया है, इसके बावज़ूद, किताब सुंदर और परिपूर्ण है. इस कथा में बिशन सिंह बेदी और ईएएस प्रसन्ना के स्पिन मंत्रमुग्ध करता है, गुंडप्पा विश्वनाथ या विजय हजारे की आकर्षक बल्लेबाजी के रूप में यह हमें एक जादू की दुनिया में ले जाता है.

रामचंद्र गुहा हमारे समय के अग्रगण्य इतिहासकार, पर्यावरण विषय के शानदार लेखक के साथ एक गंभीर राजनीतिक टिप्पणीकार हैं. पर जब बात क्रिकेट की आती है तो वह अभी भी इस प्रिय खेल के अपने नायकों के साथ एक सेल्फी के लिए उत्साहित रहते है. देहरादून की उनकी यादों के केंद्र में क्रिकेट का खेल, असंख्य प्रकार के पेड़ों से घिरे मैदान और पहाड़ी राम गुहा की समृतियों में अभी भी जीवंत है. शायद यही वह जुड़ाव है, जिसने उन्हें कटुता से मुक्ति दिलाई, जिसका उन्हें बीसीसीआई के अल्पकालिक प्रशाशनिक कायर्भार के समय उन्हें सामना करना पड़ा था.

पुस्तक के अंतिम अध्याय में, जिसमें गुहा दार्शनिक विलियम जेम्स को "वेराइटीज ऑफ क्रिकेटिंग चौविनिज्म" कहकर एक संकेत देते हैं (विलियम जेम्स ने "द वेराइटीज ऑफ रिलीजियस एक्सपीरियंस" नामक एक पुस्तक लिखी, वह कहते हैं, "क्रिकेट की दो मौलिक धुरी हैं- राष्ट्रवाद और पीढ़ी. प्रत्येक क्रिकेट प्रशंसक लगभग बिना किसी अपवाद के पैदा होता है, और अधिकांश क्रिकेट प्रशंसक उसे कभी नहीं विस्मृत करते हैं."

क्रिकेट का सबसे परिष्कृत रूप टेस्ट क्रिकेट है और बाकी वास्तव में बकवास है. टेस्ट क्रिकेट सिंगल माल्ट व्हिस्की है जबकि एकदिवसीय (50-50) क्रिकेट भारतीय-निर्मित विदेशी शराब है, तथा आईपीएल सड़क के नीचे बिकने वाली देशी शराब है. आईपीएल क्रिकेट एक ऐसी ही लत है, इसलिए लोग एडिक्ट की तरह इसे देखते हैं, लेकिन उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता है. यह नशीली दवाओं की ख़राब लत की तरह है. रामचन्द्र गुहा, गंभीरता से यह सब बताते हैं!

क्रिकेट फैन होने के कारण को जानने के लिए, यह एक बेहतरीन किताब है. जब आप पढ़ेंगे तो आपको यह एहसास होगा कि गुहा जब अपने खुद के अनुभवों को हमारे समक्ष रखते हैं तब यह हमरे लिए यह एक आइना दिखाने का काम करते हैं. हम एक ही समय में बार-बार मुग्ध और विस्मित होते हैं. एक प्रशंसक, खिलाड़ी, लेखक, विद्वान,और प्रशासक के रूप में, रामचंद्र गुहा ने क्रिकेट के साथ बेहद भावनात्मक जीवन बिताया है. लेखक राम गुहा "कॉमनवेल्थ ऑफ़ क्रिकेट" के रूप में इस महान खेल क्रिकेट के इतिहास और वर्तमान का समाजशात्रीय विश्लेषण के साथ एक शानदार और दीर्घकालिक महत्व की पुस्तक लिखी है.

क्रिकेट पर गुहा की इससे पहली किताब 2004 में आई थी, एक लंबे अंतराल के बाद उन्होंने इस विषय पर यह पुस्तक लिखी है. मुझे और उनके सभी चाहने वालों को उम्मीद है कि यह क्रिकेट पर उनकी आखिरी किताब नहीं है. गुहा की नई पुस्तक क्रिकेट के खेल का सामाजिक इतिहास लेखन में महत्वपूर्ण योगदान के रूप में याद किया जायेगा.

पुस्तक समीक्षा: कॉमनवेल्थ ऑफ़ क्रिकेट- रामचंद्र गुहा

प्रकाशक: हार्पर कॉलिंस

भाषा: अंग्रेजी

मूल्य: 559 रुपये

(समीक्षक, आशुतोष कुमार ठाकुर बैंगलोर में रहते हैं. पेशे से मैनेजमेंट कंसलटेंट हैं और कलिंगा लिटरेरी फेस्टिवल के सलाहकार हैं)

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