न्यूज़लॉन्ड्री की टीम ने घटना के एक साल बाद इंदौर पहुंचकर मौजूदा स्थिति का जायजा लिया.
हमें इस कॉलोनी में बहुत से ऐसे लोग मिले जिन्होंने बातचीत करने से मना कर दिया. कुछ ने बात की तो नाम नहीं बताया और कुछ ने फोटो लेने से भी मना कर दिया. जेबुन्निसा की बहू ने भी फोटो और नाम लिखवाने से मना करते हुए कहा, ”सास का नाम तो आप ने ले लिया, मेरा नाम और फोटो मत लो.”
चौक से जब गली की तरफ जा रहे थे तभी कुछ युवक वहां खड़े थे. वहां मौजूद 32 साल के असद खान हमें घटना के पीछे की कहानी बताने की बात करते हुए कहते हैं, “जिन लोगों को पुलिस गिरफ्तार कर के ले गई थी उनमें मैं भी था. गली के पीछे के कुछ लोग थे जिन्होंने पथराव किया लेकिन पुलिस ने आगे के घर के पास जो लोग मौजूद थे उन्हें गिरफ्तार कर लिया.”
असद कहते है, “दादी (जेबुन्निसा) की पोती का हाथ जल गया था. जिसको दिखाने के लिए वह डॉ इज़हार मोहम्मद मुंशी जो की खजराना में रहते हैं उनके पास गई थीं. जब डॉ. मुंशी कोरोना पॉजिटिव आए तो स्वास्थ्य कर्मियों ने उनके संपर्क में आए सभी लोगों को क्वारंटाइन कर दिया. जिनमें दादी भी शामिल थीं. सोशल मीडिया पर अफवाह के कारण लोगों को लगा की दादी को पुलिस जबरन ले जा रही है. क्योंकि लोग उन्हें मानते (इज्जत करते) हैं इसलिए वह घटना हुई थी.”
टाट पट्टी इलाके में बहुत से ऐसे लोग मिले जो कोरोना को लेकर लापरवाही बरत रहे थे. भीड़ में मौजूद युवकों का कहना था, “जांच के नाम पर लोगों को भर के ले जा रहे थे और वहां जाकर पटक दे रहे थे. ऐसी कौन सी जांच होती है? यहां तो पहले भी कोरोना नहीं था और अभी भी नहीं है, ये सब हव्वा बना रहे हैं.” वहां मौजूद एक अन्य युवक ने कहा, “इंदौर में रोज 500 मरीज मिल रहे हैं लेकिन इस इलाके में एक भी कोरोना का मरीज नहीं है.” मास्क का उपयोग करने के सवाल पर असद और वहां मौजूद अन्य युवक जेब से मास्क निकालकर दिखाने लगते हैं, उनका कहना है कि जब बाहर जाते हैं तो मास्क लगा लेते हैं, ऐसे गली में नहीं लगाते.
बातचीत के दौरान ही 65 साल के सलाउद्दीन भी आ जाते है. बिना मास्क के गली में घूम रहे सलाउद्दीन अचानक बातचीत में हिस्सा लेते हुए कहते है, “कोई कोरोना नहीं है, सब ठीक है. जितना आप नहीं चलोगे उससे ज्यादा हम चल लेंगे. हम असली माल खाते हैं आप लोग नकली खाते हो, हमें कुछ नहीं होगा. हमारे यहां से 81 लोग ले गए लेकिन उनमें से किसी की मौत नहीं हुई.” तभी पीछे से एक व्यक्ति ने कहा, “हम मजदूरी करने वाले लोग हैं हमें कोरोना नहीं होता.”
ऐसा नहीं है कि सभी लोग कोरोना के प्रति लापरवाह हैं या वह लोग कोरोना को बीमारी मानते है. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए 45 साल की सबा शेख कहती हैं, “पिछले साल जो हुआ वह गलतफहमी के कारण हुआ था. उस समय व्हाट्सएप पर मैसेज चल रहे थे कि लोगों की अस्पताल में कोई देखभाल नहीं हो रही है, सरकार उनके (मुसलमानों) के साथ गलत काम कर रही है. यह सब पढ़ने और देखने के बाद जब दादी को स्वास्थ्यकर्मी ले जा रहे थे तब लोगों ने उन पर हमला कर दिया. लेकिन उस घटना के बाद से अब कोई घटना इस इलाके में नहीं हुई है. लोग कोरोना को लेकर जागरूक हो गए हैं.”
वह कहती हैं, “एक साल में यहां काफी बदलाव आ गया है. अब लोग जांच भी करवा रहे हैं और अन्य लोगों को भी जागरूक कर रहे हैं. सरकार ने बोल दिया है कि 45 साल के उम्र वाले लोग वैक्सीन लगवा सकते हैं तो मैं भी अब वैक्सीन लगवाने जाउंगी.”
कॉलोनी में हम लोगों से बात कर रहे थे तभी हमारी मुलाकात 31 साल के मोहम्मद मोहसिन से होती है. उनकी नाराजगी मीडिया और सोशल मीडिया पर गलत खबर फैलाए जाने को लेकर थी. वह कहते है, “मीडिया ने जिस तरह से हमारे इलाके की खबर को दिखाया उससे लोगों को हम (मुसलमानों) पर टारगेट करने का मौका मिल गया.” वह आरोप लगाते हुए कहते है, “वीडियो में दिख रहा है कि 100-200 लोगों की भीड़ अगर मार रही है तो उन्हें चोट लगना चाहिए था लेकिन स्वास्थ्य कर्मियों की टीम में से किसी को चोट नहीं लगी.” हालांकि न्यूज़लॉन्ड्री इन आरोपों की पुष्टि नहीं कर पाया.
मोहसिन कहते है, उस घटना के वक्त लोग कई तरह के मानसिक दबाव में थे. मानसिक दबाव से मोहसिन का मतलब था कि, उस वक्त लॉकडाउन लगा था और लोगों को खाने की चिंता थी. तभी सोशल मीडिया पर कोरोना को लेकर अफवाह भी उड़ रही थी. यहां मजदूरी करने वाले लोग हैं जो सुबह कमाते हैं और शाम को खाते हैं. हमें सिर्फ टारगेट करने के उद्देश्य से यहां काम हो रहा है.
गली के दूसरे हिस्से पर पंचर की दुकान पर बैठे 67 साल के सेना से रिटायर रमेश चंद कल्याण कहते हैं, “यहां कोई हिंदू मुस्लिम नहीं है. हम सभी लोग मिलकर त्यौहार मनाते हैं. उस घटना को लेकर एक समुदाय को निशाना बनाया गया जबकि हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है.”
रमेश चंद भी मीडिया के रवैए पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, “मीडिया ने सिर्फ हव्वा बनाया हुआ है. यहां छोटी सी घटना हुई थी लेकिन दुनियाभर में बदनाम कर दिया. लोग हमें गलत निगाहों से देखने लगे. हम कोरोना को लेकर सावधानी बरत रहे हैं लेकिन जैसा टीवी या अखबार में यहां के बारे में बताया गया वैसा यहां कुछ नहीं है.”
इंदौर प्रशासन द्वारा चलाए जा रहे जागरूकता अभियान पर बाखल इलाके में एक बेकरी चलाने वाले शरीफ मंसूरी कहते हैं, “अभी लोगों में काफी जागरूकता आ गई है. हमने लोगों को समझाया है कि शासन-प्रशासन हमारी मदद के लिए है, डरने की जरूरत नहीं है. पिछले साल कुछ असामाजिक तत्वों ने अफवाह फैलाई थी कि इंजेक्शन लगाकर लोगों को मारा जा रहा है, लेकिन हमने लोगों को बताया है कि यह सब झूठ है, जिसके बाद से लोग भरोसा कर रहे हैं.”
मंसूरी कहते हैं, “पिछले साल जो हुआ उसके लिए हमें अफसोस है. समाज में जागरूकता लाने के लिए जब हम काम कर रहे थे तब मैं भी कोरोना पॉजिटिव हो गया था लेकिन होम आइसोलेशन में 24 दिन रहा, उसके बाद ठीक हो गया. हम तो शुक्रगुजार हैं प्रशासन का कि इतना सब होने के बाद भी उन्होंने हमारी मदद की. अमूमन ऐसी घटना होने पर पुलिस-प्रशासन उस इलाके में सख्ती करता है लेकिन हमारी सबने मदद की, जिसके कारण ही अब इस इलाके में एक भी कोरोना का मरीज नहीं है.
बता दे कि इंदौर शहर में मेडिकल टीम हर इलाके में जाकर लोगों को वैक्सीन के बारे में जागरूक कर रही है. यह टीम वोटर लिस्ट ले जाकर लोगों को बता रही है कि आप की उम्र 45 साल हो गई है, आप 1 अप्रैल से स्थानीय अस्पताल में जाकर वैक्सीन लगवा सकते हैं. इलाके के तहसीलदार चरणजीत सिंह हुड्डा कहते हैं, वैक्सीन के लिए सर्वे पूरा हो चुका है. 150 सीनियर सिटीजन को चिह्नित किया है जिन्हें वैक्सीन लगाया जाएगा. इनमें से 28 लोगों को वैक्सीन लगा दिया गया है.