दिल्ली में साल 2023-24 में 118 पत्र-पत्रिकाओं को 40 करोड़ 65 लाख रुपये से ज्यादा के विज्ञापन दिए गए. इसमें से 18 करोड़ 75 लाख रुपये मात्र दो अखबारों- हिंदुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया को मिले.
सरकार ने प्रिंट मीडिया यानी आपके पास आने वाले रोज़ाना अखबारों को मिलने वाले विज्ञापनों की दर में 26 फीसदी का इजाफा कर दिया है. ये तो आप अब तक जान ही चुके हैं. साथ में आप यह भी जान चुके होंगे कि इसके जवाब में न्यूज़लॉन्ड्री ने अपने सब्सक्रिप्शन की कीमतें 26 फीसदी घटा दी हैं. इस ऑफर पर हम बात करेंगे, लेकिन पहले आप उस खर्च को जान लीजिए जो यह सरकार विज्ञापन के रूप में अखबारों पर खर्च कर रही है.
मेरे साथी बसंत के इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि अखबारों को सरकारी विज्ञापन किस आधार पर मिलते हैं, कौन इसे जारी करता है और इनका संभावित असर मीडिया, उसकी खबरों, जनहित और लोकतंत्र की सेहत पर किस तरह से पड़ता है. आपकी सरकार आपके टैक्स के पैसे का कितना हिस्सा सालभर में सिर्फ प्रचार प्रसार पर खर्च करती है. और साथ में यह भी कि इस बढ़ोतरी के बाद सरकारी विज्ञापन के खर्च में कितना अनुमानित इजाफा हो सकता है.
तकाजा तो ये है कि आपको जितनी संभव हो उतनी लेटेस्ट जानकारी दी जाए लेकिन जब हमने खंगालना शुरू किया तो पाया कि साल 2024 के बाद के खर्च का आंकड़ा सरकार ने सार्वजनिक ही नहीं किया है. तो हमने तय किया कि क्यों न जो डाटा सार्वजनिक है उसी को आधार मान कर देखें कि केंद्र की सरकार सिर्फ दिल्ली में ही विज्ञापन पर कितना खर्च कर रही है. ये काम पहले डीएवीपी देखता था. हालांकि, आज की तारीख में डीएवीपी का विलय हो चुका है. अब यह काम सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की एक इकाई केंद्रीय संचार ब्यूरो यानी (सीबीसी) करती है. सीबीसी की स्थापना 8 दिसंबर 2017 को तीन विभागों- निदेशालय विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार (DAVP), निदेशालय क्षेत्रीय प्रचार (DFP) और गीत एवं नाटक प्रभाग (S&DD) का विलय करके की गई. इसके देशभर में 23 क्षेत्रीय कार्यालय और 148 फील्ड कार्यालय हैं.
वापस डीएवीपी पर आते हैं. डीएवीपी की वेबसाइट अभी कार्यरत है. और वहां हमें वित्त वर्ष 2023- 24 का पूरा डाटा मिला. इस भंडार से हमने दिल्ली का डाटा अलग कर लिया.
दिल्ली में साल 2023-24 (जो कि अंतिम उपलब्ध आंकड़ा है) में कुल 118 पत्र-पत्रिकाओं को 40 करोड़ 65 लाख 12 हजार 676 (40,65,12,676) रुपए का भुगतान किया गया. इसके बदले अखबारों में 33 लाख 22 हजार 784.50 वर्ग मीटर स्पेस सिर्फ सरकारी विज्ञापनों को मिला. और विज्ञापन कितने छपे? पूरे 9,248. साल के 365 दिनों को लें तो हर रोज औसतन 25 विज्ञापन इन अखबारों में सिर्फ केंद्र सरकार की तरफ से छपे. और हरेक विज्ञापन सरकार को (यानी हमारे आपके कंधे पर बोझ) करीब 44 हजार (43,956.82) रुपये पड़ा.
ध्यान रहे कि हम सिर्फ केंद्र सरकार के विज्ञापनों की बात कर रहे हैं और हम सिर्फ अखबारों के दिल्ली संस्करण की बात कर रहे हैं. केंद्र सरकार पूरे देश में इसी तरह विज्ञापन देती है, साथ में राज्यों की सरकारें भी इसी दर पर पूरे देश में विज्ञापन देती हैं. आगे देखते जाइए.
डीएवीपी से विज्ञापन पाने वाले शीर्ष 20 अखबार
एक सवाल उठता है कि इस चालीस करोड़ रुपए का कितना हिस्सा किन अखबारों को मिला. पहले तो सभी अखबारों का अगर एक औसत निकालें तो हर अखबार को 34 लाख 45 हजार कुछ रुपये मिले. लेकिन औसत में और असल बहुत अंतर है. जैसे कि अगर शीर्ष के 10 अख़बार को ही लें तो यहां हिंदुस्तान टाइम्स सबसे ऊपर रहा. उसे 10 करोड़ 13 लाख से ज्यादा का विज्ञापन सिर्फ एक साल में मिला.
इसके बाद द टाइम्स ऑफ़ इंडिया को 8 करोड़ 62 लाख से ज्यादा का विज्ञापन मिला. तीसरे स्थान पर हिंदी का अखबार दैनिक जागरण है. इसे 4 करोड़ 82 लाख के करीब विज्ञापन मिला. नवभारत टाइम्स को करीब 3 करोड़ 85 लाख और पंजाब केसरी को लगभग 3 करोड़ 12 लाख का विज्ञापन मिला.
हिंदी के अखबार दैनिक हिंदुस्तान को 2 करोड़ 35 लाख, द इंडियन एक्सप्रेस को 1 करोड़ 14 लाख, अमर उजाला को लगभग एक करोड़ 9 लाख और नवोदय टाइम्स को 65 लाख से ज्यादा के विज्ञापन दिल्ली संस्करण के लिए साल भर में मिले.
अंग्रेज़ी अखबारों पर सर्वाधिक व्यय
इस तरह देखें तो सर्वाधिक विज्ञापन पाने वाले पहले 10 अखबारों में 6 अखबार हिंदी के हैं. इन 6 अखबारों को कुल विज्ञापन 15 करोड़ 90 लाख के आस पास आता है. जबकि अंग्रेजी के मात्र दो अखबारों (हिंदुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया) को मिले विज्ञापन बजट की रकम जोड़ लें तो वो 18 करोड़ 75 लाख से ज्यादा है. और कुल खर्च का करीब 46 फीसदी हिस्सा बनता है.
इस तरह आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली संस्करणों में विज्ञापन के लिए सरकार हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी के अखबारों को तवज्जो देती है. वैसे अंग्रेजी अखबारों को सिर्फ पैसा ही नहीं बल्कि विज्ञापन भी ज्यादा मिले हैं. इन्हीं आंकड़ों से पता चलता है कि हिंदुस्तान टाइम्स को सालभर में सबसे ज्यादा 1,386 विज्ञापन मिले तो टाइम्स ऑफ इंडिया को 1,299 जबकि दैनिक जागरण को इसी दौरान में 932 विज्ञापन मिले और नवभारत टाइम्स को 814.
विज्ञापनों की संख्या के साथ-साथ अंग्रेजी और हिंदी के अखबारों के विज्ञापनों की दरें भी अलग-अलग हैं. जैसे कि वेबसाइट पर मौजूद जानकारी बताती है कि हिंदुस्तान टाइम्स को 309.09 रुपए प्रति वर्ग सेंटीमीटर की दर पर विज्ञापन मिलता है जबकि दैनिक जागरण को 162.51 रुपए प्रति वर्ग सेंटीमीटर की दर से. टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए यही रेट 263.13 रुपए है.
सीबीसी की वेबसाइट के मुताबिक हिंदुस्तान टाइम्स के दिल्ली संस्करण को पूरे देश में सबसे ज्यादा कीमत मिल रही है. उसके बाद आनंद बाजार पत्रिका का कोलकाता संस्करण है, जिसे 278.90 रुपये प्रति वर्ग सेंटीमीटर की दर से भुगतान होता है. सबसे कम दर 8.74 रुपये की है, जो बिजनेस स्टैंडर्ड के गुजरात संस्करण समेत कई छोटे अखबारों के नाम दर्ज है.
इस तरह सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध डाटा से पता चलता है कि सरकारी की विज्ञापन नीति में अखबारों की भाषा रीच और दरों के आधार पर कई तरह के अंतर मौजूद है.
‘एम्प्लॉयमेंट न्यूज़’ की विशेष स्थिति
सरकारी भर्ती आधारित साप्ताहिक पत्र एम्प्लॉयमेंट न्यूज़ को 2.36 करोड़ के विज्ञापन मिले हैं. सालभर में इसे 1,347 विज्ञापनों के बदले ये भुगतान किया गया है.
26 फीसदी की बढ़ोतरी के बाद कितना खर्च और जुडे़गा?
अगर हम 2023-24 के खर्च को आधार मान कर 26 फीसदी की बढ़ोतरी के बाद के बजट का आकलन करें तो अब से अखबारों को 10 करोड़ 56 लाख 93 हजार 295 रुपये का अतिरिक्त विज्ञापन मिलने वाला है. यानि सिर्फ प्रिंट मीडिया का दिल्ली प्रदेश का खर्च 50 करोड़ के पार होगा. और हमारे इस भरोसे की वजह है. इससे बीते साल का डाटा. जब साल 2022-23 में 159 पत्र-पत्रिकाओं को मिलाकर 31 करोड़ से ज्यादा खर्च हुआ था, और उससे पिछले साल यानि 2021-22 में 474 पत्र-पत्रिकाओं पर 23 करोड़ 21 लाख से ज्यादा खर्च हुए थे. यानि साल दर साल ज्यों ज्यों लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे थे खर्च बढ़ रहा था और विज्ञापन पाने वालों की संख्या घट रही थी. 2023-24 में ये खर्च 23 से बढ़कर 40 करोड़ तक पहुंच गया था.
इसके बाद साल 2024 के लोकसभा चुनाव हुए और नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. उस साल कितना खर्च हुआ और खर्च में क्या बढ़ोतरी हुई. इसकी जानकारी अभी तक सार्वजनिक नहीं है. इसकी वजह तो सरकार जाने लेकिन लोकतंत्र में ये जरूरी है कि आपके चुकाए टैक्स के खर्च का हिसाब सरकार जरूर दे.
अगर पूरे भारत में सिर्फ डीएवीपी के जरिए प्रिंट मीडिया पर हुए खर्च की बात करें तो साल 2023-24 में 2 अरब 59 करोड़ 33 लाख 77 हजार 869 रुपये (2,59,33,77,869) खर्च हुए हैं. जो साल 2021-22 में खर्च हुए 1 अरब 22 करोड़ 31 लाख से लगभग दोगुना है.
अब इसे 26 फीसदी का एक्स्ट्रा डोज दिया जा रहा है ताकि यह चलना भूल कर रेंगने लगे. सैंकड़ों अखबार और पत्रिकाओं पर हुआ अरबों का खर्च आपको ये बताने के लिए काफी होना चाहिए कि मीडिया किस तरह सरकारी बैसाखियों पर टिका हुआ है. और साथ में ये सवाल भी आपके मन में उठना चाहिए कि जो मीडिया सरकार के ऊपर निर्भर होगा वह जनहित का मकसद कैसे पूरा कर पाएगा. वह तो सरकार की जी हुजूरी ही करेगा. इस सवाल का जवाब है न्यूज़लॉन्ड्री. अरबों रुपए के सरकारी विज्ञापन का जवाब है न्यूज़लॉन्ड्री का चंद रुपयों का सब्सक्रिप्शन. सब्सक्राइबर्स यहां बूंद-बूंद से सागर भरने का काम करते हैं और बदले में उस सागर से निकलता है पब्लिक इंटरेस्ट वाला जर्नलिज्म. यही न्यूज़लॉन्ड्री का लक्ष्य है.
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