दक्षिण कन्नड़: दक्षिण भारत में हिंदुत्व की प्रयोगशाला

एनएल सेना पार्ट 4. कर्नाटक के दक्षिण सिरे पर स्थित इस ज़िले से होकर संघ-भाजपा की राजनीति केरल में प्रवेश करती है. इस जिले के भाजपा नेता सूबे की राजनीति में गहरी दखल रखते हैं.

WrittenBy:अमित भारद्वाज
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अरब सागर और पश्चिमी घाट की पहाड़ियों के बीच स्थित तटीय शहर मंगलुरू जीवन बिताने के लिए एक आदर्श स्थान हो सकता था. लेकिन जिस शहर को सबसे ज्यादा विविधताओं वाले गैर-मेट्रो शहर के तौर पर जाना जाता था वह 1990 के बाद धीरे-धीरे सांप्रदायिक रंग में ढलता गया है.

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लोग एंबुलेंस के लिए रास्ता छोड़ देते हैं लेकिन बात धर्म की हो तो एक दूसरे की जान लेने को भी आमादा रहते हैं. यहां आपको हैरानी नहीं होगी अगर छोटे-मोटे विवाद भी सांप्रदायिक रंग अख्तियार कर लें.

जिला अपराध जांच शाखा के अनुसार, 2007 से 2016 के बीच दक्षिण कन्नड़ ज़िले में करीब 239 सांप्रदायिक टकराव के मामले दर्ज हुए हैं. मंगलुरु, दक्षिण कन्नड़ का मुख्यालय है. इस साल जुलाई, 2017 तक, 40 सांप्रदायिक टकराव के मामले पुलिस द्वारा दर्ज किए गए हैं.

इस ज़िले की संवेदनशील प्रकृति के कारण इस एनएल सेना प्रोजेक्ट में मंगलुरू की चर्चा जरूरी थी. यह क्रॉस बॉर्डर हिंसा जैसा है. हिंसा की प्रवृति और उसकी प्रयोगशाला पास के कासरगोड़ में स्थित है. कासरगोड़ केरल का उत्तरी जिला है जिसकी सीमाएं मंगलुरू से जुड़ी हैं.

यहां लड़ाई हिंदू और मुसलमान संगठनों के बीच होती है. राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और उससे जुड़े संगठनों का झगड़ा कट्टर इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और उसके सहयोगी संगठनों से है.

कल्लड़का के इलाके में आपका स्वागत है

संघ नेता प्रभाकर भात कल्लड़का दक्षिण कन्नड़ में एक रौबदार शख्सियत हैं. बजरंग दल और हिंदू जागरण वेदिके को उनसे बल मिलता है.

केरल स्थित इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और उसका राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया और कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया के पास कल्लड़का का मुकाबला करने के लिए कोई लोकप्रिय चेहरा नहीं है लेकिन स्थानीय मुसलमानों के बीच उनकी लोकप्रियता और उनका काडर उन्हें मजबूत बनाता है.

बक्राबेल की डायरी

“दशकों से चली आ रही हिंसा ने मुसलमानों को दीवार के एक किनारे ढ़केल दिया है. कर्नाटक फोरम ऑफ डिग्निटी जैसे संगठनों के उभार के बाद मुसलमानों ने बदले की कारवाई शुरु कर दी है,” कर्नाटक कम्युनल हारमनी फोरम के जिला अध्यक्ष सुरेश भट बक्राबेल ने न्यूज़लॉन्ड्री को यह बात बताई.

बक्राबेल वर्तमान स्थिति के लिए दोनों तरफ के कट्टरपंथी तत्वों को दोषी मानते हैं. 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने की पृष्ठभूमि में पहली बार दक्षिण कन्नड़ में 1990 में हिंदू-मुस्लिम दंगे शुरू हुए.

“1990 में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के बाद दक्षिण कन्नड़ इलाके में स्थितियां तेजी से बदलीं,” बक्राबेल ने न्यूजलॉन्ड्री से कहा. “हिंसात्मक गतिविधियों में इज़ाफा हुआ है. बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद स्थितियां बदतर हुई हैं. तभी से सांप्रदायिक हिंसा और दंगें सामान्य हो गए हैं,” उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाई. वर्षों से बक्राबेल मंगलौर में मीडिया और पुलिस रपटों के जरिये सांप्रदायिक घटनाओं पर पैनी निगाह बनाए हुए हैं.

उनके द्वारा एकत्रित आंकड़े चिंतनीय हैं. बक्राबेल के पास हिंदू और मुस्लिम सुरक्षा समितियों के आंकड़े भी हैं. वो दावा करते हैं कि 10 सितंबर, 2017 तक 86 सांप्रदायिक घटनायें दर्ज हुई हैं. “संभावना यह भी है कि बहुत से मामले पुलिस ने दर्ज ही नहीं किये होंगे,” उन्होंने बताया.

आंकड़ों की गहराई से पड़ताल करने पर पता चलता है कि 2007 से 2013 के बीच दंगों की प्रकृति और इसके चलन में काफी बदलाव आया है. 2007 में, विधानसभा चुनावों के एक साल पहले, सांप्रदायिक घटनाओं में बढोत्तरी हुई. बेहद गहरे धार्मिक ध्रुवीकरण वाले इस जिले में भारतीय जनता पार्टी ने आठ में से चार सीटें जीती हैं.

2008 में कर्नाटक में येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार सत्ता में आई. लोकसभा चुनाव साल भर बाद थे. अगले तीन साल में सांप्रदायिक घटनायें घटीं. 2013 विधानसभा चुनावों में भाजपा सिर्फ एक सीट पर जीत सकी.

भाजपा इस इलाके में अपनी राजनीति के लिए संघ और दूसरे दक्षिणपंथी समूहों पर पूरी तरह निर्भर है. ये संगठन के स्तर पर बेहद मजबूत हैं. भाजपा ने अभी से 2018 विधानसभा चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है और जाहिर तौर पर इन समूहों से उसे मदद मिलेगी.

इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि मंगलुरू बेहद संवेदनशील स्थिति में है. भाजपा ने केंद्र सरकार को पहले ही लिख दिया है कि वर्तमान कांग्रेस सरकार में दक्षिण कन्नड़ में उनके कार्यकर्ता सुरक्षित नहीं हैं. चार जुलाई, 2017 को जब संघ कार्यकर्ता शरथ मादीवाला पर उनकी कपड़े धुलने वाली दुकान में हमला हुआ तो दक्षिण कन्नड़ को पूरी तरह से ठप्प कर दिया गया था. सैकड़ों संघ कार्यकर्ताओं ने सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया. सात जुलाई को मादीवाला को मृत घोषित कर दिया गया. संघ और दूसरे दक्षिणपंथी संगठनों ने कल्लड़का के नेतृत्व में जुलूस निकाला.

उन्होंने मेरे बेटे को क्यों मारा?

लगभग 60 की उम्र वाला एक व्यक्ति अभी भी मादिवाला के मौत के सदमें से उबर नहीं सका है. 68 साल के थनीयप्पा एम ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “जहां कुछ लोगों ने मेरे बेटे की हत्या का राजनीतिक फायदा उठा लिया, कुछ ने सांप्रदायिक फायदा उठाया.” वो अभी तक समझ नहीं पा रहे हैं कि हत्यारों ने शरथ को क्यों चुना.

30 साल के मादिवाला ने मृत्यु से करीब पांच महीने पहले कप़ा धुलाई की दुकान का मालिकाना हक लिया था. हालांकि उनका परिवार पीढ़ियों से संघ से जुड़ा रहा है, यहां तक कि सजिपा मुन्नुर गांव के मुसलमान भी उनका सम्मान करते हैं. वहीं संघ दावा करता है कि मादिवाला की हत्या के पीछे कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों का हाथ है. दूसरी तरफ उसके पिता सरकार को दोषी बताते हैं.

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मारे गए शरथ मादिवाला के पिता

“सरकार दोषी है. मैं किसी पर भी दोष नहीं मढ़ सकता, मैं यह बात नहीं कह सकता कि मुसलमानों ने उसकी हत्या की है,” थनियप्पा ने कहा.

मादिवाला की हत्या से महज 15 दिन पहले, एसडीपीआई नेता अशरफ कलई की हत्या हुई थी. दक्षिण कन्नड़ के एसपी सीएच सुधीर कुमार रेड्डी ने इस पत्रकार को भरोसे के साथ बताया कि दोनों हत्याएं राजनैतिक मकसद से हुईं.

पुलिस ने 10 लोगों को गिरफ्तार किया. इसमें मादिवाला केस का मुख्य आरोपी, 20 वर्षीय शरीफ भी शामिल था. शरीफ कथित तौर पर पीएफआई का सदस्य है.

मादिवाला की अंतिम यात्रा के दौरान कट्टर मुस्लिम संगठनों ने कथित तौर पर हमला किया था. करीब 5000 संघ समर्थक सड़कों पर थे और “अगर पुलिस न होती तो और भी नुकसान होता,” रेड्डी ने बताया.

प्रेंस कॉन्फ्रेंस से उपजा विवाद

मादिवाला और कलई की हत्या सांप्रदायिक घटनाओं की श्रृंखला का एक हिस्सा थे जो रमजान के पहले दिन से शुरू हुआ था. 26 मई को तीन मुस्लिम युवकों- मोहम्मद अशिर, माशूक़ और जमाल- के ऊपर मिथुन (पुजारी), यथीन और अमिथ नाम के युवाओं ने बंथवाल पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आने वाले मस्जिद के ठीक सामने हमला किया.

इसका परिणाम रहा कि इलाके में धारा 144 लगा दी गई. मिथुन नवंबर 2015 में हरीश पुजारी की हत्या का मुख्य आरोपी था और अब जमानत पर बाहर है. मिथुन, बजरंग दल का कार्यकर्ता है.

बजरंग दल के कर्नाटक अध्यक्ष शरण पंपवेल ने बताया कि लड़ाई निजी थी. 28 मई को संघ के दबंग नेता कल्लड़का ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित किया. यहां उन्होंने कहा कि यथीन जो कि इस हमले में अभियुक्त था, वह दरअसल पीड़ित था और पुलिस द्वारा फंसाया जा रहा था.

यह प्रेस कॉन्फ्रेंस एक महीने बाद और भी महत्वपूर्ण हो गई- जब कलई की हत्या हुई. कलई की हत्या 21 जुलाई को बंथवाल के बेंजनापाडावु में हुई.

इस हत्या का मुख्य आरोपी था- बजरंग दल का नेता भरथ कुमदेल, जो 28 मई की कॉन्फ्रेंस में कल्लड़का के दाईं ओर बैठा था. इससे दक्षिण कन्नड़ के संघ नेतृत्व पर शक गहरा होता है. न्यूज़लॉन्ड्री की लगातार कोशिशों के बावजूद कल्लड़का ने व्यस्तता का हवाला देता हुए मिलने या बात करने से मना कर दिया.

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अशरफ कलई की हत्या के आरोपी भरथ कुमदेल (बायीं तरफ) के साथ आरएसएस नेता प्रभाकर भात कल्लड़का (सूत्रों से प्राप्त तस्वीर)

स्मारकों की खेती

कलई की हत्या के बाद समूचे जिले में धारा 144 लगा दी गई. बाद में एसडीपीआई ने कल्लड़का और पंपवेल के गिरफ्तारी की मांग की.

एक तरफ बंतवाल (कलई का गांव) में संघ मादिवाला के नाम के पोस्टर लगाता है वहीं दूसरी तरफ एसडीपीआई ने कई सार्वजनिक सेवाओं के नाम कलई के नाम पर रख दिया है. वाटर कूलर, बस अड्डा और स्ट्रीट लाईट पर भी कलई का नाम लिखा है.

“कलई मुश्किल घड़ी में अपने लगों के खड़ा रहता था और उसने बहुतों की मदद की है. इसलिए लोगों ने तय किया कि उनका स्मारक बनाया जाए,” उसके दोस्त इम्तियाज़ अशरफ ने बताया. वो पीएफआई का सदस्य भी है.

40 वर्षीय पीएफआई सदस्य, कलई के साथ ही सड़क बनवाने, सजिपा गांव में ब्लड डोनेशन कैंप लगवाने जैसे सामाजिक कार्य करता था. दोनों ऑटो चालक थे.

“इधर एक मर्डर हुआ था राजेश पुजारी का, जो संघ से जुड़ा हुआ था, उसके शक में इसको मारा ऐसा बताते हैं अभी,” अशरफ ने कहा. कलई अपने पीछे अपनी पत्नी को छोड़ गया. मर्डर के दिन कलई पड़ोस के कच्चे सड़क का निर्माण कार्य देख रहा था. अब उस सड़क का नामकरण उसके नाम पर कर दिया गया है.

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अशरफ कलई का घर

धमकी, हमले और अदालती आदेश

कलई के मारे जाने के थोड़े दिनों पहले ही कल्लड़का कस्बे में एक निर्माणाधीन मस्जिद के पास दंगों जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी. स्थानीय लोगों ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि मस्जिद और मंदिर के भीतर से पत्थर फेंके गए. इसी बीच कल्लड़का और कर्नाटक के मंत्री रामनाथ राय का एक टेप सामने आया जिसमें वो कल्लड़का को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस पर दबाव पाते पाए गए. येदियुरप्पा ने कहा कि समूचे राज्य में आग लग जाएगी अगर कल्लड़का को गिरफ्तार किया गया. बाद में कोर्ट ने गिरफ्तारी पर रोक लगा दी.

जिहादी होने के आरोप

हिंदूवादी संगठनों ने मुस्लिम चरमपंथी संगठनों को “इस्लामिक जिहादी” का नाम दे दिया. विश्व हिंदू सेना के दक्षिण कन्नड़ अध्यक्ष ने कहा, “चरमपंथी मुस्लिम संगठन पीएफआई और केएफडी को सशक्त कर रहे हैं. उन्होंने हमारे कई कार्यकर्ताओं को मार डाला है.” उन्होंने उदाहरण के तौर पर मादिवाला और प्रशांत पुजारी की हत्या का हवाला दिया.

मंगलुरू की हिंसा के बारे में पूछे जाने पर भाजपा विधायक गणेश कार्निक बताते हैं, “मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा हमला, इस्लामिक आतंकवाद, धर्म परिवर्तन और लव जिहाद भारत और अन्य जगहों की आज की सच्चाई है.”

कार्निक के मुताबिक हिंदू गुटों द्वारा किया गया हमला सिर्फ बचाव और बदले की कार्रवाई है. इस इलाके के मुस्लिम काफी समृद्ध हैं इसका फायदा उठाकर वे हिंदुओं पर हमला करते हैं. हम अपना हाथ बांधकर नहीं बैठ सकते.

हिंदू गुटों का बचाव करते हुए कार्णिक कहते हैं, “आरएसएस इस तरह के ज़हर का प्रचार नहीं करता.”

दोनों संघ-भाजपा हिंदुओं की हत्याओं का फायदा उठाते हैं. अक्टूबर 2016 में हिंदू कार्यकर्ता कार्तिक राज की हत्या के बाद भाजपा ने आरोप लगाया कि उसकी हत्या इस्लामी जिहादियों द्वारा की गई. मुख्यमंत्री रहे येदियुरप्पा शोकाकुल परिवार से मिलने भी गए.

जनवरी 2017 में भाजपा सांसद नलिन कुमार कटील ने धमकी दी, अगर राज के हत्यारों को 10 दिनों में नहीं पकड़ा गया तो पूरे शहर को आग लगा देंगे. लेकिन पुलिस को केस सुलझाने में सात महीने लग गए. उसकी अपनी बहन 25 साल की काव्याश्री को तीन अन्य आरोपियों के साथ आरोपी बनाया गया. पुलिस के मुताबिक राज की हत्या का प्लान उसकी बहन ने ही तैयार किया था.

कट्टर इस्लामी संगठन पाएफआई की स्थापना फरवरी 2007 में हुई थी. इसके बाद संघ की तर्ज पर इन्हंने अपनी राजनीतिक शाखा एसडीपीआई का गठन साल 2009 में किया. इस संगठन की गतिविधियों में विस्तार के साथ ही केरल औऱ दक्षिण कर्नाटक में इसे लेकर विवाद बढ़ने शुरू हो गए.

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केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने स्वीकार किया था कि पीएफआई प्रतिबंधित संगठन सिमी का पुनर्जन्म है. द प्रिंट के मुताबिक एनआईए ने इस संगठन के ऊपर प्रतिबंध लगाने के लिए गृहमंत्रालय में एक रिपोर्ट जमा की है. रिपोर्ट के मुताबिक यह संगठन देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए खतरा है.

दूसरी तरफ पीएफआई का नेतृत्व का आरोप है कि संघ और उसके सहयोगी संगठन उनके ऊपर हमले कर रहे हैं. “1992 से 2002 के बीच संघ को कोई चुनौती नहीं थी. यहां तक की कांग्रेस भी उनके खिलाफ कुछ नहीं बोलती थी,” पीएफआई के सचिव अब्दुर्रज्जाक कम्मारा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया.

बहरहाल, कल्लड़का में पूर्वचेतावनी और धारा 144 लागू होने के बावजूद शरथ मादीवाल की हत्या और अंतिम यात्रा में संघ के 5000 लोगों की भीड़ का इकट्ठा होना इस बात का सबत है कि कांग्रेस सरकार सांप्रदायिक ताकतों को रोक पाने या उन पर नकेल कस पाने में नाकाम रही है.

बंटवाल शक्ति का केंद्र है

उडुपि क्षेत्र के साथ दक्षिण कन्नड़ हमेशा सांप्रदायिक तनाव में रहता है. दक्षिण कन्नड़ का बंटवाल तालुका ज़ोर आजमाइश का केंद्र रहा है. संघ नेता कल्लड़का इसी तालुका से जुड़े हैं, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और कर्नाटक के मंत्री राय यहां से विधानसभा में निर्वाचित सदस्य हैं.

यहां के एक स्थानीय पुलिस अधिकारी ने बताया, “यहां तक कि कई पीएफआई नेता भी इस तालुका से संबंधित हैं. इसलिए यह शक्ति प्रदर्शन का केंद्र बन चुका है.”

लव जिहाद और साइनाइड मोहन

मंगलुरू के शहरी इलाके में रियल इस्टेट क्षेत्र की तेजी देखी जा सकती है. जबकि ग्रामीण इलाकों में आर्थिक स्थिति काफी बेहत नज़र आती है. इसके बावजूद जो चीज दक्षिण कन्नड़ को खतरनाक बनाती है वह है यहां की सांप्रदायिक घृणा.

एक उदाहरण से समझिए. यहां एक रैली को देशविरोधी ताकतों का जमावड़ा करार दिया गया, जहां कथित तौर पर पाकिस्तान का झंडा फहराया गया. 2005 में कन्नड़ के प्रमुख अखबार उदयवाणी ने खबर दी कि उडुपि के ग्रामीण इलाके में पाकिस्तान के झंडे फहराए गए. बाद में अखबार ने अपनी गलती मानते हुए सफाईनामा छापा. हालांकि तब तक नुकसान हो चुका था.

लव जिहाद का संकट भी यहां दशक भर पुराना हो चुका है. भाजपा विधायक कार्णिक मुस्लिम समूहों के ऊपर इसी कथित जेहाद की आड़ में हमला बोलते रहते हैं.

2009 में अनीथा की हत्या पुलिस के लिए अनसुलझी गुत्थी बन गई थी. हिंदू संगठनों ने इसे लव जिहाद घोषित कर दिया. अंतत: जांच के बाद पता चला इसके पीछे एक सीरियल किलर का हाथ था.

बक्राबेल से मिले आंकड़े बताते हैं कि हिंदू और मुस्लिम, दोनों पक्ष मोरल पुलिसिंग का काम करते हैं. 2013 से 2016 के बीच मोरल पुलिसिंग के 156 मामले दर्ज हुए. पंपवेल कहते हैं, “हम मां-बाप की शिकायत पर कार्रवाई करते हैं.”

एक सरकारी स्कूल के प्रिंसपल ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर हमें बताया कि हिंदू लड़के और मुस्लिम लड़कियां आमतौर पर आपस में दोस्ती नहीं करते क्योंकि ऐसा होने पर उनके संकट में पड़ने की आशंका रहती है. कॉलेज के टूर पर बच्चे अक्सर आपस में घुलमिल जाते हैं लेकिन ये दोस्ती कभी किसी रिश्ते में नहीं बदल पाती.

अब बुर्के की बारी

अब मंगलुरु में ज्यादा से ज्यादा महिलाएं बुर्के में दिखती हैं. “2002 तक कम ही लड़कियां बुर्के में आती थी. 2005 के आसपास ये चीजें बदलनी शुरू हुई, जब केएफडी सदस्यों का कैंपस में आना शुरू हुआ. वो लड़कियों को बुर्का न पहनने की वजह से डांटते,” प्रिंसपल ने कहा. “अभिभावकों को भी बुलाकर बताया गया कि वे सुनिश्चित करें उनकी बेटियां इस्लामिक संस्कृति का पालन करती हैं.”

पीएफआई के सचिव ने इन बातों को खारिज किया. “यह मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों का काम हो सकता है लेकिन इसमें पीएफआई की कोई भूमिका नहीं है.”

हालांकि मुस्लिम पत्रकारों और केम्मारा जैसी कार्यकर्ताओं ने बताया कि बुर्का संस्कृति दक्षिण कन्नड़ में फैशन की तरह है. “यह खाड़ी देशों का प्रभाव है. यहां के लोग खाड़ी देशों में काम करते हैं. वे वहां महिलाओं को बुर्का में काम करते देखते हैं. जो अब उस क्षेत्र में फैशन स्टेटमेंट भी हो गया है. यही कारण है कि बुर्का संस्कृति यहां भी बढ़ी है,” केम्मारा ने बताया.

चोट का एहसास

कैनरा बैंक और कर्नाटक बैंक का मुख्यालय दक्षिण कन्नड़ में है. जबकि तुलु यहां आमतौर पर बोली जाने वाली भाषा है, विभिन्न समूह अपनी बोलियां बोलते हैं. उदाहरण के लिए मुसलमान बिएरी बोलते हैं. कन्नड़ किताबों तक सीमित है. हिंदुओं और मुसलमानों की पिछड़ी जातियां मिलकर बहुसंख्यक आबादी बनाते हैं. बक्राबेल की तर्ज पर ही लोग कहते हैं कि संघ तब तक मजबूत नहीं था जबतक कि उसे इन पिछड़ी हिंदू जातियों का साथ नहीं मिला.

आज आरएसएएस बंटवाल, कल्लड़का और पुट्टुर में बेहद मजबूत है. घरों के ऊपर शिवाजी के साथ भगवा झंडे दिखना आम बात है. मजेदार है कि केरल की ही तरह शिवाजी के झंडों पर “जनता का राजा” लिखा है.

संघ का संचालन एक विशाल परिसर से होता है- संघ निकेतन और करीब 130 से 150 शाखाएं संचालित होती हैं. हर वर्ष वे पूर्वोत्तर के बच्चों को गोद लेते हैं और उन्हें पढ़ाते-लिखाते हैं.

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संघ निकेतन, मंगलुरू में आरएसएस की शाखा

“हमारे सभी सदस्य और नेता शाखा का हिस्सा रहे हैं इसलिए हमारे कामकाज में समन्वय दिखता है,” वरिष्ठ संघ कर्मचारी ने बताया.

चुनाव बस कुछ ही महीने दूर हैं, राज्य सरकार ने इशारा किया है कि सांप्रदायिक ताकतों पर कारवाई की जाएगी. सूत्रों के मुताबिक कर्नाटक और केरल में पीएफआई और एसडीपीआई के राजस्व के स्रोत का पता लगाना बड़ी चुनौती है.

लेकिन सांप्रदायिक घृणा फैलाकर उसपर राजनीतिक रोटियां सेंकने का धंधा दक्षिण कन्नड़ इलाके में अपनी जड़ें जमाने में पहले से ही सफल हो चुका है.

  • कला: अनीश डाउलागुपू
  • एनिमेशन: वेंकटेश सेल्वराज
  • फोटो: अमित भारद्वाज

यह स्टोरी एनएल सेना प्रोजेक्ट का हिस्सा है. इसे संभव बनाने के लिए हम सौरभ प्रधान, हरिहरन सुरेश, वरुण राधाकृष्णन और एनएल सेना के बाकी सदस्यों को धन्यवाद देते हैं. हम इस तरह की कई और कहानियां करना चाहते हैं, आप इसमें हमारी मदद करे. एनएल सेना का हिस्सा बनें ख़बरों को स्वतंत्र और निर्भीक बनाए रखने में अपना योगदान दें.  क्लिक करें.

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