लॉकडाउन के बाद फिल्म इंडस्ट्री ‘एक्शन’ में आई भी तो इंडस्ट्री के सामान्य होने में लंबा समय लगेगा.
कोरोना के चलते फिल्म उद्योग भी ठप हो गया है, बिल्कुल फिल्मों के ‘फ्रीज शॉट’ की तरह. सबकुछ ठहर गया है. लॉकडाउन की घोषणा के साथ सारी गतिविधियां बंद हो गई हैं. यूंतो फिल्म इंडस्ट्री पहले ही सचेत हो गई थी.
प्रधानमंत्री ने जब 22 मार्च को ‘जनता कर्फ्यू’ करने का आह्वान किया था, तभी लग गया था कि जल्दी ही प्रशासन की तरफ से हर गतिविधि पर पाबंदी लग जाएगी. कोरोना वायरस के आसन्न खतरे को देखते हुए यही सम्भावना बन रही थी. फिल्म इंडस्ट्री के कारोबार में टीम के सामूहिक प्रयास की भूमिका रहती है.
सोशल डिस्टेंसिंग के लिए जरूरी है कि लोग खास दूरी बनाकर मिलें और जरूरी काम करें. एक ऐतिहासिक फिल्म की राजस्थान में शूटिंग कर रहे निर्देशक निश्चित समय से दो दिन पहले ही अपनी शूटिंग पैकअप करके लौट आए. हालांकि तब तक ऐसा कोई सरकारी परामर्श या निर्देश जारी नहीं हुआ था.
सबसे बड़ी बात है कि ऐसे खतरनाक नाजुक समय पर पॉपुलर स्टार के साथ किसी प्रकार का जोखिम नहीं लिया जा सकता था. उन्हें अलग-अलग कर भी दें तो शूटिंग के लिए आवश्यक कारकुनों से काम लेते समय सोशल डिस्टेंसिंग की व्यवस्था काम ही नहीं कर सकती.
फिल्म इंडस्ट्री की गतिविधियों के फ्रीज होने के पहले ही केरल, जम्मू और दिल्ली के बाद एक-एक कर सभी राज्योंमें सिनेमाघरों के बंद होने से फिल्मों का प्रदर्शन अवरुद्ध हो चुका था. इरफान की फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ की रिलीज के साथ ही सिनेमाघर बंद हो गए थे. रोहित शेट्टी ने समय रहते उचित फैसला लिया. उन्होंने अक्षय कुमार, रणवीर सिंह, अजय देवगन और कट्रीना कैफ अभिनीत फिल्म ‘सूर्यवंशी’ की रिलीज स्थिति सामान्य होने तक के लिए टाल दी. उनके इस बड़े फैसले से दूसरे निर्माताओं को खतरे का अहसास हुआ.लगभग सारी फिल्मों की रिलीज़ आगे खिसक गई.
अभी की स्थिति देखते हुए यह अनुमान लगाना मुमकिन नहीं है कि सिनेमाघरों में फिल्मों का प्रदर्शन कब तक सामान्य होगा? सिनेमाघरों ने सुरक्षा और सफाई का ध्यान भी रखा तो दर्शक एहतियातन सिनेमाघर जाने से परहेज करेंगे. सिनेमाघरों में फिल्मों के प्रदर्शन के लिए पर्याप्त दर्शक नहीं मिलेंगे तो वैसे भी शो नहीं हो सकेंगे.
सिनेमाघरों की बंदी के पहले सोचा जा रहा था कि पचास प्रतिशत ही टिकट बेचे जाएं और एक-एक सीट छोड़कर बुकिंग की जाए. इस रणनीति के बावजूद दर्शकों का संपर्क होगा और संक्रमण की आशंका बनी रहेगी. ट्रेड विश्लेषक मान रहे हैं कि सारी व्यवस्था और सुरक्षा सुचारू होने पर भी सिनेमाघरों में महीने दो महीने के बाद ही दर्शक लौट पाएंगे.
लॉकडाउन समाप्त होने पर आकस्मिक हादसे से निकले दर्शक मानसिक और आर्थिक रूप से संभलने और स्थिर होने में समय लगाएंगे. आसन्न खतरे के ‘मानसिक अपघात’ से निकलने में वक़्त लगेगा. आजीविका और आर्थिक समस्या बनी रहेंगी. सिनेमा देखने की पुरानी आदत को अपनाने में वक्त लगेगा. प्रदर्शन के लिए तैयार और पूरी हो चुकी फिल्मों के निर्माता लॉकडाउन के बाद अपनी फिल्मों के प्रदर्शन की युक्ति में लगेंगे. क्या फिल्मों के प्रदर्शन पुराने क्रम में ही तय किए जाएंगे या जरूरतमंद निर्माता सभी की मर्जी-बेमर्जी से बेपरवाह होकर अपनी फिल्म रिलीज कर देंगे?
अभी कुछ भी कहना और बता पाना अनुचित और असंभव है. बड़े, मझोले और छोटे निर्माता फिल्मों की रिलीज की जोड़-तोड़ में भिड़ेंगे. इस भिड़ंत में ताकतवर निर्माता हर बंदिश और नैतिकता को धता देकर अपनी फिल्म रिलीज कर देगा.
21 दिनों के लॉकडाउन में ओटीटी प्लेटफॉर्म के दर्शक तेजी से बढ़े हैं. ट्रेड पंडित, विश्लेषक और जानकार बता रहे हैं कि घर बैठे फिल्में देखने का बढ़िया विकल्प सामने आ रहा है. इसने एक नया डर पैदा किया है कि घर बैठे पिल्में देखने की सुविधा के मद्देनजर सिनेमाघर में जाकर फिल्में देखने का खर्चा कहीं फिजूलखर्च में न गिन लिया जाए. ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद पोर्टेबल प्रोजेक्टर और स्क्रीन की मांग में तेजी आने लगे.
घर में फिल्म बीच में ही छोड़ी और किस्तों में भी देखी जा सकती है. अच्छे और मनभावन दृश्यों और गानों को बार-बार देखा जा सकता है. अगर पूरा परिवार एक साथ या अलग-अलग ही अपने समय और सुविधा से घर बैठे कम लागत में फिल्में देखने लगा तो निश्चित ही सिनेमाघरों के दर्शक कम होंगे.
पिछले साल के अंत में जब एक टेलीकॉम नेटवर्क ने फाइबर लाने के साथ फिल्मों के तत्काल प्रदर्शन की घोषणा भर की थी तो मल्टीप्लेक्स के मालिक घबराकर बयान देने लगे थे. वे दर्शकों को जागृत करने लगे थे कि फिल्म सामूहिक मनोरंजन का माध्यम है. इसका आनंद समूह में ही लिया जा सकता है. अब इस तर्क में अधिक दम नहीं है, क्योंकि दर्शकों ने ऑप्शन नहीं होने पर फिल्में देखने के नए विकल्प का मजा ले लिया है.
फिल्म इंडस्ट्री के ठप होने और लॉकडाउन में घर की चारदीवारी में रहते हुए पॉपुलर स्टार ने ताली बजाने से लेकर दीया जलाने तक की तस्वीरों और वीडियो में अपने समर्थन का भोंडा प्रदर्शन किया. अंधभक्तों ने तो सोशल डिस्टेंसिंग का खुलेआम मखौल उड़ाया.
कुछ कलाकारों ने लॉकडाउन के समय में क्रिएटिव वीडियो बनाए. खासकर शाहरुख खान और कार्तिक आर्यन ने अपने विट और स्टाइल से सुंदर अभिव्यक्ति की. बाकी कलाकार 20 सेकंड हाथ धोने का सटीक प्रदर्शन करते रहे. इसी बहाने प्रशंसकों को उनके घर के वाशबेसिन भी देखने का मौका मिला. दीपिका पादुकोण, कट्रीना कैफ और शिल्पा शेट्टी घरेलू सफाई और धुलाई का काम करती नजर आईं.
कुछ कलाकार कसरत और जिम करते दिखे, जिस पर चिढ़कर फराह खान ने नाराजगी जताई और ऐसे वीडियो पोस्ट ना करने की गुजारिश की. वह अपनी बिरादरी के असंवेदनशील सदस्यों को यह तो नहीं कह सकती थीं कि तुम्हारे वीडियो तुम्हारी सोच का अश्लील प्रदर्शन है. दरअसल, मैनेजर और सहयोगियों के अभाव में हमारे स्टारों की बौद्धिकता और विवेक लंबलेट हो जाती है.संकट के समय वे देश के लिए रचनात्मक संबल नहीं बन पाते. अफ़सोस कि कोई भी स्टार या डायरेक्टर देशहित में क्रिएटिव पहल करता नहीं दिखा. यह समय सेलेब्रिटी कल्चर की प्रासंगिकता पर भी चोट पहुंचाने वाला सिद्ध हो रहा है.
काम के फ्रंट पर शूटिंग और इवेंट बिल्कुल बंद हैं. स्टार अपने शरीर सौष्ठव बरक़रार रखने में व्यस्त हैं. मजदूर बेकार हो गए है. अभी लेखक और निर्देशक अगली फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखने में लग गए हैं. लेखकों को नए विचार आलोड़ित कर रहे हैं. इस संकट से निकलने पर अधिकांश लेखकों के पास तैयार स्क्रिप्ट होनी चाहिए.
हाल-फिलहाल में उभरे एक युवा स्टार ने जानकारी दी कि जबरन फुर्सत के इस समय का उपयोग वह इकट्ठा हुई स्क्रिप्ट पढ़ने में कर रहा है. हर दो-तीन दिनों में एक स्क्रिप्ट खत्म हो जाती है. लंबे समय के बाद पढ़ने का मौका मिल रहा है. इन दिनों फिल्मों की स्क्रिप्ट बहुत कम स्टार खुद पढ़ते हैं. उनके सहायक या इसी काम के लिए नियुक्त सलाहकार यह काम करते हैं. वे फिल्म स्टार की छवि,पसंद, रुचि और जरूरत के हिसाब से स्क्रिप्ट चुनते हैं. आमिर खान सरीखे फिल्म स्टार कम है, जो हर स्क्रिप्ट से खुद गुजरते हैं.
लॉकडाउन के दिनों में लेखक और निर्देशक फिल्म स्टार को स्क्रिप्ट सुनाने के लिए सोशल मीडिया प्रदत्त तकनीकों का सहारा ले रहे हैं. वीडियो लाइव का या स्काइप के जरिए पूरी स्क्रिप्ट सुना दी जाती है. एक स्थापित लेखक ने हंसते हुए बताया कि अभी फिल्म स्टारों के पास यह बहाना भी नहीं है कि शॉट चल रहा है या मीटिंग चल रही है. साथ ही वीडियो पर होने से स्टार की संलग्नता और प्रतिक्रिया भी चेहरे के भाव से समझ में आ रही होती है. लेखक भी स्क्रिप्ट के वीडियो पाठ का हुनर सीख रहे हैं.
इस बीच प्रधानमंत्री द्वारा आरंभ किए गए पीएम केयर्स फंड में दान देने की खूब चर्चा रही. सबसे पहले अक्षय कुमार ने 25 करोड़ का दान देकर ऐसी लकीर खींच दी कि सभी सकते में आ गए. खैर, बाकी सभी ने अपने सामर्थ्य और श्रद्धा के मुताबिक दान दिया. ऐसे मौकों के लिए पहले से तैयार अंधभक्तों की जमात ने हिंदू अभिनेता बनाम मुसलमान अभिनेता की ओछी हरकत शुरू ही की थी कि सलमान खान और शाहरूख खान ने दान और समर्थन की अपनी दरियादिली और भागीदारी से सभी का मुंह बंद कर दिया.
दान की चर्चा से परे फिल्मों में काम कर रहे दिहाड़ी मजदूरों और जूनियर आर्टिस्ट की आजीविका की समस्या बहुत बड़ी और विकराल है. सरकारी और प्रशासनिक समर्थन नहीं होने से फिल्म इंडस्ट्री जैसे असंगठित क्षेत्र के सिने मजदूर को हमेशा आपदा में मुसीबतों का सामना करना पड़ता है.
लॉकडाउन के बाद फिल्म इंडस्ट्री तीन हफ्तों की ‘फ्रीज’ के बाद ‘एक्शन’ में आई भी तो तुरंत उसके परिणाम नहीं दिखेंगे. मंदी और पाबंदी का असर खत्म होने और इंडस्ट्री के सामान्य होने में लंबा समय लगेगा.
The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.
ContributeGeneral elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?