एक व्यक्ति की मौत कोविड के चलते दुबई में हो गई. नियमों के पेंच में फंसकर महीने भर से अंतिम संस्कार के इंतजार में परिवार.
“ये कैसी सरकार है जहां एक आम आदमी की बात नहीं सुनी जाती. अगर मेरी जगह कोई सांसद होता तो क्या उसकी बात भी नही सुनी जाती? ये कुछ नहीं है, बल्कि राजनीति हो रही है.” बिहार के गोपालगंज निवासी शशिकांत ने अपने पिता की दुबई में हुई मौत के 26 दिन बाद भी उनका शव वापस न पाने पर अपनी पीड़ा सुनाते हुए ये बात कही.
शशिकांत के 63 वर्षीय पिता मानेगर रुहेली शर्मा जो लगभग 22 साल से दुबई की एक फर्नीचर कम्पनी में काम करते थे. उनका 6 मई को किंग्स कॉलेज हॉस्पिटल, दुबई में निधन हो गया. मानेगर लगभग डेढ़ साल से हृदय संबंधी बीमारी से जूझ रहे थे. दुबई के स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक उनकी मौत कार्डियक अरेस्ट, वायरल निमोनिया और कोविड-19 के कारण हुई है.
इसके बाद से उनके पुत्र शव को वापस भारत लाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं. लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है. इसके चलते लगभग एक महीने होने को आया है लेकिन मानेगर शर्मा के शव का अंतिम संस्कार नहीं हो पाया. इस चक्कर में इन्होंने, गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, भारतीय दूतावास, दुबई, मदद एनजीओ सहित बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन, कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह सहित तमाम लदरवाजे खटखटा लिए हैं, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है.
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Contributeइस बारे में विस्तार से जानने के लिए हमने मानेगर रुहेली शर्मा के पुत्र शशिकांत शर्मा से बात की. उन्होंने हमें पूरा मामला विस्तार ने बताया.
शशिकांत ने कहा, “मेरे पिता लगभग 22 साल से दुबई में काम करते थे. हर साल 2 महीने के लिए छुट्टी पर घर आते थे. हर शुक्रवार को वे घर फोन पर बात करते थे लेकिन, एक बार फोन नहीं आया तो हमें चिंता हुई. हमने पापा के दोस्तों के पास फोन करना शुरू किया. फिर पता चला कि 13 अप्रैल के आस-पास उन्हें अचानक दुबई में बुखार हुआ. उन्हें कम्पनी और प्रशासन के सहयोग से दुबई के राशिद हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया. बुखार तेज होने पर 15 अप्रैल को किंग्स कालेज हॉस्पिटल के आईसीयू में भर्ती कर दिया गया. इसके बाद मैंने कम्पनी के पीआरओ और दुबई के स्वास्थ्य विभाग को ई-मेल भेजकर सही स्थिति जानने की कोशिश की. 21 अप्रैल को मुझे पता चला की वे किंग्स कॉलेज हॉस्पिटल के आईसीयू में वेंटिलेटर पर हैं.”
शशिकांत बताते हैं, “हमारी किंग्स कालेज हॉस्पिटल के आईसीयू हेड मोहम्मद रजा अब्दुल रहीम से ई-मेल के जरिए बात हुई और उन्होंने हमें सम्बन्धित अपडेट देते रहने का भरोसा भी दिलाया. एक दिन फिर उन्होंने बताया कि हालत काफी गम्भीर है और बचने की कम ही उम्मीद है. लगभग 30 अप्रैल के आस पास मुझे पता चला कि पापा की किडनी बिलकुल खराब हो चुकी है और फेफड़े ने काम करना बंद कर दिया है. इस दौरान मैंने पापा से बात करने की कोशिश भी की लेकिन नहीं हो सकी.”
वो आगे कहते हैं, “6 मई को जब मैं दिल्ली में था तब मुझे दुबई से सूचना मिली कि पापा की कोरोना से मौत हो चुकी है. उसके बाद मैंने डीएम से बात कर तुरंत पास बनवाया और घर बिहार आ गया. हालांकि अभी तक इस घटना के बारे में घर पर नहीं बताया है.”
शशिकांत के मुताबिक 6 मई से ही वो अपने पिता का शव भारत लाने की कोशिश कर रहे हैं. 6 मई से अभी तक शव दुबई के हॉस्पिटल में ही रखा हुआ है लेकिन कोई सफलता नहीं मिल पा रही है. वो बताते हैं, “सबसे पहले मैंने विदेश मंत्रालय में सम्पर्क किया तो उन्होंने मुझे सम्बन्धित विभाग, सीपीवी (काउंसलर, पासपोर्ट और वीजा) में सम्पर्क करने को कहा. जब मैंने वहां सम्पर्क किया तो उन्होंने कहा कि हम बात करके शाम तक रिपोर्ट देते हैं. शाम में जवाब दिया कि चूंकि मृत्यु कोविड के कारण हुई है इसलिए यह नियम है कि भारत सरकार इस शव को स्वीकार नहीं करेगी, और दुबई सरकार इसे भेजेगी भी नहीं. इस कारण शव को विदेश से वापस नहीं लाया जा सकता. दुबई कांसुलेट और ‘प्रवासी भारतीय सहायता केंद्र’ ने ये जानकारी दी.”
साथ ही उन्होंने कहा कि दुबई में रहने वाले ऐसे किसी एक जानकर को नामित कीजिए जो शव का दाह संस्कार कर सके. उनकी और अपनी सारी जानकारी और वैध कागजात हमें भेजिए.
शशिकांत के मुताबिक ऐसा खबरें विभिन्न मीडिया में प्रकाशित हुई हैं जिसके मुताबिक जिन लोगों की विदेश में कोरोना से मौत हुई है, उनका शव वापस विदेश से लाया जा सकता है. होम मिनिस्ट्री ने ये प्रस्ताव पास किया है कि पूरे प्रोटोकॉल के साथ आप शव को वापस ला सकते हैं.
शशिकांत ने बताया कि यह जानकारी उन्होंने गृह मंत्रालय के अधिकारियों के सामने रखी तो उन्होंने कहा है कि हमारी बात प्राथमिकता से टेबल पर पहुंचा दी गई है, जब साहब आएंगे तब देखेंगे. पर अभी तक कोई प्रगति नहीं हुई है.
शशिकांत को इस बात में भी शक है कि उनके पिता की मौत कोरोना से हुई है. वे कहते हैं, “ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैंने कई डॉक्टरों को जब इसके बारे में बताया तो उन्होंने भी कहा कि वायरल निमोनिया और कार्डियक अरेस्ट में खून का दौरा रुक जाता है तो इंसान की मौत हो जाती है. दुबई सरकार ने भी दो अलग-अलग रिपोर्टें दी हैं. एक में कार्डियक अरेस्ट, वायरल निमोनिया (जो कि कहीं वर्गीकृत नहीं है). जबकि दूसरे में इनके साथ कोरोना वायरस भी जोड़ दिया गया है. इस कारण मेरा शक गहरा रहा है.”
हालांकि इस बारे में कोई पुख्ता राय बनाना संभव नहीं है क्योंकि शशिकांत से मेल पर किंग्स मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर ने खुद मानेगर को कोरोना होने की पुष्टि की है. इसके अलावा ऐसे मरीज जिनको कोई बीमारी पहले से है उन्हें अगर कोरोना हो जाए तो मौत की आशंका कई गुना बढ़ जाती है, मेडिकल की भाषा में इसे को-मॉर्बिडिटी कहते हैं.
हमने कोरोना के लक्षण जानने के लिए वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष डॉ. रवि वानखेड़कर से बात कर इसे समझने की कोशिश की जिसमें शशिकांत को पिता की मौत कोरोना के होने या न होने पर संशय था.
डॉ. वानखेड़कर ने कहा, “जो रिपोर्ट में बताया है वह सही है, ये डेथ कोरोना से ही हुई है. क्योंकि जो सामान्य वायरल निमोनिया है वह भी कोरोना के लेवल में ही आता है. कोरोना का ये बहुत कॉमन लक्षण है. तो इसमें कोई संशय की बात नहीं है.”
अन्त में शशिकांत ने कहा, “अभी तो बस यही संघर्ष कर रहा हूं कि पिताजी का शरीर आ जाता तो अच्छी बात होती. अगर नहीं आ पाएगा तो हारकर वहीं अंतिम संस्कार करने की इजाजत दे दूंगा. मेरा कजिन वहीं रहता है, वही इस काम को करा देगा.”
हमने इस मामले में विदेश मंत्रालय की गल्फ डिवीज़न में बात की. लगभग 20 से ज्यादा बार कॉल करने के बाद एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे अधिकारी को कॉल ट्रांसफर कर दी गई. आखिर में एक अधिकारी से हमारी बात हुई. उन्होंने नाम नहीं बताया. हमने उनसे विदेशों में कोरोना से होने वाली मौतों को भारत लाने सम्बंधी गाइडलाइन के बारे में पूछा. उन्होंने कहा कि आप भारतीय दूतावास, दुबई में बात कीजिए वही आपको इस बारे में सारी जानकारी देंगे.
हमने दुबई स्थित भारतीय दूतावास के कांसुलेट जनरल ऑफ़ इंडिया के डेथ रजिस्ट्रेशन विभाग में फोन कर इस मामले के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, “इस शव का कन्फर्म मेल हमारे पास आ गया है, कल हम इसका यहीं दाह संस्कार कर देंगे.” शव को भारत भेजने सम्बंधी सवाल पर उन्होंने कहा, “कोरोना मृतक के लिए सरकार इजाजत नहीं देगी. जब हमने बताया कि गृह मंत्रालय ने तो ये नियम बनाया है तो उन्होंने यह कहते हुए फोन काट दिया- जितनी हमें जानकारी है उतना हम तुम्हें बता रहे हैं.”
ये घटना यह बताने के लिए काफी है कि सिस्टम के सामने एक आम आदमी किस तरह से लाचार हो जाता है. मदद के नाम पर उसे सिर्फ वादे और एक से दूसरे दफ्तर का चक्कर लगाने के अलावा शायद ही कुछ हासिल हो पता है.
हमारी स्टोरी पब्लिश होने से पहले शशिकांत ने हमें बताया कि लगभग महीने भर की कोशिश के बाद, थक-हार कर उसने दुबई में ही अपने पिता का संस्कार करने की इजाजत कांसुलेट जनरल ऑफ़ इंडिया को दे दी है.
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