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Contributeएनएल चर्चा के 122वें अंक में भारतीय सीमा में घुसकर चीन द्वारा किया जा रहा निर्माण, महाराष्ट्र सरकार द्वारा चीनी कंपनियों को दिए गए ठेका को निरस्त करना, सुप्रीम कोर्ट द्वारा जगन्नाथ रथयात्रा को हरी झंडी और बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि द्वारा बनाई गई कोरोना की दवा जैसे विषयों पर विस्तार से बातचीत हुई.
इस बार चर्चा में एनडीटीवी इंडिया की सीनियर एडिटर और एंकर नगमा सहर, न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन और न्यूज़ल़ॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाथ एस शामिल हुए. चर्चा का संलाचन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत में अतुल ने एक अपडेट देते हुए कहा कि गुरुवार शाम को भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान में चीन के कदमों की कड़े शब्दों में निंदा की गई है. उन्होंने इसी बयान के आधार पर नगमा से पूछा, “मंत्रालय के इस बयान के दो मतलब निकलते है, पहला कि प्रधानमंत्री द्वारा सर्वदलीय बैठक में जो कहा गया था स्थिति उसके एकदम विपरीत है. वहीं दूसरी तरफ ताजा सैटेलाइट इमेज बता रहे हैं कि चीनी सैनिक भारतीय सीमा में निर्माण भी कर रहे हैं. चीन की सेना उस जगह पर अस्थाई निर्माण कर रही हैं, जहां पर हमारे देश के 20 सैनिक शहीद हुए थे.”
नगमा कहती हैं, “विदेश मंत्रालय का गुरुवार रात को आया बयान जैसा आपने कहा कि वह काफी कठोर है. सरकार ने साफ कर दिया है कि चीन लगातार संधियों को तोड़ रहा है. भारत ने संधियों का पालन करते हुए सीमा पर से अपने अस्थाई निर्माण को कम कर दिया है लेकिन चीन लगातार इस क्षेत्र में निर्माण कर रहा है. इस बीच अमेरिका ने भी घोषणा की है कि वह यूरोप से अपनी सेना की हटाकर एशिया के इलाके में तैनात कर रहा है ताकि चीन की आक्रामता को नियंत्रित किया जा सके. चीन एक साथ कई फ्रंट पर लड़ रहा है चाहे वह हांगकांग की स्वतंत्रता हो, साउथ चाइना सी में बढ़ता दखल हो या भारत के साथ जारी टकराव.”
अतुल ने चर्चा में आनंद को शामिल करते हुए कहा कि अमेरिकी नेता माइक पॉम्पियो का इस समय जो बयान आया है वह काफी महत्वपूर्ण है. गुटनिरपेक्षता की नीति के चलते दक्षिण एशिया शीत युद्ध के दौर में दोनों महाशक्तियों का मोहरा बनने से बचा रहा. लेकिन अब स्थितियां काफी बदल चुकी है. चीन पूरा न सही एक हद तक दूसरी ताकत का स्थान ले चुका है. दूसरी तरफ अमेरिका है. ऐसे में 70 साल पहले जिस गुट में जाने से भारत ने नकारा था, वह अब बदल चुका है.
अतुल की इस टिप्पणी पर आनंद कहते हैं, “उस समय जो स्थिति थी, खासकर 1962 के युद्घ विराम में भी अमेरिका का बड़ा हाथ था. लेकिन अब एशिया में बढ़ती राजनीतिक उथल-पुथल के वजह से भारत को अमेरिका का साथ चाहिए. क्योंकि चीन की नीति सीमाओं को लेकर हमेशा से अस्पष्टता की नीति रही है. वह सीमा विवाद को सुलझाना नहीं चाहता है. फिर चाहें वह फिलीपींस, ताइवान और कई अन्य पड़ोसी देशों के साथ उसके रिश्ते इसी कारण से सही नही है. साथ ही कोरोना को लेकर कई लोगों ने कहा कि चीन को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए और इस पर कमेंट करने से बचना चाहिए. मेरा मानना हैं कि सभी देशों को खुले तौर पर, सार्वजनिक मंचों पर चीन के खिलाफ बोलना चाहिए.”
यह पर नगमा ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि चीन अपनी आक्रमता कई फ्रंटों पर बढ़ा रहा है . इसका कारण जो मुझे लगता है कि चीन यह समझता है कि पूरी दुनिया पर नेतृत्व करने के लिए उसका समय आ गया है. उनको लगता हैं कि यही सही समय है जब पूरी दुनिया में अपना परचम फहराया जाय. अमेरिका भी अंदरूनी उथल-पुथल से दो-चार है. अगर देखा जाए तो कोरोना महामारी को अगर किसी देश ने अपने फायदे के लिए उपयोग किया हैं तो वह चीन है.
अतुल ने नगमा की बात में जोड़ते हुए मेघनाथ से सवाल किया कि, चीन की बैखलाहट का कारण उसकी अंदरूनी तनातनी और कोरोना वायरस को लेकर विश्वभर के दवाब, हॉन्ग कॉन्ग को लेकर उसकी नीति भी है. जिसके कारण वह इस तरह के कदम उठा रहा है, ऐसी बातें भी सामने आ रही है.
इस पर मेघनाथ कहते हैं कि चीन इस स्थिति का फायदा उठा रहा है. वो आगे जोड़ते हैं, “दुनिया के बहुत से देश कोरोना वायरस से लड़ रहे है, ऐसे में चीन अपने पड़ोसी देशों का फायदा उठा रहा हैं, क्योंकि ज्यादातर देश की अर्थव्यवस्था इस समय चिंताजनक स्थिति में है और साथ ही यह देश कोरोना वायरस को रोकने में भी लगे हुए है. ऐसे में चीन अंदरूनी कमजोरियों का फायदा उठाना चाह रहा हैं.”
अन्य विषयों पर भी विस्तार से चर्चा हुई. पूरी चर्चा सुनने के लिए यह पॉडकास्ट सुने. न्यूजलॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.
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