दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और विवादों पर संक्षिप्त टिप्पणी.
बीते हफ्ते पीटीआई और प्रसार भारती में ठन गई. वैसे तो प्रसार भारती लंबे समय से ठाने हुए है. हुआ यूं कि भारत और चीन के बीच चल रहे विवाद के बीच 25 जून को पीटीआई ने भारत में चीनी राजदूत सुन वीडॉन्ग का एक इंटरव्यू प्रकाशित किया. चीनी दूतावास ने इस पूरे इंटरव्यू से सिर्फ तीन मनचाहा सवाल उठाकर अपनी वेबसाइट पर लगा दिया. इससे ऐसा लगा कि पीटीआई ने चीनी प्रोपगैंडा को एक मंच दे दिया.
बाद में पीटीआई ने इस पर बयान जारी किया कि चीनी दूतावास ने जानबूझकर सिर्फ एक हिस्सा ही उठाया जबकि इंटरव्यू के बाकी हिस्से में चीनी राजदूत से कई कड़े सवाल पूछे गए हैं. लेकिन तब तक सोशल मीडिया के खलिहरों ने अंगड़ाई ले ली थी और पीटीआई पर हमला शुरू कर दिया था.
इसके अगले दिन पीटीआई ने एक और इंटरव्यू किया चीन में भारत के राजदूत विक्रम मिस्रीका. इस इंटरव्यू में मिस्री ने कहा कि चीन द्वारा बलपूर्वक यथास्थिति को बदलने के दुष्परिणाम होंगे. चीन को पूर्वी लद्दाख में अपनी गतिविधियां रोकनी होंगीं.
मिस्री का यह बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान को कटघरे में खड़ा करता है. आपको याद होगा प्रधानमंत्री ने कुछ ही दिन पहले अपने बहुचर्चित विवादित बयान में कहा था न तो कोई हमारी सीमा में घुसा है, न कई घुसा हुआ है, ना ही हमारी कोई पोस्ट किसी के कब्जे में है.
इन दो घटनाओं की आड़ में सोशल मीडिया के साथ ही प्रसार भारती भी पीटीआई से दो-दो हाथ करने को कूद पड़ा. प्रसार भारती न्यूज़ सर्विस के प्रमुख समीर कुमार ने पीटीआई को पत्र लिखकर कहा कि उसकी कवरेज भारत की सीमाई संप्रभुता के साथ समझौता करने वाला और राष्ट्रीय हितों को चोट पहुंचाने वाला है. लिहाजा प्रसार भारती पीटीआई की सेवाएं समाप्त करने पर विचार कर रहा है.
तमाम मीडिया संगठनों और पत्रकारों ने प्रसार भारती की इस धमकी को सरकार की ओर से पीटीआई की बांह मरोड़ने की कोशिश बताया है. स्वायत्तता की जो कल्पना प्रसार भारती के लिए की गई थी वो फिलहाल दूर की कौड़ी नज़र आती है. प्रसार भारती को इस लिहाज से अभी लंबी यात्रा तय करनी है.
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