एचटी मीडिया के हिंदी अखबार से बड़ी संख्या में लोगों की छंटनी. बंद हुई 60 साल पुरानी कादम्बिनी और नंदन पत्रिका.
कोरोना वायरस का असर दिन पर दिन अर्थव्यवस्था के विभिन्न हिस्सों पर बढ़ रहा है. जीडीपी करीब माइनस 24% तक सिकुड़ गई है लेकिन इससे जुड़ी खबरें अखबारों और टीवी के प्राइम टाइम से गायब हैं. इनके लिए अब कोरोना महत्वपूर्ण नहीं रहा लेकिन इसी कोरोना वायरस का बहाना बनाकर कर्मचारियों को नौकरी से निकालने का दौर जारी है.
एचटी मीडिया हाउस का दैनिक हिंदुस्तान भी अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स और मिंट की राह पर चल पड़ा है. जहां बड़ी संख्या में पत्रकारों और अन्य तकनीकी स्टाफ को निकाला जा रहा है. बाहर किए गए इन कर्मचारियों में दिल्ली से लेकर बिहार के भागलपुर, झारखंड के धनबाद और लखनऊ तक के पत्रकार हैं.
अपना नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बिहार भागलपुर के एक पत्रकार कहते है, “एचआर और एडिटर ने हमें अचानक से बुलाया और बताया कि ऊपर से आर्डर आया है इसलिए आप लोग दो महीने की सैलरी लेकर अपना इस्तीफा दे दीजिए. अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो कंपनी आप को बर्खास्त कर देगी.”
लगभग यही बात दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान अखबार के डिजाइन टीम में काम करने वाले एक कर्मचारी ने भी कबूल की. उसने कहा, “मुझे और मेरे करीब 20 अन्य साथियों को एचआर ने बीते हफ्ते दफ्तर आने के लिए बोला. हम लोग लॉकडाउन के बाद से वर्क फ्रॉम होम कर रहे थे. दफ्तर बुलाकर उन्होंने कहा कि आप लोग दो महीने की सैलरी लेकर अपना इस्तीफा सौंप दीजिए. वरना आपको कंपनी बर्खास्त कर देगी.” कर्मचारियों के पास कोई और विकल्प नहीं थी, सो उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया.
भागलपुर यूनिट के करीब नौ पत्रकारों ने भी हमसे इस बात की पुष्टि की. ये सभी पत्रकार रिपोर्टिंग और डेस्क पर काम कर रहे थे. इनमें से कुछ लोग कंपनी में 2 साल, कोई पांच तो कोई 10 साल से काम कर रहा था. 10-15 साल के पत्रकारिता अनुभव वाले सभी पत्रकारों ने एचआर की बात मानते हुए इस्तीफा दे दिया और अपनी दो महीने की सैलरी का इंतजार कर रहे है.
हिंदुस्तान ने धनबाद और लखनऊ में भी कई पत्रकारों को ऐसे ही अचानक से बाहर का रास्ता दिखा दिया. लखनऊ ऑफिस से निकाले गए पत्रकार ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, “यहां से कुल 14 लोगों को निकाला गया है. इनमें से 12 एडिटोरियल में थे, दो लोग दूसरे डिपार्टमेंट के थे. कर्मचारियों को निकालने का बहाना एक ही है, कोविड-19. ना ही उम्र और ना ही सैलरी.”
जब हमने पूछा कि क्या आप लोगों के सैलरी ज्यादा थी या उम्र, तो पूर्व कर्मचारी कहते हैं, “ना तो उम्र ज्यादा है और ना ही सैलरी. मेरी उम्र 48 साल की है, कई मेरी ही उम्र के है और कई छोटे और मुझसे बड़े भी है जिन्हें निकाला गया है. सैलरी भी उतना ही है जितना अमुमन हर जगह मिलता है.”
हिंदुस्तान में हमने भागलपुर, लखनऊ और कादम्बिनी पत्रिका के पूर्व कर्मचारी से बात की. एक कर्मचारी ने हमें बताया कि उन्हें भरोसा ही नहीं था कि अब जब सरकार लॉकडाउन खत्म कर रही है और सब कुछ पहले की तरह सामान्य हो रहा है, तब हमें निकाला जाएगा. जब हम ऑफिस पहुंचे तो हमें कंपनी के एचआर द्वारा 2 महीने की सैलरी और तुंरत इस्तीफा देने के लिए कहा गया. जिसे मजबूरन सभी ने स्वीकार कर लिया.
हिंदुस्तान में मीडिया की छंटनी का काम काफी दिनों से चल रहा है. कुछ दिनों पहले ही आगरा में 8 पत्रकारों को निकाला गया था. अब भागलपुर, लखनऊ और दिल्ली यूनिटों से पत्रकारों को निकाला जा रहा है.
प्रसिद्ध पत्रिका ‘नंदन और कादम्बिनी’ हुई बंद
एचटी मीडिया द्वारा जहां एक ओर संस्करणों से पत्रकारों की विदाई की जा रही है, वहीं कंपनी ने प्रसिद्ध और लोकप्रिय नंदन और कादम्बिनी पत्रिका का प्रकाशन भी पूरी तरह से बंद करने का निर्णय लिया है. साहित्यिक पत्रिका कादम्बिनी 1960 से प्रकाशित हो रही थी वहीं बाल पत्रिका नंदन 1964 से.
हमने कादम्बिनी पत्रिका में रहे एक वरिष्ठ पत्रकार से बात की. उन्होंने फोन पर हमसे पूरी बात तो की, लेकिन पहचान उजागर करने को तैयार नहीं हुए. ये सीनियर पत्रकार कंपनी में करीब 25 साल से ज्यादा समय से काम कर रहे थे. वो कहते हैं, “कादम्बिनी राष्ट्रीय नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय पत्रिका थी. यह एक ब्रांड था, जिसे सब जानते थे. यह पत्रिका इतनी प्रसिद्ध थी, कि लंदन, मॉस्को, अमेरिका, कनाडा, नेपाल हर जगह इसके पाठक मौजूद हैं. इसकी लंदन में 5000 प्रतियां भेजी जाती थी. एक समय यह बात उड़ी थी जब इसके पूर्व संपादक ने कहा था पत्रिका की पॉपुलैरिटी को ध्यान में रखते हुए हमें इसका एक ऑफिस लंदन में बना देना चाहिए.”
पत्रकार एक बार का किस्सा सुनाते हुए कहते है, “जब हमारे नए संपादक (अतुल श्रीवास्तव) कंपनी से जुड़े तब हम लोगों ने उनसे कहा था कि कादम्बिनी ब्लैक में बिकती है. इस पर उनकी प्रतिक्रिया थी कि हम लोग जबरन तारीफ कर रहे थे. एक बार उन्होंने खुद सर्वे करने को कहा तो हम लोग नई दिल्ली रेलवे स्टेशन गए, वहां एक दुकानदार से बोले कि मैं कादम्बिनी से आया हूं, तो वह दुकानदार बोला, अरे सर, हमने कादम्बिनी पत्रिका जो 15 रूपए की आती थी, वह 300 रूपए में बेची है. यह सुनते ही वह मुझे चौंक कर देखने लगे.”
बातचीत में वह कहते हैं, “हमारी पूरी टीम जिसमें 4 लोग थे और नंदन पत्रिका की टीम में 2 लोग थे, सभी को निकाल दिया गया. सिर्फ नंदन पत्रिका के एक कर्मचारी को नहीं निकाला गया हैं क्योंकि वह हिंदुस्तान समाचार के फीचर सेक्शन के लिए भी काम करती थी.”
जब हमने उन्हें बताया कि अन्य पत्रिका के अलावा हिंदुस्तान के कई संस्करणों से पत्रकारों को निकाला गया तो वह बोले की, कोविड-19 एक बहाना है निकालने का. क्योंकि इस बहाने से निकालेंगे तो कोई सवाल नहीं करेगा. एक तरफ हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं किसी को ना निकाला जाए और दूसरी तरफ मनमाने तरीके से पत्रकारों को निकाला जा रहा है.
पत्रिका के आय और वितरण के सवाल पर वो कहते हैं, “अब हालात सही हो रहे है, विज्ञापन भी आ रहा है और वितरण भी फिर से सही हो रहा है. यह कहना सही नहीं है की हालत खराब है. कंपनी द्वारा निकालने का जो कदम अभी उठाया गया है अगर वह कदम मार्च-अप्रैल महीने में उठाया जाता तो बात सही थी. क्योंकि उस समय विज्ञापन नहीं आ रहा था और वितरण भी नहीं हो रहा था. लेकिन अब हालात सामान्य हो रहे हैं.”
हमने उनसे जानना चाहा कि क्या कंपनी को ई-पत्रिका के माध्यम से इसे चलाने का विचार नहीं आया. इस पर वह कहते हैं, “लॉकडाउन के बाद से ई-पत्रिका ही निकाली जा रही है, जिसका अंतिम अंक सिंतबर महीने का है. हम लोग पिछले 5 महीनों से इसे इंटरनेट के माध्यम से चला रहे थे, अब अचानक से क्यों बंद किया गया, यह तो कंपनी के मैनेजमेंट को ही पता होगा.”
अचानक नौकरी से निकाले जाने पर संभावित आर्थिक प्रभाव के सवाल पर वो कहते हैं, “सभी के साथ यह दिक्कत है. हमारे टीम में एक महिला पत्रकार ने पिछले साल ज्वाइन किया था. तब उन्होने नोएडा में एक फ्लैट खरीदा था, जिसका ईएमआई वह जमा करती हैं. इस्तीफा देने के बाद वह कहती हैं, मैने सोचा नहीं था कि इतनी बड़ी कंपनी से हमे ऐसे निकाल दिया जाएगा, अब ईएमआई कैसे भरेंगे.”
अंत में वो कहते है, “अब फिर से नौकरी ढूढ़ने में लग गए हैं. उम्मीद है जल्द कहीं नौकरी फिर से लग जाएगी.” गौरतलब हैं कि कुछ दिनों पहले एक लेख में पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव ने लिखा था, “कोरोना महामारी के चढ़ते ग्राफ़ के बीच पत्रकारों की नौकरी जिस गति से जा रही है, वह दिन दूर नहीं जब कोरोना से संक्रमित होने वाले नागरिकों की संख्या को बेरोज़गार हुए पत्रकारों की संख्या पीछे छोड़ दे.”
यह लाइन अभी के हालात में एक दम सटीक तो नहीं लेकिन काफी हद तक सही लगती है.
The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.
ContributeGeneral elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?