बेटे की मौत के इंसाफ की अंतहीन लड़ाई

एनएल सेना पार्ट 2: मुंबई की जीआरपी पुलिस की अमानवीय कहानी जिसमें एग्नेलो नाम के युवक की हिरासत में मौत हुई.

WrittenBy:प्रतीक गोयल
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रात के तकरीबन साढ़े बारह बज रहे थे. मुंबई के रे रोड इलाके में स्थित बॉम्बे पोर्ट ट्रस्ट कॉलोनी के अपने मकान में लियोनार्ड वलदारिस आराम से सो रहे थे. अचानक से उनके दरवाज़े पर ज़ोर-ज़ोर से दस्तक होने लगी. बाहर से आवाज़ें आ रही थी "दरवाज़ा खोलो- दरवाज़ा खोलो, रिची है क्या घर पर." आधी रात को दरवाज़े पर ज़ोरों की दस्तक और अनजान लोगों के मुंह से उनके बेटे का नाम सुनने पर वो डर गए थे. जवाब में जब उन्होंने बोला की उनका बेटा रिची घर पर नहीं है और बाहर मौजूद लोगों से सुबह आने के लिए कहा, तो आवाज़ आयी "हम पुलिस वाले हैं, दरवाज़ा खोलो नहीं तो तोड़ देंगे."

15-16 अप्रैल, 2014 की उस दरम्यानी रात को लियोनार्ड को ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि उनके दरवाज़े पर दस्तक दे रहे (गवर्नमेंट रेलवे पुलिस) लोग अगले 48 घंटों में उनकी ज़िन्दगी में भूचाल ला देंगे और उनका 25 साल का बेटा एग्नेलो वलदारिस (रिची) इन्हीं पुलिस वालों की हिरासत में हवालात में मार दिया जाएगा.

 राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के हिसाब से साल 1999 से लेकर 2017 तक भारत में 1800 लोगों की मौत पुलिस हिरासत में हुई है. इनमें से 404 मौतें महाराष्ट्र में हुयी हैं. पुलिस हिरासत में हुयी इन मौतों के मामलों में सिर्फ 53 मामलों में एफ़आईआर दाखिल हुयी थी और सिर्फ 38 मामलों में आरोपपत्र दाखिल हुए थे. लेकिन एक भी मामले में आरोपियों को सजा नहीं हुयी. एग्नेलो वलदारिस की कहानी ऐसे हज़ारो लोगों की कहानियों को बयान करती हैं जिन्हे हवालात में पुलिसया बर्बरता का शिकार होकर अपनी जान गंवानी पड़ी.

पुलिस ने उस रात एग्नेलो सहित और अन्य तीन लड़कों को अपनी हिरासत में लिया था जिनमें से एक नाबालिग था. लगभग 8-9 घंटे तक पुलिस ने इन्हें हिरासत में रखा और उनके साथ जमकर मारपीट की. आरोप यह भी लगा कि पुलिस ने दोनों को एक दूसरे के साथ यौन क्रिया (ओरल सेक्स) के लिए मजबूर किया. न्यूज़लॉन्ड्री ने जब इस मामले में एग्नेलो के साथ उस रात पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए तीन लड़कों से बातचीत की तो पुलिस की बर्बरता की ऐसी परतें खुली जो किसी की भी रूह कंपा दे.

हिरासत और पुलिस बर्बरता

16 अप्रैल, 2014 की रात लियोनार्ड वलदारिस ने जब दरवाज़ा खोला तो वहां सादे कपड़ों में चार पुलिस वालों के साथ एक नाबालिग लड़के को खड़ा पाया था. पुलिसवालों ने उन्हें बताया था कि वो जीआरपी के लोग हैं और उनके बेटे को चेन छीनने के आरोप में गिरफ्तार करने आये हैं. फिर पुलिस वालों ने उनके पूरे घर की तलाशी ली और उन्हें और उनके छोटे बेटे रीगन को अपने साथ ले गए थे.

न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत के दौरान लियोनार्ड कहते हैं, “उस रात एग्नेलो धारावी में मेरे माता-पिता के घर पर था. पुलिस वाले कह रहे थे कि वह मुझे सायन अस्पताल ले चलेंगे और फिर एग्नेलो को फ़ोन करके कहेंगे कि मेरा एक्सीडेंट हो गया है और जैसे ही वो वहां आएगा वह उसे पकड़ लेंगे. लेकिन मैंने उनसे कहा था कि उन्हें ऐसा करने की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि मैं खुद उन्हें एग्नेलो के पास ले चलूंगा. जब हम धारावी पहुंचे तो वो मेरे बेटे के साथ मारपीट करने लगे. जब मैंने आला अधिकारियों से उनकी इस हरकत की शिकायत करने की बात की तब जाकर उन्होंने मारपीट बंद की. घर की तलाशी लेने पर जब उन्हें कुछ नहीं मिला तो वो एग्नेलो को अपने साथ ले गए."

गौरतलब है कि 15-16 अप्रैल के बीच रात को पुलिस ने एग्नेलो, सुफियान खान (21 साल), मोहम्मद इरफ़ान (19 साल) और एक 15 साल के नाबालिग को चेन छीनने के इल्ज़ाम में पुलिस हिरासत में ले लिया था. इन चारों को हिरासत में लेने के बाद पुलिस उन्हें वडाला जीआरपी थाने ले गयी जहां पुलिस अधिकारी उन्हें 15-16 अप्रैल की मध्यरात्रि से लेकर 16 तारीख की शाम तक अमानवीय यातना देते रहे.

अपने बेटे की मौत की स्थिति के बारे में बताते हुए लियोनार्ड कहते हैं, "16 अप्रैल की दोपहर को मुझे पता चला कि एग्नेलो और उसके तीन दोस्तों को पुलिस उस दिन कोर्ट में पेश नहीं करने वाली है. इस बात का पता चलते ही मैंने इस बारे में मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर से शिकायत करते हुए फैक्स के ज़रिये एक पत्र भेजा था. अगले दिन 17 तारीख की शाम को भी पुलिस ने सिर्फ इरफ़ान और सुफियान को ही अदालत में पेश किया. उस शाम को जब मैं उन दोनों से सीएसटी (छत्रपति शिवाजी टर्मिनस) रेलवे कोर्ट के पास जीआरपी लॉकअप में मिला था तो उनके शरीर पर चोटें थी. इरफ़ान के शरीर के पिछले हिस्से की पूरी खाल उधड़ गयी थी. उन लोगों ने बताया कि पुलिस एग्नेलो को अदालत में पेश नहीं करेगी और पुलिस वाले उससे बहुत बेरहमी से मार रहे हैं. मैंने तुरंत ही पुलिस के इस रवैय्ये की शिकायत सीएसटी रेलवे अदालत के मजिस्ट्रेट से की और उन्होंने वडाला रेलवे पुलिस को उसी शाम एग्नेलो को अदालत में पेश करने का आदेश जारी किया था."

लेकिन अदालत के आदेश के बावजूद भी पुलिस ने उस शाम एग्नेलो को अदालत में पेश नहीं किया. अदालत के आदेश को लेकर जब लियोनार्ड वडाला जीआरपी थाने पहुंचे थे तो वहां पुलिस वालों ने उन्हें बताया कि उनके बेटे को मामूली मरहम पट्टी कराने के लिए सायन अस्पताल ले गए हैं और अगले दिन वो उससे भोईवाड़ा अदालत में पेश करेंगे. लियोनार्ड बताते हैं, "मैं जब एग्नेलो से मिलने सायन अस्पताल पहुंचा तो उसकी कलाई पर पट्टी बंधी हुयी थी और वह ठीक से नहीं चल पा रहा था. मुझे देखते ही वो फूट-फूट कर रोने लगा. वह कह रहा था- डैडी सेव मी, दीज़ पीपल विल किल मी. वह कह रहा था कि पुलिस वाले लगातार थाने में उसे मारते हैं और उसे अदालत में पेश नहीं कर रहे हैं. मैं उसे हौसला दे रहा था कि उसे कुछ नहीं होगा. मेरे बच्चे को रोता हुआ देखकर मेरा दिल बैठ गया था."

अस्पताल पहुंचने पर पुलिस वाले लियोनार्ड को कह रहे थे कि एग्नेलो ने डॉक्टर को दिए बयान में पुलिस की मार को उसकी चोटों का कारण बताया है. पुलिस वाले उसको धमका रहे थे कि वो अपने बेटे का बयान बदलवायें नहीं तो वो उसे अदालत में पेश नहीं करेंगे. पुलिस वाले दबाव बना रहे थे कि लियोनार्ड अस्पताल के कागज़ात पर लिख दें कि एग्नेलो ने खुद अपने शरीर पर चोटें पहुंचाई हैं और वह पुलिस पर बेवजह इल्ज़ाम लगा रहा. लियोनार्ड कहते हैं, "एग्नेलो मुझे ऐसा लिखने को बार-बार मना कर रहा था लेकिन मैं मजबूर था. मुझसे उसकी हालत देखी नहीं जा रही थी. पुलिस ने उसे बहुत मारा था. मुझे किसी भी तरह उससे बचाना था इसलिए पुलिस के दबाव में मैंने लिख दिया था कि मेरे बेटे ने खुद अपनी कलाई पर चोट पहुंचायी हैं."

गौरतलब है कि पुलिस की इस हरकत की पुष्टि उस वक़्त सायन अस्पताल में ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ने भी की थी. न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद सीबीआई को दिए हुए डॉ एजाज़ हुसैन के बयान के मुताबिक़ 17 तारीख की शाम को जब डॉ हुसैन ड्यूटी पर मौजूद थे तो पुलिस वहां एग्नेलो को चिकत्सीय जांच कराने के लिए लेकर आयी थी. पुलिस डॉ पर दबाव बना रही थी कि वह पुलिस के हक़ में जांच रिपोर्ट बनाये और अस्पताल के दस्तावेज़ (कैजुअल्टी रजिस्टर) में लिख दें कि एग्नेलो के शरीर पर लगी हुयी चोटें पुलिस के मार की वजह से नहीं बल्कि उसने खुद अपने आप को पहुंचायी हैं. जब डॉ हुसैन ने ऐसा करने से मना कर दिया था तो पुलिस ने एग्नेलो के पिता पर दबाव बनाकर उनसे ओपीडी के कागज़ों पर लिखवा लिया था कि उसने खुद से अपने आप को चोटें पहुंचायी और वह बेवजह पुलिस पर इल्ज़ाम लगा रहा है.

एग्नेलो ने डॉक्टर को उसकी छाती पर ज़ोर से आघात होने की बात भी बताई थी. इसके मद्देनज़र डॉ ने पुलिस को एग्नेलो की छाती का एक्स-रे करने के निर्देश भी दिया था लेकिन पुलिस ने उनकी अनसुनी कर दी थी.

लियोनार्ड कहते हैं, "वो आखिरी बार था जब मैंने अपने बेटे को देखा था. उस रात को भी वडाला रेलवे पुलिस के एक अधिकारी सुरेश माने ने मुझे फ़ोन करके थाने आकर बयान देने को कहा था. लेकिन मैंने उनसे कह दिया था कि मैं पहले ही अस्पताल में बयान दे चुका हूं. अगले दिन एग्नेलो ने एक पुलिस वाले के मोबाइल के ज़रिये मेरे छोटे बेटे रीगन को फ़ोन किया था, वह कह रहा था कि उसे डिहाइड्रेशन (शरीर में पानी की कमी) हो गया है और उसने अपने लिए ग्लुकॉन-डी मंगाया था. उसने यह भी बताया था कि रात को भी पुलिस ने उसे बहुत मारा था. तकरीबन साढ़े ग्यारह बजे मैं अदालत पहुंच गया था, लेकिन वहां पर कोई नहीं था. मैंने जब पुलिस अधिकारी सुरेश माने को फ़ोन किया तो उन्होंने मुझे सायन अस्पताल आने के लिए कहा. वहां पहुंचने पर वो मुझे मुर्दाघर ले गए जहां मेरे बेटे की लाश रखी थी. वो कहने लगे कि मेरे बेटे ने पुलिस की हिरासत से भागने की कोशिश की और ट्रेन के आगे कूदकर अपनी जान दे दी. अपने बेटे की लाश देखकर मैं बेहोश हो गया था."

थाने में पुलिस की हैवानियत

15-16 अप्रैल की रात और दिन वडाला रेलवे के थाने में ऐसा कुछ हुआ था जो किसी के भी रोंगटे खड़ा कर दे. उस रात एग्नेलो के साथ वहां उसके दोस्त इरफ़ान, सुफियान और 15 साल का एक नाबालिग भी वहां मौजूद था. एग्नेलो के साथ-साथ पुलिस ने इन तीनों को भी अपनी हिरासत में ले लिया था. इन तीनों को आज भी लॉकअप में बिठाये उस मंज़र का एक-एक लम्हा याद है जब पुलिस ने इनके साथ मार-पीट करते वक़्त दरिन्दिगी की सारी हदें पार कर दी थी.

 न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत के दौरान इरफ़ान कहते हैं, "थाने में पुलिस वालों ने ज़बरदस्ती मेरे सारे कपड़े फाड़ कर मुझे नंगा कर दिया था. फिर टेबल पर लिटा कर वह मुझे चक्की के पट्टे से और डंडे से मार रहे थे. इरफ़ान को टेबल पर लिटाकर इतना पीटा था कि वो बेहोश हो गया था. बेहोश होने पर पुलिस वालों ने उस पर पानी डाला और होश में आने के बाद फिर मारने लगे थे. उसके बाद पुलिस वालों ने उसे ज़बरदस्ती उसके दो दोस्तों का लिंग मुंह में लेने के लिए मजबूर किया था. पुलिस वालों ने इरफ़ान के हाथ-पैरों को बांधकर उसके पैरो के बीच से एक लोहे की छड़ को निकालते हुए उल्टा लटका दिया था. एक पुलिस वाला उसके गुप्तांग में डंडा घुसाने की कोशिश कर रहा था और कह रहा था कि अगर वो गुनाह कबूल नहीं करेगा तो वो उसके गुप्तांग में पेट्रोल डाल देंगे."

अपने साथ हुई दरिंदगी के बारे में बताते हुए वो आगे कहते हैं, "जब मुझे उल्टा लटका कर पीटा जा रहा था तो बहुत दर्द हो रहा था. वो लोग मारते-मारते कह रहे थे कि मैं स्वीकार कर लूं कि मैंने चोरी की है और मैं उनसे हर बार यही कह रहा था कि मैं बेगुनाह हूं. मार के दर्द की वजह से मुझे पेशाब आ रही थी, मैंने उनसे गुजारिश की कि वो मुझे नीचे उतार दे जिससे मैं पेशाब करने जा सकूं. लेकिन वह कहने लगे अगर पेशाब करना है तो यही ऊपर लटके हुए ही कर ले और अपना पेशाब पी ले. कुछ मिनट बाद मैं अपने पर काबू नहीं रख पाया और मेरा पेशाब निकल गया. मेरा पेशाब मेरे मुंह पर गिर रहा था."

न्यूज़लॉन्ड्री को यह बताने के बाद इरफ़ान कुछ क्षणों के लिए एकदम शांत हो गए. बाद में इरफ़ान को उसी हालत में छोड़ कर पुलिस वाले चले गए थे. जब वो लौटे तो इरफ़ान के शरीर में दर्द इतना असहनीय हो चुका था कि मार से बचने के लिए उन्होंने कह दिया था कि उन्होंने चोरी की है. इसके बाद इरफ़ान को पुलिस वालों ने नीचे उतारकर थाने के अंदर निर्वस्त्र अवस्था में दौड़ा रहे थे. वह बताते हैं, "मुझे इतना दर्द हो रहा था, ताकत नहीं थी कि मैं चल भी सकूं, लेकिन वो मुझे दौड़ा रहे थे. उस दिन लग रहा था कि मैं शायद मार जाऊंगा."

पुलिस ने थाने में लगभग 8-9 घंटे तक एग्नेलो, इरफ़ान, सुफियान और उनके नाबालिग दोस्त के साथ मारपीट की थी. 16 अप्रैल की शाम को करीबन चार बजे एग्नेलो की छाती में तेज़ दर्द होने लगा था. उसके मुंह से झाग निकलने लगा था और वो बेहोश हो गया था. कई बार अस्पताल ले चलने की मिन्नतें करने के बाद भी उसे पुलिस अस्पताल नहीं ले गयी थी. 16 तारिख की शाम इरफ़ान, सुफियान और नाबालिग की तो मेडिकल जांच हो गयी थी लेकिन एग्नेलो को पुलिस ने थाने में ही रखा था. 17 तारीख को भी उसे भी अदालत में पेश नहीं किया गया था. 18 तारीख को पुलिस ने उसके पिता और दोस्तों को बताया कि उसकी मौत हो गयी है.

इरफ़ान कहते हैं, "मेडिकल जांच के बाद 17 अप्रैल की सुबह पुलिस कुछ समय के लिए मुझे वडाला रेलवे पुलिस थाने ले गयी थी, जहां रिची ने मुझे बताया था कि पुलिस ने उनके जाने के बाद उसे बहुत मारा था. 18 अप्रैल को पुलिस वाले कह रहे थे कि वो उनकी हिरासत से भागते हुए ट्रेन से टकराकर मर गया लेकिन हमें पता था कि पुलिस झूठ कह रही है. रिची को पुलिस ने इतना मारा था कि दौड़ना तो दूर वह ठीक से चल भी नहीं पा रहा था." इस मामले में सबसे हैरतअंगेज़ बात ये है कि जिस व्यक्ति ने चेन छीनी जाने की शिकायत की थी उसने पहचान परेड के दौरान एग्नेलो, इरफान, सुफियान और नाबालिग को देखकर कहा था कि ये वो लोग नही हैं जिन्होंने उनकी चेन छीनी थी.

सीबीआइ की जांच और पुलिस की हेराफेरी

अपने बेटे की मौत के बाद लियोनार्ड वलदारिस ने 30 अप्रैल 2014 को वडाला रेलवे पुलिस थाने के प्रभारी के पास पुलिस हिरासत में उनके बेटे की हत्या के सम्बन्ध में शिकायत दर्ज कराई थी. शिकायत दर्ज कराने के कुछ दिन बाद इस मामले की जांच को राज्य सीआईडी (क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट/ अपराध अन्वेषण विभाग) को सौंप दिया गया था. इस मामले की जांच सीआईडी के उप पुलिस अधीक्षक एसडी खेडेकर कर रहे थे. लेकिन जब सीआईडी के अधिकारी जांच के दौरान लियोनार्ड, इरफ़ान, सुफियान को धमकाने लगे और आरोप वापस लेने का दबाव बनाने लगे तो उन्होंने मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिसके बाद जांच जून 2014 में सीबीआई को सुपुर्द कर दी गयी थी.

सीबीआई की जांच में यह बात सामने आ गयी थी कि वडाला रेलवे पुलिस के अधिकारियों ने सबूतों के साथ छेड़छाड़ के अलावा पुलिस रजिस्टर में चारों लोगों को हिरासत में लेने की तारीख भी गलत लिखी थी. पुलिस ने एग्नेलो वलदारिस को 15-16 अप्रैल की रात के तकरीबन दो बजे धारावी स्थित उनके घर से हिरासत में लिया था जबकि पुलिस थाने की डायरी में गिरफ्तारी की तारीख 17 अप्रैल को पौने चार बजे की बतायी गयी है.

गौरतलब है कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक़ एग्नेलो के शरीर पर ऐसे कई घाव थे जो उनकी मौत से 24 से लेकर 96 घंटे पहले लगी थी. उनकी खोपड़ी पर किसी ठोस चीज़ से लगने वाली चोटों के ऐसे निशान थे जो उनकी मौत के 12 घंटे पहले लगे थे. उनके हाथ, पैर और पीठ पर भी कई ऐसी चोटें थी जो उनकी मौत के 24 घंटे पहले लगी थीं. इसके अलावा उनकी शरीर को कई अंदरूनी चोटें उनकी मौत के पहले लगी थी. उनकी मौत के पहले उनकी दोनों तरफ की पसलियां टूट चुकी थी, उनके फेफड़ों में चोटें थीं. उनके चेहरे पर, सिर पर भी चोटों के निशान थे जो उनकी मौत के पहले लगी थी. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक़ इकट्ठा इतनी सारी चोटों से सामान्य परिस्थिति में मृत्यु हो सकती है. (न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद है पोस्टमोर्टम रिपोर्ट)

साल 2016 में सीबीआई ने इस मामले में वडाला रेलवे पुलिस थाने के तत्कालीन पुलिस अधिकारियों जितेंद्र राठौड़, अर्चना पुजारी, शत्रुघ्न तोंडसे, सुरेश माने, रविंद्र माने, विकास सूर्यवंशी, सत्यजीत कांबले और तुषार खैरनार पर झूठे सबूत इकट्ठा करना, आपराधिक षडयंत्र रचना, गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लेकर मारपीट करने जैसे आरोप दाखिल किये थे. हालांकि कार्यवाही के आदेश के बाद भी दोषी आरोपियों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई.

लेकिन अपने बेटे को इन्साफ दिलाने के लिए लियोनार्ड वलदारिस फिर से अदालत गए और आरोपियों पर हत्या की धारा लगाने की अपील की. लगातार कोशिशों के बाद आखिरकार दिसंबर 2019 में मुंबई उच्च न्यायालय ने सीबीआई को आदेश दिया कि सभी दोषी पुलिसवालों पर हत्या का आरोप दाखिल कर कार्यवाही की जाए. मगर अदालत के आदेश के बावजूद भी आरोपी पुलिस वालों पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुयी है.

आज भी लियोनार्ड वलदारिस की अपने बेटे को न्याय दिलाने की मुहिम जारी है. वह कहते हैं, "हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद भी दोषी पुलिस वालों के खिलाफ कुछ नहीं हुआ है. हो सकता है कि कोविड-19 के चलते उन्हें पकड़ नहीं रहे हों, लेकिन मैं भी अपनी अंतिम सांस तक अपने बेटे को न्याय दिलाने के लिए लड़ता रहूंगा.”

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कई हिस्सों में प्रकाशित होने वाली कस्टोडिल डेथ इन इंडिया का यह दूसरा हिस्सा है. पहली रिपोर्ट पढ़ने के लिए क्लिक करें.

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यह स्टोरी एनएल सेना सीरीज का हिस्सा है, जिसमें हमारे 68 पाठकों ने योगदान दिया. यह अंजलि पॉलोड, सोनाली सिंह, डीएस वेंकटेश, योगेश चंद्रा, अभिषेक सिंह और अन्य एनएल सेनाके सदस्यों से संभव बनाया गया. हमारे अगले एनएल सेना बिहार इलेक्शन 2020 प्रोजेक्ट को सपोर्ट करें और गर्व से कहें 'मेरे खर्च पर आज़ाद हैं ख़बरें'.

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