महिलाओं के नजरिए से इस चुनाव में कहां खड़े हैं नीतीश कुमार

ऐसा माना जाता है कि बिहार की आधी आबादी यानी महिलाओं में नीतीश कुमार की पकड़ मजबूत है. पर क्या इस चुनाव में भी महिलाएं नीतीश कुमार के साथ खड़ी हैं?

WrittenBy:बसंत कुमार
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साल 2019 में बिहार पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक बलात्कार के कुल 1,450 मामले सामने आए. साल 2020 में मार्च महीने में देशव्यापी लॉकडाउन लगा उसके बाद से लोगों का बाहर निकलना एक तरह से कम हुआ, लेकिन इस दौरान भी रेप के मामले सामने आते रहे. बिहार पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल में 82, मई में 120, जून में 152, जुलाई में 149 और अगस्त 139 बलात्कार के मामले दर्ज हुए. यानी औसतन हर दिन 4 से 5 मामले सामने आए. इस दौरान कई गैंगरेप का वीडियो भी वायरल हुआ.

बिहार का 2020 का अपराध संबंधी आकंड़ा

नीतीश कुमार ने दहेज लेन-देन के मामले को रोकने के लिए एक अभियान चलाया. लेकिन इसका भी कोई खास ज़मीनी असर देखने को नहीं मिला. आज भी स्थानीय अखबारों में लड़कियों को दहेज के नाम पर जलाने की ख़बरें छपती ही रहती हैं.

महिलाओं की इन तमाम परेशानियों को कोई चुनावी दल मुद्दा नहीं बना रहा. दरभंगा की रहने वाली एथलीट अम्बिका रश्मि कहती हैं, "इस चुनाव में महिला सुरक्षा पर तो बात नहीं हो रही लेकिन महिला सशक्तिकरण पर ज़रूर कुछ लोग बात करते हैं. वर्किंग स्पेस को सुरक्षित बनाने की बात करते है. वर्किंग स्पेस से घर तक कि जो दूरी होती है वह भी सुरक्षित नहीं होती है. किसी एनजीओ में या किसी भी तरह के संस्थान में जाकर महिलाएं काम कर रही हैं लेकिन वहां से हम रात को नहीं लौट सकते हैं. अगर आने जाने की सुरक्षा नहीं रहेगी तो महिलाएं कैसे काम कर पाएंगी."

अम्बिका अपना अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, "मैं और मेरी बहन खेल से जुड़े हुए हैं. हमारी जो एकादमी है उसका समय सुबह साढ़े पांच बजे होता है. अभी के मौसम में साढ़े पांच बजे अंधेरा रहता है. हम घर से निकलकर वहां नहीं जा सकते हैं क्योंकि रास्ता अंधेरे मेें असुरक्षित है. अगर मेरे भाई या मेरे पिता मेरे साथ नहीं आएंगे तो हम लोग क्लास भी नहीं जा सकते हैं. पुलिस तो छोड़िए यहां की सड़कों पर स्ट्रीट लाइट तक नहीं है. बिना महिला सुरक्षा के महिला सशक्तिकरण की बात कैसे होगी."

शराबबंदी

राजधानी पटना में रहने वाले एक पत्रकार हंसते हुए कहते हैं, ‘‘बिहार में शराबबंदी है, यह एक मजाक के सिवा कुछ नहीं है. आपको पहले शराब खरीदने दुकान पर जाना पड़ता था लेकिन अब तो आपके घर पर ही आ जाएगा.’’

बिहार में शराबबंदी काफी धूमधाम से किया गया. एक मजबूत कानून बनाया गया और उसके तहत आरोपी पाए गए सैंकड़ों लोगों को जेल भेज दिया गया. तब कहा गया कि नीतीश कुमार के इस दांवे से आधी आबादी का वोट उनका हो गया. शुरुआत में महिलाएं भी इससे खुश दिखीं, लेकिन आगे चलकर वहीं महिलाएं अब नीतीश कुमार से खफा दिखती हैं.

दरभंगा में नीतीश कुमार की रैली में पहुंची एक महिला से जब हमने शराबबंदी को लेकर सवाल पूछा तो वह कहने लगी, ‘‘अब तो घरे-घरे मिल रहा है. पहले जो शराब 50 रुपए का मिलता था अब वो दो सौ-तीन सौ रुपए का मिल रहा है. अब तो नुकसान ज़्यादा हो रहा है. जब शराबबंदी हो गई तो शराब आ कैसे रहा है. मेरे हिसाब से तो उन्हें इस तरह की बंदी हटा लेनी चाहिए. कम से कम पैसा ही बच जाएगा, पीने वाले तो मानेंगे नहीं.’’

समस्तीपुर की रहने वाली रेणु देवी ने बताया, ‘‘पहले घर के आदमी लोग बाजार से पीकर आते थे अब घर पर ही लेकर आते हैं. पहले से ज्यादा मुश्किल हो गया है. काम-धाम है नहीं, समान बेचकर भी पी जाते हैं मर्द लोग.’’

हालांकि किशनगंज की अनिता शराबबंदी से खुश दिखीं. उनके मुताबिक शराब मिल भले रही है लेकिन अब लोग पीकर सड़कों पर ड्रामा नहीं कर रहे हैं. अगर कोई ड्रामा करता है तो पुलिस को फोन करने पर कार्रवाई भी होती है.

बिहार के अलग-अलग जिलों में हमने तमाम महिलाओं से शराबबंदी पर सवाल किया. उनकी प्रतिक्रिया मिलीजुली रही. लेकिन एक बात साफ है कि नीतीश कुमार के इस फैसले का उनको कोई खास राजनीतिक लाभ महिला वोटरों की तरफ से मिलता नहीं दिख रहा.

महिला वोट नीतीश को मिलेगा?

बिहार चुनाव के दौरान अलग-अलग जिलों की यात्रा करने वाली पत्रकार साधिका तिवारी कहती हैं, ‘‘यह कहना मुश्किल है कि महिला वोटरों का जिस तरह समर्थन पहले नीतीश कुमार को मिलता था वैसा इस बार मिल पाएगा. इसके पीछे कई कारण हैं. पहला कि खुद सरकारी आंकड़ें ही बताते हैं कि सरकार अब महिलाओं से जुड़ी योजनाओं पर खर्च कम कर दी है. दूसरी बात बीते पांच साल में महिलाओं को लेकर कुछ नया नहीं हुआ. साइकिल योजना हो या पंचायत चुनाव में 50 प्रतिशत आरक्षण देने की बात. अब यह सब योजनाएं पुरानी हो गई हैं. इसका कोई खास असर भी नहीं हुआ. साइकिल योजना का लाभ 9वीं क्लास में मिलता है आर्थिक रूप से कमज़ोर तबके की लड़कियां 9वीं तक जाने से पहले ही पढ़ाई छोड़ देती हैं. पंचायत चुनाव में आरक्षण देने का मकसद था महिला नेतृत्व में वृद्धि करना लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा.’’

अपने आखिरी चुनाव की घोषणा कर चुके नीतीश कुमार को महिलाओं का समर्थन नहीं मिला तो यह उनके राजनीतिक जीवन का सबसे खराब प्रदर्शन भी हो सकता है.

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