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एनएल चर्चा 144 : किसानों का प्रोटेस्ट, ट्विटर ने किया बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय को चिन्हित

हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ़्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.

     

एनएल चर्चा का 144वां एपिसोड मुख्य तौर पर किसानों के आंदोलन और उससे जुड़ी ख़बरों पर केंद्रित रहा. किसान नेताओं और केंद्र सरकार के मंत्रियों के बीच गुरुवार को हुई दूसरी बैठक सात घंटे चली जिसका निष्कर्ष कुछ भी नहीं निकला. सिंधु बॉर्डर पर आंदोलन में शामिल होने से रोकी गईं शाहीनबाग़ आंदोलन की दादी बिलकिस बानो, किसानों की मांग विशेष सत्र बुलाकर तीनो क़ानून को किया जाए रद्द, ट्वीटर ने अमित मालवीय के ट्वीट को "मैनिपुलेटेड मीडिया'' बता किया चिन्हित, किसानों द्वारा मीडिया के एक बड़े हिस्से को किया गया बायकॉट, ब्रिटेन में वैक्सीन फ़ाइज़र को मंजूरी अगले हफ्ते से लगेगा पहला शॉट और एमडीएच के मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी का निधन का भी जिक्र हुआ है.

इस बार चर्चा में एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस, शार्दूल कात्यायन और न्यूज़लॉन्ड्री के संवाददाता बसंत कुमार शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

चर्चा को शुरू करने से पहले अतुल, बसंत से पूछते हैं, ''सरकार और किसान नेताओं के बीच कल दूसरे दौर की बातचीत हुई, लेकिन इसका कुछ नतीजा नहीं निकला. यह बातचीत प्रक्रिया आज भी जारी रहेगी, तो क्या कुछ निकलेगा आप इसकी जानकारी दें.''

बसंत कहते हैं,'' कल जो चर्चा हुई उसमें कुछ खास नहीं निकला, जब कुछ किसान नेता वहां से बाहर निकले तो हमारी उसने बात हुई. जिसमें राकेश टिकैत और शिव कुमार कक्काजी थे. उन्होंने कहा, ''हमारी बस एक ही मांग है कि इन क़ानूनों को वापिस लिया जाए और एमएसपी को लेकर एक क़ानून बनाया जाए.''

बसंत आगे कहते हैं, "सरकार ने दो आश्वासन दिए हैं. पहला जिसमें कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में सिविल कोर्ट जाने दिया जा सकता है. दूसरा एमएसपी को लेकर सरकार के आश्वासन पर किसान नेताओं ने कहा आश्वासन से नहीं हमे क़ानून हटवाना है, तभी हम पीछे हटेंगे. अब अगली बातचीत पांच दिसंब को है. वहीं कल आंदोलन को बड़ा करने के लिए किसान यूनियन देशभर में मोदी- अडानी के पुतले गांवों में जलाने की तैयारी कर रहे हैं. देखा जाए तो बातचीत हो रही है लेकिन वह बेनतीजा है, क्योंकि सरकार समझाने की कोशिश कर रही है और उनकी मांग है कि इसको हटाए जाए.

अतुल कहते हैं, "एक तरह से सरकार के रुख में लचीलापन दिख रहा है. जब किसान कहते हैं कि हम अपना अनाज खुद लेकर आये हैं, हम अपना खाना खुद खाएंगे सरकार का नहीं. ये सन्देश देने के लिए बड़ी चीज़ है. किसान पूरे देश के लिए अन्न पैदा करता है और पूरे देश का पेट भरने का काम करता है. उनके लिहाज़ से इस तरह का मैसेज दिया जाना, कि हम अपना खाना खुद बनाकर खा सकते हैं. और यहां रह कर विरोध कर सकते हैं. इस तरह की छोटी-छोटी चीज़ों में किसानों के अंदर भी एक बड़ी राजनीति चेतना और बड़ी रणनीति चल रही है.''

अतुल आगे बसंत को शामिल करते हुए कहते हैं, ''वो कौन लोग हैं जो इस तरह की, बारीक चीज़ों की निगरानी कर रहे हैं.''

बसंत कहते हैं, ''इसमें तो कोई शक नहीं, जितने भी यूनियन के नेता हैं वो सब पके हुए हैं. जिनका हमने इंटरव्यू किया, उनको पचास साल हो गए किसानों की राजनीति करते हुए. वहीं जो मंत्री इनसे बात कर रहे हैं, उनसे ज्यादा इनको किसान राजनीति का अनुभव है. तो फैसले जो लिए जा रहे हैं सब तैयारी के साथ और जानबूझ कर लिए जा रहे हैं.''

मेघनाथ कहते हैं, ''हमे यह देखना चाहिए कि गुस्सा इस बात का है जो उसमें कुछ नियम हैं जो किसानों के खिलाफ़ जाएंगे. वहीं एमएसपी की बात है पर कोर्ट नहीं जाने का कलॉज भी एक बड़ा मुद्दा है. दसूरी चीज़ क़ानून के बारे में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में यह दिखाया गया, जो इंटरव्यू राजेवाल जी ने बोला, इसका इफ़ेक्ट आपको अभी देखने को मिलेगा. अगर मार्किट में मूल्य गिर गया, तो केवल किसान ही नहीं उसके बीच के बिचौलिए लोग जिन्हें खलनायक कहने की ज़रूरत नहीं है ये सर्विस देते हैं, इनका काम है मूल्य को खोजना, मंडी जाकर इसको बेचकर किसान को एक सही मूल्य देना.

मेघनाथ आगे कहते हैं, ''इनका नुकसान तो होगा ही लेकिन कुछ पांच लाख मजदूर जो सामान उठाने और रखने का काम करते हैं. उनको भी इफ़ेक्ट पड़ेगा. ऐसे में छह लाख लोगों का रोज़गार चल जाएगा.''

इस पर शार्दुल कात्यायन कहते हैं, ''जो भी हिंदुस्तान के जीवन और परिवेश को समझते हैं और मैं जानता हूं भाजपा के लोग इसको समझते होंगे. इस कदम का कितना बड़ा मतलब है, वो आपको दिखा रहे हैं, कि आज आपकी और हमारी दो पक्की फाड़ हो गई है. कि हम आपके यहां का पानी या मानक भी नहीं छुएंगे. मुझे लगता है दिक्कत जो भाजपा को आ रही है, कि उनके पास जाना माना कृषि चेहरा नहीं है. ले देकर राजनाथ सिंह की बात होती है जो कृषि नेता तो नहीं थे, उनके बात में वजन है ये बात हो सकती है. वहीं भाजपा में एक घटक जो अकाली दल था, वो भी अपनी राजनीति देखते हुए निकल लिया.''

सलाह और सुझाव

मेधनाथ

एस्प्लेनेड: व्हाई इज़ युएपीए अ द्रकोनियन लॉ

द यूनिवर्सीम

संविधान भाग- 2 (भाषा)

संविधान भाग- 1 फ्री स्पीच

शार्दुल कात्यायन

माई ऑक्टोपस टीचर- डॉक्यूमेंट्री

टुमारो - डॉक्यूमेंटरी

बसंत

बलबीर सिंह राजेवाल का इंटरव्यू

जगजीत सिंह का इंटरव्यू

अतुल चौरसिया

बसंत की ग्राउंड रिपोर्ट

निधि की ग्राउंड रिपोर्ट

भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन और राष्ट्रवाद- इरफ़ान हबीब

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इस बार चर्चा में एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस, शार्दूल कात्यायन और न्यूज़लॉन्ड्री के संवाददाता बसंत कुमार शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

चर्चा को शुरू करने से पहले अतुल, बसंत से पूछते हैं, ''सरकार और किसान नेताओं के बीच कल दूसरे दौर की बातचीत हुई, लेकिन इसका कुछ नतीजा नहीं निकला. यह बातचीत प्रक्रिया आज भी जारी रहेगी, तो क्या कुछ निकलेगा आप इसकी जानकारी दें.''

बसंत कहते हैं,'' कल जो चर्चा हुई उसमें कुछ खास नहीं निकला, जब कुछ किसान नेता वहां से बाहर निकले तो हमारी उसने बात हुई. जिसमें राकेश टिकैत और शिव कुमार कक्काजी थे. उन्होंने कहा, ''हमारी बस एक ही मांग है कि इन क़ानूनों को वापिस लिया जाए और एमएसपी को लेकर एक क़ानून बनाया जाए.''

बसंत आगे कहते हैं, "सरकार ने दो आश्वासन दिए हैं. पहला जिसमें कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में सिविल कोर्ट जाने दिया जा सकता है. दूसरा एमएसपी को लेकर सरकार के आश्वासन पर किसान नेताओं ने कहा आश्वासन से नहीं हमे क़ानून हटवाना है, तभी हम पीछे हटेंगे. अब अगली बातचीत पांच दिसंब को है. वहीं कल आंदोलन को बड़ा करने के लिए किसान यूनियन देशभर में मोदी- अडानी के पुतले गांवों में जलाने की तैयारी कर रहे हैं. देखा जाए तो बातचीत हो रही है लेकिन वह बेनतीजा है, क्योंकि सरकार समझाने की कोशिश कर रही है और उनकी मांग है कि इसको हटाए जाए.

अतुल कहते हैं, "एक तरह से सरकार के रुख में लचीलापन दिख रहा है. जब किसान कहते हैं कि हम अपना अनाज खुद लेकर आये हैं, हम अपना खाना खुद खाएंगे सरकार का नहीं. ये सन्देश देने के लिए बड़ी चीज़ है. किसान पूरे देश के लिए अन्न पैदा करता है और पूरे देश का पेट भरने का काम करता है. उनके लिहाज़ से इस तरह का मैसेज दिया जाना, कि हम अपना खाना खुद बनाकर खा सकते हैं. और यहां रह कर विरोध कर सकते हैं. इस तरह की छोटी-छोटी चीज़ों में किसानों के अंदर भी एक बड़ी राजनीति चेतना और बड़ी रणनीति चल रही है.''

अतुल आगे बसंत को शामिल करते हुए कहते हैं, ''वो कौन लोग हैं जो इस तरह की, बारीक चीज़ों की निगरानी कर रहे हैं.''

बसंत कहते हैं, ''इसमें तो कोई शक नहीं, जितने भी यूनियन के नेता हैं वो सब पके हुए हैं. जिनका हमने इंटरव्यू किया, उनको पचास साल हो गए किसानों की राजनीति करते हुए. वहीं जो मंत्री इनसे बात कर रहे हैं, उनसे ज्यादा इनको किसान राजनीति का अनुभव है. तो फैसले जो लिए जा रहे हैं सब तैयारी के साथ और जानबूझ कर लिए जा रहे हैं.''

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