देर रात भीषण आग लग लग जाने से 100 से ज्यादा झोंपड़ियां जल कर राख हो गईं.
सोमवार दोपहर जब न्यूज़लॉन्ड्री की टीम दक्षिण पूर्वी दिल्ली के ओखला फेज-2 स्थित संजय कॉलोनी में ग्राउंड जीरो पर पहुंची तो वहां लोग अपने जले हुए घरों से मलबे में तब्दील हो चुके सामान को निकालने में लगे हुए थे. लगभग 30 घंटे बाद भी जहां-तहां धुआं निकल रहा था, जिसमें से बीच-बीच में आग की लपटें भी निकल रही थीं. चारों तरफ, जहां तक निगाह जाती वहां तक तबाही का मंजर ही नजर आ रहा था. कुछ लोग अपने जले हुए सामान को कबाड़े वालों को बेच रहे थे, तो कुछ अपने जले आशियाने के सामने गमगीन सोच- विचार की मुद्रा में थे.
The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.
Contributeबता दें कि इस कॉलोनी में शनिवार देर रात भीषण आग लग गई, जिसमें 100 से ज्यादा झोंपड़ियां जल कर राख हो गईं. गनीमत यह रही कि इस आग से किसी व्यक्ति को हानि नहीं पहुंची. हालांकि इन लोगों के मुताबिक कुछ मवेशियों की आग में जलकर मौत हो गई. आग लगने के कारण का अभी तक पता लग पाया है. कुछ लोगों ने बताया कि ये आग लगाई गई है जिससे हमें यहां से उजाड़ा जा सके.
आरोप यह भी है कि आग की सूचना देने के कई घंटों बाद दमकल की गाड़िया मौके पर पहुंचीं. फिलहाल इन लोगों के लिए स्थानीय तुगलकाबाद से विधायक चौ. सहीराम पहलवान की तरफ से पास ही तंबू गाड़कर रहने और खाने का इंतजाम कर दिया गया है. यहां रात में कंबल भी बांटे गए हैं. तंबू के अंदर दिखाते हुए एक शख्स ने कहा सर! जैसा देखो, वैसा ही लिखना. तंबू में कंबल और सोने का साफ-सफाई से अच्छा इंतजाम किया गया था. कुछ छोटे बच्चे खाना खा रहे थे.
दरअसल हरिकेश नगर मेट्रो स्टेशन से बिल्कुल लगी हुई इस कॉलोनी में झुग्गी और कुछ कपड़े के कतरन के गोदाम थे. यहां अधिकतर परिवार इसी कपड़े के स्क्रैप (कतरन) का काम करते हैं. यही उनकी रोजी- रोटी का जरिया है. इस आग ने यहां रहने वाले लोगों की लाखों की संपत्ति और घरों को तबाह कर दिया. अब इन्हें अपने भविष्य की चिंता सता रही है. बहुत से लोगों ने बताया कि उनके पास तो यही बचा है जो उन्होंने पहना हुआ है. इस दौरान मैट्रो की सुरक्षा में लगे जवानों ने भी इस मुश्किल घड़ी में इन लोगों को बचाने में काफी मदद की.
62 साल के भगवान दास प्रजापति अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अपने जले बर्तन और अन्य सामान समेट रहे थे. ये परिवार उत्तम नगर की कुम्हार कॉलोनी से मिट्टी के सामान लाकर यहां बेचने का काम करता था. इनके घर का सारा सामान ही नहीं बल्कि घर में रखे रुपये भी इस आग की भेंट चढ़ गए. कुछ अधजले 500 के नोट भी उन्होंने दिखाए. उनकी पत्नी अनारो देवी ने बताया, "तीन कोनों से आग लगी थी, हम तो सोए हुए थे. पता ही नहीं चला आग कैसे लगी. सब कुछ फ्रिज, टीवी ही नहीं तन के कपड़े भी नहीं बचे हैं. राशन कार्ड, आधार पैसे सब जल गया. आग लगभग एक बजे लगी लेकिन फायर ब्रिगेड ढ़ाई बजे पहुंची. उनकी पुत्र वधू ने पास ही छोटे से मंदिर की ओर इशारा करते हुए कहा कि मूर्तियां भी नहीं बचीं.
दूसरे छोर पर दो-तीन लोगों के साथ खड़े 30 साल के माधो सिंह भी अपना सब कुछ गंवा चुके हैं. उन्होंने कहा, “लगभग 10 साल से यहीं रहकर कपड़े के स्क्रैप का काम करते हैं. जो पहने हुए हैं यही बचा है. बर्तन-भांडे सब जल गए. बड़ी मुश्किल से बाहर निकले हैं.”
बबीता का भी यहां कारखाना था जो पूरी तरह जल गया. उन्होंने बताया, "हम एक्सपोर्ट कम्पनी से माल लाकर यहां बनाते थे. हमारे यहां 4-5 महिलाएं भी काम करती थीं. उनके रोजगार की भी दिक्कत हो जाएगी. कम्पनी में काम करने वाले यूपी के जेवर निवासी 25 साल के अजीत को खींचकर बाहर निकाला था."
बातचीत के दौरान यहां के लोगों को अपना आशियाना खोने का डर सता रहा है. उनका कहना था कि अब उनसे ये जगह न छीनी जाए क्योंकि यहीं से उनकी रोजी-रोटी और परिवार चलता है.
ऐसी आशंका हमसे यहां मिलीं 40 साल की सीता ने व्यक्त की. मूलरूप से लखनऊ निवासी सीता अपने जले हुए कांटे को कबाड़ी को बेज रही थीं. वे हमें अपने साथ ले गईं जहां उनका ठिकाना था, जो अब पूरी तरह जमीदोंज हो चुका है. पति की मौत के बाद सीता ही परिवार की जिम्मेदारी निभा रही हैं.
सीता ने कहा, “कुछ सामान नहीं बचा, जान बचाते या सामान. बस अब हमें यही जगह वापस मिल जाए वही काफी है. बाकि स्थानीयय विधायक ने रहने और खाने की सुविधा करा दी है. अच्छा खाना मिल रहा है.”
सीता के पास ही मालती देवी भी सिर पर हाथ रखे अपने जले हुए ठेलों और घर को देख रहीं थीं. परिवार में 2 लड़के और 2 लड़की हैं. मालती के पुत्र 23 साल के राकेश पढ़ाई के साथ ही घर के काम में भी हाथ बंटाते हैं. वह सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के देशबंधु कॉलेज से बीए की पढ़ाई कर रहे राकेश कुमार ने उस रात का वर्णन करते हुए बताया, "आग इतनी तेजी से फैली थी कि आग को इधर से उधर पहुंचने में बहुत कम टाइम लगा. हमें जान बचाने के लिए मैट्रो की दीवार कूदकर भागना पड़ा. मेरे सारे स्कूल के डॉक्यूमेंट भी जल गए."
इनके अलावा नवाब, खेमचंद, शेरसिंह, सरस्वती, हंसरानी, गौतम सहित जो लोग भी हमें यहां मिले सभी की यही कहानी है. जिनका सब सामान इस आग की भेंट चढ़ गया. नवाब और शेरसिंह ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा कि ये आग लगाई गई है.
सरस्वती ने एक अलग कहानी बताई, "सुबह हमें यहां से हटाने के लिए जेसीबी और डंफर भी आ गए थे. जो इस बचे मलबे को भरकर ले जाना चाहते थे. लेकिन स्थानीय विधायक ने आकर ऐसा नहीं होने दिया और हमारा सपोर्ट किया."
इस दौरान विधायक चौ. सहीराम पहलवान की ये सब लोग तारीफ करते नजर आए. दौरा करने आए विधायक से न्यूज़लॉन्ड्री ने बात की.
विधायक चौ. सहीराम घटना के बारे में बताते हैं, "जितने लोगों के घर जले हैं उनकी लिस्ट बनाकर भेज दी गई है, एसडीएम भी दौरा कर गए हैं. फौरी तौर पर रात ही इन्हें कंबल बांट दिए गए हैं. खाने और रहने के लिए अस्थाई तंबू का इंतजाम कर दिया गया है. लगभग 80 के आसपास घर जले हैं. एक दो आदमी हल्के- फुल्के झुलस गए हैं लेकिन कोई बड़ी जन हानि नहीं हुई है. बाकि अभी इनका मुआवजा तय कर रहे हैं. एक हफ्ते के अंदर इनकी रिकवरी करा दी जाएगी."
सोमवार दोपहर जब न्यूज़लॉन्ड्री की टीम दक्षिण पूर्वी दिल्ली के ओखला फेज-2 स्थित संजय कॉलोनी में ग्राउंड जीरो पर पहुंची तो वहां लोग अपने जले हुए घरों से मलबे में तब्दील हो चुके सामान को निकालने में लगे हुए थे. लगभग 30 घंटे बाद भी जहां-तहां धुआं निकल रहा था, जिसमें से बीच-बीच में आग की लपटें भी निकल रही थीं. चारों तरफ, जहां तक निगाह जाती वहां तक तबाही का मंजर ही नजर आ रहा था. कुछ लोग अपने जले हुए सामान को कबाड़े वालों को बेच रहे थे, तो कुछ अपने जले आशियाने के सामने गमगीन सोच- विचार की मुद्रा में थे.
बता दें कि इस कॉलोनी में शनिवार देर रात भीषण आग लग गई, जिसमें 100 से ज्यादा झोंपड़ियां जल कर राख हो गईं. गनीमत यह रही कि इस आग से किसी व्यक्ति को हानि नहीं पहुंची. हालांकि इन लोगों के मुताबिक कुछ मवेशियों की आग में जलकर मौत हो गई. आग लगने के कारण का अभी तक पता लग पाया है. कुछ लोगों ने बताया कि ये आग लगाई गई है जिससे हमें यहां से उजाड़ा जा सके.
आरोप यह भी है कि आग की सूचना देने के कई घंटों बाद दमकल की गाड़िया मौके पर पहुंचीं. फिलहाल इन लोगों के लिए स्थानीय तुगलकाबाद से विधायक चौ. सहीराम पहलवान की तरफ से पास ही तंबू गाड़कर रहने और खाने का इंतजाम कर दिया गया है. यहां रात में कंबल भी बांटे गए हैं. तंबू के अंदर दिखाते हुए एक शख्स ने कहा सर! जैसा देखो, वैसा ही लिखना. तंबू में कंबल और सोने का साफ-सफाई से अच्छा इंतजाम किया गया था. कुछ छोटे बच्चे खाना खा रहे थे.
दरअसल हरिकेश नगर मेट्रो स्टेशन से बिल्कुल लगी हुई इस कॉलोनी में झुग्गी और कुछ कपड़े के कतरन के गोदाम थे. यहां अधिकतर परिवार इसी कपड़े के स्क्रैप (कतरन) का काम करते हैं. यही उनकी रोजी- रोटी का जरिया है. इस आग ने यहां रहने वाले लोगों की लाखों की संपत्ति और घरों को तबाह कर दिया. अब इन्हें अपने भविष्य की चिंता सता रही है. बहुत से लोगों ने बताया कि उनके पास तो यही बचा है जो उन्होंने पहना हुआ है. इस दौरान मैट्रो की सुरक्षा में लगे जवानों ने भी इस मुश्किल घड़ी में इन लोगों को बचाने में काफी मदद की.
62 साल के भगवान दास प्रजापति अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अपने जले बर्तन और अन्य सामान समेट रहे थे. ये परिवार उत्तम नगर की कुम्हार कॉलोनी से मिट्टी के सामान लाकर यहां बेचने का काम करता था. इनके घर का सारा सामान ही नहीं बल्कि घर में रखे रुपये भी इस आग की भेंट चढ़ गए. कुछ अधजले 500 के नोट भी उन्होंने दिखाए. उनकी पत्नी अनारो देवी ने बताया, "तीन कोनों से आग लगी थी, हम तो सोए हुए थे. पता ही नहीं चला आग कैसे लगी. सब कुछ फ्रिज, टीवी ही नहीं तन के कपड़े भी नहीं बचे हैं. राशन कार्ड, आधार पैसे सब जल गया. आग लगभग एक बजे लगी लेकिन फायर ब्रिगेड ढ़ाई बजे पहुंची. उनकी पुत्र वधू ने पास ही छोटे से मंदिर की ओर इशारा करते हुए कहा कि मूर्तियां भी नहीं बचीं.
दूसरे छोर पर दो-तीन लोगों के साथ खड़े 30 साल के माधो सिंह भी अपना सब कुछ गंवा चुके हैं. उन्होंने कहा, “लगभग 10 साल से यहीं रहकर कपड़े के स्क्रैप का काम करते हैं. जो पहने हुए हैं यही बचा है. बर्तन-भांडे सब जल गए. बड़ी मुश्किल से बाहर निकले हैं.”
बबीता का भी यहां कारखाना था जो पूरी तरह जल गया. उन्होंने बताया, "हम एक्सपोर्ट कम्पनी से माल लाकर यहां बनाते थे. हमारे यहां 4-5 महिलाएं भी काम करती थीं. उनके रोजगार की भी दिक्कत हो जाएगी. कम्पनी में काम करने वाले यूपी के जेवर निवासी 25 साल के अजीत को खींचकर बाहर निकाला था."
बातचीत के दौरान यहां के लोगों को अपना आशियाना खोने का डर सता रहा है. उनका कहना था कि अब उनसे ये जगह न छीनी जाए क्योंकि यहीं से उनकी रोजी-रोटी और परिवार चलता है.
ऐसी आशंका हमसे यहां मिलीं 40 साल की सीता ने व्यक्त की. मूलरूप से लखनऊ निवासी सीता अपने जले हुए कांटे को कबाड़ी को बेज रही थीं. वे हमें अपने साथ ले गईं जहां उनका ठिकाना था, जो अब पूरी तरह जमीदोंज हो चुका है. पति की मौत के बाद सीता ही परिवार की जिम्मेदारी निभा रही हैं.
सीता ने कहा, “कुछ सामान नहीं बचा, जान बचाते या सामान. बस अब हमें यही जगह वापस मिल जाए वही काफी है. बाकि स्थानीयय विधायक ने रहने और खाने की सुविधा करा दी है. अच्छा खाना मिल रहा है.”
सीता के पास ही मालती देवी भी सिर पर हाथ रखे अपने जले हुए ठेलों और घर को देख रहीं थीं. परिवार में 2 लड़के और 2 लड़की हैं. मालती के पुत्र 23 साल के राकेश पढ़ाई के साथ ही घर के काम में भी हाथ बंटाते हैं. वह सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के देशबंधु कॉलेज से बीए की पढ़ाई कर रहे राकेश कुमार ने उस रात का वर्णन करते हुए बताया, "आग इतनी तेजी से फैली थी कि आग को इधर से उधर पहुंचने में बहुत कम टाइम लगा. हमें जान बचाने के लिए मैट्रो की दीवार कूदकर भागना पड़ा. मेरे सारे स्कूल के डॉक्यूमेंट भी जल गए."
इनके अलावा नवाब, खेमचंद, शेरसिंह, सरस्वती, हंसरानी, गौतम सहित जो लोग भी हमें यहां मिले सभी की यही कहानी है. जिनका सब सामान इस आग की भेंट चढ़ गया. नवाब और शेरसिंह ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा कि ये आग लगाई गई है.
सरस्वती ने एक अलग कहानी बताई, "सुबह हमें यहां से हटाने के लिए जेसीबी और डंफर भी आ गए थे. जो इस बचे मलबे को भरकर ले जाना चाहते थे. लेकिन स्थानीय विधायक ने आकर ऐसा नहीं होने दिया और हमारा सपोर्ट किया."
इस दौरान विधायक चौ. सहीराम पहलवान की ये सब लोग तारीफ करते नजर आए. दौरा करने आए विधायक से न्यूज़लॉन्ड्री ने बात की.
विधायक चौ. सहीराम घटना के बारे में बताते हैं, "जितने लोगों के घर जले हैं उनकी लिस्ट बनाकर भेज दी गई है, एसडीएम भी दौरा कर गए हैं. फौरी तौर पर रात ही इन्हें कंबल बांट दिए गए हैं. खाने और रहने के लिए अस्थाई तंबू का इंतजाम कर दिया गया है. लगभग 80 के आसपास घर जले हैं. एक दो आदमी हल्के- फुल्के झुलस गए हैं लेकिन कोई बड़ी जन हानि नहीं हुई है. बाकि अभी इनका मुआवजा तय कर रहे हैं. एक हफ्ते के अंदर इनकी रिकवरी करा दी जाएगी."
General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?