उत्तराखंड आपदा: राहत और बचाव का काम सेना के हवाले, 200 लोग लापता, 28 शव बरामद

उत्तराखंड के चमोली जिले में आई आपदा बचाव में लगे जवानों को सोमवार के दिन कोई खास सफलता नहीं मिली. 28 लोगों के शव बरामद हुए हैं.

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उत्तराखंड आपदा: राहत और बचाव का काम सेना के हवाले, 200 लोग लापता, 28 शव बरामद
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‘प्रवासी मज़दूरों पर पड़ी मार’

आपदा के शिकार लोगों में बहुत सारे प्रवासी मजदूर हैं. इनमें उत्तराखंड के अलावा, पश्चिम बंगाल, पंजाब, यूपी, बिहार और झारखंड के साथ जम्मू कश्मीर और नेपाल के मज़दूर भी हैं. केंद्रीय बिजली मंत्री आरके सिंह ने कहा कि वह सुनिश्चित करेंगे कि एनटीपीसी में मारे गये लोगों के परिवार को 20 लाख रुपये का मुआवाज़ा मिले. दूसरी तरफ स्थानीय लोगों का कहना है कि आपदाओं की मार गरीबों पर पड़ना सामान्य बात हो गई है.

घटना के बाद चमोली जिले के दौरे पर पहुंचे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने रविवार को घोषणा की थी कि मृतकों के परिजनों को चार लाख रुपए की आर्थिक सहयाता दी जाएगी.

घटनास्थल पर पहुंचे सीपीआई (एमएल) के नेता इंद्रेश मैखुरी ने हमारी टीम से बातचीत में कहा कि जहां सरकार पर्यावरण के नियमों की धज्जियां उड़ा कर इतने संवेदनशील इलाके में प्रोजेक्ट लगा रही है वहीं वह लोगों के अधिकारों और जीवन के प्रति बिल्कुल बेपरवाह है.

मैखुरी कहते हैं, “जहां यह दोनों प्रोजेक्ट (ऋषिगंगा और धौलीगंगा) लगे हैं वह नंदादेवी बायोस्फियर रिज़र्व का बफर ज़ोन है. यहां स्थानीय लोगों को पत्ता तक तोड़ने नहीं दिया जाता लेकिन बड़ी-बड़ी निजी और सरकारी कंपनियां अपने प्रोजेक्ट में नियमों की अवहेलना करती हैं और उसकी मार ऐसे गरीबों और प्रवासियों को झेलनी पड़ती है जो रोज़ी रोटी के लिये हज़ारों किलोमीटर दूर से यहां आते हैं.”

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घटना के बाद चमोली जिले के दौरे पर पहुंचे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने रविवार को घोषणा की थी कि मृतकों के परिजनों को चार लाख रुपए की आर्थिक सहयाता दी जाएगी.

घटनास्थल पर पहुंचे सीपीआई (एमएल) के नेता इंद्रेश मैखुरी ने हमारी टीम से बातचीत में कहा कि जहां सरकार पर्यावरण के नियमों की धज्जियां उड़ा कर इतने संवेदनशील इलाके में प्रोजेक्ट लगा रही है वहीं वह लोगों के अधिकारों और जीवन के प्रति बिल्कुल बेपरवाह है.

मैखुरी कहते हैं, “जहां यह दोनों प्रोजेक्ट (ऋषिगंगा और धौलीगंगा) लगे हैं वह नंदादेवी बायोस्फियर रिज़र्व का बफर ज़ोन है. यहां स्थानीय लोगों को पत्ता तक तोड़ने नहीं दिया जाता लेकिन बड़ी-बड़ी निजी और सरकारी कंपनियां अपने प्रोजेक्ट में नियमों की अवहेलना करती हैं और उसकी मार ऐसे गरीबों और प्रवासियों को झेलनी पड़ती है जो रोज़ी रोटी के लिये हज़ारों किलोमीटर दूर से यहां आते हैं.”

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