तमिलनाडु के मदुरई में भारत की पहली ट्रांसजेंडर फिल्म और पब्लिकेशन कंपनी खड़ी हो चुकी है. इसकी पहली फिल्म सितंबर में रिलीज होगी. फिल्म में ट्रांसजेंडर इतिहास को दिखाया जाएगा.
देश में आम तौर पर ट्रांसजेंडरों को घृणा से देखा जाता है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि हमारे समाज में उनके बारे में बात नहीं होती. अधिकतर फिल्मों में ट्रांसजेंडरों को भीख मांगते या सेक्स वर्क के पेशे के रूप में दिखाया जाता है. शायद यही वजह है कि हम ये नहीं सोच पाते कि वह देश की तरक्की में भी कभी योगदान दे सकेंगे. इसी भ्रम को तोड़ने के लिए 51 वर्षीय प्रिया बाबू देश की पहली ट्रांसजेंडर फिल्म और पब्लिकेशन कंपनी की शुरुआत कर रही हैं.
प्रिया बाबू ने जुलाई के महीने में तमिलनाडु में भारत की पहली ट्रांसजेंडर पब्लिकेशन और फिल्म कंपनी खोली है. यह फिल्म सितंबर में रिलीज होगी. वहीं इस पब्लिकेशन के बैनर तले पहली किताब, 'कोतरावाई' जुलाई के अंत तक प्रकाशित हो होगी.
प्रिया बाबू पिछले कई सालों से ट्रांसजेंडर समुदाय के उत्थान के लिए निरंतर काम कर रही हैं. वह कई किताबें लिख चुकी हैं. 2014 में उन्होंने मदुरई में ट्रांसजेंडर रिसोर्स सेंटर की नींव रखी और 2019 में प्रिया ने देश की पहली ट्रांसजेंडर लाइब्रेरी की शुरुआत की.
अब प्रिया बतौर डायरेक्टर और प्रकाशक अपने नए सफर की शुरुआत कर रही हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि उनका मानना है कि साहित्य और फिल्मों में ट्रांसजेंडरों की भूमिका को गलत तरीके से पेश किया जाता है.
प्रिया कहती हैं, "ट्रांसजेंडरों के बारे में बहुत कम लिखा जाता है. साहित्य से उनका नाम गायब रहता है. बड़ी फिल्मों और टीवी सीरियलों में ट्रांसजेंडरों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है. ट्रांसजेंडर किरदार को छोटे कपड़े पहना दिए जाते हैं. उनका मेकअप कर दिया जाता है. यह दिखाया जाता है कि वे आदमियों से यौन रूप से आकर्षित होते हैं और तंग करते हैं. इसलिए जब कोई व्यक्ति ट्रांसजेंडर को सड़क पर देखता है तो उसके मन में वही छवि आती है. फिल्मों से समाज में फैली इसी मानसिकता को खत्म करने के लिए मैंने फिल्म प्रोडक्शन कंपनी की शुरुआत की है."
प्रिया ने “ट्रांस फिल्म्स” नाम से फिल्म कंपनी की नींव रखी है. वह पिछले पांच साल से इस कंपनी को खड़ा करना चाहती थीं. इस साल कंपनी का रजिस्ट्रेशन हुआ. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को अपनी पहली फिल्म के बारे में जानकारी साझा की.
प्रिया बताती हैं, "हम फिल्म का शेड्यूल तैयार कर चुके हैं. जल्द ही इसकी शूटिंग शुरू होगी. फिल्म ट्रांसजेंडरों के इतिहास पर आधारित है. 'अरियागंदी' नाम की यह फिल्म एक ट्रांसवुमन के जीवन के बारे में है जिसने 400 साल पहले जमीन के हक के लिए लड़ाई लड़ी थी."
इस फिल्म को बनाने के लिए कई साल लग गए. इस संघर्ष को समझाते हुए प्रिया कहती हैं, "क्योंकि हम एक ऐतिहासिक फिल्म बना रहे हैं. ऐसी फिल्मों को बनाने के लिए लंबा और गहरा अध्ययन जरूरी है. उस समय महल हुआ करते थे. उस ढांचे को फिर से बनाना, कपड़े, कैमरा आदि में बहुत खर्च भी आता है. यह देश की पहली फिल्म होगी जिसे मैं यानी एक ट्रांसजेंडर डायरेक्ट कर रही है. साथ ही यह दुनिया की पहली फिल्म होगी जो ट्रांसजेंडर के इतिहास पर बनाई जा रही है. इस फिल्म का शूट अगस्त के आखिर तक चलेगा और सितंबर में हम इसका पहला पोस्टर रिलीज करेंगे."
ट्रांसजेंडरों पर फिल्म बनाना और उनकी कहानी किताब में लिखना क्यों जरूरी है?
प्रिया इसका जवाब देती हैं, "हर व्यक्ति की जाति आधारित या धार्मिक पृष्ठभूमि होती है. लेकिन लोग सोचते हैं कि ट्रांसजेंडरों का कोई इतिहास और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि नहीं है. हम फिल्मों में देखते हैं कि पुरुषों का वर्चस्व है. पुरुषों ने फिल्म जगत पर कब्जा कर रखा है. महिलाओं की भूमिका भी कम दिखाई जाती है. फिर ट्रांसजेंडर तो बिलकुल ही गायब रहते हैं. हमने भी कुर्बानियां दी हैं, लेकिन वह सामने नहीं लाया जाता. लोगों को पता ही नहीं है कि हमारे समुदाय का दर्जा क्या है."
प्रिया एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ के लिए काम करती हैं. उस पगार से हर महीने पैसे बचाकर किताब और फिल्म प्रोड्यूस कर रही हैं. साथ ही क्राउडफंडिंग का सहारा भी लिया गया है.
प्रिया भले ही आज समाज में अपने लिए एक ऊंचा दर्जा हासिल कर चुकी हैं लेकिन इस सफर में उनके परिवार ने कभी उनका साथ नहीं दिया. उस समय किताबों ने उनमें आत्मविश्वास को जिंदा रखा. अपने बचपन के बारे में प्रिया बताती हैं, "मेरे पिता सीए थे. जब मेरे शरीर में बदलाव होने लगे तो मेरे घरवाले मुझे घर से बाहर नहीं जाने देते थे. वे नहीं चाहते थे कि मेरी पहचान के बारे में लोगों को पता चले. मुझे मारा-पीटा गया. मैंने तीन बार आत्महत्या करने की कोशिश की. उस समय मैं अपने कमरे में बंद रहती थी. मैं अपना सारा समय किताबें पढ़कर गुजारती थी. तब मुझे किताबों की कीमत समझ आई."
12 वीं के बाद प्रिया घर छोड़कर मुंबई चली गईं. मुंबई में उन्होंने भीख मांगना, सेक्स वर्क, डांस जैसे काम किए. जो पैसा आता था उसे वह किताब खरीदने के लिए इस्तेमाल करतीं. किताबें ही थीं जिनके कारण प्रिया ने जीवन में कुछ अलग करने का मन बना लिया था.
प्रिया कहती हैं, "उस दौरान मुझे 'वाडमली' नाम की एक किताब मिली. उस नॉवेल में एक एक्टिविस्ट का किरदार था जो ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए लड़ती है. मैं उस किरदार से बहुत प्रभावित थी और तब से मैंने अपना जीवन अन्य ट्रांसजेंडरों की जिंदगी आसान बनाने के लिए समर्पित कर दिया."
The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.
ContributeGeneral elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?